रविवार, 12 सितंबर 2021

वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ की आठवीं कड़ी के तहत 10 व 11सितंबर 2021 को मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष वीरेन्द्र कुमार मिश्र के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर दो दिवसीय ऑनलाइन कार्यक्रम का आयोजन

मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार स्मृतिशेष वीरेन्द्र कुमार मिश्र के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर वाट्सएप पर संचालित समूह 'साहित्यिक मुरादाबाद' की ओर से 10 व 11 सितंबर 2021 को दो दिवसीय ऑन लाइन आयोजन किया गया। चर्चा में शामिल साहित्यकारों ने कहा कि वीरेन्द्र कुमार मिश्र का मुरादाबाद के नाट्य साहित्य में उल्लेखनीय योगदान रहा है । राष्ट्र के प्रति समर्पण और हिंदुत्व का भाव जगाने के साथ साथ उन्होंने अपने नाटकों के माध्यम से ऐतिहासिक चरित्रों और घटनाओं को भी प्रस्तुत किया । 
 मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ की आठवीं कड़ी के तहत आयोजित इस कार्यक्रम में संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने श्री मिश्र के जीवन एवं रचना संसार पर प्रकाश डालते हुए कहा कि  वर्ष 1958 में उनकी प्रथम नाट्य कृति छत्रपति शिवाजी प्रकाशित हुई। उनका कहानी संग्रह पुजारिन वर्ष 1959 में प्रकाशित हुआ। इसमें उनकी 14 कहानियां संकलित हैं। इसके अतिरिक्त उनकी नाट्य कृतियां गुरु गोविंद सिंह, सम्राट हर्ष और आचार्य चाणक्य प्रकाशित हुईं । उनकी अप्रकाशित नाट्यकृतियों में शेरशाह सूरी और विक्रमादित्य उल्लेखनीय हैं । नाटक छत्रपति शिवाजी के लिए शारदा विद्यापीठ द्वारा उन्हें साहित्य वाचस्पति उपाधि से सम्मानित किया गया। उनका निधन 28 अप्रैल 1999 को हुआ । उन्होंने बताया कि इससे पूर्व स्मृतिशेष साहित्यकारों दुर्गादत्त त्रिपाठी, कैलाश चन्द्र अग्रवाल, पंडित मदन मोहन व्यास, दयानन्द गुप्त, बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी,डॉ भूपति शर्मा जोशी, ईश्वर चन्द्र गुप्त ईश जी पर कार्यक्रम आयोजित हो चुके हैं ।

   

चर्चा में भाग लेते हुए  महाराजा हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ विश्व अवतार जैमिनी ने कहा स्मृति शेष वीरेंद्र कुमार मिश्र पर आयोजन देखकर  वर्षों पुरानी स्मृतियां सजीव हो गईं। मैं रस्तोगी इंटर कॉलेज जो उस समय रस्तोगी मंदिर अमरोहा गेट में संचालित होता था, में हिंदी का अध्यापक था और गुलाल गली में रहता था। वीरेंद्र कुमार मिश्र  कुछ ही दूर रेती स्ट्रीट में रहते थे और मुस्लिम इंटर कॉलेज में शिक्षक थे।  शिक्षक, पड़ोसी मुहल्ले और साहित्यकार होने के नाते हम दोनों में प्रगाढ़ संबंध थे। हमारे साथ डॉ ज्ञान प्रकाश सोती भी थे जो दिनदारपुरा में रहते थे । उनकी रुचि नाटक मंचन में अत्यधिक थी। वीरेंद्र मिश्र नाटक एवं एकांकी लिखते थे और हम दोनों  उनका मंचन कराते थे।  डॉ ज्ञान प्रकाश सोती  के साथ हमने उनके कई नाटकों का मंचन अपने विद्यालय में कराया। वीरेंद्र कुमार मिश्र स्वभाव से एक सरल व्यक्ति थे। उनमें बनावट की कोई बू नहीं थी।शिक्षक आंदोलन में भी वे सदा सक्रिय रहे।भारतीय संस्कृति, हिंदुत्व और राष्ट्रीयता की भावना से वह ओतप्रोत थे। यही भावना उनके संपूर्ण लेखन का आधार थी। भारत के गौरवशाली ऐतिहासिक व्यक्तित्वों पर उन्होंने अनेक नाटकों की रचना कर न केवल इतिहास के पन्नों को प्रस्तुत किया बल्कि आक्रमणकारी मुगलों की संस्कृति से भी वर्तमान पीढ़ी को अवगत कराया।  
 दयानन्द आर्य कन्या महाविद्यालय के प्रबंधक उमाकांत गुप्त ने कहा कि मैंने स्मृतिशेष श्री वीरेन्द्र मिश्र जी की कविताएं व कहानियां एक पाठक की हैसियत से पढ़ीं । सहज और सरल ,अपने रचियता की भांति मुझ पाठक को अपने रस मेंं बहाती ले गयीं । ऐसे व्यक्तित्व को नमन । पटल संचालक श्री मनोज रस्तोगी जी को साधुवाद । उनका परिश्रम अतुलनीय है।

     

केजीकेमहाविद्यालय, मुरादाबाद की हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ मीरा कश्यप ने कहा मुरादाबाद के साहित्य की गौरवशाली परम्परा में वीरेंद्र मिश्र जी की कृतियों का अनुपम योगदान है, उन्होंने अपनी सांस्कृतिक विरासत को सहेजने का अद्भुत प्रयास किया है। उनका नाटक" आचार्य चाणक्य" एक महत्वपूर्ण नाट्य कृति है  ,जिसमें ऐतिहासिक विषय वस्तु से एक पूरा कथानक तैयार कर हमारे समक्ष इतिहास को खंगालने का काम किया है।चाणक्य एक अत्यंत ही प्रभावशाली और राष्ट्रवाद से ओतप्रोत नाटक है ,इतिहास के गौरवपूर्ण परम्परा को नाटक रूप में ढालकर वीरेन्द्र मिश्र ने वर्तमान समस्याओं के समाधान के रूप में प्रस्तुत किया है । पांच अंको में लिखा गया यह नाटक अपने पूरे कलेवर में सम्पूर्ण घटनाओं को लेकर रोचक बन पड़ा है ,जो नाटक के तत्वों  के आधार पर पूरी तरह से खरा उतरता है । अतः वीरेन्द्र मिश्र के सभी नाटक ऐतिहासिक कथावस्तु को लेकर लिखे गए हैं, प्रस्तुत नाटक यह दर्शाता है कि लेखक किस प्रकार वर्तमान के समस्याओं के निदान के लिए अपने अतीत के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को ज्वलंत मुद्दों के साथ समायोजन करता है ।अपने राष्ट्र की अक्षुण्णता बनाये रखने में वीरेन्द्र मिश्र के नाटकों का हिंदी नाट्य साहित्य एवम परम्परा में महत्वपूर्ण स्थान है ।
नजीबाबाद (जनपद बिजनौर) की साहित्यकार दीपिका माहेश्वरी सुमन ने कहा कि वीरेंद्र कुमार मिश्र  की कहानियां सुंदर भावनाओं से ओतप्रोत, 'वेदना' पर आधारित हैं। वेदना का यह क्रम कहीं टूटा नजर नहीं आता। कहीं भक्ति में परिवर्तित होता है, कहीं देश भक्ति में तथा उस समय की सामाजिक संकीर्ण विचारधाराओं से होता हुआ, कभी आत्मदाह के दुखांत पर भी पहुंचता है, तो कहीं प्रणय वेदना को प्रबलता से दिखाया गया है। 

