सोमवार, 6 सितंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में दिल्ली निवासी) आमोद कुमार अग्रवाल की ग़ज़ल ---साँस की मशीन कब रुक जाये कोई जानता नहीं , 'आमोद' सामान मगर सौ साल के रखता है


अपना पता ठिकाना जेब में डाल के रखता है।

ढलान का मुसाफ़िर कदम सम्हाल के रखता है।


मुफ़लिस सिर्फ़ देखता रहे कुछ ले न सके

वो कीमती चीजें भीतर जाल के रखता है।


उसका कोई भी ख़्वाब कभी पूरा नहीं होता

बदनसीब फिर भी उम्मीद पाल के रखता है।


वक्त तो नहीं बदलता, बदल जाते हैं हम

पुराने फोटो अक्सर वो निकाल के रखता


शख़्सीयत की पहचान दौलत से नहीं होती

,गरीब तो स्वागत में कलेजा निकाल के रखता है।


साँस की मशीन कब रुक जाये कोई जानता नहीं

'आमोद' सामान मगर सौ साल के रखता है।

✍️ आमोद कुमार अग्रवाल, सी -520, सरस्वती विहार, पीतमपुरा, दिल्ली -34, मोबाइल फोन नंबर  9868210248

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें