हम तालाब किनारे
मगरमच्छ की बात सुनेंगे
बन करके मछुआरे।
--------------
कहा मित्र ने बड़ा क्रूर है
मगरमच्छ अभिमानी
उसके पास पहुंचने की मत
करना तुम नादानी
क्यों संकट में डाल रहे हो
असमय प्राण हमारे।
आओ मित्र---------------
इसके जबड़ोंकी ताकत का
तुमको पता नहीं है
एक बार जो मुंह में आया
फिर वह बचा नहीं है
मछुआरों की चाल समझते
मगरमच्छ भी सारे।
आओ मित्र----------------
तुमको जाना है तो जाओ
मुझे माफ़ कर देना
मगरमच्छ की बातों से भी
नहीं मुझे कुछ लेना
फिरकहता हूँ वापस लौटो
करो नहीं ज़िद प्यारे।
आओ मित्र---------------
कान लगाकर सुननी चाहीं
मगरमच्छ की बातें
लेकिन मगरमच्छ बैठे थे
स्वयं लगाकर घातें
जकड़ा आकरके जबड़े में
बिछड़े मित्र बेचारे।
आओ मित्र---------------
सही बात जो नहीं मानते
वह मूरख कहलाते
खतरनाक राहोंको चुनकर
जीवन व्यर्थ गंवाते
सच्ची बातें सुनने वाले
होते सबसे न्यारे।
आओ मित्र---------------
✍️वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
मो0- 9719275453
--------------------------------------
बच्चों मैं अखबार निराला
खट्टी मीठी खबरों वाला
सुबह सुबह मैं दौड़ा आता
सब दुनिया की सैर कराता
पङा हुआ मै दरवाजे पर
खोलो अपने घर का ताला
बच्चों मैं................
सारे जग की खबर सुनाता
बच्चों का भी दिल बहलाता
यों तो मैं हूँ श्वेत वर्ण का
खबरों से हो जाता काला
बच्चों मैं................
✍️डॉ प्रीति हुँकार, मुरादाबाद
-----------------------------------
ओ मेरी लाडली , घर के बाहर तुम जाना नहीं ,
बाहर गर जाओ ,तो लेकर कुछ खाना नहीं ।
बड़ी हो गई हो तुम , ज्यादा पड़ेगा तुम्हें समझाना नहीं , वक्त है खराब ,भलाई का जमाना नहीं ।
अच्छे से समझ लो तुम ,गर तुमने मेरा कहा माना नहीं ,
जमाने का क्या भरोसा, बाद में पछताना नहीं ।।
✍️विवेक आहूजा, बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com
---------------------------------------------
मैं हूं फूल
नीले अम्बर के नीचे
खुली जमीं पर रहता हूं
जाड़ा गर्मी और वर्षा
सबको हंसकर सहता हूं
उफ नहीं करता,बन कर
रहता हूं अनुकूल
कोई नहीं है चिन्ता मुझको
मैं मुस्काता रहता हूं
संकट मेेें भी हंसना सीखो
ये समझाता रहता हूं
फर्क नहीं पड़ता है मुझको
कितने भी हो शूल
अपनी खुशबू से सारी
बगिया को महकाता हूं
बच्चे बूढ़े और जवान
सबका मन हर्षाता हूं
देवों के चरणों मेेें चढ़
सब कुछ जाता भूल
✍️डाॅ पुनीत कुमार
T -2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद 244001
M 9837189600
-----------------------------------------
सुन तकिए
माँ वाली लोरी सुना
मुझे सहला
रात भर हैं
बदली करवटें
नींद को बुला
नींद वही जो
माँ के आँचल में थी
लेकर तू आ
बहुत दिन
हुए देखे सपने
परी से मिला
थक गयी हूँ
दे प्यार की थपकी
अब तो सुला
✍️ प्रीति चौधरी
गजरौला,अमरोहा
-----------------------------------
आओ सब को बचपन की
एक सच्ची कथा सुनाता हूं !
बीत गया कब का सब कुछ
पर भूल नहीं मैं पाता हूं!!
घुमा रहा था मैं कुत्ते को
सुबह सबेरे जब चल कर;
टूट पड़ा तब ,मोती, कुत्ता
भौंक भौंक उसके ऊपर ।
द्वंद छिड़ा दोनों कुत्तों में
उनमें जम कर युद्ध चला;
हाथ छिले जंजीर से मेरे
मेरा कुछ भी बश न चला ।
पूंछ दबा कर आखिर मोती,
भौं भौं करना भूल गया,
अपने 'पीलू' ने रण जीता
और गर्व से फूल गया ।।
घायल मोती नीचे झुक कर
अपमानित हो भाग छुटा,
मेरा ,पीलू ,हांफ हांफ कर
भौं भौं करने में था जुटा ।।
फिर एक दिन मोती से मेरा
पड़ा अकेले में पाला,
झपटा मुझ पर क्रोधित हो
कंधे का मांस उड़ा डाला।
खूं से लथपथ घर पहुंचा
तो मूक जानवर भांप गया,
जोर लगा जंजीर तोड़ कर
पागल पीलू भाग गया ।
चीर फाड़ डाला मोती को
बेबस किया शिकार गया,
पीलू की स्वामीभक्ति में
मोती स्वर्ग सिधार गया ।।
वफादार होते हैं कितने
कुत्ते सब बतलाते हैं,
मैं पीलू को याद करूं,
मेरे नैना भर आते हैं !!