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अजय अनुपम ने वीरेन्द्र मिश्र जी से सम्बंधित संस्मरण प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि वीरेन्द्र मिश्र जी ने जिससमय लेखन कार्य आरंभ किया उस समय राष्ट्रोत्थान की आहट हवा में थी । उसके लिए नैतिक भावना एवं संघर्ष पूर्ण जीवन की तैयारी का भाव जगाने वाले साहित्य की भी आवश्यकता थी। मुरादाबाद के साहित्य साधक भी अपनी शक्ति और सामर्थ्य भर सद्भाव से उसे पूरा करने के लिए कार्यरत थे। आज की पीढ़ी को उनके बारे में जानकारी हो या न हो किन्तु उनका स्मरण करना और कराना हमारा पुण्यकर्म है। हो सकता है कल कोई साहित्य-शोधक उनके रचे साहित्य को प्रकाश में लाने काम करने का साहस कर बैठे,आज की शिक्षा की दशा में यह कामना फलीभूत होने की संभावना कम ही प्रतीत होती है परन्तु अच्छे लोग और अच्छे काम हर काल खण्ड में होते ही हैं   
 रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश ने कहा कि  वीरेंद्र कुमार मिश्र ऐसे  कलमकार रहे जिनमें राष्ट्रीयत्व का भाव प्रबल था तथा साथ ही साथ भारत की सनातन हिंदू संस्कृति के प्रति गहरी निष्ठा और आदर विद्यमान था । आपने हिंदी साहित्य को जो नाटक प्रदान किए ,उनके विषय हमारे पुरातन गौरव बोध से भरे हुए हैं। छत्रपति शिवाजी, गुरु गोविंद सिंह और  आचार्य चाणक्य आदि महापुरुषों के स्वाभिमानी व्यक्तित्व को अपनी रचनाओं का केंद्र बनाकर आपने नाटक रचे, यही यह बताने के लिए पर्याप्त है कि आप की विचारधारा किस प्रकार से राष्ट्रीयत्व तथा हिंदुत्व से ओतप्रोत थी । आपका कहानी संग्रह पुजारिन की कुछ कहानियाँ मैंने पढ़ीं। तपस्विनी एक ऐसी ही कहानी थी जिसमें हिंदू राष्ट्र शब्द का प्रयोग करते हुए राष्ट्रीयत्व के भाव के पतन पर गहरा क्षोभ व्यक्त किया गया था। साथ ही एक ऐसी तपस्विनी का चरित्र कहानीकार ने उपस्थित किया जो आजादी की अलख जगाने के लिए स्वयं को समर्पित कर देती है। वीरेंद्र मिश्र जी भारत की हिंदू संस्कृति के आराधक हैं । इस आराधना को नतमस्तक होकर प्रणाम करने की आवश्यकता है । इसी के गर्भ से वह स्याही हमें मिल सकेगी ,जिससे कलम कुछ स्वाभिमान से रससिक्त रचना रच पाएगी। उन्होंने एक कुण्डलिया भी प्रस्तुत की----

कहना   सिखलाया    हमें ,  हिंदू  -  हिंदुस्तान

धन्य  मिश्र  वीरेंद्र  जी , धन्य - धन्य  अवदान

धन्य - धन्य  अवदान , राष्ट्र  के  जागृत  प्रहरी

समझ  देश - अभिमान , विलक्षण  पाई  गहरी

कहते  रवि  कविराय ,सजग होकर सब रहना

झुके न माँ का शीश ,कलम का यह ही कहना 

     

 दिल्ली के साहित्यकार आमोद कुमार ने कहा मैने वीरेन्द्र मिश्र जी को उन दिनों लगभग प्रतिदिन शाम को अपने मित्र सक्सेना जी  के साथ स्टेशन रोड पर चाय की  दुकान पर माध्यमिक शिक्षक संघ की राजनीति की चर्चा मे मशगूल देखा है, लेकिन इस बात का मुझे पछतावा है कि उनकी साहित्यिक प्रतिभा से हम अपरिचित रहे और उनके राष्ट भक्ति की रचनाओं से वंचित। सम्राट हर्ष, आचार्य चाणक्य,छत्रपति शिवाजी,गुरु गोविन्द सिंह जैसे प्रतिष्ठित एतिहासिक चरित्रों पर नाटय रचना करना किसी सिद्धहस्त साहित्यकार के बस की ही बात है।
 वरिष्ठ साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा कि ऐतिहासिक पात्रों को केंद्र में रखकर नाटक की रचना अत्यधिक शोध और अध्ययन के बाद ही की जा सकती है। वीरेन्द्र कुमार मिश्र इसमें सफल हुए हैं। उनकी कहानियों का कथानक एवं शिल्प पाठक को अंत तक बांधे रखने में सक्षम है। सभी कहानियां स्वयं में विशिष्ट हैं और पढ़ते पढ़ते पाठक कहानी से भावनात्मक रूप से जुड़ जाता है, जो किसी भी लेखक के रचनाकर्म की उत्कृष्टता को दर्शाता है!उनके साहित्यिक योगदान का महत्व इसी बात से आंका जा सकता है कि साहित्य शारदा विद्या पीठ द्वारा उन्हें साहित्य वाचस्पति की उपाधि प्रदान की गयी!

     

वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विद्रोही ने कहा कि स्मृति शेष वीरेन्द्र कुमार मिश्र के कहानी संग्रह पुजारिन में संकलित कहानियों तपस्विनी, अनारकली, पुजारिन, अजय एवं तोरण दुर्ग का कथा शिल्प दुर्लभ एवं अद्भुत है। उनकी कहानियों में देश के प्रति त्याग देश प्रेम की उदात्त भावना के रूप में देखने को मिलता है। वहीं उनके नाटक छत्रपति शिवाजी ,सम्राट हर्षवर्धन, ,आचार्य चाणक्य, ,गुरु गोविंद सिंह उनके लेखन की उत्कृष्टता को चरम ऊंचाइयों पर ले जाता है। उनके लेखन को तप के रूप में देखा जाए तो अनुचित न होगा।  मुझे गर्व है साहित्यिक जगत की ऐसी महान विभूति पर कि मैं भी उसी नगर में निवास करता हूं जिसमें  स्मृति शेष वीरेंद्र कुमार मिश्र पले बढ़े हुए एवं कालजयी साहित्य की रचना की।
 युवा साहित्यकार राजीव प्रखर ने कहा कि उनका कहानी संग्रह पुजारिन मानवीय अन्तर्द्वंद्व की सशक्त शाब्दिक अभिव्यक्ति है। पुजारिन, तिरस्कृत, तोरण दुर्ग, अजय, तपस्विनी, चिताभस्म, अनारकली, आशा, सफल जीवन, ऐलान, सूखी हड्डियाँ, चलता रुपया, यह मानव हैं? तथा कागज़ के फूल, इन सभी कहानियों में छिपी सामाजिक व पारिवारिक उथल-पुथल, संघर्ष आज भी किसी न किसी रूप में हमारे चारों ओर व्याप्त है ।     
 साहित्यकार डॉ शोभना कौशिक ने कहा कि वीरेंद्र कुमार मिश्र की रचनाओं में जीवन के प्रति कर्मठता, निष्ठा व समर्पण की भावना विशेष रूप से परिलक्षित होती है ।उनकी कहानियों कागज के फूल ,चलता रुपया ,और ऐलान में वर्तमान जीवन की विसंगतियों को बड़े ही मन मोहक ढंग से प्रस्तुत किया गया है ।स्मृतिशेष श्री मिश्र जी की कहानियों के कथानकों की भाषा व भाव अत्यंत भावपूर्ण होने के साथ -साथ अपनत्व की भावना से ओतप्रोत रहते है ।  
सम्भल के साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा ने कहा श्री मिश्र जी द्वारा लिखित "पुजारिन" संग्रह से अवतरित कहानी,"तपस्विनी" अपनी सजीवता के लिए जानी जाती है, बहुत अच्छी लगी। "तोरण दुर्ग " में शाहजी भोंसले के पुत्र वीर शिवाजी और शिवाजी की माताजी के साथ ही, उनकी प्रेरणास्रोत जीजाबाई ,की वार्ता को बहुत ही प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है, जो किसी भी बच्चे में, एक प्रेरणा और उत्साह भरने का काम करेगी। और वास्तव में कवि का यह धर्म होना चाहिए कि उसकी लेखनी से जो भी शब्द निकलें या लिखे जाएं वह समाज को किसी ना किसी रूप में ,लाभान्वित अवश्य करें । साहित्य के क्षेत्र में श्री मिश्र जी का योगदान अविस्मरणीय व अतुलनीय है। जितनी शालीनता, संकल्पना और सजीवता आपके साहित्य में देखने को मिलती है, सही अर्थों में तो यह अद्वितीय ही है।

       

गुरविंदर सिंह ने कहा कि आदरणीय मिश्रा जी बहुत बड़े साहित्यकार थे तथा उन्हें नाटकों में लेखन में विशेष महारत हासिल थी नाटकों के प्रति उनकी अभिरुचि की पराकाष्ठा यह है कि जब मैं छठी कक्षा में था तो सिख धर्म अनुयाई होने के नाते मेरे सिर पर काफी घने केश (बाल) थे तो आपने मुझे गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा लिखी भगवान् शंकर जी की स्तुति "शिव रुद्राष्टक" कंठ कराई और टाउन हॉल में उन दिनों चल रहे हरि विराट संकीर्तन सम्मेलन में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी की साज-सज्जा में धनुष बाण धारण कर उपरोक्त स्तुति पढ़ने के लिए चयनित किया और टाउन हॉल अपने साथ ले गए थे, जिसके कुछ अंश अभी भी मेरे मन मस्तिष्क में हैं। उन्होंने बहुत उच्च कोटि के नाटक लिखे जिनमें छत्रपति शिवाजी, सम्राट हर्ष विक्रमादित्य, गुरु गोबिन्द सिंह जी आदि महान व्यक्तित्वों पर नाटक लिखे, यहां एक बात स्पष्ट करना चाहता हूं हालांकि गुरु गोबिन्द सिंह जी महाराज के व्यक्तित्व पर ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से उपरोक्त रचना बहुत खोज परक एवं उनका जीवन परिचय कराने हेतु उच्च कोटि की है, "परंतु सिख पंथ में श्रद्धेय गुरु साहिबान, उनके परिजनों एवं उनके समकालीन गुरु सिखों के जीवन पर कोई नाटक मंचन, फिल्म या किसी प्रकार का कोई अभिनय नहीं किया जा सकता" अतः जीवन परिचय के रूप में स्वीकार है ।

गजरौला की साहित्यकार रेखा रानी ने कहा कि मुझे उनकी तपस्विनी कहानी बहुत ही अच्छी लगी। तोरण दुर्ग कहानी में वीर शिवाजी और जीजाबाई  की वार्ता का सजीव चित्रण किया गया है। इसके अतिरिक्त नाटयकृति गुरुगोविंद सिंह  भी अपने आप में अनूठी है। कुल मिलाकर मैं यह कह सकती हूं कि श्री मिश्र सरीखे साहित्यकार आज की पीढ़ी के नव रचनाकारों के लिए मार्गदर्शक के रुप में रहेंगे। 

मुम्बई के साहित्यकार प्रदीप गुप्ता ने कहा कि साहित्यिक मुरादाबाद द्वारा मुरादाबाद के दिवंगत साहित्यकारों के संदर्भ में आयोजन किया जाना एक सराहनीय और ऐतिहासिक कार्य है । इसके लिए अनुज डॉ मनोज रस्तोगी जी की जितनी सराहना की जाए वह कम होगी ।   

नजीबाबाद( बिजनौर) की साहित्यकार रश्मि अग्रवाल ने कहा कि पटल पर मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष वीरेन्द्र कुमार मिश्र जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के बारे में विशद जानकारी प्राप्त हुई । साहित्यिक मुरादाबाद इसके लिए बधाई का पात्र है ।

     

सुदेश आर्य ने कहा कि इसप्रकार के आयोजनों से हमें मुरादाबाद के गौरवशाली साहित्य और साहित्यकारों के विषय में जानकारी मिलती है । यह क्रम निरन्तर जारी रहे इसके लिए परमपिता परमेश्वर से मैं प्रार्थना करती हूं ।

बिजनौर की साहित्यकार रंजना हरित ने साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम की सराहना करते हुए शुभकामनाये व्यक्त कीं। उन्होंने कहा कि यह आयोजन सराहनीय है ।   

लखनऊ के रोहित मिश्र ने कहा कि स्मृतिशेष वीरेन्द्र कुमार मिश्र जी से दूर रह कर भी उनके काफी करीब था मैं । मेरा उनसे "मामा भांजे" का रिश्ता है, मैं कोई बहुत बड़ा साहित्यकार तो नहीं हूँ मगर साहित्य की थोड़ी समझ मुझमें जरूर है शायद इसी कारण वो मुझसे, (जब भी मेरा मुरादाबाद)जाना होता था तो चर्चा किया करते थे । अपने अंतिम समय से कुछ महीनों पहले उन्होंने मुझे मुरादाबाद बुलाया और अपनी लिखी चार किताबें मुझको दीं, तभी मुझे पता चला कि उनको वाचस्पति अवार्ड भी दिया गया था।     

स्मृतिशेष वीरेन्द्र कुमार मिश्र जी की सुपुत्री रीता शर्मा ने कहा कि मैं आप सबकी बहुत आभारी हूँ,आपने मुझे इस  समूह में सम्मिलित किया |  समूह द्वारा आयोजित कार्यक्रम में आप सभी के द्वारा मेरे पिता जी की कृतियों की सराहना और उन्हें जन समुदाय के बीच साझा करने के लिए आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद । 
वीरेंद्र कुमार मिश्र जी की सबसे छोटी पुत्रवधू रचना मिश्र(इटौंजा ,लखनऊ) ने कहा कि मैं स्वयं को गौरवान्वित अनुभव कर रही हूं कि ऐसे महान साहित्यकार के सान्निध्य में मुझे रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मैंने उनके सम्पूर्ण साहित्य का अध्ययन किया है।उनकी व मेरी  साहित्यिक विचारधारा लगभग एक समान थी। इस कारण मेरा व उनका ज्ञानपूर्ण विषयों पर सदैव संवाद बना रहा।वे हिंदी ,अंग्रेजी, संस्कृत व अनेक विषयों के ज्ञाता थे।वे होम्योपैथी के भी विशेष जानकार थे जिसका लाभ जीवन में मैने बहुत उठाया।जीवन के अंतिम पड़ाव में भी उनमें असीम ऊर्जा व इच्छाशक्ति थी। इसी समय उन्होंने अपने सभी नाटक व कहानी संग्रह प्रकाशित करवाये। वे दृढ़ इच्छाशक्ति के धनी व साहसी व्यक्तित्व के स्वामी थे। काश! उनके रहते उनके साहित्य को पहचान मिली होती।
  स्मृतिशेष वीरेन्द्र कुमार मिश्र की सुपौत्री  शिवानी मिश्रा (सुपुत्री मधुप मिश्र) ने कहा कि मेरे बाबा बहुत अच्छे साहित्यकार थे। वह होमियोपैथिक के अच्छे चिकित्सक भी थे। उनकी लगभग सभी पुस्तकों  का आवरण पृष्ठ का चित्रण करने का सौभाग्य मुझे मिला। उन्होंने हरिवंश राय बच्चन जी के साथ श्री मिश्र  जी का एक दुर्लभ चित्र भी पटल पर साझा किया।

       

लखनऊ के राजीव मिश्र ने कहा साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से आयोजित कार्यक्रम में मुझे आदरणीय वीरेन्द्र कुमार मिश्र जी बारे में जानने का सुअवसर मिला । इसके लिए मैं डॉ मनोज रस्तोगी को बधाई देता हूँ । 

        कार्यक्रम में स्मृतिशेष मिश्र जी के सुपौत्र पंकज मिश्र, नीरज मिश्र, अर्जुन मिश्र, सुपुत्री रेखा मिश्र और सुपौत्री नेहा मिश्र ने भी हिस्सा लिया ।

अंत में स्मृतिशेष वीरेंद्र कुमार मिश्र के सुपुत्र  मधुप मिश्र और महेंद्र मिश्र जी ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ की आठवीं कड़ी के रूप में हमारे पिता श्री स्मृतिशेष वीरेन्द्र कुमार मिश्र जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर किये गए आयोजन के लिए हम सभी परिजन आप सभी का हृदय से आभार व्यक्त करते हैं ।


डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822


बुधवार, 8 सितंबर 2021

मुरादाबाद मंडल के शाहपुर खेड़ी (जनपद बिजनौर) स्थित श्री ओम शिक्षा संस्थान इंटर कालेज में सात सितंबर 2021 को आयोजित कविसम्मेलन ----

नयी शिक्षा नीति के तहत भविष्य के दृष्टिगत आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला के तहत श्री ओम शिक्षा संस्थान इंटर कालेज शाहपुर खेड़ी बिजनौर में  मंगलवार सात सितंबर 2021 को कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया ।

 कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए मुरादाबाद वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी जी ने कोरोना काल के संदर्भ में मुक्तक प्रस्तुत करते हुए कहा -----

सुन रहे यह साल आदमखोर है।

हर तरफ चीख दहशत शोर है।

मत कहो यह वायरस जहरीला बहुत,

आदमी ही आजकल कमजोर है।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से पधारे वैज्ञानिक डॉ सत्य प्रकाश पांडेय ने संचालन करते हुए कहा ---

 तन नहीं खास यह मेरा!

कितने दिन का है साथी!

बस भाव रख रहा यह ही!

तुम दीप बनो मै बाती!

विद्यालय की प्रबन्धक एवं संयोजिका कवयित्री रचना शास्त्री ने कहा ---

बांसुरी संभालो राधिके!

अखिल विश्व का तुमको

भार सौंपता हूं।

बिजनौर से आईं कवयित्री सुमन चौधरी जी ने राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत रचना प्रस्तुत करते हुए कहा--- 

देश प्रेम लहू बनकर धमनियों में बहना चाहिए।

कट जाए मस्तक मेरा सिर झुकना नहीं चाहिए।

धामपुर से पधारे प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ अनिल शर्मा 'अनिल' ने कहा-

ऐ!वतन के लाडलों

कर कड़ा प्रहार दो।

एक ही प्रहार में 

शत्रुओं को मार दो।

मुरादाबाद से पधारे प्रसिद्ध कवि राजीव प्रखर ने अपने अनेक मुक्तक प्रस्तुत किये। उन्होंने कहा-

निराशा ओढ़ कर कोई, न वीरों को लजा देना।

नगाड़ा युद्ध का तुम भी, बढ़ा कर पग बजा देना।

तुम्हें सौगंध माटी की अगर मैं काम आ जाऊं,

बिना रोये प्रिये मुझको, तिरंगों से सजा देना।

नजीबाबाद की वरिष्ठ कवयित्री नीमा शर्मा ने अपने ओजस्वी स्वर में रचनापाठ करते हुए समां बांध दिया । उन्होंने कहा-

तुम स्वर्णिम युग की नारी हो।

दुश्मन से ना डर पायी हो।

शेरकोट से पधारीं कवयित्री शुचि शर्मा  ने कहा-

समंदर पार करके जब हवा पूरब से आती है।

अचानक रात को उठकर मैं खिड़की खोल देता हूं।

यहां पूछा है कितनी बार मेरा नाम लोगों ने,

मैं अचानक ही अपना नाम भारत बोल देता हूं।

चांदपुर से आईं कवयित्री उर्वशी कर्णवाल जी ने कहा-

बने यह घुल चंदन हृदय मेरा शिवाला हो।

चढ़ाऊं भाव के मोती यहां पूजन निराला हो।

जले बस घी भरा दीपक नहीं ऐसी मिली शिक्षा।

न चाहूं देवता होना,मनुजता की वरूँ भिक्षा।

तालियों की गड़गड़ाहट के बीच नजीबाबाद से पधारे ओज के प्रसिद्ध कवि कपिल जैन ने पढ़ा-

भारतमाता के चरणों को धाम बनाकर रखते हैं।

अमर तिरंगे को अपना अभिमान बनाकर रखते हैं।

रोम रोम में राष्ट्र भक्ति का जज्बा रखने वाले हम,

अपने दिल में पूरा हिंदुस्तान सजाकर रखते हैं।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आकाशवाणी  नजीबाबाद से पधारे कृष्ण अवतार वर्मा ने आयोजन की सराहना करते हुए कहा कि विद्यालयों में इस प्रकार के कार्यक्रमों से विद्यार्थियों में साहित्य के प्रति अभिरुचि पैदा होती है । विद्यालय के प्रधानाचार्य आदरणीय लालबहादुर शास्त्री  ने सभी साहित्यकारों का सम्मान आभार व्यक्त किया।







































:::::::::::प्रस्तुति::::::

रचना शास्त्री 

प्रबन्धक

श्री ओम शिक्षा संस्थान इंटर कालेज

शाहपुर खेड़ी, बिजनौर

उत्तर प्रदेश, भारत

सोमवार, 6 सितंबर 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की शिक्षक दिवस पर रचना --- जिसकी महिमा देवों से भी ऊंची ...


