बुधवार, 12 अप्रैल 2023

मुरादाबाद के मूल निवासी साहित्यकार स्मृति शेष डॉ कुंअर बेचैन के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केंद्रित दिल्ली के साहित्यकार डॉ हरीश नवल का सारगर्भित आलेख ...... रोशन रहेंगे शब्द जिनके


'ये दुनिया सूखी मिट्टी है 

तू प्यार के छींटे देता चल।'

कम शब्दों में इतनी बड़ी बात कहने वाले डॉ. कुंअर बेचैन एक बड़े साहित्यकार तो थे ही, एक बड़े इंसान भी थे। सदा मुस्कराते रहने वाले डॉ. कुंअर भीतर से कितने बेचैन थे, यह केवल वे ही जानते थे। उनके जीवन के संघर्ष उन्हें बहुत बड़ा कवि हृदय दे सके थे। उनके गीत उनके सामाजिक सरोकारों के दर्पण हैं। मेरा सौभाग्य मुझे उनका साथ लगभग पैंतीस वर्ष मिला, यद्यपि एक श्रोता के रूप में मैंने उन्हें पचास साल से अधिक सुना।

     सन् 1985 की गर्मियों में अचानक मेरी मुलाक़ात बेचैन जी से मंसूरी के नीलम रेस्टोरेंट में हो गई जहाँ के परांठे बहुत प्रसिद्ध थे । परांठों के साथ-साथ डॉ बेचैन से गीत, अगीत, प्रगीत और नवगीत पर जानदार चर्चा हुई। हम दोनों ही हिंदी प्राध्यापक थे और अन्य विषयों के अलावा काव्यशास्त्र भी पढ़ाते थे। तब नवगीत नया-नया ही था। उसके विषय में डॉ बेचैन से कुछ नवीन व्याख्याएँ सौगात के रूप में मुझे मिलीं। रेस्टोरेंट से हम दोनों की विदाई एक बहुत अच्छे सूक्त वाक्य से हुई, जब उन्होंने कहा – “नीलम किसी किसी को सूट करता है पर आज यह हम दोनों को कर गया।"

      डॉ. बेचैन से संक्षिप्त मिलाप प्रायः कवि सम्मेलनों के आरंभ होने से पहले अथवा समापन के बाद मिलता था, जब वे औरों से भी घिरे होते थे। हाँ गोष्ठियों में भले ही कम मिलना होता था किंतु भरपूर होता था। विशेषकर लखनऊ के माध्यम गोष्ठियों में रहना, खाना-पीना साथ होता था। दिल्ली के हंसराज कॉलेज में उन्हें खूब बुलाया जाता था। वहाँ के आयोजक डॉ प्रभात कुमार मुझे हिंदू कॉलेज से बेचैन जी से मिलने के लिए आमंत्रित किया करते थे। प्रभात जी से भी उनकी बहुत बनती थी। डॉ बेचैन गुणग्राहक थे और प्रभात जी की सैन्स ऑफ ह्यूमर के प्रशंसक थे जिस कारण हम तीनों की हँसी दूर-दूर तक गुंज जाती थी। एक दिन मैं और डॉ प्रभात, डॉ. बेचैन के घर गाजियाबाद गए। ट्राफियों, सम्मान पत्रकों और केभाभी जी की गरिमा से भरा घर मेरे मन में घर कर गया। उसके बाद मैं अपनी पत्नी स्नेह सुधा के साथ दो बार गाजियाबाद गया। स्नेह सुधा चित्रकार हैं और कविता भी लिखती हैं यह बात कुंअर जी को बहुत भाती थी। वे स्वयं एक बड़े चित्रकार थे जिनके रेखाचित्रों की धूम सर्वत्र है। प्रियजन को अपनी पुस्तक भेंटते हुए वे एक अद्भुत रेखाचित्र क्षण भर में उस पर बना देते थे। मेरे पास भी उनकी कविता और चित्रकला के बहुत से संग्रहणीय साक्षी हैं।

      मैंने एक बार डॉ० बेचैन से मेरे कॉलेज में हो रहे कवि सम्मेलन हेतु अनुरोध किया। वे बोले, "हिंदू कॉलेज में बुला रहे हो तो मुझे कवि सम्मेलन की जगह साहित्यिक संगोष्ठी में बुलाओ, कविताएँ तो मैं सुनाता ही रहता हूँ मुझसे किसी साहित्यिक विषय पर चर्चा करवाओ।" अवसर की बात है कि लगभग एक महीने बाद ही हिंदू कॉलेज में तीन दिवसीय गोष्ठी हुई जिसमें एक दिन डॉ० बेचैन के नाम हुआ वे 'साहित्य के प्रदेय' विषय पर बोले और बहुत प्रभावी बोले जिसमें विद्यार्थियों द्वारा पूछे गए प्रश्नों के भी उन्होंने सम्यक् उत्तर दिए। विद्यार्थी बहुत ख़ुश हुए और समापन के बाद उनसे आटोग्राफ लेने के लिए भीड़ में बदल गए। डॉ. साहब ने सभी को अपने हस्ताक्षर के साथ-साथ संदेश भी दिए। मैंने पाया कि विद्यार्थियों से भी अधिक प्रसन्न हुए और संतुष्ट कुंअर जी स्वयं थे क्योंकि उन्हें अपने मन की बातें कहने का भरपूर अवसर मिला था, ऐसा उन्होंने मुझे बताया ।

   ग़ज़ल के व्याकरण संबंधित भी उनकी पुस्तक और उनकी एक पत्रिका के दो अंक मेरे पास है। दुष्यंत कुमार के बाद मेरी समझ से डॉ बेचैन ने निरंतर हिंदी ग़ज़ल को विकसित और प्रसारित किया। उनके काव्य अवदान में जहाँ नौ गीत संग्रह है वहीं ग़ज़ल के पंद्रह संग्रह हैं। कविता की अन्य शैलियों में उनके दो कविता संग्रह, एक हाइकु संग्रह एक दोहा संग्रह और एक महाकाव्य भी है। उन्होंने दो उपन्यास भी लिखे जिनमें जी हाँ मैं ग़ज़ल हूँ मेरी पुस्तक संपदा में है। अत्यंत सरस शैली में डॉ. बेचैन ने मिर्ज़ा ग़ालिब की कथा लिखी है जिसमें गजल का मानवीकरण किया है। बेमिसाल है यह उपन्यास |

