मंगलवार, 16 जून 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार सीमा रानी की लघुकथा----- जीवन संध्या


            वर्मा जी ने अपने बच्चों को शहर के प्रमुख स्कूलों में पढ़ाया चाहे उसके लिए उन्हें कितनी फीस क्यों ना चुकानी पड़े। उनकी पत्नी रमा भी अपने दोनों बेटों की इच्छा पूरी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, क्योंकि पैसे की वर्मा परिवार में कोई कमी नहीं थी।
                दोनों बेटे विदेश की प्रसिद्ध कंपनियों में इंजीनियर बन गए एवं दोनों की महीने की तनख्वाह भी लाखों में थी। उन्होंने अपने बराबर की लड़कियों से शादी की एवं अमेरिका में बस गये ।
              वर्मा जी उनकी पत्नी सारे मोहल्ले वालों व रिश्तेदारों में ताल ठोक कर कहते कि शायद उनसे बड़ा सुखी कोई नहीं है क्योंकि उनके बेटे व बहुएं बहुत अच्छा कमाते हैं। सभी पड़ोसी एवं रिश्तेदार उनकी इस बात से सहमत होतेऔर उनके सामने बोलने की हिम्मत ना करते। वर्मा जी को हर किसी में कमी नजर आती व उनकी पत्नी रमा उनसे भी आगे हर महिला के व्यवहार में बहुत कमियां बताती थी।
             समय बीतता गया ,दोनों बेटे अपनी अपनी नौकरी में बहुत व्यस्त रहने लगे।  माता पिता के पास आना तो दूर फोन पर बात करने का भी अब उनके पास समय नहीं होता था। उधर वर्मा जी व उनकी पत्नी पर भी समय ने वृद्धावस्था का प्रभाव जमाना शुरू कर दिया था। उन्हें हर क्षण सहारे की जरूरत पड़ने लगी अथाह पैसा व्यक्ति की जगह नहीं ले सकता यह दोनों पति-पत्नी को समझ आने लगा।
        दोनों को ज्ञात होने लगा कि संतान को केवल पैसा कमाने की ही शिक्षा नहीं देनी चाहिए अपितु तो माता-पिता की जीवन के संध्या समय में देखभाल व  संस्कारों की शिक्षा भी देनी चाहिए। क्योंकि जीवन प्राणी का एक निश्चित समय का सफर मात्र होता है पैसा व्यक्ति को सुख सुविधा दे सकता है परंतु अपनेपन का एहसास कभी नहीं दे सकता। परंतु अब बहुत देर हो चुकी थी अतः उन्होंने स्वयं को बदलने का निश्चय किया एवं दोनों ने अपने बेटों के साथ रहने का फैसला ले लिया क्योंकि वह जान गए अब जीवन संध्या में बच्चों के साथ रहने में ही भलाई है।

 ✍🏻सीमा रानी
  अमरोहा

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी राम किशोर वर्मा की लघुकथा ------ मोबाइल


      "खाना परोस दिया है । छोड़ दो मोबाइल को" की आवाज जैसे ही अंजान जी के कानों से टकरायी वह अपनी पत्नी लता से बोले - "आ रहा हूं । बस कविता की एक पंक्ति लिखनी शेष है ।"
   लता ने कहा -"कैसी कविता हो गयी? 66 साल के हो गये पर लड़कों की तरह मोबाइल पर चिपके रहते हो ।"
    "मैं भी अब आराम करूंगी जब मन हो खा लेना । आंखें लाल हो जाती हैं देखते-देखते। फिर कहते हैं कि चश्मे का नंबर बदलवाना है ।" -लता बुदबुदाते हुए रसोई से निकल गयी ।
   "लो छोड़ दिया लिखना" अंजान ने कहकर मोबाइल को चार्जिंग पर लगा दिया । "अरे ! तुम मेरे भले की ही तो कहती हो । इससे मेरा समय कट जाता है और मेरा शौक भी पूरा हो जाता है ।"
      लता बोली - "थाली ढ़की रखी है । खाना खाकर फिर चिपक जाना मोबाइल पर  और रात को कहना - आई ड्रॉप कहां है?"
   
