सोमवार, 31 अक्तूबर 2022

मुरादाबाद की साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्था 'संकेत' की ओर से काले सिंह साल्टा की आत्म कथा 'धरा से गगन की ओर' का विमोचन एवं काव्य-गोष्ठी का आयोजन

मुरादाबाद की साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्था 'संकेत' की ओर से काले सिंह साल्टा की आत्म कथा 'धरा से गगन की ओर' का विमोचन एवं काव्य-गोष्ठी का आयोजन रविवार 30 अक्तूबर को दयानंद डिग्री कॉलेज में हुआ। डॉ प्रेमवती उपाध्याय द्वारा प्रस्तुत माॅं शारदे की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता साहित्य भूषण डॉ महेश 'दिवाकर' ने की। मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध संविधान विशेषज्ञ एवं शिक्षाविद् डॉ हरवंश दीक्षित तथा विशिष्ट अतिथियों के रूप में वरिष्ठ कवयित्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय एवं समाजसेवी इंजी उमाकांत गुप्ता 'एडवोकेट' मंचासीन हुए। दो चरणों में हुए इस कार्यक्रम का संयुक्त संचालन राजीव प्रखर, दुष्यंत बाबा एवं श्री अशोक विश्नोई ने किया।

          कार्यक्रम के प्रथम चरण में नगीना (बिजनौर) के रचनाकार श्री काले सिंह साल्टा के जीवन-वृतांत 'धरा से गगन की ओर' का विमोचन हुआ जिसमें उपस्थित साहित्यकारों एवं वक्ताओं ने श्री साल्टा को अपनी बधाई एवं शुभकामना प्रेषित करते हुए उनकी लेखनी के निरंतर गतिशील रहने की कामना की। 

      कार्यक्रम के द्वितीय चरण में संस्था की ओर से श्री काले सिंह साल्टा जी को सम्मानित किया गया सम्मान स्वरूप उन्हें अंग वस्त्र, प्रशस्ति पत्र व स्मृति चिह्न प्रदान किए गये। मान-पत्र का वाचन दुष्यंत बाबा ने किया। तत्पश्चात् एक काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें दुष्यंत बाबा, चेतन विश्नोई, राजीव 'प्रखर', श्रीकृष्ण शुक्ल, धन सिंह थनेन्द्र, शिवओम वर्मा, रघुराज सिंह निश्चल, के० पी० सरल, नकुल त्यागी, फक्कड़ मुरादाबादी, एम० पी० बादल, रवि चतुर्वेदी, अशोक विद्रोही, पूजा राणा, इंदु रानी आदि रचनाकारों ने अपनी-अपनी काव्यात्मक अभिव्यक्ति की।       

      मनोहर लाल भाटिया, डॉ० विपिन विश्नोई, भगत जी, साल्टा परिवार, ए० के० सिंह, सरदार सुरेन्द्र सिंह आदि भी उपस्थित रहे। शिशुपाल 'मधुकर' ने आभार अभिव्यक्त किया। 
































:::::::::प्रस्तुति:::::::
राजीव 'प्रखर'

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत 



रविवार, 30 अक्तूबर 2022

मुरादाबाद मंडल के सरायतरीन (जनपद संभल) की संस्था सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता समिति (भारत) उत्तर प्रदेश ने किया साहित्यकारों रूप किशोर गुप्ता, डॉ आरसी शुक्ला, डॉ मनोज रस्तोगी, प्रो सुधीर कुमार अरोड़ा , आरिफा मसूद अंबर, डॉ राशिद अज़ीज़, सुल्तान मौहम्मद खां कलीम, त्यागी अशोका कृष्णम्, प्रदीप कुमार दीप एवं दीक्षा सिंह को सम्मानित

 मुरादाबाद मंडल के सरायतरीन (जनपद संभल) की संस्था सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता समिति (भारत)  उत्तर प्रदेश द्वारा रविवार 30 अक्टूबर 2022 को आजाद गर्ल्स डिग्री कॉलेज दीपा सराय संभल में आयोजित प्रांतीय अलंकरण सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। 