 

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में दिल्ली निवासी) आमोद कुमार अग्रवाल की ग़ज़ल ---साँस की मशीन कब रुक जाये कोई जानता नहीं , 'आमोद' सामान मगर सौ साल के रखता है


अपना पता ठिकाना जेब में डाल के रखता है।

ढलान का मुसाफ़िर कदम सम्हाल के रखता है।


मुफ़लिस सिर्फ़ देखता रहे कुछ ले न सके

वो कीमती चीजें भीतर जाल के रखता है।


उसका कोई भी ख़्वाब कभी पूरा नहीं होता

बदनसीब फिर भी उम्मीद पाल के रखता है।


वक्त तो नहीं बदलता, बदल जाते हैं हम

पुराने फोटो अक्सर वो निकाल के रखता


शख़्सीयत की पहचान दौलत से नहीं होती

,गरीब तो स्वागत में कलेजा निकाल के रखता है।


साँस की मशीन कब रुक जाये कोई जानता नहीं

'आमोद' सामान मगर सौ साल के रखता है।

✍️ आमोद कुमार अग्रवाल, सी -520, सरस्वती विहार, पीतमपुरा, दिल्ली -34, मोबाइल फोन नंबर  9868210248

मुरादाबाद के साहित्यकार योगेंद्र वर्मा व्योम का गीत ----घर की फाइल में रिश्तों के पन्ने बेतरतीब....


 

शुक्रवार, 3 सितंबर 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा ---बहरूपिया


     कचहरी  के एक ओर बनी एक वकील  की गद्दी  पर , हंसा  सकुचाई  सी गुलाबी  कुर्ता  और सफ़ेद रंग का दुपट्टा  सिर पर ओढ़े  हुए बैठी थी पास में ही उसके पिता  आनंदी लाल  खड़े थे । कई बार वह गद्दी से दूर जाकर बीड़ी  पी आये थे ।

मन बड़ा विचलित  सा था कि केस वापस लें या अपनी बेटी के अधिकार  की लड़ाई जारी  रखें । 

वकील दया शंकर  जिनकी उम्र लगभग  साठ के करीब थी  उन्होंने बड़ी खुशी ...खुशी इस केस  को अपने हाथ में लिया।

वह बार -बार हंसा को पानी और चाय  के लिए  पूँछते वह इंकार  में सिर हिला  देती वह उसके सिर और खूबसूरत गालों को प्रेम से लाड  लड़ाते  हुए सहला  देते जैसे कि हँसा के पिता अक्सर करते हैं ।

मगर इस छुवन  से पता नहीं क्यों उसको असहजता  सी महसूस  होती ।

"हाँ...हँसा बेटा अब मुझे पूरी कहानी बताओ कि तुम्हारे साथ क्या हुआ ...देखो मुझसे कुछ छिपाना  मत क्योंकि डॉक्टर  और वकील से कुछ छिपाना यानि की मामले  को और पेचीदा  करना ...। " उसने जोर से हँसकर फिर से उसके गालों पर हाथ फेरा  l 

"ज...जी...जी । " हँसा ने अपने चेहरे को पीछे हटाने  की नाकामयाब  कोशिश की ।

"अरेवकील साहब हमने आपको बता तो दी सारी कहानी l " हँसा के पिता ने जोर देकर कहा तो वकील दयाशंकर  मुस्करा भर दिए । 

"अच्छा तो हँसा बेटा तुम्हारे पति के सम्बन्ध  गैर  औरत से थे ?" उसने कुटिल मुस्कान फेंकते  हुए बेगैरत  भरे अंदाज में कहा ।

"ज...जी ...जी ।"

"बताओ क्या  कमी है इस फूल सी बच्ची में ....?" इतनी खूबसूरत ...इतनी सादगी  से भरी .और क्या चाहिए था उस मरजाने  को ?"दयाशंकर. ने अपनी गिद्ध सी दृष्टि  से हँसा के मन को हिला कर रख दिया ।

"मारता पीटता  भी था ?"

"हाँ साहब नशे  में जानवरों  की तरह पीटता था मेरी फूल सी बच्ची को l " आनन्दी लाल. ने भरे हुए गले से कहा ।

"इनगालों  पर भी मारता  था ?" दयाशंकर. ने जहरीली  आवाज में दोबारा  हँसा को छूने   का प्रयास किया मगर वह पीछे हटकर  खड़ी हो गयी ।

"क्या हुआ बेटा ?" उसने बेशर्मी  से बेटा शब्द  निकाला सुनकर वह तिलमिला उठी  ।

"आपकी फीस क्या है वकील साहब ?" हँसा ने प्रश्न  किया l 

"देखो बेटा  तुम मेरी बेटी की तरह हो ...तुमसे कैसी  फीस .तुमकेस. के  डिश्कशन   के लिए बस इस पते   पर अपने पापा के साथ आ जाया   करना   .बसकल से कार्यवाही शुरू  करते हैं केस की ?"उसकी वासना   से भरी आवाज ने हँसा को अंदर   तक हिला दिया l 

यह आदमी  उसको अपने पति से भी ज्यादा दरिंदा   लगा  ..मुखौटा   लगाए बहरूपिया  l 

✍️ राशि  सिंह, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश , भारत


मुरादाबाद के साहित्यकार फक्कड़ मुरादाबादी की व्यंग्य कविता ---- आजादी का हीरा


कल कोठी के कुत्ते ने 

सड़क पर चलते कुत्ते को रोका 

व्यंग भरे अंदाज में टोका 

और बोला तू कहे तो मालिक से

 बात करूं

 मस्ती मौज उड़ाना

 दूध मक्खन ब्रेड खाना

 कभी-कभी मिलेगा शानदार गोश्त 

बदल जाएगी तेरी सोच 

मालकिन प्रातः काल घुमाने ले जाएगी 

कीमती साबुन से नहलायेगी

मिलेगा मालिक का प्यार 

जीवन का हो जाएगा उद्धार

 पूरी बात सुन सड़क का कुत्ता बोला 

मैं कमजोर ही सही

 तू दिख रहा है हट्टा कट्टा 

कभी शीशे में जा कर देख 

 गले में पड़ा हुआ पट्टा 

मैं पालतू के नाम से बदनाम नहीं हूं 

कमजोर जरूर हूं गुलाम नहीं हूं

रूखा सूखा खाकर भी रहता हूं मस्त 

कभी इस गली में कभी उस गली में 

रहता हूं व्यस्त

 रात को गश्त करती पुलिस 

जब मुझे भौंकता देखती है 

कहीं कोई अनहोनी तो नहीं

 फौरन निगाहें फेंकती है 

यह सही है तेरे पास सब कुछ है

परंतु मेरी निगाह में तेरे जीवन की बर्बादी है 

यह तेरी खुशियां तुझे ही मुबारक 

मेरे पास सबसे कीमती हीरा

 मेरी आजादी है।।

✍️ फक्कड़ मुरादाबादी, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश,भारत , मोबाइल फोन नम्बर- 9410238638