        जब मैं 'गगनांचल' का संपादन कर रहा था, मैंने बेचैन जी से एक विशेष अंक के लिए उनकी तीन गजलें मांगी जिसपर उन्होंने कहा कि वे चाहते हैं कि 'गगलांचल में उनके संस्मरण छपें ताकि विदेश में भी पता चले कि मैं गद्य भी लिखता हूँ। मैंने सहर्ष दो कड़ियों में उनसे संस्मरण लिए जिनमें से जब एक प्रकाशित हुआ इसकी प्रशंसा में बहुत से पाठकों के पत्र आए, उनमें से अधिकतर नहीं जानते थे कि कुंअर जी गद्य भी लिखते हैं। इस संस्मरण का शीर्षक था 'मैं जब शायर बना' इसमें उन्होंने अपने कॉलेज की एक फैन्सी ड्रैस प्रतियोगिता का जिक्र किया था जिसमें वे शायर बने थे और वे अपने घर से ही एक शायर के गेटअप में पान चबाते दाढ़ी लगाए, सिगरेट का धुआँ उड़ाते, छड़ी लिए सभागार में संयोजक के पास पहुँचे और उन्होंने कुंअर जी को सम्मान देते हुए अपने साथ बिठा लिया और कहा कि मुशायरा तो रात आठ बजे से है अभी तो फैन्सी ड्रेस प्रतियोगिता चल रही है, आप प्रतियोगिता देखिए आपका नाम जान सकता हूँ। कुंअर जी ने बड़े आत्मविश्वास के साथ कहा, "जनाब मुझे कासिम अमरोहिणी कहते है सीधे अमरोहा से ही आ रहा हूँ, गजलें और नज्में कहता हूँ ।

      फैन्सी ड्रेस प्रतियोगिता समाप्त हुई तीन पुरस्कार दिए गए। प्रोग्राम समाप्त होने वाला था कि कुंअर जी ने संयोजक से कहा कि मैं कुछ कहना चाहता हूँ। संयोजक ने घोषणा कर दी कि आदरणीय कासिम अमरोहवी साहब इस प्रतियोगिता के बारे में अपने विचार रखना चाहते है। कुंअर जी ने माइक संभाला और प्रतियोगिता की सराहना करते हुए कहा कि आपने गौर नहीं किया कि एक शख्स और भी है जिसने फैन्सी ड्रेस में हिस्सा लिया लेकिन उसे नज़रअंदाज़ कर दिया गया। यह कहकर उन्होंने अपनी दाढ़ी मूंछे हटा दी। वे पहचान लिए गए और निर्णय बदला गया। ज़ाहिर है उन्हें प्रथम घोषित किया गया।

    डॉ. बेचैन की आदत थी जो मेरी भी थी कि गोष्ठियों में हम दोनों नोट्स लेते थे। मैं उन्हें बोलने के बाद नष्ट कर देता था लेकिन डॉ. बेचैन उन्हें फाइल में रखते थे। उन्होंने पाँच हजार से ज्यादा कवि सम्मेलनों में भाग लिया था। इन नोट्स में कवि सम्मेलन का इतिहास अंकित है जिनके आधार पर उन्होंने दो हज़ार पृष्ठ खुद ही टाइप कर लिए थे। संभवतः आने वाले किसी समय उनकी कवि सम्मेलन महागाथा एक ग्रंथ के रूप में प्रकट हो जाए।

    बहुत सी और भी यादें उनसे जुड़ी हुई हैं। 22 दिसंबर, 2013 डॉ. बेचैन को हिंदी भवन में संवेदना सम्मान प्रदान करने के लिए हिंदी भवन में एक समारोह हुआ जिसकी अध्यक्षता श्री बालस्वरूप राही की थी। लक्ष्मीशंकर वाजपेयी, कृष्ण मित्र, मंगल नसीम और प्रवीण शुक्ल के वक्तव्य थे और मुझे मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया गया था। जब अन्यों के भाषण चल रहे थे, डॉ. बेचैन ने मुझे पर्ची पर लिखकर आदेशात्मक आग्रह किया कि मैं जब बोलूं तो केवल उनके काव्य कर्म का ही विश्लेषण करूँ। मैंने ऐसा ही किया था जिससे डॉ. बेचैन बहुत प्रसन्न और संतुष्ट हुए। उनका कहना था कि प्रायः वक्ता 'कुंअर बेचैन' पर बोलते हैं, कुंअर बेचैन' के काव्य कर्म पर नहीं।

      मुझे उनका एक ऐसा संस्मरण ध्यान आ रहा है जिसमें उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के अनेक आयाम उद्घाटित हुए थे। दिसंबर 2008 में जापान में उर्दू, हिंदी पढ़ाने के सौ वर्ष मनाए गए थे, जिसमें जापान भारत और पाकिस्तान के कवियों का सम्मेलन भी था जिसमें कुंअर बेचैन जी को अध्यक्षता करनी थी। मुझ सहित पाँच प्रतिभागी और थे। पाकिस्तान के दल ने हम भारतीयों की अवहेलना करते हुए बड़ी निर्लज्जता से घोषित अध्यक्ष के स्थान पर पाकिस्तान के तहसीन फिराकी को अध्यक्ष पद पर बैठा दिया। मैंने विरोध में खड़े होकर कुछ कहना चाहा, तो बेचैन ने मेरा हाथ पकड़ मुझे बिठा दिया और बोले, “उन्हें मनमानी करने दो औक़ात पद से नहीं प्रतिभा से जानी जाती है। कुछ न कहो।" मैं चुप होकर बैठ गया। पाकिस्तान के दल ने कवि सम्मेलन के संचालन का दायित्व भी स्वयं हथिया लिया। सम्मेलन आरंभ हुआ पहले पाकिस्तान के कवियों ने अपना रचना पाठ किया, फिर भारत की बारी आई। एक-एक कर सुरेश ऋतुपर्ण, हरजिन्दर चौधरी, लालित्य ललित और मैंने कविताएँ प्रस्तुत की। समापन कवि के रूप में कुंअर बेचैन ने एक ग़ज़ल और एक कविता प्रस्तुत की और बैठने लगे, लेकिन श्रोताओं ने जिनमें पाकिस्तान के कवि भी थे उन्हें बैठने न दिया और एक-एक कर डॉ० बेचैन जी की अनेक रचनाएँ सुनी। सभी उपस्थित जन देर तक खड़े होकर तालियाँ बजाते रहे। पाकिस्तानी दल भी तालियाँ पीट रहा था। अब अध्यक्ष जनाब हसीन फिराकी का उद्बोधन था जिसमें उन्होंने कहा कि वे बहुत शर्मिन्दा हैं कि उनके देश की कविता अभी तक इश्क, हुसन और जुल्फों में ही अटकी हुई है और भारत की कविता ग़रीबी, माँ-पिता, नदी, पेड़ पत्तियाँ और इंसानियत जैसे विषयों को अनेक अर्थ देकर समेटती है; विशेषकर कुंअर बेचैन साहब की रचनाएँ। उन्होंने भी बाकायदा नोट्स बना रखे थे और कुंअर जी की कविताओं को बहुत से उदाहरण देते हुए उनका यशोगान किया।