       इस समारोह में साहित्यकार एवं महाराजा हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय मुरादाबाद के प्राचार्य प्रो सुधीर कुमार अरोड़ा को सरस्वती सम्मान, वरिष्ठ साहित्यकार एवं केजीके महाविद्यालय मुरादाबाद के पूर्व विभागाध्यक्ष अंग्रेजी डॉ आरसी शुक्ला को साहित्य रत्न सम्मान, बहजोई के वयोवृद्ध साहित्यकार रूप किशोर गुप्ता एवं मुरादाबाद के वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी को हिंदी गौरव सम्मान, मुरादाबाद की साहित्यकार आरिफा मसूद अंबर को नन्ही देवी रामस्वरूप सम्मान,  कश्मीर विश्वविद्यालय कश्मीर के उर्दू विभाग के डॉ राशिद अज़ीज़, सुल्तान मौहम्मद खां कलीम, त्यागी अशोका कृष्णम्, प्रदीप कुमार दीप एवं दीक्षा सिंह को काव्य दर्पण सम्मान से विभूषित किया गया।

      इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन एवं मुशायरा में त्यागी अशोका कृष्णम, प्रदीप कुमार दीप, दीक्षा सिंह, सुल्तान मौहम्मद खां कलीम, डॉ राशिद अज़ीज़, शफीकुर्रहमान बरकाती, डॉ मनोज रस्तोगी,रूप किशोर गुप्ता, डॉ यू सी सक्सेना, मुशीर खां तरीन, डॉ सुधीर कुमार अरोड़ा, डॉ आर सी शुक्ल, आरिफा मसूद, डॉ किश्वर जहां जैदी आदि ने काव्य पाठ कर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। 

     समारोह की अध्यक्षता डॉ सीपी सिंह ने की। विशिष्ट अतिथि  डॉ यूसी सक्सेना, श्री मुशीर खां थे। संयोजक राष्ट्रीय अध्यक्ष हरद्वारी लाल गौतम थे । संचालन साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम ने किया ।

      समारोह में रूबी, नाहिद रजा, सुरेन्द्र सिंह, रजनी कान्ता चौहान, मन्जू सक्सेना, चिंकी दिवाकर, साक्षी शर्मा, भारती ठाकुर, दीक्षा ठाकुर, नीलम गौतम, डॉ मुनव्वर ताविश, मुजम्मिल खां मुजम्मिल, डॉ शहजाद अहमद, डॉ प्रदीप कुमार त्यागी, हाजी फ़हीमउद्दीन, हाजी शकील अहमद कुरैशी, डॉ जिकरूल हक, डॉ शशीकांत गोयल, शाह आलम रौनक, ताहिर सलामी,मौ फरमान अब्बासी आदि की सक्रिय भागीदारी रही।


















शनिवार, 29 अक्तूबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की व्यंग्य कविता .....


एक दिन एक कवि सम्मेलन में 

एक श्रोता 

खड़ा होकर चिल्लाया

ये क्या सुनाते हो आप, 

ये कविता नहीं चुटकुले हैं,

कल ही के अखबार में छपे हैं,

उन्हीं चुटकुलों पर मुलम्मा चढ़ाते हो,

और शान से मंच पर सुनाते हो,

और लिफाफा भी तगड़ा ले जाते हो,

जरा तो शरम करो यार

कुछ तो ऐसा सुनाओ 

जिसमें राग रंग रस छंद नजर आये

कविता में कुछ तो कवित्व नजर आये

मैं थोड़ा सकपकाया, फिर चिल्लाया,

जी हाँ, आप सच कह रहे हो,

हम चुटकुले सुनाते हैं, 

लेकिन भैय्ये सच तो यह भी है कि,

आप भी तो चुटकुले ही सुनना चाहते हो,

एक बार नहीं बार बार सुनते हो, 

वन्स मोर वन्स मोर करते हो,

और यदि हम गीत गज़ल या मुक्तक सुनाते हैं, 

तो आप ही हमें हूूट भी करते हो,

ऐसा नहीं है कि हम 

गीत गजल रस छंद नहीं लिखते

हमारे संकलन तो देखो,

उनमें तो यही सब हैं दिखते,

यहाँ तो हम आपका 

विशुद्ध मनोरंजन करते हैं, 

माल वही बिकता है 

जिसके खरीदार होते हैं,

इसीलिए हम भी चुटकुले सुनाते हैं,

किंतु इन्हीं चुटकुलों के बीच में 

आपकी सोई चेतना को भी जगाते हैं,

और भैय्ये निश्चिंत रहो,

जिस दिन ये सोई चेतना जाग जायेगी,

मंचों पर चुटकुले नहीं,

विशुद्ध कविता नज़र आयेगी


✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल

MMIG - 69

रामगंगा विहार

 मुरादाबाद  244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार मनोज मानव की गीतिका ....


