बुधवार, 21 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी वर्मा की लघुकथा ----- राशन


"नीतू,  यह बासन मांझ के रख दे और जल्दी से आटा मल कर चार रोटी सेक दे। तेरे बापू खेत पे को जाएंगे खाना खाकर। 

अंदर नीतू अपना बैग लगा रही थी। उसे स्कूल जाना था। वह गांव के ही एक प्राइमरी विद्यालय में कक्षा 5 में पढ़ती थी। आवाज सुनते ही उसने उदास होते हुए अपना बैग एक तरफ उठाकर रख दिया और मां से बोली "मां, आज टीचर जी नया पाठ पढ़ाएंगी, अगर मैं स्कूल नहीं जाऊंगी तो मुझे कुछ भी समझ में ना आएगा। उसकी बात बीच में काटते हुए उसकी मां बोली हां तू पढ़कर कोई कलेक्टर ना बन जाएगी बर्तन निपटा जल्दी से। नीतू जल्दी से बासन मांजने लगी सारा काम करते हुए 10:00 बज चुका था। बैग लेकर स्कूल जाने लगी बोली "मां मैं स्कूल जा रही हूं।" मां बोली "स्कूल में कौन सा पढ़ाई होत है जो कपड़े पड़े हैं वह धो ले। मैं भैंस को चारा डाल दूं। नीतू स्कूल नहीं जा पाई घर के कामों में ही लगी रही।

 अगले दिन सुबह जल्दी तैयार होकर स्कूल जाने लगी अम्मा ने उसे प्रतिदिन की तरह फिर से घर के कामों में लगा दिया। वह पढ़ना चाहती थी लेकिन मां बापू के काम ही खत्म नहीं होते थे। नीतू कभी घर के काम को देखती थी। कभी अपनी किताबों को देखती थी और कभी अपने सपनों को मन ही मन निहारती थी । 

     विद्यालय में बच्चों  के नामांकन को देखकर सभी शिक्षिकाएं एवं प्रधानाचार्य भी चिंतित थे। ग्रामवासी पढ़ाई से ज्यादा अपने घरेलू कार्यों को महत्व देते थे। नीतू ने एक दिन मां से कहा "मां, विद्यालय  जाने पर ही राशन मिलेगा और हमारी टीचर कह रही थी कि अगर तुम  प्रतिदिन विद्यालय विद्यालय नहीं आओगी सरकार की तरफ से मिलने वाला राशन कम हो जाएगा अब हमारी उपस्थिति जाया करेगी राशन कार्ड के साथ साथ‌। हमें हमारी उपस्थिति भी दिखानी पड़ेगी तभी जाकर हमें पूरा राशन मिलेगा।" नीतू की मां घबरा गई। भागी भागी प्रधानाचार्य के पास गई और बोली मास्टरजी कौन से नियम कानून पढ़ा रहे हैं आप, राशन नहीं मिलेगा यह कौन सी बात हुई? प्रधानाचार्य जी बोले महोदया सरकार ने नया नियम पारित किया है कि बच्चे की उपस्थिति के अनुसार ही राशन ग्राम वासियों को बांटा जाएगा। यदि आपका बच्चा आता है तो आपको पूरा राशन मिलेगा अन्यथा नहीं और नीतू मन ही मन खुश होने लगी क्योंकि अब स्कूल  प्रतिदिन जाने को मिलेगा। अगली सुबह नीतू अपना बैग लगा रही थी। तभी मॉं की आवाज आई। अरे, "नीतू जल्दी जा स्कूल कहीं तेरी छुट्टी ना लग जाए।"


✍️ मीनाक्षी वर्मा, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश 

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेन्द्र शर्मा सागर की कहानी ------ और वह मर गयी


नदी किनारे गांव के एक छोर पर एक छोटे से घर में रहती थी गांव की बूढी दादी माँ। घर क्या था ,उसे बस एक झोंपडी कहना ही उचित होगा। गांव की दादी माँ, जी हां पूरा गांव ही यही संबोधन देता था उन्हें। नाम तो शायद ही किसी को याद हो।

70/75 बरस की नितान्त अकेली अपनी ही धुन में मगन। कहते हैं पूरा परिवार था उनका नाती पोते वाली थीं वो। लेकिन एक काल कलुषित वर्षा की अशुभ!! रात की नदी की बाढ़ ,,, उनका सब समां ले गई अपने उफान में । 

उसदिन सौभाग्य कहो या दुर्भाग्य कि, वो अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ बच्चा होने की खुशियां मनाने गई हुई थीं। कौन जानता था कि वह मनहूस रात उनके ही नाती बेटों को उनसे दूर कर, उन्हें ही जीवन भर के गहन दुःख देने को आएगी। 

उसी दिन से सारे गांव को ही उन्होंने अपना नातेदार बना लिया, और गांव वाले भी उनका परिवार बन कर खुश थे।किसी के घर का छोटे से छोटा उत्सव भी उनके बिना न शुरू होता न ख़तम। गांव की औरतें भी बड़े आदर से पूछती," अम्मा "ये कैसे करें वो कैसे होता है और अम्मा बड़े मनुहार से कहती इतनी बड़ी हो गई इत्ती सी बात न सीख पाई अभी तक । सब खुश थे सबके काम आसान थे । किसी के यहां शादी विवाह में तो अम्मा 4 दिन पहले से ही बुला ली जाती थीं।हम बच्चे रोज शाम जबतक अम्मा से दो चार कहानियां न सुन ले न तो खाना हज़म होता और न नींद ही आती। अम्मा रोज नई नई कहानियां सुनाती राजा -रानी, परी -राक्षस, चोर -डाकू ऐंसे न जाने कितने पात्र रोज अम्मा की कहानियों में जीवंत होते और मारते थे।