      बात यहीं नहीं रुकी पाकिस्तान ने डॉ० कुंअर बेचैन का अभिनंदन करने के लिए टोक्यो के एक पाँच तारा होटल में अभिनंदन समारोह और भव्य डिनर आयोजित किया। कुंअर जी के कारण उनके साथ-साथ हम भारतीय साहित्यकारों का ही नहीं अपितु पूरे भारत का अभिनंदन हुआ। कुंअर बेचैन जी का मानना था कि 'शब्द एक लालटेन' है जिसे आप अपने हाथ में लेकर अँधेरा दूर करते चल सकते हो। उन्होंने जीवन भर इस लालटेन को थामे रखा और उनके शब्दों की लालटेन ऐसी है जो कभी भी बुझेगी नहीं, रोशनी देती रहेगी।


✍️ डॉ हरीश नवल

65 साक्षरा अपार्टमेंटस, ए-3 पश्चिम विहार

नई दिल्ली-110063 

मोबाइल फोन नंबर 9818999225 

मेल ::: harishnaval@gmail.com


शनिवार, 8 अप्रैल 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार का गीत ....काल चक्र की कलई खोलते /जाने अजाने खत


यादों की गठरी से निकले

फटे पुराने खत

काल चक्र की कलई खोलते

जाने अजाने खत 


दादी बाबा को हर दिन

पिसते ही देखा

पिता जी के बलिदानों का

छुट पुट सा लेखा

दर्द छुपाने की कैसी है

मां को जाने लत 


मर्यादा के मकड़जाल में

बहिना का यौवन

दफ्तर दफ्तर ऐड़ी घिसता

भैया का जीवन

बरसातों में अक्सर रोती

बिना बहाने छत


यादों की गठरी से निकले

फटे पुराने खत

काल चक्र की कलई खोलते

जाने अजाने खत


✍️  डॉ पुनीत कुमार

T 2/505 आकाश रेजीडेंसी

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

गुरुवार, 6 अप्रैल 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार जिया जमीर का आलेख ....सिर्फ शराब और शबाब के शायर नहीं हैं जिगर मुरादाबादी । यह आलेख उन्होंने अल्फाज़ अपने फाउंडेशन की ओर से रविवार 26 फरवरी 2023 को आयोजित कार्यक्रम जिक्र ए जिगर में प्रस्तुत किया था ।

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मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा ......सच


संस्था के मुखिया के साथ दुर्व्यवहार होता रहा और किसी को पता तक नहीं कैसे गैर जिम्मेदार लोग हो ....... देखा नहीं तो सुना तो होगा कान तो खुले होंगे ......। "जांच अधिकारी ने सवाल किया ...."।                                                    मैं भी औरों की तरह  मुंह लटकाए गूंगा बहरा बना रहा क्योंकि सच बोलना उस समय किसी गुनाह से कम न था ।                                                                               मन करता है साले सबको सस्पैंड करूं ........ताकि लापरवाही करना भूल जाएं।अधिकारी बड़बड़ाते हुए चला गया और सच अब भी कही दबा पड़ा था ।


✍️ डॉ प्रीति  हुंकार 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा.....सफाई


 गंगा  के स्वच्छता अभियान के सफलतापूर्वक पूर्ण होने के उपलक्ष्य में एक भव्य आयोजन चल रहा था।

"सबसे पहले सफाई अभियान की पूरी टीम को बहुत बहुत बधाई। अब ये हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम गंगा को स्वच्छ बनाए रखें।"नेताजी ने इन शब्दों के साथ अपना भाषण समाप्त किया और गंगा में स्नान करने की इच्छा जताई। 

 उनकी इस इच्छा को जानकर,सफाई टीम में खुसर फुसर शुरू हो गई । "बड़ी मुश्किल से तो गंगा साफ हुई है ......."


✍️डॉ पुनीत कुमार

T 2/505 आकाश रेजीडेंसी

आदर्श कॉलोनी रोड

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा --मौसी का घर


  " अरे आप आ गये सरला ने अपने पति की ओर इशारा करके कहा," आपके साथ रानी भी आई है।

 रानी ने नमस्ते मौसी कह कर सम्बोधित किया।

---ठीक है ठीक है चलो आपने यह अच्छा किया, मैं काम करते - करते थक जाती हूँ यह चौक्का बर्तन कर दिया करेगी मेरा भी काम हल्का हो जायेगा," क्यों बेटी ?"

अब रानी क्या कहे वह मौसी को टेढ़ी निगाह से निहारती रही------।।

        

✍️ अशोक विश्नोई

  

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेंद्र शर्मा सागर की लघुकथा .... प्रायश्चित


एक सप्ताह से डॉ जगदीश प्रजापति घर नहीं लौटे थे। उनकी पत्नी शकुंतला को उनकी बहुत चिंता हो रही थी। 

 "न जाने यह सरकार क्या करके छोड़ेगी, लोग बीमारियों से मर रहे हैं और सरकार ने सारे डॉक्टरों को नसबंदी के काम में लगा रखा है। ऊपर से टार्गेट भी फिक्स कर दिए हैं, अब या तो टारगेट जितनी नसबंदी करो या फिर कार्रवाई के लिए तैयार रहो। न जाने क्या होने वाला है, मेरा मन बहुत घबरा रहा है।" शकुंतला परेशानी में खुद से ही बातें कर रही थी तभी दरवाजे पर दस्तक हुई।

 "कौन ??" शकुंतला ने दरवाजा खोलते हुए पूछा।

 दरवाजा खोलते ही जैसे उसकी साँस ही अटक गयीं। बाहर अस्पताल के दो कर्मचारी डॉ जगदीश को सहारा देकर खड़े थे। 

 "क्या हुआ उन्हें?? है ईश्वर दया करना।" शकुंतला ने अपने पति को ऐसे देखकर हाथ जोड़ते हुए कहा और उनके आने के लिए जगह छोड़कर खड़ी हो गयी।

 "क्या हुआ जी आपको? आप ऐसे कैसे आये हो, इन लोगों का सहारा लेकर?" जब अस्पताल वाले चले गए तो शकुंतला ने अपने पति के पास बैठते हुए पूछा।

 "शकुंतला! उस दिन नसबंदी के टारगेट में एक की कमी थी तो...", जगदीश जी ने धीरे से कहा।

 "हे भगवान! तो क्या आपने खुद की...? अभी तो हमारे कोई संतान भी नहीं हुई है और आपने अभी से...?" शकुंतला किसी अनहोनी की आशंका से लगभग बेहोश सी हो गयी थी।