मुरादाबाद मंडल के गजरौला ( जनपद अमरोहा ) की साहित्यकार रेखा रानी की लघुकथा ---वट वृक्ष


मिंटो काफ़ी देर से दोहरा रही थी कि आज़ के ज़माने में आंगन लगभग समाप्त ही हो गए हैं और जब आंगन ही नहीं होंगे तो कहां लगाओगे वट वृक्ष और जब वट वृक्ष नहीं होंगे तो कहां से पाओगे छांव

मां खीझते हुए बोलीं कि क्या रट्टा लगा रखा है इतनी देर से"

मिंटो बोली "मां आज़ हमारी मैम कक्षा में हमारी संस्कृति को समझाते हुए यह बोल रही थीं तब से मेरे मन में एक अजीब सी हलचल पैदा हो गई है....

मैम के कहने का आशय क्या था।

मां बोलीं - मैं समझ गई तुम्हारी मैम के कहने का आशय पापा से कहो गाड़ी निकालें और गांव चलें और इस बार तुम्हारे दादा जी को साथ ही ले आएंगे... आगे से अब वो हमारे साथ ही रहेंगे हमारे पास क्योंकि वो ही हैं हमारे वट वृक्ष हमें चाहिए उनकी छांव.

मिंटो मां की बात सुनकर खुशी से उछल पड़ी।

✍️ रेखा रानी, विजय नगर गजरौला , जनपद अमरोहा, उत्तर प्रदेश,भारत

मुरादाबाद मंडल के नजीबाबाद (जनपद बिजनौर) की साहित्यकार दीपिका महेश्वरी सुमन का गीत ----अधरों को अधरों से अब तुम, करने दो मीठी सी बातें


 अधरों को अधरों से अब तुम, करने दो मीठी सी बातें।

तुमने जो कभी दीं थीं मुझको, मिट जाएंगी वो सब घातें॥

मधुर प्रेम का बन्धन जो है, अब भी घुँघरू से छनकाता।

मन ही मन तुमसे वो अपना, चुपके से बन्धन है निभाता ॥

रात चाँदनी ओढ़ के बोले क्यों  गुज़ारे अँखियो में रैना।

प्रेम परिधि नयनों में धरकर, मूँद ले तू चुपके से नैना॥

प्रयत्न करूँ पर बंद न होवे, नैनों में जो तुम ही बसे हो।

मोहनी मूरत मुझे दिखा कर, मोह बंधन में मुझे कसे हो॥

निकलना चाहूं निकल न पाऊं, मोह बंधन यह गहरा है। 

उम्मीदों का लश्कर देखो, अब भी मन में ठहरा है॥

आज मुझे तुम आकर दे दो, फिर वही मीठी सौगातें।

तुमने जो कभी दी थी मुझको, मिट जाएंगी वो सब घातें ॥

अधरों को अधरों से.......

दिन ढले नहीं ढल पाता है, मुझ पर यादों का साया है। 

सावन का ये मौसम जाने, कैसी बेचैनी लाया है॥

तड़प तड़प के जब श्वास है आती, मुझको तेरी याद सताती।

ठंडी पवन भी छू कर मुझको, तुमसे मिलन की आस जगाती॥

झर झर झर बहते हैं आँसू, नैना विहल हो जाते हैं। 

देख सुहानी यादों का डोला, अधर कमल मुस्काते हैं॥

साथ यह तेरा कभी न छूटे, चाहे कितनी भी हो दूरी। 

यादों में तुमको जीते हैं, मिलन नहीं अपनी मजबूरी॥

ग़म में भी खुशियों की फुहारें, दे जाती मीठी सौगातें। 

तुमने जो कभी दीं थीं मुझको, मिट जाएंगी वो सब घातें ॥

अधरों को अधरों से... 

✍️ दीपिका महेश्वरी सुमन (अहंकारा), नजीबाबाद बिजनौर ,उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का व्यंग्य ---- गृहस्वामी का सहायता प्राप्त घर


       "एतद् द्वारा आपको सूचित किया जाता है कि अनेक बार वाट्स एप द्वारा आप को नोटिस देने के बाद भी आपने समुचित उत्तर नहीं दिया । अतः आपके घर का प्रबंध अपने हाथ में लेते हुए नियंत्रक नियुक्त किया जाता है ।" अधिकारी का पत्र पढ़ने पर गृहस्वामी को कोई आश्चर्य नहीं हुआ । यह बात तो सात-आठ साल से चल ही रही थी कि एक दिन सरकार हमारा घर हड़प लेगी । 

      "आपने तो हमें कोई वाट्स एप नहीं किया ? "-गृह स्वामी ने अधिकारी से पत्र लेते हुए प्रश्न किया ।

      "हमने आपके सहायताप्राप्त कर्मचारी को वाट्स एप  कर दिया था। क्या आप उस से सूचना प्राप्त नहीं करते ? यह आपका दोष है कि आप अच्छे संबंध नहीं रखते ।"-अधिकारी का दो टूक जवाब था । गृहस्वामी ने अधिकारी से न उलझने में ही खैरियत समझी ।

               वह कितनी सुहानी घड़ी थी जब सरकार ने योजना बनाई थी कि बेरोजगारी हटाने के लिए , श्रमिकों को उनके परिश्रम का उचित मूल्य देने के लिए तथा साथ ही साथ सभी के घरों के सुचारू संचालन के लिए हर घर में एक कर्मचारी का वेतन सरकार अपने खजाने से देगी । पूरी कॉलोनी सरकार की इस योजना के अंतर्गत देखते ही देखते सहायता प्राप्त घर वाली कॉलोनी बन गई । अब हर घर में एक सहायता प्राप्त कर्मचारी था । उस कर्मचारी को सरकार से वेतन मिलता था । वेतन भी ऐसा कि मकान मालिक ललचा उठे कि काश उसकी भी उतनी ही आमदनी होती ! वास्तव में सब मकान मालिक धनवान नहीं थे । कुछ की आर्थिक स्थिति खराब थी  लेकिन सबके घरों में एक-एक कर्मचारी पहले से था । अब उसका वेतन सरकार देती थी । इस निर्णय से मकान मालिक भी खुश थे और कर्मचारी तो खुश होना ही चाहिए थे ।आखिर वेतन वृद्धि उनकी ही हुई थी । उनकी ही नौकरी में स्थायित्व भी आया था । 