समय यूँही गुजर रहा था और अम्मा की उम्र भी। आजकल अम्मा बीमार आसक्त हैं उनको दमा और लकवा एक साथ आ गया। चलने फिरने में असमर्थ , ठीक से आवाज भी नहीं लगा पाती । कुछ दिन तो गांव वाले अम्मा को देखने आते रहे, रोटी पानी दवा अदि पहुंचते रहे। लेकिन धीरे धीरे लोग उनसे कटने लगे बच्चे भी अब उधर नहीं आते कि, कहीं अम्मा कुछ काम न बतादे। 

वो अम्मा जिसका पूरा गांव परिवार था अब बच्चों तक को देखने को तरसती रहती।

वही लोग जिनका अम्मा के बिना कुछ काम नहीं होता था , अब उन्हें भूलने लगे। 

औरते अब बच्चो को उधर मत जाना नहीं तो बीमारी लग जाएगी की शिक्षा देने लगी। 

अम्मा बेचारी अकेली उदास गुनगुना रही है- 

सुख में सब साथी दुःख में न कोई। 

अब तो कोई उधर से गुजरता भी नहीं । अम्मा आवाज लगा रही है अरे कोई रोटी देदो। थोड़ा पानी ही पिला दो।।।।!!

नदी किनारे रहकर भी अम्मा पानी के घूँट को तरसती उस रात मर गई। 

सुबह किसी ने देखा और गांव में खबर फैली कि बुढ़िया जो नदी किनारे रहती थी आज मर गई।

लोग आये दो चार बूँद आंसू गिराये औरतों में चर्चा थी बेचारी सब के कितना काम आती थी,और आज मर गई।

कुछ देर में बुढ़िया का शरीर आग के घेरे में पड़ा था। लोग अपने घर लौट रहे थे और अब कहीं चर्चा नहीं थी कि वह मर गई। 

यही दुनिया है यही इसकी रीत है। जीवित हैं तो सबके हैं । मर गए तो भूत हैं। और कोई याद तक नहीं करता कि वह मर गई।

,✍️नृपेंद्र शर्मा "सागर"

ठाकुरद्वारा मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा -----अनुचित निर्णय


"तुम्हारा कहा माना ।सबने मनाई।मैंने नहीं माना ।मन के एक कोने में तुम्हारा चित्र आज भी साफ सुथरा सुशोभित है । तुम कहते थे कि अधिकारी बनकर सब ठीक हो जाएगा ।मैं इन्तज़ार में क्या से क्या हो गई ।उम्र पक गई पर तुम नहीं लौटे।पाँच बहनों ने अपने घर बसा लिए ।माँ बाबू जी चल बसे।

आज भी बाबला मन तुमको पूजता है जबकि उसे पता है कि तुम अपनी दुनिया में मुझे बहुत पीछे छोड़ चुके हो ।काश कि तुम ........। "सिसकियों के साथ अवनि ने अपने द्वारा लिए गये निर्णय की भर्त्सना की ।बीस साल पूर्व लिए गये उसके अनुचित निर्णय ने उसको जीवन के पथ पर बिल्कुल अकेला कर दिया ।काश कि समय रहते वो भी .......।

✍️डॉ प्रीति हुँकार, मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का व्यंग्य ---उनका सठियाना

   


उनका सठियाना इस तरह एक समारोह के रूप में मनाया गया  कि सर्वप्रथम तो उन्हें यह आत्मबोध हुआ कि वह मात्र 60 वर्ष के नहीं हो रहे हैं अपितु सठिया रहे हैं अर्थात यह एक दिव्य अनुभव है । ऐसा ही जैसे कोई आत्मसाक्षात्कार हो रहा हो अथवा ईश्वर के दर्शन साक्षात होने जा रहे हों।

        घर पर पत्नी से उन्होंने कहा प्रिय ! अब हम कुछ ही दिनों में सठिआने वाले हैं। सोचते हैं कि एक भव्य समारोह का आयोजन कर दिया जाए । पत्नी ने झुँझला कर कहा "तुम तो शादी के समय से ही सठिआए हुए थे ।बस मैं ही थी ,जो तुम्हें अब तक झेल रही हूँ। तुम्हारा जो मन आए करो मुझसे मत पूछो ।"

      घरवाली के व्यंग्य वाण से आहत होकर उन्होंने अपनी ससुराल में फोन किया तथा साले से कहा  "अब हम सठिया रहे हैं । कुछ समारोह का आयोजन होना चाहिए।"

       वह बोला "जीजा जी ! अब शादी के इतने साल के बाद आप डिमांड करना बंद कर दीजिए अन्यथा मुझे जीजी से आपकी शिकायत करनी पड़ेगी । मैं आपकी कोई भी माँग पूरी नहीं करूँगा ।"

      ससुराल से भी जब वह.निराश हो गए तब उन्होंने अपने कुछ मित्रों को इकट्ठा किया । उन्हें चाय पर बुलाया तथा अपनी सठिआने की योजना सामने रखी । यह भी कहा कि वह खर्चा - पानी के लिए तैयार हैं। बस सठिआने का एक अच्छा सा कार्यक्रम हो जाना चाहिए । मित्रों को हँसी- ठिठोली सूझी। आपस में विचार किया ,कानाफूसी हुई और कहने लगे कि चलो !अच्छा हास्य कार्यक्रम हो जाएगा। इनका सठिआना भी एक समारोह के रूप में मना लिया जाएगा। सब ने कहा "हाँ भाई साहब ! सठियाना एक अद्भुत क्षण होता है ,जो जीवन में केवल एक बार ही आता है । हम इस अवसर पर आपका पूरी तरह से विधि - विधान से सठिआना-  उत्सव आयोजित करेंगे। बस यह बताइए कि इसमें करना क्या होगा ?"

