प्रात काल के योग से, दूर रहें सब रोग।
गुणकारी गुरु मंत्र सा, संजीवन रस योग।।
जीवन को सुंदर बना, करके साधन योग।
वेदों की शिक्षा यही, कहते सुनते लोग।।
भूले से करना नहीं, मन तन से खिलवाड़।
एक बार की चूक से, मिले दुखों की बाढ़।।
काया को कमजोर की, सारे सुख निर्मूल।
चुभते उसको फूल भी, जैसे शूल बबूल।।
एक-एक का योग भी, कहलाता है योग।
भोग हुआ जब योगमय, मिटे सभी दुर्योग।।
सबके मन में रम रहे, रोग भोग संभोग।
जिसका जैसा योग हैं, उसका वैसा भोग।।
जो मन चाहे भोगना, कुल वसुधा के भोग।
तन को मन में ढाल ले, मन से कर ले योग।।
दिया हुआ भगवान का, तन सुंदर उपहार।
कृष्णम् नियमित योग से, लाना नित्य निखार।।
✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्
कुरकावली, संभल (उ०प्र०)
जी डॉक्टर साहब बहुत-बहुत आभार आपका हिंदी
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