बहे जो दरिया वे मीठे अवश्य होते हैं।

मिले समुद्र तो खारे अवश्य होते हैं।


सभी चुनाव में वादे अवश्य होते हैं।

हटे गरीबी ये नारे अवश्य होते हैं।


किसी को मिलती नहीं मंजिलें सरलता से,

सभी के मार्ग में काँटे अवश्य होते हैं।


भले हो कागजों में पाँच साल गारंटी,

सड़क पे वर्षा में गड्ढे अवश्य होते हैं।


महान लोग सदा कर्म करते चुपके से,

जो ढोल होते वे पोले अवश्य होते हैं।


बुआ भतीजे की शादी में खुश हो कितनी भी,

महान फूफा जी रूठे अवश्य होते हैं।


कठोर लगते हैं जो लोग अपनी भाषा से,

वे दिल के द्वार को खोले अवश्य होते हैं।


समय को कोसना होता नहीं उचित मानव,

मिले सभी को ही मौके अवश्य होते हैं।


✍️ मनोज मानव 

पी 3/8 मध्य गंगा कॉलोनी

बिजनौर  246701

उत्तर प्रदेश, भारत 

मोबाइल फोन नंबर  9837252598



गुरुवार, 27 अक्तूबर 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की लघु कथा ....खुशियों की दीपावली



           "अरी बहू !  क्या बात है ,तीन बज गए ।अभी तक दोपहर का खाना खाने कुंदन नहीं आया कहां चला गया है"। चिंतित होते हुए अम्मा जी ने अपनी पुत्रवधू विनीता से कहा । 

          विनीता ने शांत भाव से जवाब दिया "अम्मा जी ! आज तो दीपावली है ।रात से बैठकर पटाखे और आतिशबाजी की लिस्ट तैयार कर रहे थे। वही लेने गए होंगे। मैं तो समझा - समझा कर हार गई "।

   अम्मा जी थोड़ा गुस्से में आ गईं। बोलीं" इतनी बार इसे समझाया कि पैसे को आग मत लगा लेकिन हर साल दस बीस हजार की आतिशबाजी लेकर आता है । यह भी तो नहीं देखता कि कमाई कितनी है। बस दो-चार इसके साथ के यार दोस्त हैं जो इसको चढ़ाते रहते हैं और 2 घंटे में सारा रुपया फूंक कर चले जाते हैं"।

       विनीता ने कहा " अम्मा जी! मैं हर साल समझाती हूं लेकिन कोई असर नहीं होता"।

        अब अम्मा जी थोड़ी उदास होने लगीं। खाट पर बैठ गयीं। घुटनों को सहलाने लगीं और बोलीं"-" कई साल पहले की बात है, इसने आंगन में ही सारी आतिशबाजी जला दी थी. नतीजा यह हुआ कि 2 घंटे में जाकर धुआं थोड़ा कम हुआ. मैं तो सांस लेने तक से मुश्किल में आ गई थी. बस यह समझो कि दम घुटने से बची"।

     फिर कहने लगीं कि आतिशबाजी नीचे छोड़ो, ऊपर छोड़ो ,बाहर छोड़ो !  क्या फर्क पड़ता है! धुँआ तो सब जगह हवा में फैला रहता है । आज दिवाली है लेकिन मैं तो कई दिन पहले से सांस लेने में मुश्किल महसूस कर रही हूं ।जब सारे लोग ही पटाखे छोड़ते रहेंगे और माहौल को जहरीला करते रहेंगे तो हम बूढ़े सांस लेने कहां जाएंगे "।