 ✍️ राम किशोर वर्मा
 रामपुर

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की कहानी ---- सब्जी का धर्म


आलू ले लो, बैंगन ले लो, टमाटर ले लो, आवाज सुनकर गौरी तुरंत मास्क मुँह पर चढ़ाते हुए गेट पर आई और आवाज लगायी, सुनो भैया सब्जी वालो, जरा सब्जी हमें भी दे देना।
हाँ हाँ आया बीबी जी। आज तो सुबह से बोहनी भी नहीं हुई है। कहिए क्या दूँ, शकील बोला।
क्यों झूठ बोल रहे हो, जब सुबह से घूम रहे हो तो बोहनी क्यों न हुई होगी, अब तुम भी झूठ बोलने लगे।
नहीं बीबीजी, झूठ क्यों बोलूँगा, आप तो मुझे बरसों से जानती हैं। यहाँ पूरी कालोनी वाले मुझसे ही सब्जी लेते थे। आज सब मेरा मजहब देखकर मना कर रहे हैं। अब तो ऐसा लग रहा है कि सब्जियों का भी धर्म अलग अलग हो गया है।
क्या बताएं बीबीजी सत्तर दिन के लॉकडाउन में तो एक दिन ठेला नहीं लगा पाये। घर में राशन पानी तक की किल्लत हो गयी, जैसे तैसे बच्चों को रूखी सूखी रोटी दे पाये। अब ठेला लेकर निकले हैं तो हमसे कोई सब्जी नहीं खरीद रहा। अब हम क्या करें, कहाँ जायें, कहते कहते शकील रुँआसा हो गया।
इधर उन दोनों की बातें सुनकर आस पड़ोस की कुछ औरतें भी सड़क पर झाँकने लगीं थीं।
शकील की बात सुनकर गौरी को पिछले दिनों की थूकने वाली बातें याद आ गयीं,अभी वो सब्जी वाले को मना करती, तभी शकील फिर बोला बीबीजी, घर में जितने पैसे थे सब इकट्ठे करके सुबह सुबह मंडी से ये सोचकर सब्जी लेकर चले थे कि सब सब्जी बिक जायेगी तो सौ डेढ़ सौ रुपये कमा लेंगे और बच्चों को ढंग से खिला देंगे, लेकिन अब तो लग रहा है ये पैसे भी डूब जायेंगे और रात को सब्जियां फेंकनी पड़ेंगी। आखिर हमारा क्या कसूर है। हमने तो कालोनी में सबका बुरे वक्त में साथ दिया। आज हमारे साथ कोई नहीं है।
उसकी बात सुनकर गौरी को एकाएक ध्यान आ गया। एक दिन स्कूल से लौटते हुए उसका बबलू साइकिल से गिर गया था, तब यही शकील उसे उठाकर डाक्टर के यहाँ ले गया था और मरहमपट्टी करवाकर घर तक लाया था, और साइकिल भी पहुँचा कर गया था।
तुरंत वह बोल पड़ी : अरे अरे शकील ऐसा मत सोचो। चलो दो किलो आलू, दे दो, और मटर, टमाटर, लौकी, बैंगन, पालक, प्याज सब दे दो।
शकील ने फटाफट सब्जियां तोलकर बाल्टी में डाल दीं।
कितने पैसे हुए।
जी बीबीजी दो सौ दस हो गये।
गौरी ने उसे पाँच सौ का नोट दिया।
अभी वह वापस करने को रुपये निकाल ही रहा था कि गौरी बोली, अरे अभी बाकी पैसे भी तुम रख लो, घर के लिये राशन आदि खरीद लेना, और हाँ कल से इधर गली में जरूर आना। तुम पर भरोसा है, तुम ताजी सब्जी लाते हो, और दाम भी सस्ते लगाते हो, मैं तो तुमसे ही सब्जी लूँगी, गौरी ने ये बात जोर से कही ताकि आसपास की सभी औरतें सुन लें।
बीबीजी आप बड़ी दयालु हो, अल्लाह आप पर नेमतें बरसाये।  कहता हुआ शकील ठेला लेकर चल दिया।

 ✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG - 69
रामगंगा विहार,
मुरादाबाद 244001
मोबाइल नं. 9456641400

मुरादाबाद के साहित्यकार नवल किशोर शर्मा नवल की तीन गजलें -----


बैर जग में नित बढ़ाकर क्या मिलेगा?
पाप की गठरी उठाकर क्या मिलेगा ?