              भाई साहब सोच में पड़ गए । उन्हें यह नहीं मालूम था कि सठियाना किस प्रकार से समारोह पूर्वक मनाया जाता है। लेकिन फिर भी सब लोगों ने जब यह देखा कि भाई साहब खर्च करने के लिए तैयार हैं तब उन्होंने एक होटल में कार्यक्रम रख लिया। बड़ा सा केक काटा । रात्रिभोज का प्रबंध था । भाई साहब को एक फूलों की माला पहना दी । सिर पर मुकुट रख दिया और तालियाँ बजाकर कहने लगे "आपको सठिआना मुबारक !"

       भाई साहब खुश हो गए । जब कार्यक्रम समाप्त हुआ तो भाई साहब सठिआई हुई मुद्रा में थे । होटल से बाहर आए तो कहने लगे " अब हमारी जेब में कुछ भी पैसे नहीं बचे । जितने बैंक में जमा करके रखे थे, सब सठियाना - समारोह में खर्च हो गए ।"

       सोचने लगे कि यह सब कैसे हो गया ? और फिर इसी निष्कर्ष पर पहुँचे कि "क्या बताएँ ,अब हम सठिया गए हैं।"

 ✍️ रवि प्रकाश 

बाजार सर्राफा,रामपुर (उत्तर प्रदेश)

 मोबाइल 99976 15451

वाट्सएप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। मंगलवार 22 सितंबर 2020 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों वीरेंद्र सिंह बृजवासी, डॉ प्रीति हुंकार, विवेक आहूजा, डॉ पुनीत कुमार, प्रीति चौधरी, अशोक विद्रोही, दीपक गोस्वामी चिराग, नजीब जहां, सीमा रानी, मरगूब अमरोही, हेमा तिवारी भट्ट, मीनाक्षी ठाकुर, डॉ रीता सिंह, कमाल जैदी वफ़ा, राशि सिंह, रामकिशोर वर्मा, श्री कृष्ण शुक्ला और मीनाक्षी वर्मा की बाल रचनाएं------


आओ मित्र चलो चलते हैं

हम      तालाब     किनारे
मगरमच्छ की  बात सुनेंगे
बन     करके     मछुआरे।
         --------------
कहा  मित्र ने बड़ा   क्रूर  है
मगरमच्छ         अभिमानी
उसके पास पहुंचने की मत
करना       तुम      नादानी
क्यों संकट में  डाल  रहे हो
असमय     प्राण      हमारे।
आओ मित्र---------------

इसके जबड़ोंकी ताकत का
तुमको     पता    नहीं     है
एक बार जो मुंह में   आया
फिर   वह   बचा   नहीं   है
मछुआरों की चाल समझते
मगरमच्छ      भी       सारे।
आओ मित्र----------------

तुमको  जाना है  तो जाओ
मुझे     माफ़    कर    देना
मगरमच्छ  की बातों से भी
नहीं     मुझे     कुछ   लेना
फिरकहता हूँ  वापस लौटो
करो    नहीं   ज़िद    प्यारे।
आओ मित्र---------------

कान लगाकर सुननी चाहीं
मगरमच्छ     की       बातें
लेकिन  मगरमच्छ  बैठे थे
स्वयं       लगाकर     घातें
जकड़ा आकरके जबड़े में
बिछड़े      मित्र      बेचारे।
आओ मित्र---------------

सही बात जो  नहीं  मानते
वह      मूरख      कहलाते
खतरनाक राहोंको चुनकर
जीवन      व्यर्थ      गंवाते
सच्ची  बातें   सुनने   वाले
होते        सबसे       न्यारे।
आओ मित्र---------------

✍️वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
मो0-   9719275453
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बच्चों मैं अखबार निराला
खट्टी मीठी खबरों वाला
सुबह सुबह मैं दौड़ा आता
सब दुनिया की सैर कराता
पङा हुआ मै दरवाजे पर
खोलो अपने घर का ताला
बच्चों मैं................
सारे जग की खबर सुनाता
बच्चों का भी दिल बहलाता
यों तो मैं हूँ श्वेत वर्ण का
खबरों से हो जाता काला
बच्चों मैं................
✍️डॉ प्रीति हुँकार, मुरादाबाद
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ओ मेरी लाडली , घर के बाहर तुम जाना नहीं ,
बाहर गर जाओ ,तो लेकर कुछ खाना नहीं ।
बड़ी हो गई हो तुम , ज्यादा पड़ेगा तुम्हें समझाना नहीं , वक्त है खराब ,भलाई का जमाना नहीं ।
अच्छे से समझ लो तुम ,गर तुमने मेरा कहा माना नहीं ,
जमाने का क्या भरोसा, बाद में पछताना नहीं ।।

✍️विवेक आहूजा, बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com
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मैं हूं फूल
नीले  अम्बर  के  नीचे
खुली जमीं पर रहता हूं
जाड़ा गर्मी और वर्षा
सबको हंसकर सहता हूं
उफ नहीं करता,बन कर
रहता  हूं  अनुकूल

कोई नहीं है चिन्ता मुझको
मैं मुस्काता रहता हूं
संकट मेेें भी हंसना सीखो
ये समझाता रहता हूं
फर्क नहीं पड़ता है मुझको
कितने भी हो शूल

अपनी खुशबू से सारी
बगिया को महकाता हूं
बच्चे बूढ़े और जवान
सबका मन हर्षाता हूं
देवों के चरणों मेेें चढ़
सब कुछ जाता भूल