      यह बातें हो ही रही थीं कि दरवाजे पर कुछ आहट हुई । अम्मा जी ने विनीता के साथ जाकर बाहर देखा तो पता चला कि कुंदन खड़ा हुआ है और ठेले पर से कुछ उतरवा रहा है। विनीता ने देखा तो उसकी आंखों में चमक आ गई । मुंह से अचानक निकाला -"अरे वाह ! वाशिंग मशीन ! क्या बात है ! आज वाशिंग मशीन ले आए । मैं तो पिछले छह-सात साल से बराबर इसी  के लिए कह रही थी"।

    कुन्दन ने कहा-" आज देखो ! दीपावली के शुभ अवसर पर मैं घर में वाशिंग मशीन लेकर आया हूं । अब इसका उपयोग पूरे घर को मिलेगा , फायदा सबको मिलेगा।"

      वाशिंग मशीन घर में क्या आई, खुशी की लहर दौड़ पड़ी। अम्मा जी ने  कुंदन को सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया। थोड़ी देर बाद जब मशीन रखकर ठेलेवाला चला गया। मशीन फिट हो गई । शाम होने लगी तो कुंदन के पास फोन आया।

     " क्यों भाई सुना है, इस साल आतिशबाजी नहीं होगी"

   कुंदन ने जवाब दिया "हां यार ! इस बार वाशिंग मशीन खरीद ली "।

   उधर से जवाब आया "अब तेरी जिंदगी में उत्साह नहीं रहा ।"

   कुंदन ने फोन बंद कर दिया लेकिन दोस्तों की संख्या 1 से ज्यादा थी .थोड़ी देर बाद फिर फोन की घंटी बजी। कुंदन ने फोन उठाया"- अरे भाई क्या बात है ? आज उदासी में दीपावली मनाओगे ? कोई आतिशबाजी नहीं, पटाखे नहीं!"

    कुंदन ने फोन रख दिया । फिर एक फोन आया "अरे यार! दीवाली तो साल में एक ही बार आती है । घर गृहस्थी  तो रोजाना चलाते रहोगे । यह क्या! वॉशिंग मशीन ले आए। पटाखे सुना है, एक भी नहीं लाये "।

    कुंदन बोला "हां सही सुना है "

    और फोन उसने काट दिया ।

               फिर जब शाम ढ़ली तो कुंदन ने विनीता से कहा-" इस बार मैंने आज सुबह ही सोच लिया था कि पटाखे और आतिशबाजी में पैसा बर्बाद नहीं करूंगा। कितनी मुश्किल से हम कमाते हैं और सचमुच हमारी हैसियत दस बीस हजार खर्च की नहीं है। पटाखों में खर्च करके वातावरण भी प्रदूषित होता है । अम्मा जी को सांस लेने में कितनी तकलीफ होती है। इसके अलावा पिछले साल सड़क पर जो हम जा रहे थे तो तुम्हें याद होगा किसी ने पैर के पास पटाखा  फोड़ दिया था और तुम्हारी साड़ी में आग लगते लगते बची । फिर भी पैर में जख्म हो गया था , जो तीन-चार दिन में जाकर भरा।... आज हम सचमुच खुशियों की दीपावली मना रहे हैं"।


✍️ रवि प्रकाश

बाजार सर्राफा, रामपुर 

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की लघु कथा....छटाँक भर जीरा!

 


लाला शुद्धबुद्धि अपनी किराने की दुकान पर बैठे-बैठे ग्राहकों के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। सोच रहे थे कि आधा दिन निकल गया परंतु किसी ग्राहक का अता-पता ही नहीं।

   तभी उन्हें एक ग्राहक दुकान की ओर आता दिखाई दिया। लाला शुद्धबुद्धि ने बढ़कर ग्राहक की इच्छा जानने हेतु पूछा,क्या चाहिए श्रीमान जी।

 ग्राहक कुछ बोलता इससे पहले तराजू के पास पड़े पाँच किलो,दस किलो,बीस किलो,तथा पचास किलो वज़्न के बाटों में यह बहस ज़ोर पकड़ गई कि दुकान पर पधारे ग्राहक महोदय कितने वज़्न का सौदा खरीदने का मन बना रहे हैं।