यादें ये बचपन की हैं पर
तब न था मुझे इतना ज्ञान
कंधे से गहराअंकित है
अब भी दिल में बना निशान!!
✍️अशोक विद्रोही
82 188 25 541
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
--------------------------
चाऊं बिल्ली, म्याऊं बिल्ली ।
दोनों बिल्ली बड़ी चिबिल्ली ।
नटखट, दोनों खास सहेली।
मिलकर दोनों एक पहेली ।
बीच रास्ते रोटी पाई।
दोनों में हो गई लड़ाई।
मेरी रोटी-मेरी रोटी ।
भिड़ गयीं दोनों बिल्ली मोटी।
फिर आया वह कालू बंदर ।
वानर था वह मस्त-कलंदर ।
बंद करो तुम बहिन लड़ाई ।
देखो अब मेरी चतुराई।
एक तराजू लेकर आए।
रोटी के दो भाग कराए।
दोनों पलड़े आधी रोटी।
पर उसकी नीयत थी उसकी खोटी।
जो पलड़ा भी दिख गया भारी।
उसकी रोटी मुंह में मारी।
बांयी खायी, दांयी खायी।
फिर से बांयी, फिर से दांयी।
दोनों देख रही बर्बादी।
होती जा रही, रोटी आधी।
चाऊं ने म्यांऊ को देखा,
म्याऊं ने चाऊं को देखा।
दोनों में कुछ हुआ इशारा ।
झगड़ा मिट गया पल में सारा।
रुको-रुको ओ! कालू भाई।
बन गए भाई आज कसाई।
बंद करो ये अपना लफड़ा।
खत्म हो गया है यह झगड़ा।
छीने फिर रोटी के टुकड़े।
खिल गये उन दोनो के मुखड़े।
मिलीं गले,फिर बंद लड़ाई।
मिल कर वो रोटी फिर खाई।
✍️दीपक गोस्वामी 'चिराग'
शिव बाबा सदन,कृष्णाकुंज
बहजोई(सम्भल) 244410 उ. प्र.
मो. 9548812618
ईमेल-deepakchirag.goswami@gmail.com
-------------------------------------------------
मेरी गुड़िया प्यारी है
इसकी बातें न्यारी हैं
न होऊं मैं जबभी पास
रूठे सदा दुलारी है
मेरी गुड़िया कैसे माने
ये बस मेरा दिल ही जाने
चॉकलेट और खेल खिलौने
से न प्यारी गुड़िया माने
पड़े मनाना काम छोड़कर
इसके पीछे दौड़ दौड़ कर
वरना पड़ जाती है ये तो
खाटिया पर चादरें ओढ़ कर
इसे मनाना बहुत जरूरी
गुड़िया बिन जिंदगी अधूरी
✍️नजीब जहां
प्रेम वंडरलैंड, मुरादाबाद
9837508724
--------------------------------------
काले -काले बदरा आये,
उमड़ -घुमड जल भर लाये |
झम -झम झम बूँदें गिरती ,
वसुधा का अन्तस्थल भरती |
चहुँ दिशि फैली हरियाली,
फूल पत्तियाँ हुई निराली |
शीतल -शीतल बहे बयार,
गूँजे जैसे राग मल्हार |
दादुर माेर पपीहा बाेले,
अन्तर्मन में रस सा घाेलें |
आह! वर्षा रानी आयी है,
संग ढेराें खुशियां लायी है |
✍🏻 सीमा रानी
पुष्कर नगर अमराेहा
7536800712
----------------------------------
ये दूध है होता संपूर्ण आहार।
रहती इस में ताक़त भर मार।।
ज़रूर पियो दिन में एक बार।
कहते आ रहे सब बुज़ुर्ग वार।।
करते बच्चे पीने से जो इंकार।
हड्डी रह जाती उन की बेकार।।
बच्चों का कैसा ये अब संसार।
फास्ट फूड से करते सब प्यार।।
रोज़ बढ़ रहा इसका व्यापार।
बच्चों को है ये करता बिमार।।
समझ लो इन पंक्ति का सार।
बन जाओ तुम अब होशियार।।
✍️-मरग़ूब अमरोही
दानिशमन्दान, अमरोहा मोबाइल-9412587622
---------------------------------------
बिल्ली मौसी,बिल्ली मौसी
मेरे घर तुम आ जाना।
धमा चौकड़ी करते चूहे,
उनको सबक सिखा जाना।
कपड़े,खाना,कॉपी,पुस्तक
इन दुष्टों के साये हैं।
रहे नहीं साबुत कहीं कुछ ,
सब पर दाँत चलाये हैं।
चूहेदानी रखी हुई है,
शैतानी पर जारी है।
कुतर गये हैं टाई मेरी,
अब जूतों की बारी है।
प्यारी मौसी अच्छी मौसी
अब जल्दी से आओ तुम।
पिद्दी चूहे शेर हो रहे,
इनको हद में लाओ तुम।
✍️हेमा तिवारी भट्ट,मुरादाबाद
-----------------------------------------
एक दो तीन चार
कोरोना की होगी हार
पाँच छह सात आठ
करो भीड़ का बायकॉट ।
नौ दस हमसे बोलें
हाथों को साबुन से धो लें।
ग्यारह बारह करें पुकार
स्वच्छ रखो अपना घर -बार।
तेरह चौदह का ये कहना
बस अपने घर पर ही रहना
पंद्रह सोलह कहते हमसे
नहीं निकलना अपने घर से।
सतरह और अठारह कहते
मास्क लगाकर रोग से बचते।
उन्नीस और बीस की बारी
देश बचाना ज़िम्मेदारी ।।
✍️मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार
मुरादाबाद
--------------------------------------
गोरे - गोरे बादल आये
पानी रत्ती भर न लाये
सजा रहे बस नील गगन को
तेज धूप में मन न भाये ।
गोरे - गोरे.....