✍️डाॅ पुनीत कुमार
T -2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद 244001
M 9837189600
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सुन तकिए
माँ वाली लोरी सुना
मुझे सहला

रात भर हैं
बदली करवटें
नींद को बुला

नींद वही जो
माँ के आँचल में थी
लेकर तू आ

बहुत दिन
हुए देखे सपने
परी से मिला

थक गयी हूँ
दे प्यार की थपकी
अब तो सुला
                              
✍️ प्रीति चौधरी
गजरौला,अमरोहा
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आओ सब को बचपन की
      एक सच्ची कथा सुनाता हूं !
बीत गया कब का सब कुछ
         पर भूल नहीं मैं पाता हूं!!
घुमा रहा था मैं कुत्ते को
        सुबह सबेरे जब चल कर;
टूट पड़ा तब ,मोती, कुत्ता
         भौंक भौंक उसके ऊपर ।
द्वंद छिड़ा दोनों कुत्तों में
         उनमें जम कर युद्ध चला;
हाथ छिले जंजीर से मेरे
       मेरा कुछ भी बश न चला ।
पूंछ दबा कर आखिर मोती,
       भौं भौं करना भूल गया,
अपने 'पीलू' ने रण जीता
         और गर्व से फूल गया ।।
घायल मोती नीचे झुक कर
         अपमानित हो भाग छुटा,
मेरा ,पीलू ,हांफ हांफ कर
        भौं भौं करने में था जुटा ।।
फिर एक दिन मोती से मेरा
            पड़ा अकेले में पाला,
झपटा मुझ पर क्रोधित हो
          कंधे का मांस उड़ा डाला।
खूं से लथपथ घर पहुंचा
       तो मूक जानवर भांप गया,
जोर लगा जंजीर तोड़ कर
           पागल पीलू भाग गया ।
चीर फाड़ डाला मोती को
           बेबस किया शिकार गया,
पीलू की स्वामीभक्ति में
           मोती स्वर्ग सिधार गया ।।
वफादार होते हैं कितने
             कुत्ते सब  बतलाते हैं,
मैं पीलू को याद करूं,
             मेरे नैना भर आते हैं !!
यादें ये बचपन की हैं पर
      तब न था मुझे इतना ज्ञान
कंधे से गहराअंकित है
      अब भी दिल में बना निशान!!

✍️अशोक विद्रोही
82 188 25 541
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
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चाऊं बिल्ली, म्याऊं बिल्ली ।
दोनों बिल्ली बड़ी चिबिल्ली ।
नटखट, दोनों खास सहेली। 
मिलकर दोनों एक पहेली ।

बीच रास्ते रोटी पाई।
दोनों में हो गई लड़ाई।
मेरी रोटी-मेरी रोटी ।
भिड़ गयीं दोनों बिल्ली मोटी।

फिर आया वह कालू बंदर ।
वानर था वह मस्त-कलंदर ।
बंद करो तुम बहिन लड़ाई ।
देखो अब मेरी चतुराई।

एक तराजू लेकर आए।
रोटी के दो भाग कराए।
दोनों पलड़े आधी रोटी।
पर उसकी नीयत थी उसकी खोटी।

जो पलड़ा भी दिख गया भारी।
उसकी रोटी मुंह में मारी।
बांयी खायी, दांयी खायी।
फिर से बांयी, फिर से दांयी।

दोनों देख रही बर्बादी।
होती जा रही, रोटी आधी।
चाऊं ने म्यांऊ को देखा,
म्याऊं ने चाऊं को देखा।
दोनों में कुछ हुआ इशारा ।
झगड़ा मिट गया पल में सारा।

रुको-रुको  ओ! कालू भाई।
बन गए भाई आज कसाई।
बंद करो ये अपना लफड़ा।
खत्म हो गया है यह झगड़ा।

छीने फिर रोटी के टुकड़े।
खिल गये उन दोनो के मुखड़े।
मिलीं गले,फिर बंद लड़ाई।
मिल कर वो रोटी फिर खाई।

✍️दीपक गोस्वामी 'चिराग'
शिव बाबा सदन,कृष्णाकुंज
बहजोई(सम्भल) 244410 उ. प्र.
मो. 9548812618
ईमेल-deepakchirag.goswami@gmail.com
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मेरी गुड़िया प्यारी है
इसकी बातें न्यारी हैं
न होऊं मैं जबभी पास
रूठे सदा दुलारी है

मेरी गुड़िया कैसे माने
ये बस मेरा दिल ही जाने
चॉकलेट और खेल  खिलौने
से न प्यारी गुड़िया माने

पड़े मनाना काम छोड़कर
इसके पीछे दौड़  दौड़ कर
वरना पड़ जाती है ये तो
खाटिया पर चादरें ओढ़ कर

इसे मनाना बहुत जरूरी
गुड़िया  बिन जिंदगी अधूरी

✍️नजीब जहां
प्रेम वंडरलैंड, मुरादाबाद
9837508724
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काले -काले बदरा आये,
उमड़ -घुमड जल भर लाये |

झम -झम झम बूँदें गिरती ,
वसुधा का अन्तस्थल भरती |

चहुँ दिशि फैली हरियाली,
फूल पत्तियाँ हुई निराली |

शीतल -शीतल बहे बयार,
गूँजे जैसे राग मल्हार |

दादुर माेर पपीहा बाेले,
अन्तर्मन में रस सा घाेलें |

आह! वर्षा रानी आयी है,
संग ढेराें खुशियां लायी है |

✍🏻 सीमा रानी
  पुष्कर नगर अमराेहा
  7536800712
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ये दूध है होता संपूर्ण आहार।
रहती इस में ताक़त भर मार।।
ज़रूर पियो दिन में एक बार।
कहते आ रहे सब बुज़ुर्ग वार।।