    सबसे पहले पांच किलो का बाट आगे आया और बोला आजकल महंगाई इतनी हो गई है कि ग्राहक को पांच किलो सौदा खरीदने के लिए भी सौ बार सोचना पड़ जाता है। ऐसे समय में केवल मैं ही तो ग्राहक की इच्छा पर खरा उतरता हूँ।

  तभी उसकी बात बीच में ही काटते हुए दस किलो का बाट अकड़ कर बोला। तू छोटा मुँह बड़ी बात मत किया कर। औकात में रहकर बोलना सीख ले समझा नहीं तो,,,,,आजकल कोई भी अपनी हैसियत को गिराकर खरीदारी करना उचित नहीं समझता। कम से कम ग्राहक का पहनावा देखकर ही अनुमान लगा लिया कर। घर के खर्चे के हिसाब से ही तो चीज़ ली जाती है। अब तू देखता रह भाई साहब मुझ पर ही अपना हाथ रखने वाले हैं।

  इतना सुनते ही दोनों बाटों को पीछे धकेलते हुए बीस किलो का बाट बोला हमारे ग्राहक महोदय, दुकान तक कोई पैदल या फटीचर साइकिल पर चढ़कर थोड़े आए हैं।कार से आए हैं कार से। कोई पांच या दस किलो सामान तुलवाकर घर ले जाएंगे क्या।,,,,,

   लेकिन ग्राहक महोदय शांत खड़े रहकर कुछ सोचने लगे तभी पचास किलो वज़्न का बाट सामने आया और सम्माननीय ग्राहक से बड़े ही विनम्र भाव से बोला, श्रीमान जी यह सारे के सारे बाट एकदम मूर्ख हैं मूर्ख। यह इतना भी नहीं समझ पा रहे हैं कि आप इतनी बड़ी गाड़ी में बैठकर इस दुकान पर आए हैं तो क्या दस या बीस किलो सौदे में लिए  ही इतना पेट्रोल  फूंकेंगे। मैंन इन्हें इतनी बार समझाया है कि ग्राहक देखकर ही अपना मुंह खोला करो। मगर ये हैं,कि समझने को तैयार ही नहीं।इनको तो बिना सोचे समझे बोलना सिद्ध,,,,,

    तभी ग्राहक ने दुकानदार शुद्धबुद्धि को मात्र एक छटाँक जीरा तौलने का आदेश दिया।

    इतना सुनते ही सभी बाटों के मुँह लटक गए। मन ही मन ग्राहक को भला-बुरा कहते हुए अपने स्थान पर निर्जीव पड़े रहकर अगले ग्राहक की प्रतीक्षा करने लगे।

    तभी छटाँक भर के बाट ने गर्व से सीना चौड़ा करते हुए कहा। कि छोटों की अहमियत  को कभी कम नहीं समझना चाहिए। सबने यह कहावत तो सुनी ही होगी।

     रहिमन देखि बड़ेन कौं

     लघु  न   दीजिए  डारि।।

  दुकानदार शुद्धबुद्धि ने ग्राहक को एक छटाँक जीरा तोलकर दे दिया।और कीमत लेकर बोरी के नीचे रखते हुए कहा। कृपया आते रहिएगा आप ही की दुकान है।

   दोनों एक दूसरे का  धन्यवाद करते हुए मुस्कुराने लगे।

 ✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी 

मुरादाबाद 244001 

उत्तर प्रदेश, भारत



      

                  

सोमवार, 24 अक्तूबर 2022

वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से माह के प्रत्येक रविवार को वाट्सएप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया जाता है । रविवार 23 अक्तूबर 2022 को आयोजित 327 वें वाट्स एप कविसम्मेलन एवं मुशायरे में शामिल साहित्यकारों डॉ अशोक कुमार रस्तोगी, श्री कृष्ण शुक्ल, नृपेंद्र शर्मा सागर, संतोष कुमार शुक्ल संत, त्यागी अशोका कृष्णम , दीपक गोस्वामी चिराग, अतुल कुमार शर्मा, अशोक विश्नोई, राजीव प्रखर, धन सिंह धनेंद्र और मनोरमा शर्मा की की रचनाएं उन्हीं की हस्तलिपि में












 

रविवार, 23 अक्तूबर 2022

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली ( जनपद संभल ) निवासी साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम् के दोहे ......आलोकित हो जिंदगी, दीवाली सी रोज