झूठ का लेकर सहारा मत बढ़ो तुम,
झूठ को सिर पर चढ़ाकर क्या मिलेगा?

भावना मन में अगर दूषित रहे तो,
रोज गंगा में नहाकर क्या मिलेगा?

पीर गैरों की अगर चुभती न तुझको,
आंख से पानी बहाकर क्या मिलेगा?

जीत जाओगे जहां को प्यार से तुम,
नफरतों को दिल लगाकर क्या मिलेगा?

हार में भी है छिपी निज जीत तेरी,
जूझ तू मन को सताकर क्या मिलेगा?

रोज रिश्तों में भला तकरार क्यों है?
जो रहें अपने गिराकर क्या मिलेगा?

आग क्यों है लग रही हर एक घर में,
यूं चरागों को जलाकर क्या मिलेगा?

"नवल" जख्मों को कभी भी मत कुरेदो,
घाव को गहरा बनाकर क्या मिलेगा?

(2)

मिटाना चाहता है गर मिटा फिर क्यों नहीं देता।
सितमगर है अगर मेरा सजा फिर क्यों नहीं देता।

वफा मैंने निभाई है,सदा तन-मन लुटा करके
अगर तू बेवफा है तो,दगा फिर क्यों नहीं देता।

सताता भी नहीं मुझको,जताता भी नहीं मुझको,
ये कैसी बेकरारी है,बुझा फिर क्यों नहीं देता।

छिपाता इश्क़ क्यों मुझसे,दिवाना हूँ सदा तेरा,
छिपा है इश्क़ दिल में जो,जता फिर क्यों नहीं देता।

सदा हारा लड़ाई मैं,मुहब्बत की मिरे हमदम,
जरा दिल हारकर अपना,जिता फिर क्यों नहीं देता।

कहीं पाबंदियां तेरी,न करदें अब मुझे पागल,
लिपट कर के गले आंसू,बहा फिर क्यों नहीं देता।

'नवल' मासूमियत तेरी,बड़ी ही क़ातिलाना है,
नयन तेरे कटीले हैं,चुभा फिर क्यों नहीं देता।

(3)

प्यार में कब हुआ है नफ़ा देखिए।
प्यार में कब मिली है दवा देखिए।

प्यार सदियों से' जाता रहा है छला,
प्यार को छल रहे बेबफ़ा देखिए।

प्यार पाने की' हसरत सभी में मगर,
प्यार में जिंदगी को लुटा देखिए।

प्यार के नाम पर वासना ही दिखे,
प्यार पावन नदी है बहा देखिए।

चैन मिलता नहीं जिंदगी में अगर,
प्यार को रूह में भी बसा देखिए।

प्यार करना सरल पर निभाना कठिन,
चंद गिनती मिलें बाबफ़ा देखिए।

प्यार प्यारा लगे  रूह में जब बसे,
रूह से रूह को मत जुद़ा देखिए।

प्यार की डोर से बांध लो ये जहां,
प्यार से पत्थरों को हिला देखिए।

प्यार होता खुदा बंदगी तुम करो,
जिंदगी में 'नवल' फिर मज़ा देखिए।

 ✍️  नवल किशोर शर्मा 'नवल'
बिलारी, मुरादाबाद
मो नं - 9758280028

मुरादाबाद के साहित्यकार ( वर्तमान में आगरा निवासी) ए. टी. ज़ाकिर की कविता ----अब सहर होने को है !


कुछ पहर और मेरी जां,मुझे जीना होगा,
तिरे ,इस ज़ुल्मों-सितम को मुझे पीना होगा.
तेरा हर ज़ुल्म मेरा हौसला बढ़ाता है,
हार तू जायेगा , इतना मुझे बताता है.
आज की रात सितम कर तुझे थक जाना है,
मुझको सहना है सितम, और मुझे बच जाना है.
काली लम्बी सही पर रात खत्म होती है,
ज़ुल्म की स्याही सिमिटती है,सुब्ह होती है.
खूब कुरेद मेरे घाव, मैं न चीखूंगा,
हार मानूंगा नहीं,अश्कों को मैं पी लूंगा.
तिरे इस ज़ुल्मो -सितम की मीयाद थोड़ी है,
कुछ घड़ी और है सहना, मेरी मजबूरी है.
मुझको उफ़ करना नहीं,ओंठ भींच लेने हैं,
अब मुझे दिखने वाले रॊशनी के घेरे हैं.
तू ज़ुल्म करके थक चुका,मगर मैं ज़िन्दा हूं,
आज पिंजड़ा है टूट जाना,वो परिन्दा हूं.
बस अभी आसमां में सुर्ख़ी उभर आयेगी,
हार जायेगा सितमगर,सहर हो जायेगी.
                                               