 "संभालो खुद को शकुंतला, हमारे जैसे लाखों नौजवान हैं जिनकी संताने नहीं हैं, कितनों के तो विवाह तक भी नहीं हुए हैं और इस नसबंदी की आँधी उन्हें उजाड़ चुकी है। कितने तो मेरे ही हाथों..., बस उसी का प्रायश्चित करने के लिए मैं भी... अब मुझे इसी बहाने कुछ दिन की छुट्टी भी मिल जाएगी शकुंतला, मैं और पाप करने से बच जाऊँगा।" जगदीश जी ने कहा और दोनों की आंखों से आँसू बहने लगे।

✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर"

 ठाकुरद्वारा 

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार धन सिंह धनेंद्र की लघु कथा .....परीक्षाफल

       


आज प्रियांश का परीक्षाफल मिलना है। निधि  बन-संवर कर अपने पति के साथ स्कूल पहुंच गई। प्रियांश ने शुरु से एल०के०जी० और यू०के०जी० में अपनी क्लास में सर्वोच्च स्थान प्रप्त किया था। इस बार भी उसे पूर्ण विश्वास था कि  उसका प्रियांश ही क्लास में सर्वोच्च स्थान पर  होगा।

         स्कूल के खुले मंच पर पर मैडल व रिजल्ट देने के लिए प्रधानाचार्या ने जब प्रियांश की जगह किसी और बच्चे का नाम पुकारा तो निधि का चेहरा उतर  गया । तालियों की गडगडाहट उसके कानों को चुभ रही थी। इस बार स्कूल की एक अध्यापिका के बेटे ने सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया था।  उसने सोचा उसका प्रियांश दूसरे नम्बर पर रह गया। लेकिन जब न तो दूसरे और न ही तीसरे नम्बर पर  प्रियांश का नाम लिया गया तब निधि ब्याकुल हो गई और रोने लगी। वह स्कूल की प्रिंसपल और क्लास टीचर को खूब भला-बुरा कहती रही। उसने पक्षपात का आरोप लगाते हुए खूब शौर मचाया। पति ने उसे किसी तरह सम्हाला। स्कूल की छुट्टी हो चुकी थी। अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों को लेकर जा चुके थे। निधि अभी भी कुर्सी में निढ़़ाल पडी थी। वह निराशा के सदमे से उभर नहीं पाई। उसका पति भी कम उदास और परेशान नहीं  था लेकिन उन दोनों का लाडला प्रियांश स्कूल में लगे झूले पर ऊंची-ऊंची पेंगे लगाने में मस्त था । 

✍️ धनसिंह 'धनेन्द्र'

श्रीकृष्ण कालोनी, चन्द्र नगर

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघु कथा ... 'सच्चा सुकून '



पूरा स्कूल का हॉल विद्यार्थियों और पैरेंट्स से भरा हुआ था । बच्चे चहक रहे थे । जब रिजल्ट की घोषणा हुई तो सिया आश्चर्यचकित रह गयी अपनी बेटी दिव्या की प्रथम श्रेणी देखकर एल के जी में देखकर ।

जब सिया रिजल्ट लेने गयी तो प्रधानाचार्य ने एक माँ के रूप में उसकी बहुत प्रशंसा की । सुनकर भाव विभोर हो गयी और अतीत में खो गयी ।

"मम्मी ...मम्मी |"छोटी सी दिव्या ने तोतली जुबान से सिया की साड़ी का पल्ला पकड़कर कहा ।

"हाँ ..क्या चाहिए मेरी विटटो को ?"सिया ने दिव्या को प्रेम से गोदी में उठाकर सीने से लगाते हुए कहा ।

"जब आप ऑफिस जाती हो न ..!"

"हाँ ..हाँ बोलो क्या हुआ ?"

"तब मुझे न ....मुझे न ...आपकी बहुत याद आती है ।"नन्ही सी दिव्या ने आँखों में आँसू भरते हुए कहा ।

"बेटा आप भी तो स्कूल जाते हो न ...फिर दादी कितना प्यार करती हैं ?"सिया ने दिव्या का गाल पर ममत्व से हाथ फेरते हुए कहा ।

"पर मैं तो जल्दी आ जाती हूँ न ...फिर मैं आपका इंतजार करती रहती हूँ ।"

"दादी तो कह रहीं थीं कि आप बहुत खेलती हो मेरे जाने के बाद ।"

"खेलती तो हूँ ,मगर आपकी याद आती है । आप ऑफिस मत जाया करो प्लीज ।"नन्ही दिव्या ने मम्मी के दोनो गालों को अपनी छोटी -छोटी हथेलिओं से पकड़ते हुए कहा ।

सिया ने दिव्या को सीने से चिपका लिया और प्रण किया कि जब तक दिव्या थोड़ी बड़ी नहीं हो जाती वह ऑफिस नहीं जायेगी । सारा वक्त बेटी के साथ बिताएगी अपनी आत्मिक संतुष्टि और बेटी के विकास के लिए ।

"मम्मी घर चलो न ।"दिव्या ने माँ का हाथ हिलाया 

सिया बेटी की  ट्रॉफी  पाकर आज बहुत ही अच्छा महसूस कर रही थी । ऐसी खुशी उसको कभी महसूस नहीं हुई ।

✍️राशि सिंह 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत


सोमवार, 3 अप्रैल 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार की ग़ज़ल .....कुछ लोग जमाने को बदलने नहीं देते ....

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मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव सक्सेना की रचना .... खुल गई नकलीपन की पोल ....

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मुरादाबाद के साहित्यकार योगेंद्र वर्मा व्योम की ग़ज़ल ...ठहाके मौन हैं गायब हंसी है

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मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से 2 अप्रैल 2023 को काव्य-गोष्ठी का आयोजन

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम के तत्वावधान में मिलन विहार स्थित आकांक्षा विद्यापीठ इण्टर कॉलेज में रविवार दो अप्रैल 2023 को मासिक काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया।  राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत माँ शारदे की वंदना से आरंभ  एवं उनके संचालन में हुए इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए रामदत्त द्विवेदी ने कहा....

 दृष्टिकोण यदि खुद का बदले, तो सब बदला हुआ मिलेगा।

जिस रंग का चश्मा पहनेंगे, बाहर वह ही रंग दिखेगा।

     मुख्य अतिथि अशोक विश्नोई ने कहा .....