शुभ शुभ शुभ शुभ कामना, शुभचिंतक संदेश।

आई शुभ दीपावली,जगमग सब परिवेश।।


धनतेरस दीपावली,आई भाई दूज।

गोवर्धन के साथ में ,मिलकर सबको पूज।। 


लाई है दीपावली,अंधकार का नाश।

हारे मन की जीत है,विश्वासों के ताश।।


रौशन दीपों से हुआ, नगर गली हर गांव।

उखड़े उखड़े आज हैं,अंधकार के पांव।।


खील बताशे साथ में,खांड खीर के भोज।

आलोकित हो जिंदगी, दीवाली सी रोज।।


महलों में झालर लगीं, रौशन कुटिया द्वार।

लाये धन की बदलियां, दीपों का त्यौहार।। 


धन वैभव यश कामना, दीवाली के साथ।

कृपा से प्रभु राम की, मिलें सभी पुरुषार्थ।।


अष्ट सिद्धि निधियाँ मिलें, नव, सुख  हाथों हाथ।

धन देवी का आगमन,शुभ चरणों के साथ।।


✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्

कुरकावली, संभल 

उत्तर प्रदेश, भारत


मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता का गीत रात सुहानी दीवाली की आई है.....


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा की रचना ....एक दीपक मन में जला लो


एक दीपक मन में जला लो।

परम ज्योति उससे जगा लो।।

जो अंधज्ञान को मिटा दे,

ईर्ष्या का तम घटा दे,

जो दूसरों को प्रकाश दे,

निराशा को भी आस दे,

पाप की गगरी को चटका दे,

निशा का पथ भी भटका दे,

मन को पुण्य की राह चला लो,

एक दीपक मन में जला लो।‌।

माना आज सूरज भी शरमा जाए,

शरद मौसम भी दीपों से गर्मा जाए,

घना अंधेरा कहीं छिप न पाए,

परछाईं भी न परछाईं बनाए,

यह पर्व सदा जग रोशन कर जाए,

हममें भरपूर ज्ञान भर जाए,

रीति एक प्रीत की,ऐसी चला लो,

एक दीपक मन में जला लो।।

जो बुराई का दहन कर सके,

मन,सत्य को सहन कर सके,

जो धोखेबाजी का दफन कर सके,

कुनीति का कफन बन सके,

दया-धर्म का वक्ष बन सके,

अद्भुत प्रेम की ज्योति जला लो,

एक दीपक मन में जला लो।।

माना यह दीपक जलाए तुमने,

गली-मोहल्ले जगमगाए तुमने,

सोचो क्या नया किया तुमने?

क्या गिरते को सहारा दिया तुमने?

क्या गरीब की कुटिया को निहारा तुमने ?

क्या फैलाया उसमें उजियारा तुमने ?

आज कर किसी का भला लो,

एक दीपक मन में जला लो।

परम ज्योति उससे जगा लो।।


✍️ अतुल कुमार शर्मा

 सम्भल 

उत्तर प्रदेश, भारत



मंगलवार, 18 अक्तूबर 2022

मुरादाबाद मंडल के चांदपुर (जनपद बिजनौर) की साहित्यकार उर्वशी कर्णवाल के गीत संग्रह...." मैं प्रणय के गीत गाती" की बिजनौर के साहित्यकार मनोज मानव द्वारा की गई समीक्षा....

 192 पृष्ठों में 120 गीतों से सजा उर्वशी कर्णवाल का छंदबद्ध गीत संग्रह... ..." मैं प्रणय के गीत गाती", जिसमें मेरी दृष्टि से 25 सनातनी छंदों का प्रयोग किया गया है... द्विबाला, आनन्दवर्धक, सारः, लावणी, द्विमनोरम,स्रावि्गणी, राधेश्यामी , शृंगार, चतुर्यशोदा , माधव मालती,  विधाता, भुजंगपर्यात, सार्द्धमनोरम, गंगोदक, मानव, गीतिका, नवसुखदा , द्विपदचौपाई, महालक्ष्मी, दोहा, वीर/आल्हा, विष्णुपद, चौपाई ।

