बादल आए ,एक झलक दिखलाकर चले गए।
बिन बरसे ही आँचल-से लहराकर चले गए ।।
बाँंध टकटकी रहे देखते, नीम और जामन,
सूखे में ही बीत रहा है ,यह कैसा सावन ।
रूठ गए हैं जिसके साजन, विपदा की मारी,
निष्ठुर बादल की चाहत में ,सूख गई क्यारी ।
सपने में आए थे प्रीतम, आकर चले गए. ।।
बादल आए------
दरक गईं परतें धरती की ,सूख गया सब जल,
नहीं परिंदों की होती है, झीलों पर हल-चल ।
दाना-पानी फिरें ढूंढ़ते, पागल-से सारस,
भूखे पेट नहीं उनमें है ,उड़ने का साहस ।
दूर देश के कुछ पंछी, अकुला कर चले गए ।।
बादल आए---
हरियाली रितु के आने की, आशा थी पूरी ,
लेकिन बादल की धरती से ,बनी रही दूरी ।
आज किसान दर्द से अपनी, आँखें मींच रहा,
श्रम की बूँदों से ही अपनी, फ़सलें सींच रहा ।
बादल नभ में बिजली-सी, चमका कर चले गए. ।।
बादल आए------
✍️ओंकार सिंह 'ओंकार'
1-बी- 241 बुद्धि विहार, मझोला
मुरादाबाद 244103
उत्तर प्रदेश, भारत
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
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