चाहो यदि संसार से, दूर हटें सब रोग।
सुबह-सुबह मिलकर करें, आओ हम सब योग।।
नित्य नियम से जो करे, हर दिन प्राणायाम।
त्याग देह-आलस्य को, पाये जीवन भोग।।
जब हों विचलित इन्द्रियाँ, बने ध्यान से काम।
इस मन को जो बाँधता , वही परम है जोग ।।
इस कोरोना -मार से, कैसा हुआ कमाल।
सेहत ही पूँजी बड़ी , समझ गये हैं लोग।।
प्रीति यहाँ जब लोग सब, मन में लेंगे ठान।
नवभारत की शान तब, बन पायेगा योग।।
✍️प्रीति चौधरी
हसनपुर, अमरोहा
उत्तर प्रदेश, भारत
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (22-06-2022) को चर्चा मंच "बहुत जरूरी योग" (चर्चा अंक-4468) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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