मन में सुन्दर स्वप्न सजाएं। 

हर असमंजस दूर भगाएं।

घोर निराशा के तम में सब,

आओ! आशा दीप जलाएं।

       विशिष्ट अतिथि राजीव सक्सेना ने सामाजिक विषमता पर कड़ा प्रहार करते हुए कहा - 

सीपी बनने की कोशिश में

 टूट गये घोंघों के खोल 

खुल गयी नकलीपन की पोल

     विशिष्ट अतिथि ओंकार सिंह ओंकार ने कहा - 

नफ़रत को मुहब्बत में बदलने नहीं देते। 

हैं कौन जो दुनिया को संभलने नहीं देते। 

लोगों ने बिछाए हैं हर इक राह में कांटे,

बेख़ौफ़ मुसाफिर को जो चलने नहीं देते।। 

        राजीव प्रखर अपनी इन पंक्तियों के माध्यम से सभी को बचपन की ओर ले गये - 

दूर सभी झगड़ों से देखो, बचपन कितना प्यारा है। 

भीतर इसके कल-कल करती, मृदु भावों की धारा है।

 तेरा-मेरा-इसका-उसका, यह बेचारा क्या जाने।

 इसकी निश्छलता से पुलकित, हर घर-ऑंगन-द्वारा है।

        रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ ने कहा - 

एक ऋण ही मिला, जन्म के नाम पर। 

हर हवेली चढ़ी है, आज नीलाम पर।।

      अशोक विद्रोही ने कहा -

 न कोई दौलतें चाहूं, न कोई शोहरतें चाहूं।

मुझे प्राणों से प्यारा है, वतन के गीत मैं गाऊं।। 

डॉ मनोज रस्तोगी अपने व्यंग्यात्मक अंदाज़ चहके -

 जैसे तैसे बीत गए पांच साल रे भैया। 

फिर लगा बिछने वादों का जाल रे भैया। 

आवाज में भरी मिठास, चेहरे पर मासूमियत

भेड़ियों ने पहनी गाय की खाल रे भैया।

 नकुल त्यागी ने कहा -

 सभी भारत के वासी जो सब आपस में भाई हैं। 

मजहब धर्म और जात बिरादरी हमने ही तो बनाई है।

 योगेन्द्र वर्मा व्योम की रचना ने भी सभी के हृदय को स्पर्श किया -

न जाने किस भँवर में ज़िन्दगी है।

ठहाके मौन हैं ग़ायब हँसी है।

दुआएँ अब असर करती नहीं क्यों, 

हमारी ही कहीं कोई कमी है।

 मनोज मनु ने श्रीराम से प्रार्थना करते हुए कहा - 

श्री राम दयालु दया करिए हरिए हर दोष हमारा प्रभो ,

भव कूप तमो पसरो हिय में हरिए तम घोर हमारा प्रभो

जितेन्द्र कुमार जौली ने हिन्दी को नमन किया - 

मेरा भारत देश महान, जय हिन्दी, जय हिन्दुस्तान।

 हम सब हैं इसकी संतान, जय हिन्दी, जय हिन्दुस्तान। 

     दुष्यंत बाबा की अभिव्यक्ति इस प्रकार रही - 

सैनिक लड़ता सीमाओ पर, प्रिया का यौवन  जाता है करती करुण विलाप ममता, आँचल सूना हो जाता है। 

इंजीनियर राशिद हुसैन बोले -

 हां मैं इंसान हूॅं, मैं परेशान हूॅं। 

ज़िन्दगी तुझे देखकर हैरान हूॅं।

 पदम 'बेचैन' ने संदेश दिया - 

कहा कहियों  ऐसो नर परे जो वियोग में। 

योग में हो ध्यान मग्न, कृष्ण लग्यो रट है।। 

संस्था अध्यक्ष रामदत्त द्विवेदी द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम समापन पर पहुॅंचा।




















:::::::प्रस्तुति;;;;;;

जितेंद्र कुमार जौली

महा सचिव

हिन्दी साहित्य संगम

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत


रविवार, 2 अप्रैल 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष विजय त्यागी की ग़ज़ल.....मेरी तस्वीरों का चेहरा अक्सर ऐसा हो जाता है, जैसे कोई भूखा बच्चा रोते-रोते सो जाता है

 


मेरी तस्वीरों का चेहरा अक्सर ऐसा हो जाता है 

जैसे कोई भूखा बच्चा रोते-रोते सो जाता है


भोले पंछी लिख जाते हैं जिन पत्तों पर पते-ठिकाने वैरी सावन उन पत्तों को सांझ सवेरे धो जाता है


बर्फीली खामोश फिज़ा में तेरी आँखों का सन्नाटा

किसी परिन्दे की आहट से गहरी झील में खो जाता है।


मिट जाती हैं सब तहरीरें, धुंधला जाते हैं सब चेहरे जब भी कोई गम का सावन दिल का महमां हो जाता है। 


ऊँचे पेड़ों की बांहों में बांहें सोच समझकर डालो

पत्थर पर गिरने से शीशा टुकड़े-टुकड़े हो जाता है


✍️ विजय त्यागी

शनिवार, 1 अप्रैल 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर का मुक्तक ..... मैं राही हूं लेखन पथ का ....

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मुरादाबाद के साहित्यकार माहेश्वर तिवारी के पंद्रह नवगीत

 


(1) 

हम स्वयं से

हारते पल-पल

दिग्विजय के लिए निकले हैं


खोखली-सी

विजय-यात्राएं

हर पदानिक की

नजर में है

बैरकों से

निकलकर

सैनिक टुकड़ियां

यक्ष-प्रश्नों-सी

नगर में हैं

चुप्पियों को

सौंपकर हलचल

दिग्विजय के लिए निकले हैं


हवाओं में

तैरती कुछ

घोषणाएं हैं

अपीलें हैं

आसमानों में

कबूतर हैं ना गौरैया

सिर्फ उड़ती हुई

चीलें हैं

पांँव के नीचे

लिए दलदल

दिग्विजय के लिए निकले हैं


(2) 

बदल रही है

धीरे-धीरे

भीतर बाहर की सब दुनिया


कोने-कोने

टूट-फूट

मलवा बिखरा है

कुचला हुआ

पड़ा आखिर

किसका चेहरा है

गुमसुम बैठे

सोच रहे हैं

रामू-मुनिया


है दिमाग में

खालों में भुस

भरने की पूरी तैयारी

शो पीसों में

होंगे सब तब्दील

लग रहा बारी-बारी

आम आदमी

बुत परस्त हो

या निर्गुनिया


(3) 

बहुत दिनों के बाद

लौट कर

घर में आना

लगता किसी पेड़ का

फूलों, पत्तों, चिड़ियों से भर जाना


कपड़ों, बैग,

देह से सारी

गर्द झाड़ना गए सफर की

फिर से

शामिल हो जाना

उठ करके

दिनचर्या में घर की

लगता सब

छिलके उतारकर

अपने में अपने को पाना


जिन्हें पहनकर

बाहर निकले

वे चेहरे जारी लगते हैं

थम से गए

गीत के टुकड़े

कंठों में जारी लगते हैं

बातचीत के टुकड़े

बहसों का बुनकर

कुछ ताना-बाना


(4) 