       बात यहाँ तक रहती तो ठीक थी लेकिन अधिकारियों की नजरें बदल गईं। अब उनकी नजर इस बात पर थी कि सहायता प्राप्त घरों की कालोनियों को किस प्रकार हड़पा जाए ?  व्यक्तिगत बातचीत में अधिकारी खुलकर कहने लगे कि जब हमारे द्वारा प्रदत्त वेतन से आपके कर्मचारी का खर्चा चल रहा है तो घर भी हमारा ही हुआ ? गृह स्वामी इस तर्क का विरोध करते थे और कहते थे कि वेतन देने का मतलब यह नहीं है कि घर सरकार का हो गया ? आप वेतन दे रहे हैं ,यह अच्छी बात है। हम विरोध नहीं करते , लेकिन हमारे घर को हड़पने की योजना अगर आप बनाते हैं तो यह अमानत में खयानत वाली बात होगी । यह विश्वासघात होगा । यह अधिकारों का दुरुपयोग होगा ..आदि आदि । अधिकारियों के कान में जूँ तक नहीं रेंगी। वह चिकने घड़े थे । योजनाएं और षड्यंत्र रचते रहे । 

      प्रारंभ में कर्मचारी का वेतनबिल मकान मालिक को सरकार के पास भेजना होता था। इस कार्य के लिए सरकार ने हर जिले में एक "सहायता प्राप्त गृह-अधिकारी" नियुक्त किया हुआ था । गृह-अधिकारी वेतनबिल के अनुसार चेक काट कर गृह स्वामी को भेज देता था । गृहस्वामी उसे बैंक में कर्मचारी के खाते में जमा कर देते थे । उसके बाद गृह स्वामी का कार्य बढ़ने लगा । उसे कर्मचारी की वेतन-वृद्धि ,अवकाश-विवरण तथा योग्यता में वृद्धि संबंधी अनेकानेक सूचनाएं समय पर जिला गृह अधिकारी को भेजनी पड़ती थीं। अगर एक दिन की भी भेजने में देर हो जाए जो गृह-अधिकारी कुपित हो जाता था । गृह स्वामी के अधिकारों का बुरा हाल यह था कि अगर कर्मचारी को कोई छुट्टी लेनी होती थी तो वह अब तक गृह स्वामी से पूछता था लेकिन अब उसे गृह स्वामी से पूछने की आवश्यकता नहीं थी । वह जब चाहे ,जितनी चाहे छुट्टियाँ ले सकता था ।उसके वेतन में कटौती करने का कोई अधिकार गृह स्वामी को नहीं रहा। कारण वही था कि वेतन सरकार द्वारा दिया जाता है । अब स्थिति यह थी कि कर्मचारी जब चाहे छुट्टी लेकर घर बैठ जाए और जब चाहे काम पर लौट आए । काम पर लौट आने के बाद भी घर का काम आधा-अधूरा पड़ा रहता था । 

            सरकार ने एक नियम बना दिया था कि गृहस्वामी कर्मचारी को डाँट नहीं सकता था। कार्य न करने के लिए उसके वेतन से कटौती भी नहीं कर सकता था। कर्मचारी का अधिकार था कि वह चाहे तो काम करे, चाहे तो न करे । 

           एक बार एक गृहस्वामी ने अपने सहायता-प्राप्त कर्मचारी से कहा कि मेरे लिए एक कप चाय बना दो । कर्मचारी ने साफ इंकार कर दिया। बोला "मैं इस समय उदास हूँ। चाय नहीं बनाऊंगा ।"

     गृह स्वामी ने पूछा " उदासी किस बात की है ?"

     कर्मचारी बोला "मेरी पत्नी हाई स्कूल में फेल हो गई हैं ।अतः मैं उदास हूँ। "

        "मगर यह तो दस दिन पुरानी बात हो चुकी है । अब उदासी छोड़ो और चाय बनाना शुरू कर दो ।"

      कर्मचारी बोला " इतना बड़ा झटका अगर आपको लगा होता तो दर्द होता ।लेकिन आप लोग तो निर्मम,शोषक और उत्पीड़क हो। आपको कर्मचारी की भावनाओं का कोई ख्याल ही नहीं है ।"

           बेचारा गृहस्वामी अपना सा मुँह लेकर रह गया । उसके बाद से उसने कर्मचारी से कभी भी चाय बनाना तो दूर की बात रही ,एक गिलास पानी भी लाने के लिए नहीं कहा। पता नहीं एक गिलास पानी को कहा जाए और कितनी बाल्टी पानी गृहस्वामी के ऊपर लाकर उड़ेल दी जाए। वह कुछ कर भी तो नहीं सकता था ।

        धीरे-धीरे गृहस्वामी के हाथ से घर का प्रशासन फिसलता जा रहा था । एक दिन सरकारी अधिकारी घर पर आया और कहने लगा " यह सुनने में आया है कि आप अपने कर्मचारी का शोषण और उत्पीड़न करते हैं ? "

    सुनकर गृहस्वामी दंग रह गया । बोला "हम तो इनसे कोई काम भी नहीं लेते ! इनके किसी कार्य पर दखलअंदाजी भी नहीं करते।"

      लेकिन अधिकारी नहीं माना । बोला "घर का प्रशासन सही प्रकार से चलाने के लिए हमने एक "सहायक मकान मालिक" नियुक्त किया है । अब आप घर अपने तथा "सहायक मकान मालिक" के साथ बैठकर आपसी सलाह-मशवरे के बाद चलाया करेंगे।"

       गृह स्वामी ने उदासीन होकर कहा "अब घर चलाने के लिए रह ही क्या गया है ? दीवारों पर धूल है । छतों पर मकड़ी के जाले हैं । न कोई आता है, न जाता है । हम भी अपने वित्तविहीन मकान में ही दिन काट रहे हैं ।"

     अधिकारी ने कहा " आपको मुझसे या मेरे आदेश से जो शिकायत हो ,अपील कर सकते हैं ।"-कहकर आदेश थमा कर चला गया । गृहस्वामी और सहायक-गृहस्वामी दोनों के लिए मकान में एक-एक कमरा अब रिजर्व था । सहायक गृहस्वामी क्योंकि सरकार के द्वारा मनोनीत था ,अतः वह अत्यंत प्रसन्नता के साथ अपने रिजर्व कमरे में रहता था । कर्मचारी क्योंकि सरकार से वेतन लेता था ,अतः उसे गृह स्वामी से ज्यादा सहायक गृहस्वामी के आदेश को मानने में रुचि थी। उसे मालूम था कि अब सहायक-गृहस्वामी ही घर का वास्तविक मालिक है । 

     समय बीतता गया । घर न रिश्तेदारों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा और न मिलने -जुलने वाले घर में आना पसंद करते थे। सहायताप्राप्त घर को सबने आकर्षण विहीन घोषित कर दिया था । पूरी कॉलोनी में सहायता प्राप्त घरों के होने के कारण कॉलोनी  ही उदासीन नजर आने लगी थी।