    करते बच्चे पीने से जो इंकार।             
    हड्डी रह जाती उन की बेकार।।          
    बच्चों का कैसा ये अब संसार।        
   फास्ट फूड से करते सब प्यार।।
                        
रोज़ बढ़ रहा इसका व्यापार।                              
बच्चों को है ये करता बिमार।।                      
समझ लो इन पंक्ति का सार।                              
बन जाओ तुम अब होशियार।।
 
✍️-मरग़ूब अमरोही
दानिशमन्दान, अमरोहा                              मोबाइल-9412587622
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बिल्ली मौसी,बिल्ली मौसी
मेरे घर तुम आ जाना।
धमा चौकड़ी करते चूहे,
उनको सबक सिखा जाना।

कपड़े,खाना,कॉपी,पुस्तक
इन दुष्टों के साये हैं।
रहे नहीं साबुत कहीं कुछ ,
सब पर दाँत चलाये हैं।

चूहेदानी रखी हुई है,
शैतानी पर जारी है।
कुतर गये हैं टाई मेरी,
अब जूतों की बारी है।

प्यारी मौसी अच्छी मौसी
अब जल्दी से आओ तुम।
पिद्दी चूहे शेर हो रहे,
इनको हद में लाओ तुम।

✍️हेमा तिवारी भट्ट,मुरादाबाद
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एक दो तीन  चार
कोरोना की होगी हार

पाँच छह सात आठ
करो भीड़ का बायकॉट ।

नौ दस हमसे बोलें
हाथों को साबुन से धो लें।

ग्यारह बारह करें पुकार
स्वच्छ रखो अपना घर -बार।

तेरह चौदह का ये कहना
बस अपने घर पर ही रहना

पंद्रह सोलह कहते हमसे
नहीं निकलना अपने घर से।

सतरह और अठारह कहते
मास्क लगाकर रोग से बचते।

उन्नीस और बीस की बारी
देश बचाना ज़िम्मेदारी ।।

✍️मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार
मुरादाबाद
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गोरे - गोरे बादल आये
पानी रत्ती भर न लाये
सजा रहे बस नील गगन को
तेज धूप में मन न भाये ।
गोरे - गोरे.....

दौड़ रहे हैं नभ अँगना ये
लुका छिपि है खेल सुहाये
धवल - धवल से लगते सुंदर
पर साथ उमस के हैं धाये ।
गोरे - गोरे....

स्वांग भरते अनगिन दिनभर
बाल मनों को खूब लुभाये
कभी पहाड़ कभी नदिया बन
पल पल कितने रूप बनाये ।
गोरे - गोरे .....

✍️डॉ. रीता सिंह
मुरादाबाद
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हम बच्चे मन के सच्चे है,
इसीलिये तो अच्छे है।।                                            रखते नहीं हैं मन मे बैर,
नही समझते किसी को गैर।                                    खेलें मिलकर सारे खेल,
आपस में रखतें है मेल।
जाति -पांति का भेद न माने,
सबको अपने जैसा जाने।
अच्छी अच्छी बातें सीखें,
तभी तो सबसे सुंदर दीखे।

✍️कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
सिरसी (सम्भल)
9456031926
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चलो फिर बचपन याद करते हैं
मुस्कराकर फिर से वहां चलते हैं

जुगनुओं को बंद कर हथेली में
उजाला करना
तितलियों के पीछे दौड़कर
बहुत दूर जाना
चलो लौटकर फिर वहीं चलते हैं
चलो बचपन.......................

वो बेफिक्री से रहना खाना और
जमीन पर सो जाना
उठकर आँख मलते हुए फिर
खेलने जाना
चलो लौटकर वहीं चलते हैं
चलो बचपन......................

वो दादी नानी के मूँह सुनी राजा रानी
शेखचिल्ली की कहानी
वो दादा जी का हाथ पकड़कर करना
खूब मनमानी
चलो लौटकर वहीं चलते हैं
चलो बचपन.................................

चलो फिर बचपन याद करते हैं.

✍️राशि सिंह
वेवग्रीन कॉलोनी, मुरादाबाद
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चारों ओर पहाड़ी दिखती, नदिया कल-कल बहती जाय ।
खेतों झूम रही हरियाली, पवन रही कैसे मचलाय ?

धरती पर तोपें दिखती हैं, आसमान में जैट दिखाय ।
युद्धपोत सागर में दौड़ें, मोटर में सेना चढ़ आय ।।

दृश्य अजीब लगे यह मुझको, कौन रहा है जो उकसाय ।
आंँक रहा जो कमतर हमको, लगता उसको मौत बुलाय ।।

अपन देश की जनता देखो, उसके हित की सोचो जाय ।
विश्व को शांतिमय रहने दो, अहंकार से मत इतराय ।।

भारत देश का बाल-बूढ़ा, दुश्मन से महिला भिड़ जाय ।
भारत मां है हमको प्यारी, सब कुछ इस पर बलि-बलि जाय ।।

✍️राम किशोर वर्मा
रामपुर
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कितना भोला है बचपन।
चले जिधर ले जाए मन।
रूठ गए फिर मान गए,
बच्चों का अद्भुत जीवन।

छल फरेब ये ना जानें।
सबको ही अपना मानें।
जिसने हँसकर बात करी,
उसको ही दे बैठे मन।