पेड़ों का गाना

सुना है क्या


पत्तियां ताली

बजाती हैं

और सुर में सुर

मिलाती हैं

यह कभी हमने

गुना है क्या


दे हवा जब

टहनियों पर थाप

राग सजने लगे

अपने आप

क्षण कभी ऐसा

बुना है क्या


कंठ में लेकर

जिसे चिड़िया

घोंसले में देर तक

जिसको जिया

गीत वह हमने

चुना है क्या


(5) 

आ गए सपने सजा कर

बेचने वाले


तितलियों के पंख

गंधों की कथा

सोनपंखी धूप का

जो आंख में प्रतिबिंब था

आ गए सब कुछ उठा कर

बेचने वाले


हो गए तब्दील सारे

घर नई दूकान में

सज गए रिश्ते करीने से

रखे सामान में

आ गए सब कुछ चुराकर

बेचने वाले


(6) 

हम विनम्रता ओढ़े

कड़ी धूप में

खड़े रह


फूलों के मोहक

पहनावे

सुख के

बड़े-बड़े सब दावे

छाती-छाती धंँसे

हुए

दलदल में पड़े रहे


बातों के

पुल टूट गए हैं

लोग तटों पर

छूट गए हैं

धाराओं के

बीच सेतु

टूटे जो बड़े रहे


(7) 

मन के भीतर बैठी

नन्हीं चिड़िया गाती है

नए-नए रिश्ते

रचती

फसलों से, दानों से

सन्नाटे को चोंच

मारती

नए बहानों से

फूलों-पत्तों से बतियाती

फिर उड़ जाती है


सपने बुनती है

उड़ान के

सपनों में आकर

जब होता उदास मन

ऐसा करती है

अक्सर

आसमान को नाप-जोख कर

फिर आ जाती है


(8) 

रंगों से भर गई उंगलियां फिर

तितली के पर छूने वाली


कल थीं जो

खुरदुरे लगावों से छिलल गई

आज वही रंगों के

झरनों से मिल गई

फूलों सा आज हमें

कर गई उंगलियां फिर

तितली के पर छूने वाली


हंँसी हुई जंगल के

फूलों की ताज़गी

हो गई हथेली सूरज

मन सूरजमुखी

सूनेपन को आकर

भर गई उंगलियां फिर

तितली के पर छूने वाली


(9) 

इस तरफ हैं आज भी

सूखे दरख़्तों की कतारें

क्या पता नदियांँ कहांँ पर

रेत को नम कर रही हैं


बंद हैं अब भी

हरेपन से सभी संवाद

हर नया दिन धूप

पतझड़ का महज अनुवाद

पड़ रही है खेत में

हर रोज कुछ लंबी दरारें

क्या पता नदियांँ कहांँ पर

रेत को नम कर रही हैं


एक-सा चेहरा हुआ

कोंपल पुराने पात का

अब उजाला मानता

कहना अंँधेरी रात का

हर तरफ तुलसी बड़ी कातर

निगाहों से निहारे

क्या पता नदियांँ कहांँ पर

रेत को नम कर रही है


(10) 

हम नदी में पड़े पत्थर से

यहां से बहकर कहांँ जाएं


थरथरी बोकर

गुजर जातीं

सभी लहरें

हम नहीं बेतट

जहांँ कुछ देर तक

ठहरें

उम्र की चादर बहुत छोटी

मिली हमको

किस तरह से पांँव फैलाएं


पास आता है कभी

बहता हुआ तिनका

नाम दे जाता

हमें कुछ

फूल पत्तों का

है पड़े इस जल महल में कैद

वर्षों से मुक्ति के क्षण किस तरह आएं


(11) 

देखती है फूलघर को

टकटकी बांँधे

यह उतरती दोपहर-सी जिंदगी


फूलघर जो

एक सपना था सुबह का

हो गया है

अक्स उसका बहुत हल्का

मिली हमको

बंधु बचपन से अभी तक

एक रेगिस्तान के

लंबे सफर-सी जिंदगी


रेत जैसे

दांँत में चिपके हुए किस्से

बन गए सब

उम्र भर के हादसे-हिस्से

हम ना निर्वासित

नहीं है कैद फिर भी

जी रहे हम भी जफर-सी जिंदगी


(12) 

एक तुम्हारा होना क्या से

क्या कर देता है

बेज़ुबान छत-दीवारों को

घर कर देता है


खाली शब्दों में आता है

ऐसा अर्थ पिरोना

गीत बन गया-सा लगता है

घर का कोना-कोना

एक तुम्हारा होना

सपनों को स्वर देता है


आरोहों अवरोहों से

समझाने लगती हैं

तुमसे जुड़कर चीज़ें भी

बतियाने लगती हैं

एक तुम्हारा होना

अपनापन भर देता है


(13) 

मन का वृन्दावन हो जाना

कितना अच्छा है

धुला-धुला दर्पन हो जाना

कितना अच्छा है


चारों तरफ धुंध की

काली चादर फैली है

पूरनमासी खिली

चाँदनी मैली-मैली है

वंशी बनकर तुम्हें बुलाना

कितना अच्छा है

तुममें ही मिलकर खो जाना

कितना अच्छा है


सांस-सांस फिर महारास की

राधा बन जाना

जैसे मन का कोई 

पूरा हो जाए सपना

चले न कोई और बहाना

कितना अच्छा है

तुमको पड़े मुझे अपनाना

कितना अच्छा है


(14) 

बहुत दिन बीते

कि आया ख़त नहीं

कोई तुम्हारा


डाकिया चुपचाप आकर

गुज़र जाता है

दोपहर की धूप

तीखी और लगती

पूछने पर जब कभी वह

मुस्कुराता है

अक्षरों की खुशबुएँ

ताज़ा गुलाबों-सी

क्यों नहीं मिलतीं भला

हमको दोबारा


तीर-सी चुभने लगें

पुरवाईयाँ भी

ऊब उकताहट भरी-सी

चुप्पियों में ठूंठ होकर

रह गईं अमराईयाँ भी

धड़कनों में

आहटें बुनता हुआ

गांधार कोमल

खो गया संगीत

जो कल था

हमारा


(15) 

मैना री

पिंजरे की भाषा मत बोल


सारा आकाश यह

तुम्हारा है

फूलों की खुशबू से तर

आवाज़ों की कोमल टहनी

धड़कन तेरी

हरियाली है तेरा घर

मैना री

अपने को भीतर से खोल


भला नहीं लगता है

कण्ठ से तुम्हारे अब

सुने हुए को बस दुहराना

स्वर के गोपन रेशे-रेशे से

परिचित हो

ठीक नहीं उसे भूल जाना

मैना री

ऐसे घट जाएगा मोल


गुरुवार, 30 मार्च 2023

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा) की साहित्यकार डॉ मधु चतुर्वेदी का गीत ......चांदनी रात हो, आपका साथ हो, रोज यूं जिंदगी से मुलाकात हो ....

