कुछ कमजोर हैं,कुछ धांसू हैं
तरह तरह के आंसू हैं
पूरा शोरूम
ब्रांडेड आंसुओं से सजा है
लोकल आंसुओं का भी
अपना अलग मजा है
सबसे उपर सजे आंसू
ना हमारे हैं,ना आपके हैं
उस बदनसीब बाप के हैं
जो पूरी कोशिश के बाद भी
बेटी को दहेज नहीं दे पाया
बेटी दहेज की
वेदी पर बलि हो गई
अंतिम बार उसका
मुख भी नही देख पाया
इन आंसुओं में
पितृत्व और प्रतिशोध का
मिला जुला पानी है
आक्रोश है,क्रोध है
आत्म ग्लानि है
इन आंसुओं की कीमत
कोई भी नही भर सकता
क्योंकि आज का विज्ञान
मरी हुई बेटी को
जिंदा नहीं कर सकता
इसी के पास में
उस बेरोजगार के आंसू हैं
जो योग्य होने के बावजूद
नौकरी ना पा सका
क्योंकि ना रिश्वत जुटा सका
ना किसी बड़े आदमी की
सिफारिश लगा सका
पिछले दस साल से
सड़क पर पड़ा है
कहां जाना चाहता था
कहां पर खड़ा है
मरने के लिए पैसे नहीं हैं
इसलिए जी रहा है
आश्वासनों को खा रहा है
खुद्दारी को पी रहा है
इन आंसुओं को देखकर
आप कमल से खिल जाएंगे
क्योंकि ये आपको
भारी डिस्काउंट पर मिल जाएंगे
अगले काउंटर पर
नेताओं के आंसू मिलते हैं
ये किसी भी व्यक्ति को
दुखी देख निकल पड़ते हैं
शर्त सिर्फ इतनी है
वह उनके चुनाव क्षेत्र का
कोई वोटर होना चाहिए
और इस हमदर्दी का
फोटो खींचने के लिए
कोई रिपोर्टर होना चाहिए
बहुत गंदा हो चुका है
इन आंसुओं का पानी
इसमें मिले हैं
धोखा,मक्कारी,बेईमानी
अपनी बात को
आगे बढ़ाते हैं
कुछ विशेष और अनमोल
आंसुओं से आपको मिलवाते हैं
इन आंसुओं को
उस खुशनसीब मां ने बहाया है
जिसने देश के लिए
अपने बेटे को गवांया है
इन आसुओं में
गर्व की छाया है
एक ही बेटा होने का
अफसोस भी इनमे समाया है
अगर चाहते हो
इनकी कीमत का अंदाज लगाना
देश पर अपना
सर्वस्व पड़ेगा लुटाना
और भी कई
वैरायटी के आंसू हैं
सबकी अलग जाति
अलग धर्म है
सेकुलर आंसुओं का
बाजार बहुत गर्म है
घड़ियाली आंसुओं की
डिमांड सबसे ज्यादा है
टोटल सेल में इनका
योगदान लगभग आधा है
नेता चाहें छोटे हों या बड़े
इनको भारी संख्या में ले जाते हैं
राजनीति में चमकने के लिए
इन्हें पानी की तरह बहाते हैं
मध्यम वर्गीय आदमी की
लेकिन अजब लाचारी है
उसके स्टैंडर्ड के
आंसुओं की कीमत
उसकी जेब पर भारी है
उसकी आंख और आंसुओं में
बहुत बड़ी दूरी है
विषम परिस्थितियों में भी
मुस्कराना उसकी मजबूरी है।
✍️ डॉ पुनीत कुमार
T 2/505 आकाश रेजीडेंसी
मुरादाबाद 244001
M 9837189600
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