दौड़ रहे हैं नभ अँगना ये
लुका छिपि है खेल सुहाये
धवल - धवल से लगते सुंदर
पर साथ उमस के हैं धाये ।
गोरे - गोरे....
स्वांग भरते अनगिन दिनभर
बाल मनों को खूब लुभाये
कभी पहाड़ कभी नदिया बन
पल पल कितने रूप बनाये ।
गोरे - गोरे .....
✍️डॉ. रीता सिंह
मुरादाबाद
--------------------------------------
हम बच्चे मन के सच्चे है,
इसीलिये तो अच्छे है।। रखते नहीं हैं मन मे बैर,
नही समझते किसी को गैर। खेलें मिलकर सारे खेल,
आपस में रखतें है मेल।
जाति -पांति का भेद न माने,
सबको अपने जैसा जाने।
अच्छी अच्छी बातें सीखें,
तभी तो सबसे सुंदर दीखे।
✍️कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
सिरसी (सम्भल)
9456031926
------------------------------------
चलो फिर बचपन याद करते हैं
मुस्कराकर फिर से वहां चलते हैं
जुगनुओं को बंद कर हथेली में
उजाला करना
तितलियों के पीछे दौड़कर
बहुत दूर जाना
चलो लौटकर फिर वहीं चलते हैं
चलो बचपन.......................
वो बेफिक्री से रहना खाना और
जमीन पर सो जाना
उठकर आँख मलते हुए फिर
खेलने जाना
चलो लौटकर वहीं चलते हैं
चलो बचपन......................
वो दादी नानी के मूँह सुनी राजा रानी
शेखचिल्ली की कहानी
वो दादा जी का हाथ पकड़कर करना
खूब मनमानी
चलो लौटकर वहीं चलते हैं
चलो बचपन.................................
चलो फिर बचपन याद करते हैं.
✍️राशि सिंह
वेवग्रीन कॉलोनी, मुरादाबाद
---------------------------------------------
चारों ओर पहाड़ी दिखती, नदिया कल-कल बहती जाय ।
खेतों झूम रही हरियाली, पवन रही कैसे मचलाय ?
धरती पर तोपें दिखती हैं, आसमान में जैट दिखाय ।
युद्धपोत सागर में दौड़ें, मोटर में सेना चढ़ आय ।।
दृश्य अजीब लगे यह मुझको, कौन रहा है जो उकसाय ।
आंँक रहा जो कमतर हमको, लगता उसको मौत बुलाय ।।
अपन देश की जनता देखो, उसके हित की सोचो जाय ।
विश्व को शांतिमय रहने दो, अहंकार से मत इतराय ।।
भारत देश का बाल-बूढ़ा, दुश्मन से महिला भिड़ जाय ।
भारत मां है हमको प्यारी, सब कुछ इस पर बलि-बलि जाय ।।
✍️राम किशोर वर्मा
रामपुर
--------------–-------------------------
कितना भोला है बचपन।
चले जिधर ले जाए मन।
रूठ गए फिर मान गए,
बच्चों का अद्भुत जीवन।
छल फरेब ये ना जानें।
सबको ही अपना मानें।
जिसने हँसकर बात करी,
उसको ही दे बैठे मन।
जात धर्म की सोच नहीं।
छुआछूत का भेद नहीं।
साथ खेलते खाते हैं,
इनसे सीखो अपनापन।
बैर न इनमें आ जाए।
मन में जहर न घुल जाए।
इनको ऐसे ढालो तुम,
बना रहे ये अपनापन।
✍️श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG 69,
रामगंगा विहार,
मुरादाबाद।
मोबाइल नंबर 9456641400
----------------------------------------
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंआपके श्रम को नमन।