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✍️🎤 डॉ. मधु चतुर्वेदी

गजरौला गैस एजेंसी चौपला,गजरौला

जिला अमरोहा 244235

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9837003888

मुरादाबाद के साहित्यकार धन सिंह धनेंद्र की लघुकथा ...…झटका

         


रजत सरकारी विभाग में सामान्य लिपिक के पद पर था। उसने अपने वेतन से कभी कुछ नहीं निकाला।  उसकी ऊपर की कमाई बे-हिसाब थी। उसी से उसका घर-बाहर का सारा खर्चा चलता था। उसके शौक महंगे थे। रजत की पत्नी कामिनी भी कहीं कम नहीं थी। अपनी पसंद के पहनावे से लेकर ज्वैलरी और मेक-अप आदि पर खुल कर खर्च करती। उसके पास एक से बढ़ कर एक ब्राडेड कंपनी का सामान रहता। वह तीन-तीन किटी पार्टिंयों की सदस्य भी थी।  

         महिला डाक्टर ने कामिनी को अगले माह के आखिर में शिशु पैदा होने की संभावित तिथि दी थी। डिलीवरी के लिए उसने शहर के सबसे बडे और मँहगे अस्पताल का चयन कर एडवांस धन जमा कर दिया और नियमित डाक्टरी सलाह ले रही थी। शिशु के जन्म पर दोनों पति-पत्नी जन्मोत्सव मनाने के अभी से ऊंचे-ऊंचे स्वप्न संजोने में लगे थे। उसको बाहर घूमने-फिरने के लिए सख्ती से मना किया गया था लेकिन आज तो अपने भाई के 'वैवाहिक सालगिरह' के समारोह में  उसको हर हाल में जाना था। उसने इसकी  पहले से सब तैयारी कर रखी थी। उसे क्या पहनना है? रजत क्या पहनेगा? इस बारे में वह बडी उत्सुक थी । भाई के लिए महंगे से महंगे उपहार भी खरीद लिये  थे। बिना मेहनत की कमाई हुई धन-दौलत से खुशियां खरीदने का जब कोई अभ्यस्त हो जाता हैं तब उसका ज्ञान व विवेक मर जाता है। कामिनी भी अपने मायके में अपनी शान-शौकत का दिखावा करने हेतु अति उत्साहित थी।

         रजत को आफिस से आने में देर होती जा रही थी। घडी़ की सुई के साथ-साथ कामिनी का पारा भी बढ़ता जा रहा था। उसके चेहरे पर  क्रोध व चिंता के लक्षण एक साथ दिखने लगे थे।  वह कितनी बार रजत को फोन कर चुकी थी लेकिन फोन मिल कर ही नहीं दे रहा था। कुछ देर बाद फोन भी बंद जाने लगा। अब तो कामिनी की परेशानी और अधिक बढ़ गई। वह कुछ समझ नहीं पा रही थी कि क्या किया जाय।

         वह बार-बार दरवाजे और खिडकिंयों में झांकती कभी बैठ कर फोन लगाने की कोशिश करती । अचानक उसके मोबाइल की घंटी बजी। उसने तेज कदमों से जाकर डाइनिंग टेबिल पर रखा अपना फोन उठाया। 

... हेलो। दूसरी तरफ से एक कड़कदार आवाज आई।

....आप रजत की पत्नी बोल रहीं है क्या? वह लडखडाती हुए बोली ... हां..आप कौन? ....देखिये मैं पुलिस आफीसर बोल रहा हूं। हमने अभी-अभी आपके पति रजत को 50000 रुपये रिश्वत लेते रंगे हाथों  गिरफ्तार किया है...... यह सुनते ही उसके हाथ से मोबाइल छूट कर गिर पडा।एक झटके में कामिनी औंधे मुंह फर्श पर आ गई-

                     

✍️ धनसिंह 'धनेन्द्र '

श्रीकृष्ण कालोनी, चन्द्र नगर,

मुरादाबाद244001

उत्तर प्रदेश, भारत

बुधवार, 29 मार्च 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर का मुक्तक .....बचपन

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वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। प्रस्तुत हैं 28 मार्च 2023 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों की बाल कविताएं ....


सुंदर झरना जल बरसाता ।

कलकल करके बहता जाता।

सूरज के रंगों से मिलकर
बन जाता रंगों का संगम,
कभी न रुकता बाधाओं से
राहें हों कितनी भी दुर्गम,
हर पत्थर को भेद-भेदकर
आगे चलता , वेग बढ़ाता ।

कोमल जल है फिर भी देखो
दूर हटाता पत्थर को भी,
मृदुता का आदर करने का
पाठ पढ़ाता भूधर को भी,
जल की मृदुतामय दृढ़ता को
भूधर भी तो शीश झुकाता ।

हे नन्हे-प्यारे मानव तुम
दृढ़ विश्वास बनाए रखना ,
कष्ट पड़ें चाहे कितने भी
मानवता से कभी न हटना ,
पक्का- नेक इरादा ही तो
हर मुश्किल को सरल बनाता ।

✍️ ओंकार सिंह 'ओंकार'
1-बी-241 बुद्धि विहार ,मझोला,
मुरादाबाद 244103
उत्तर प्रदेश, भारत

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जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।
सबको बैठाकर दादा जी , समय-समय पर यज्ञ कराते।
पढ़कर मन्त्र डालते वे घी, सबसे सामग्री डलवाते।
इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,
यज्ञ कर्म है एक अनोखा, जिससे कई लाभ हम पाते।
हुए चिकित्सा में शोधों ने , इसे कर्म उत्तम बतलाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
यज्ञ कर्म जब करता मानव, निकट प्रकृति के खुद को पाता।
हो जाते रोगाणु नष्ट सब, सभी वायरस मार गिराता।
जब-जब होता यज्ञ धरा पर , आक्सीजन की मात्रा बढ़ती,
घी- सामग्री के जलने से , वातावरण शुद्ध हो जाता।
वैज्ञानिक भी मान गये हैं, यज्ञ और मन्त्रों की माया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
पावन कर्म यज्ञ का जो जन, करता है अपने जीवन में।
भाव जगाता पूर्ण विश्व की, रक्षा का वह अपने मन में।
ध्वनि तरंग को मन्त्रों की जब, बड़े-बड़े वैज्ञानिक मापे,
हुए बहुत आश्चर्यचकित वे, मिला गूँजता ओम गगन में।
सच्चे मन से यज्ञ किया जो, इसका फल वह निश्चित पाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।