शारदे माँ की सुंदर वंदना से गीत संग्रह का बहुत सुंदर प्रारम्भ किया गया है। गीत- संग्रह में प्रेम के तीनों रूपों को बहुत ही खूबसूरती से प्रस्तुत किया है , ग्रन्थ प्रणय से शुरू होकर विरह की यात्रा करता हुआ प्रेम के अंतिम एवं सबसे भव्य स्वरूप भक्ति पर समाप्त होता है। 

यों तो संग्रह के सभी गीत छन्द एवं भावों का मधुर संगम के दर्शन कराते है लेकिन अधिकतर गीतों में भावों का विशाल सागर है जिसमें पाठक एक बार डुबकी लगाकर गहराई की ओर जाने से स्वयं को नहीं रोक पायेगा।देखिएगा प्रणय गीतों के कुछ ऐसे ही भाव--

" प्रेम पूज्य है, प्रेम ईश है, प्रेम हृदय का स्पंदन है।

  प्रेम विधाता का अनुभव है , प्रेम दिव्य का दर्शन है।।

एक और गीत देखिएगा

" एक वनिता को व्यथित कर, जा रहे पुरुषत्व लेकर।

  प्रीति की लय से विमुख हो, क्या किया बुद्धत्व लेकर।

उर निरंतर चाहता था , यह भुवन हो प्रीति सिंचित,

स्वाद रंगों से रहित यह, क्या करूंगी सत्व लेकर।

प्रीति की लय से विमुख हो, क्या किया बुद्धत्व लेकर।।

लेखिका ने प्रणय को बहुत ही खूबसूरती से परिभाषा दी है देखिएगा...

" व्याप्त हर कण में सुवासित, सृष्टि है चाहे प्रलय है।

  डूबता जो वह तरेगा, सिंधु सा गहरा प्रणय है।

  डूबकर पा ले चरम जो, या स्वयं को भी मिटा ले, 

  हो नहीं सकता पराजित , मृत्यु का उसको न भय है।

डूबता जो वह तरेगा, सिंधु सा गहरा प्रणय है।।

लेखिका ने चतुर्यशोदा जैसे अत्यंत कठिन छन्द को बहुत ही खूबसूरती से प्रस्तुत किया है , जिसकी बहुत सुरीली धुन है ...." रिहाले-मस्ती मकुंदरंजिश जिहाले हिजरा हमारा दिल है"

खुले-खुले से सुवास गेसू, मुदित हृदय को किये हुए है,

मंदिर-मंदिर सी, मलय अनोखी, लगे कि जैसे पिये हुए है।

प्रदीप्त स्वर्णिम, सवर्ण किरण सी प्रकाश करती उजास भरती।

झलक तुम्हारी अलग अनूठी कि प्राण लाखों दिए हुए हैं।।"

एक और मधुर छन्द माधवमालती का गीत देखिए

" जिंदगी के इस भँवर में, काल के लंबे सफर में,

शब्द उलझाते बहुत हैं, अर्थ तड़पाते बहुत हैं।

मौन को पढ़ना पड़ेगा,

पथ स्वयं गढ़ना पड़ेगा।।"

जब विरह के चरम पर कलम चले और उसे  मधुर ताल युक्त  गंगोदक छन्द  का साथ मिल जाये तो क्या उत्कृष्टता आती है  इस गीत में  देखिएगा, 

" भाव खो से गये शब्द मिलते नहीं, लय कहाँ गम हुई गीत कैसे लिखूँ,

श्वास या घड़कनें नाम में लीन है, पुष्प मुरझा गया पाँखुड़ी दीन है,

काँच की कोठरी , पात की झोपड़ी , पीर की ,अश्रु की, रीत कैसे लिखूँ ।"

वैसे तो संग्रह में ईश भक्ति , मातृ भक्ति के कई गीत है लेकिन एक गीत जो पितृ महिमा पर केंद्रित है बरबस आकर्षित करता है ।

" हमारे धन्य जीवन का, रहें आधार बाबू जी।

  तुम्हारे पुण्य-कर्मों को, कहें आभार बाबू जी।।

  घनी रातों में दीपक से, दिखाते रोशनी हमको,

  बने चंदा सितारों में , दिखाते चांदनी हमको।

  हमारे ग्रन्थ बाबू जी , हमारा सार बाबू जी ।।"

एक गीत में लेखिका ने समाज मे व्याप्त कोढ़ पर बड़ी सुंदर कलम चलायी है।

" शिकारी कुछ यहाँ ऐसे, चमन को छीन लेते हैं।

   जरा सी दे धरा तुमको , गगन को छीन लेते हैं।।"

आज कम्प्यूटर नेटवर्क के जमाने में पुस्तकों के महत्व को दर्शाते हुए लेखिका कहती है....