जात धर्म की सोच नहीं।
छुआछूत का भेद नहीं।
साथ खेलते खाते हैं,
इनसे सीखो अपनापन।

बैर न इनमें आ जाए।
मन में जहर न घुल जाए।
इनको ऐसे ढालो तुम,
बना रहे ये अपनापन।

✍️श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG 69,
रामगंगा विहार,
मुरादाबाद।
मोबाइल नंबर 9456641400
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मंगलवार, 20 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के अफजलगढ़ (जनपद बिजनौर)निवासी साहित्यकार डॉ अशोक रस्तोगी का गीत उन्हीं की हस्तलिपि में -अनजाने शहर में


 

मुरादाबाद के साहित्यकार ( वर्तमान में आगरा निवासी ) ए टी ज़ाकिर की कविता उन्हीं की हस्तलिपि में -लेने का देना





 

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की रचना उन्हीं की हस्तलिपि में




 

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक की ग़ज़ल उन्हीं की हस्तलिपि में ---जीवन में गम आने पर जो घबरा जाते हैं ,उनको हासिल खुशियों की सौगात नहीं होती ....


 

सोमवार, 19 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर का मुक्तक उन्हीं की हस्तलिपि में


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश के चार दोहे उन्हीं की हस्तलिपि में ...


 

मुरादाबाद के साहित्यकार अनुराग रोहिला का गीत उन्हीं की हस्तलिपि में


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार सन्तोष कुमार शुक्ल सन्त का गीत उन्हीं की हस्तलिपि में ----कौन किसको पूछता है ,स्वार्थ के सम्बंध सारे .......


 

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद सम्भल ) निवासी साहित्यकार दीपक गोस्वामी चिराग की गजल उन्हीं की हस्तलिपि में -- नशीली सी मदमस्त दरियाई आंखे, उन्हीं में सदा डूबना चाहता हूं ......


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मरगूब अमरोही की रचना उन्हीं की हस्तलिपि में ---मोबाइल


 

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ शोभना कौशिक की रचना उन्हीं की हस्तलिपि में


 

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही का गीत उन्हीं की हस्तलिपि में ----अमर शहीदी लाशों पर चढ़कर आजादी आयी है ....


 

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की रचना उन्हीं की हस्तलिपि में .....


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल(वर्तमान में मेरठ )निवासी साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी की कविता उन्हीं की हस्तलिपि में


 

रविवार, 18 अक्तूबर 2020

संस्कार भारती मुरादाबाद महानगर के तत्वावधान में रविवार 18 अक्टूबर 2020 को मातृ शक्ति विषय पर संस्कार भारती साहित्य समागम का आयोजन किया गया । बाबा संजीव आकांक्षी के मुख्य आतिथ्य में आयोजित इस कार्यक्रम में साहित्यकारों अशोक विश्नोई, योगेंद्र वर्मा व्योम, मुजाहिद चौधरी, राजीव प्रखर, डॉ रीता सिंह, इशांत शर्मा ईशु, नृपेन्द्र शर्मा सागर, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, इंदु रानी और ठाकुर अमित कुमार सिंह की काव्य रचनाएं ------



          माँ अष्ठ भुजा धारी,
          करें शेरों की सवारी ।
          श्रद्धा भक्ति और विश्वास
          मेरी यही अरदास ।
          बाकी सब बेकार,
          करो माँ इसे स्वीकार।
          दुनियां तुम पर बलिहारी,
          माँ अष्ठ---------------।
          करे मेहर की जो छाया,
          कुंदन बन जाती काया।
          भागे दूर सभी अंधियारा,
          फैले चारों ओर उजियारा।
          संकट कट जायें सब भारी,
          माँ अष्ठ-----------------।
          संसार की तुम चालक,
          भक्तों की तुम पालक ।
          जो भी तुम को पुकारे ,
          होते उसके वारे न्यारे ।
          होती जब कृपा तुम्हारी,
          माँ अष्ठ------------------।
                             
✍️अशोक विश्नोई, मुरादाबाद
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किसको चिंता, किस हालत में
कैसी है अब माँ

सूनी आँखों में पलती हैं
धुँधली आशाएँ
हावी होती गईं फर्ज पर
नित्य व्यस्तताएँ
जैसे खालीपन कागज का
वैसी है अब माँ

नाप-नापकर अंगुल-अंगुल
जिनको बड़ा किया
डूब गए वे सुविधाओं में
सब कुछ छोड़ दिया
ओढ़े-पहने बस सन्नाटा
ऐसी है अब माँ

फर्ज निभाती रही उम्र-भर
बस पीड़ा भोगी
हाथ-पैर जब शिथिल हुए तो
हुई अनुपयोगी
धूल चढ़ी सरकारी फाइल
जैसी है अब माँ

✍️योगेंद्र वर्मा व्योम, मुरादाबाद
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लोरियां मुझको सुनाएगी तो नींद आएगी ।
मां तू सीने से लगाएगी तो नींद आएगी ।।
अपने हाथों में छुपा कर के मेरे चेहरे को ।
अपने पहलू में सुलाएगी तो नींद आएगी ।।
फिरसे परियों की कहानी भी सुनाना तू मुझे ।
मुझको चंदा तू दिखाएगी तो नींद आएगी ।।
मुझको बरसों से मयस्सर नहीं कोई चैनो सुकूं ।
अपने दामन में छुपाएगी तो नींद आएगी ।।
तेरी आवाज़ को सुनने को मैं तरसूं कब तक ।
जब कोई गीत सुनाएगी तो नींद आएगी ।।
मैंने मुद्दत से कोई ख़्वाब नहीं देखा है ।
ख्वाब आंखों में सजाएगी तो नींद आएगी ।।
मैं हूं अनजान तू नाराज़ है आखिर क्यों कर ।
जब सज़ा कोई सुनाएगी तो नींद आएगी ।।
कैसे भूलेगा मुजाहिद वो मोहब्बत का सफ़र ।
फिर से सब याद दिलाएगी तो नींद आएगी ।