        अधिकारी फिर भी कॉलोनी के घरों पर बुरी नजर रखे हुए था । वह किसी प्रकार से गृह स्वामी को उसके एकमात्र कमरे में से भी निकालने की कोशिश कर रहा था । एक दिन उसके हाथ में नियमावली की एक धारा आ गई । यह नियमावली सहायताप्राप्त घरों के सुचारू संचालन के लिए सरकार ने बनाई थी । नियमावली की एक धारा यह थी कि अगर अधिकारी को यह विश्वास हो जाए कि गृहस्वामी सही प्रकार से घर का संचालन नहीं कर पा रहा है तो वह नियंत्रक बैठा सकता है और गृहस्वामी को घर से बेदखल कर सकता है । अधिकारी ने वस्तुतः इसी धारा का उपयोग करते हुए आखिर गृहस्वामी के सहायताप्राप्त घर को हड़प ही लिया। 

      अब गृह स्वामी यह कह रहा है कि जिस कर्मचारी को सरकार वेतन दे रही है उसके क्रियाकलापों से मेरा कोई संबंध नहीं रहेगा। बस केवल मुझे मेरे घर में चैन से रहने का अधिकार दे दो। सरकार मानने को तैयार नहीं है । कहती है जब तुम्हारे घर के कर्मचारी को सरकार वेतन दे रही है तब तुम घर के अंदर चैन से कैसे बैठ सकते हो ? 

 ✍️ रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा , रामपुर ,उत्तर प्रदेश, भारत , मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेन्द्र सिंह बृजवासी की लघु कहानी---- घर का न घाट का!


 लाला रामगुलाम मोहल्ले के संभ्रांत नागरिक होने के साथ-साथ जाने-माने आभूषण विक्रेता भी थे। पूरे शहर में उनके मधुर व्यवहार एवं ईमानदारी की खूब चर्चाएं सुनने को मिलती।

    उनके पूरे खानदान में इनके पास ही एक बेटा था।बाकी और भाइयों पर दो-दो बेटियां ही थीं।सभी लोग लाला रामगुलाम जी के बेटे बबलू पर ही अपनी जान छिड़कते थे।उसके लिए मुंह मांगा तोहफा हाजिर करने में देर करने का तो मतलब ही नहीं था।

     सभी चाचा-ताऊ बबलू को खूब पढ़ा -लिखा कर बड़ा अधिकारी बनते देखना चाहते।बबलू जब बारहवीं क्लास में था तभी अचानक उसके मन में मुम्बई जाकर फ़िल्म कलाकार बनने की सनक सवार हो गई। हर समय फिल्मी एक्टरों की नकल करता,उनके फिल्मी संवाद बोल बोलकर एवं फिल्मी गानों पर डांस करके अपने दोस्तों और अपनी चचेरी बहनों को दिखाता रहता।

     एक दिन बबलू अपने किसी दोस्त के घर जाने की बात कहकर घर से निकल गया,और रेलवे स्टेशन पहुंचकर मुम्बई जानेवाली गाड़ी में सवार हो गया।काफी रात तक भी जब बबलू घर नहीं आया तो घर वाले गहरी चिंता में पड़ गए।सब जगह टेलीफोन घुमा दिए गए।हर संभव ढूंढने के प्रयासों की होड़ लग गई।मगर उसके फ़िल्म नगरी मुम्बई जाने का अंदाज़ा किसी को नहीं लगा।

     उसकी तलाश करते -करते महीनों बीत गए।उधर बबलू मुम्बई पहुंच तो गया लेकिन उसे वहां कौन जानता,उसके पास जो भी रुपए -पैसे थे वह धीरे-धीरे खत्म होने लगे।एक समय वह आया जब वह एक प्याली चाय तक को तरसने लगा।कई दिन से बिना नहाए धोए रहने के कारण कपड़ों में से भी दुर्गंध आने लगी।ऊपर से भूख भी दम निकालने पर आमादा,,

     किसी को खाता देखकर मुंह में आए पानी को चुचाप निगलने के सिवाय कोई चारा नही था।बिखरे बाल,सूखे होंठ,भूखा पेट कुछ भी करने के लिए मजबूर करने की मजबूरी बनते जा रहे थे।आखिरकार उसने अपनी कमीज़ उतार कर आती जाती गाड़ियों को साफ करके पेट भरने का साधन तलाश ही लिया।

    उसके हाथ देने पर एक गाड़ी वाले बुजुर्ग ने गाड़ी रोककर बबलू से पूछा बेटे तुम कहाँ के रहने वाले हो और यहां किस उद्देश्य को लेकर आए हो।तब बबलू ने रोते हुए अपने संभ्रांत परिवार के बारे में सब कुछ बता दिया।

     दयावान बुजुर्ग ने पहले तो उसे अपने थैले से निकालकर बड़ा पाव खाने को दिया, बिसलरी का पानी पिलाकर उसको खड़ा होने लायक किया और उसके माता-पिता को मोबाइल पर अपना पता देते हुए बेटे को अपने पास सरक्षित होने की सूचना दी।

      तब उन्होंने बबलू को भी बहुत समझाते हुए कहा बेटा घर से भागने वाले बच्चों की हालत कैसी हो जाती है, क्या तुम्हें इसका अंदाज़ा है।कभी भी ऐसा कदम न उठाना। यह कहावत बिल्कुल सही है कि--- घर छोड़ने वाला न घर का रहता है न घाट का।बबलू ने कान पकड़कर अपनी ग़लती को मानते हुए बुजुर्ग सज्जन की दयालुता पर उनको साष्टांग प्रणाम किया।

✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी", मुरादाबाद, उप्र, मोबाइल फोन नम्बर 9719275453

               

                   

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर की साहित्यकार रागिनी गर्ग की लघुकथा ---फर्क


 "अरे यार विनोद! बहू सुनीता मात्र सत्ताइस साल की छोटी उम्र में  विधवा हो गयी, तुमने उसके और उसकी पाँच साल की बच्ची के लिये क्या सोचा है? भाभीजी और तुम कब तक बैठे रहोगे? मेरी मानो तो उसका पुनर्विवाह कर दो।"

विनोद ने आँखें तरेरकर अपने लँगोटिया यार प्रकाश को घूरते हुये कहा:- 

"लगता है तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है। जो बहकी- बहकी बातें कर रहे हो।"

"विनोद! इसमें बहकी बात जैसा क्या है?"

"बहू का दूसरा विवाह करना इतना आसान नहीं है। मेरी पोती का क्या होगा? लोग क्या कहेंगे? सुना! तुमने, मैं बहू का विवाह नहीं कर सकता।" लगभग प्रकाश पर चीखते हुये विनोद बोला।

"परररर विनोद! ये बहू,बहू की रट क्यों लगा रखी है? तुम तो सुनीता को बेटी मानते हो। वो अनाथ भी तुम दोनों को ही अपना माता- पिता मानती है।"

"बंद कर अपनी बक-बक और अपनी सलाहअपने पास रख" प्रकाश को झिड़कते हुये विनोद बोला,"बेटी मानने और बेटी होने में बहुत बडा़ फर्क है।"

✍️ रागिनी गर्ग, रामपुर , उत्तर प्रदेश, भारत