✍️मनोज मानव
बिजनौर
उत्तर प्रदेश, भारत

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होली पर बरसात हो , बरसें ऐसे रंग
नीले पीले बैंजनी , रह जाएँ सब दंग
रह जाएँ सब दंग ,पेड़ पर गुँझियाँ आएँ
तोड़ें बच्चे ढेर ,पेट भर – भर कर खाएँ
कहते रवि कविराय ,कन्हैया करो ठिठोली
उड़ें हवा में लोग , मनाएँ नभ में होली

✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल 9997615451

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माँ देखो-देखो बिल्ली आईं।
दे दो इसको दूध - मलाई।।

बोर्नबीटा का दूध  पिला दो।
बिस्कुट-चाकलेट दिला दो।।

लंच-डिनर खूब खिला दो।
खिला-पिला इसे हिला लो।।

वरना ये उत्पात करेगी
खाकर चूहे पेट भरेगी

हो ना जाये यह मांसाहारी।।
बिल्ली मौसी लगती प्यारी।।

✍️ धनसिंह 'धनेन्द्र'
चन्द्र नगर, मुरादाबाद

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सबसे अच्छा  पढ़ना पढ़ाना,
सबसे बुरा आपस में लड़ाना।
घर में जो भी आये अतिथि,
इज्ज़त से ही उसे बिठाना।
पहले उसको पानी पिलाना,
फिर मम्मी पापा को बुलाना।
मृदु भाषी बनकर बच्चों,
सबके दिल में जगह बनाना।
कटु वचन न कहना किसी से,
जो रूठा है उसे मनाना।
नानी के घर भी जाना तो,
साथ में बस्ता लेकर जाना।
खेल कूद भी बुरा नहीं है,
लेकिन पहले पढ़ना पढ़ाना।

✍️कमाल ज़ैदी "वफ़ा"
सिरसी (संभल)
मोबाइल फोन 9456031926

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माना मैं नन्हीं बच्ची हूं,
किचिन है लेकिन मेरा बढ़िया
इसमें खाना शुद्ध मिलेगा,
फलाहार भी खूब मिलेगा ।

नवरात्रि के दिन है तो क्या
कूटू-मेवा खीर मिलेगी
किचिन में रखती  साफ-सफाई
खूब  मिलेगी  दूध  मलाई ।

दादी दादा ,मम्मी  डैडी
या कोई हों अंकल आंटी
माता के है दिन ये सारे
गाएं भजन सभी मिल सारे
     महिमा न्यारी जग माता की
     बोलें सब मिल जय माता की ।

✍️ उमाकान्त गुप्त
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

......…......................................



मन करता है हम सब बच्चे मिलकर फौज बनाऐं!
सुबह सवेरे नगर नगर में, रोज प्रभाती गायें!
भेदभाव और ऊंच नीच का, मन  से भेद मिटायें!
एक बने और नेक बने की, घर घर अलख जगाएं!
मां बाबू के संकट में हम, उनका हाथ बटाएं !
अगर देश के काम आ सकें, तो सीमा पर हम जाएं!
घायल सैनिक जो  हों, उनकी सेवा में लग जाएं !
देश की खातिर लिए तिरंगा, आगे बढ़ते जाएं!
अवसर मिले हमें भी तो, हम हंस कर प्राण गवाएं!
लिपट तिरंगे में हम अपना, जीवन सफल बनाएं!!

✍️अशोक विद्रोही
412 प्रकाश नगर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

..........................................



चीं चीं चीं चीं गाए चिड़िया
दाना चुग-चुग खाए चिड़िया
मुनिया उसको पकड़ न पाए
फुर -फुर है उड़ जाए चिडिय़ा ।

चुन चुन तिनका लाए चिड़िया
सुंदर नीड़ बनाए चिड़िया
उड़ती फिरती कसरत करती
हिल-मिल प्यार बढ़ाए चिड़िया ।

सुबह सवेरे आए चिड़िया
मीठा गीत सुनाए चिड़िया
राजू जगो भोर है प्यारी
सबके मन को भाए चिड़िया ।

✍️डॉ रीता सिंह
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

........................................



जंगल में क्यों मची है धूम
हलवा पूरी बंटी है खूब
हाथी भालू चीता बंदर
नाच रहे सब मस्त कलंदर
चीं चीं चिड़िया तान लगाती
कोयल मधुर गीत सुनाती
भालू ढोलक खूब बजाता
बंदर उछल उछल मुस्काता
जैसे परीक्षाएं हो गई खत्म
नाच रहे सब मस्त मलंग

✍️ मीनाक्षी वर्मा
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

.........................................



नटखट भैया गुस्से में है,

कैसे उसे मनाए दीदी।

वैसे इतना प्यारा देखो,
जब चाहे घर पर आ जाये।
अगर समय हो तो जी भर कर,
भेजा भी सबका खा जाये।
मगर व्यस्तता भी जीवन में,
क्या उसको समझाए दीदी।
नटखट भैया गुस्से में है,
कैसे उसे मनाए दीदी।

खैर खबर लेने की सबकी,
जब-जब उसने फ़ोन घुमाया।
भागा उल्टे पैरों देखो,
मायूसी का दंभी साया।
बैठा भूखा गाल फुलाकर,
क्या अब खुद भी खाये दीदी।
नटखट भैया गुस्से में है,
कैसे उसे मनाए दीदी।

लो जी एक तरीका सुझा,
बैठक सबकी आज जमाएं।
सुनना और सुनाना भी हो,
नाचें कूदें खाएं-गाएं।
अगर न मुस्काया फिर भी वो,
सोच-सोच घबराए दीदी।
नटखट भैया गुस्से में है,
कैसे उसे मनाए दीदी।

✍️ राजीव प्रखर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

सोमवार, 27 मार्च 2023

वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से माह के प्रत्येक रविवार को वाट्सएप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया जाता है । रविवार 26 मार्च 2023 को आयोजित 349 वें वाट्स एप कविसम्मेलन एवं मुशायरे में शामिल साहित्यकारों डॉ पुनीत कुमार, रवि प्रकाश, दुष्यंत बाबा,नृपेंद्र शर्मा सागर, हेमा तिवारी भट्ट, विवेक आहूजा, डॉ रीता सिंह,डॉ अनिल शर्मा अनिल, संतोष कुमार शुक्ल संत, राजीव प्रखर, मनोरमा शर्मा, कमाल जैदी वफा और सरिता लाल की रचनाएं उन्हीं की हस्तलिपि में