✍️ मुजाहिद चौधरी , हसनपुर अमरोहा
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हरे-भरे कलरव से गुंजित, प्यारा सा संसार मिला।
घोर अकेलेपन से लड़कर, जीने का आधार मिला।
बरसों से सूनी बगिया में, ज्यों ही पौध लगाई तो,
मैंने पाया मुझको मेरा, बिछुड़ा घर-परिवार मिला।
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दोहे
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सीपी बोली बूंद से, ओ कणिका नादान।
आकर मेरे अंक में, ले जा नव-उन्वान।।

पुतले जैसा जल उठे, जब अन्तस का पाप।
तभी दशहरा मित्रवर, मना सकेंगे आप।।

इधर धरा पर हो रहा, बेटी का अपमान।
उधर गगन में गूंजता, माता का गुणगान।।

क्या तीरथ की कामना, कैसी धन की प्यास।
जब बैठी हो प्रेम से,  अम्मा मेरे पास।।

✍️- राजीव  'प्रखर',मुरादाबाद
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भव्या अभव्या भाव्या भवानी
भवमोचिनी हो तुम्हीं भाविनी ,
चितिः चिता और चित्तरूपा
सर्वास्त्रधारिणी सत् - स्वरूपा ।

काली कराली कौमारी कुमारी
क्रिया क्रूरा कात्यायनी कैशोरी ,
बुद्धिदा बहुला ब्राह्मी बहुलप्रेमा
अनेकशस्त्रहस्ता अमेयविक्रमा ।

युवती यतिः प्रौढ़ा अप्रौढ़ा
आद्या अनन्ता अनेकवर्णा ,
सती साध्वी सत्या सावित्री
मनः मातंगी मधुकैटभहन्त्री ।

सर्वविद्या सुता सर्वदानवघातिनी
महाबला तुम अनेकास्त्रधारिणी ,
पाटलावती पटांबरपरिधाना
सर्वशास्त्रमयी सर्ववाहनवाहना ।

तुम्हीं कालरात्रि तपस्विनी नारायणी
रूप अनेक हैं तुम्हारे जगतारिणी ,
ध्यान तुम्हारा हम करें कल्याणी
सदा पार लगाना हे दुखहारिणी ।

✍️डॉ. रीता सिंह, मुरादाबाद
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घर से जब भी निकलता हूँ तुम्हे ही याद करता हूँ,

सभी मुश्किल राहों को मैं आसान करता हूँ,

तुम्ही चाहत तुम्ही हिम्मत तुम्ही हो जिंदगी मेरी,

तुम्हे ही याद करता हूँ तुम्हारी बात करता हूँ,

✍️इशांत शर्मा ईशु, मुरादाबाद
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हाँ मैं एक औरत हूँ जो हमेशा औरों में ही रत हूँ।
सारे संसार का अस्तित्व मुझसे है ।
लेकिन मैं खुद के अस्तित्व से ही विरत हूँ।
हाँ हाँ मैं एक औरत हूँ।।

मैं बेटी हूँ ,बहन हूँ  ,पत्नी हूँ  मैं माँ हूँ।
मैं सृस्टि कर्ता हूँ जन्मदात्री हूँ।
मैं हमेशा प्यार, वात्सल्य एवं ममता लुटाती हूँ।
हाँ मैं एक औरत हूँ।

मेरे बिना कल्पना भी नहीं इस संसार की।
मैं ही धुरी हूँ हर तरह के प्यार की।
मै त्याग और बलिदान की मूरत हूँ।
हाँ हाँ मैं एक औरत हूँ।।

मैं औरों में रत हूँ सबके लिए जीती हूँ।
अपने हर आँसू को अमृत मानकर पीती हूँ।
कभी पिता का मान,
कभी पति का अभिमान।
कभी बेटे के सुख में निहित हूँ।
हाँ हाँ मैं एक औरत हूँ।।

क्या कोई समझ पायेगा औरत होने का सही अर्थ।
क्यों कर लेती है वह निज जीवन को व्यर्थ।
क्यों सदा वह बस औरों में रत है।
क्योंकि वह एक माँ हैं,
हाँ हाँ वह एक औरत है।।

✍️नृपेंद्र शर्मा "सागर",ठाकुरद्वारा
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केवल शब्द नही है ‘माँ’ बल्कि बालक का पूरा संसार है।
जिससे उत्पन्न हुआ ये जग सारा ‘माँ’ ऐसा अलौकिक अवतार है।
जब -जब धरती पर आए प्रभु तो उन्होंने भी माँ के है पाँव पखारे
उसकी गोद मे खेले है, स्वयं जगदीश्वर जो स्वयं जगत के पालनहार है।
माँ न होती तो जीवन कहाँ से पाते, उसकी ममता की छाया बिना कैसे पल पाते।
ममता और त्याग की मूरत है माँ, धरती पर प्रथम गुरु की सूरत है माँ।
जो जीवन जिये वो ‘श्रेष्ठ’ हो कैसे, हमको बताती हमारी है माँ।
प्रेम में ही नही दण्ड में भी दिए ‘माँ’ के वरदान है।
अगर कैकयी न भेजती वन राम को, तो क्या कोई कहता भगवन राम को।
केवल जीवनदाता नही अपितु भाग्यविधाता भी है माँ ।
जो न पूजे माँ को उसे धिक्कार, उसका जीवन जीना ही बेकार है।
त्रिलोक की वैभव सम्पदाओं से भी बढ़कर ‘माँ’ का प्यार है।

✍️आवरण अग्रवाल “श्रेष्ठ”
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मैं मानू नौराते उस दिन,
जब नारी उत्पीड़न रुक जा।
करू मैं दीप प्रज्जवलित दिलसे,
जब दुष्टों का सर झुक जा।।

क्या ठोकू मैं ताल भजन की,
जब मैया मूँदें आँखे पड़ी।
करू भजन मैं उस दिन जब,
चीखों से सबका मन दुख जा।
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है बेटी अनमोल पर जो मोल न तुम समझोगे,

खो दोगे फिर मान घर की बरकत भी खो दोगे।

चूनर रख कर माथ रखती लाज सदा पगड़ी की,

जो न पूजो तुम पाँव तो लक्ष्मी भी धो दोगे।।

✍️इंदु, अमरोहा
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मानवता की सृजन जननी,
तुझ को मेरा नमन है ।
महिमा तेरी जनम-जनम है,
हे मां तुझे नमन है।।

संस्कृति की ध्वजवाहक हो,
सृजन की पतवार हो,
परिवार का आधार हो,
मानव जीवन का सार हो ।।

स्नेह,प्रेम,साहस की मूरत,
वात्सल्य,ममता की सूरत,
महिमा तेरी जनम जनम है,
हे मां तुझे नमन है।।

✍🏻अमित कुमार सिंह
7C/61, बुद्धिविहार फेज 2
मुरादाबाद 244001
मोबाइल-9412523624

मुरादाबाद मंडल के नजीबाबाद (जनपद बिजनौर) निवासी साहित्यकार इन्द्र देव भारती की कविता ----वो अकेली लड़की ! वो अकेली निर्भया ! वो अकेली दामिनी !


सूरज जल रहा था !
अंबर दहक रहा था !!
धरती धधक रही थी !!!
बस्ती में - 
सन्नाटों की गूंज थी ।
बाशिंदे घरों में कैद थे ।
कभी 
कोई खिड़की
अपनी आँखें खोल लेती,
तो तुरंत ही - 
बंद कर लेती थी ।
हाँ ! कभी 
कोई दरवाजा भी 
पलकें झपका लेता था ।
गली हो या सड़क,
वीरानगी की -
चहल-पहल थी ।
ऐसे सूनेपन की भीड़ में,
एक अकेली लड़की
या एक अकेली निर्भया,
या एक अकेली दामिनी,
बदहवासी ओढ़े,
''मिल्खासिंह'' बनी
भाग रही थी !
भाग रही थी  !!
भाग रही थी   !!!
और -
उसके पीछे भाग रहे थे-
कुछ इंसानी भेड़िए ।
इक्का-दुक्का 
आँखे देख भी लेतीं, 
तो तुरंतअंधी बन जातीं ।
इक्का-दुक्का कान भागती हुयी
लड़की/निर्भया/दामिनी
की "बचाओ - बचाओ"
सुन भी लेते तो -
तुरंत बहरे बन जाते ।
सड़क पर -
चलते-फिरते तमाम मुर्दे
पीछे भागने  वालों को
पकड़ने दौड़ते जरूर,
मगर उनके 
दुःशासन मन
कबके लंगड़े हो चुके थे ।
भागते हुये पीछे छूटी 
पक्की सड़क,
खड़ी फसलों के - 
बीच से गुजरती हुयी,
कच्चे रास्ते में, 
और फिर बटिया में,
बदल कर -
कब घने जंगल में
जा पहुंची ?
पता ही नहीं चला ।
सामने जंगली भेड़िये ?
पीछे इंसानी भेड़िये ?
उस अकेली लड़की ने,
उस अकेली निर्भया ने,
उस अकेली दामिनी ने -
निर्णय लेने में 
कतई भी देर नहीं की ।
वो खेल गयी -
प्राणों  का  दांव,
इज्ज़त के नाम पर,
और कूद गयी 
जंगली भेड़ियों के बीच ।
इज्जत की 
बेदाग़ चादर पर 
बिखरा उसका हाड़-मास
दूर खड़े हांफते
इंसानी भेड़ियों पर
अट्टहास कर रहा था ।

✍️ इन्द्रदेव भारती
 "भरतीयम"
ए / 3, आदर्श नगर
नजीबाबाद- 246 763, जनपद बिजनौर,उ.प्र.
मोबाइल फोन नम्बर   99 27 40 11 11
indradevbharti5@gmail.com


शनिवार, 17 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद सम्भल )निवासी साहित्यकार दीपक गोस्वामी चिराग की रचना ----माता उर बस जाओ,मन आज पुकारा है, मतलब की दुनिया में, तू एक सहारा है


माता उर बस जाओ,मन आज पुकारा है।

मतलब की दुनिया में, तू एक सहारा है।


जग के सम्बंधों ने, यह मन झुलसाया है।

पर तेरी ममता ने तो, मरहम ही लगाया है।

माँ! तेरा यह आँचल,जगती से न्यारा है।

मतलब की दुनिया में......................


यह मन मेरा दुखिया, माँ! इत-उत डोले है।

तेरी राहें तक-तक कर, ये नैना बोले हैं।

माँ! तेरा यह दर्शन,सबसे ही प्यारा है।

मतलब की दुनिया में.......................


जीवन में सुख-दुख तो, दिन-रैन से आते हैं।

पर माँ  तेरे सम्बल, मुझे पार लगाते हैं।

माँ! मेरा यह जीवन, तूने  संँवारा है।

मतलब की दुनिया में......................


✍️दीपक गोस्वामी 'चिराग'

शिव बाबा सदन, कृष्णा कुंज 

बहजोई.( सम्भल) पिन 244410

मो. 9548812618

ईमेल-

deepakchirag.goswami@gmail.com