" पढ़ो पढ़ाओ किताब सब जन, सखी सहेली किताब होती,

उठे जो मन मे हजार उलझन , सवाल का ये जबाब होती।"

 अंत मे लेखिका ने गीत के माध्यम से कवि समाज के लिए संदेश दिया है कि --

" भूख- गरीबी लाचारी पर, होती खूब रही कविताई,

   अब थोड़ा सा जगना होगा, अंगारों पर लिखना होगा।

   कागज - कलम दवातें छोड़ो, तलवारों पर लिखना होगा

   उठने से पहले दब जाती, चीत्कारों पर लिखना होगा।

यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा यह छंदबद्ध उत्कृष्ट गीत संग्रह, लेखिका को साहित्य जगत में अपनी एक अलग पहचान दिलाने के समस्त गुण रखता है ।



कृति : मैं प्रणय के गीत गाती (गीत संग्रह)

रचनाकार : उर्वशी कर्णवाल

प्रथम संस्करण : वर्ष 2022

मूल्य : 300 ₹

प्रकाशक : शब्दांकुर प्रकाशन , नई दिल्ली

समीक्षक : मनोज मानव 

पी 3/8 मध्य गंगा कॉलोनी

बिजनौर  246701

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गुरुवार, 13 अक्तूबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष क़मर मुरादाबादी के सत्रह शेर

 


हम सिखादेंगे हरेक क़तरे को तूफां होना 

बे अदब हमसे न ऐ गरदिशे दौरां होना


कहीं फ़रेबे नज़र था कहीं तिलिस्मे जमाल 

कहां से बच के गुज़रते कहां ठहर जाते


जुस्तजू का हमें शऊर नहीं 

वरना मनज़िल कहीं से दूर नहीं


बारहा गरदिशे हालात पे आई है हंसी 

बारहा गरदिशे हालाता पे रोना आया


जलवे जुदा-जुदा सही हुस्न जुदा-जुदा नहीं 

एक अदा खिज़ा में है इक अदा बहार में


दौरे मय बन्द करो साज़ के नगमे रोको

अब हमें तज़करये दरदे जिगर करना है


रहेगा याद ये दौरे हयात भी हमको 

के ज़िन्दगी में तरस्ते हैं ज़िन्दगी के लिये


एक ज़र्रे में महो- अन्जुम नज़र आने लगे 

जब नज़र अपने पे डाली तुम नज़र आने लगे


कहाँ ढूंढोगे दीवानों का अपने 

मुहब्बत का कोई आलम नहीं है


न वो गुल हैं न वो गुन्चे, न वो बुलबुल न वो नग़मे बहारों में ये आलम है, ख़िज़ा आई तो क्या होगा


नज़रों से ज़रा आगे कुछ दूर खयालों से

 मैंने तुम्हे देखा है इक बार कहाँ पहले


साक़िया तन्ज़ न कर, चश्मे करम रहने दे 

मेरे साग़र में अगर कम है तो कम रहने दे


हौसले बढ़ गये मौजों का सहारा पाकर

 ज़िन्दगी और जवां हो गई तूफां के करीब


अपनी ही आग में जलता हूं ग़ज़ल कहता हूं- 

शमआ की तरह पिघलता हूँ ग़ज़ल कहता हूँ


जब तेरा इन्तज़ार होता है 

फूल नज़रो पे बार होता है


क़मर हम ज़माने से गुज़रे 

लेकिन अपना ज़माना बनाकर


याद करेंगे मुददतों शाना व आईना कमर 

बज़्म से उठ रहे हैं हम जुलफे़ ग़ज़ल संवार कर


✍️ क़मर मुरादाबादी