बुधवार, 21 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा -----अनुचित निर्णय


"तुम्हारा कहा माना ।सबने मनाई।मैंने नहीं माना ।मन के एक कोने में तुम्हारा चित्र आज भी साफ सुथरा सुशोभित है । तुम कहते थे कि अधिकारी बनकर सब ठीक हो जाएगा ।मैं इन्तज़ार में क्या से क्या हो गई ।उम्र पक गई पर तुम नहीं लौटे।पाँच बहनों ने अपने घर बसा लिए ।माँ बाबू जी चल बसे।

आज भी बाबला मन तुमको पूजता है जबकि उसे पता है कि तुम अपनी दुनिया में मुझे बहुत पीछे छोड़ चुके हो ।काश कि तुम ........। "सिसकियों के साथ अवनि ने अपने द्वारा लिए गये निर्णय की भर्त्सना की ।बीस साल पूर्व लिए गये उसके अनुचित निर्णय ने उसको जीवन के पथ पर बिल्कुल अकेला कर दिया ।काश कि समय रहते वो भी .......।

✍️डॉ प्रीति हुँकार, मुरादाबाद

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