✍️ ए. टी. ज़ाकिर
फ्लैट नम्बर 43, सेकेंड फ्लोर
पंचवटी, पार्श्वनाथ कालोनी
ताजनगरी फेस 2,फतेहाबाद रोड
आगरा-282 001
मोबाइल फोन नंबर. 9760613902,
847 695 4471.
Mail-  atzakir@gmail.com

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मुजाहिद फ़राज की दस गजलों पर "मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" द्वारा ऑनलाइन साहित्यिक चर्चा ----


            वाट्स एप पर संचालित समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा  'एक दिन एक साहित्यकार' की श्रृंखला के अन्तर्गत 14-15 जून 2020 को मुरादाबाद के मशहूर शायर डॉ मुजाहिद फ़राज़ की ग़ज़लों पर ऑन लाइन साहित्यिक चर्चा की गई । सबसे पहले डॉ मुजाहिद फ़राज़ ने निम्न दस ग़ज़लें पटल पर प्रस्तुत कीं-

*(1)*

ख़ुद भी आग़ोश में बचपन के वो जाती होंगी
माएं जब लोरियां बच्चों को सुनाती होंगी

ये परिंदे जो उड़े जाते हैं थकते ही नहीं
मंज़िलें पास ही इन को नज़र आती होंगी

दिन तो दुनिया के मसाइल में गुज़रता होगा
मेरी यादें उसे रातों को सताती होंगी

उस के एहसास से ही कानों में रस घुलता है
तितलियाँ राग जो फूलों को सुनाती होंगी

कैसे समझाऊँ मैं नादान तमन्ना को "फ़राज़"
बीती घड़ियां भी कभी लौट के आती होंगी

*(2)*

बस्ते उनके हाथों में हों, ज़हनों में चमकीले ख़्वाब
मुफ़लिस बच्चों की आँखों में अब भी हैं वो लम्हे ख़्वाब

सपने सच भी हो जाते हैं हम तो उस दिन मानेंगें
ताबीरें जिस दिन पहनेंगे अपने रंग बिरंगे ख़्वाब

चाँद-नगर से इक शहज़ादा उस को लेने आयेगा
कुटिया की इक राजकुमारी देख रही है कैसे ख़्वाब

भक्तों ने आदर्शों के सब हीरे-मोती नोच दिये
राम ने किन को सौंप दिये थे अपने युग के उजले ख़्वाब

इक दूजे के दुख और सुख में तन मन धन से लगने के
सब अफ़साने गुज़री बातें, हो गये सारे क़िस्से ख़्वाब

दिल की धड़कन तेज़ है अब भी आँखें अब तक जलती हैं
नादानी में इक दिन हमने देख लिये थे ऐसे ख़्वाब

*(3)*

ज़र्रों में चमकता है जो गौहर नहीं देखा
सूरज ने कभी नीचे उतर कर नहीं देखा

पत्थर था, जो मैं टूट गया उस की तलब में
उस मोम ने इक दिन भी पिघलकर नहीं देखा

महबूब हो, बीवी हो, बहन हो कि हो बेटी
मां जैसा मोहब्बत का समन्दर नहीं देखा

आंखों को ज़रा देर गुमां जिस पे हो घर का
परदेस में ऐसा कोई मंज़र नहीं देखा

किस-किस को सजाया है संवारा है मगर ख़ुद
आईने ने इक दिन भी संवर कर नहीं देखा

हर आज के चेहरे पे थकन है मिरे कल की
यह सोच के बरसों से कलैण्डर नहीं देखा

अच्छा है मुसाफ़िर ही "फ़राज़" ऐसे मकीं से
जो घर में रहा और कभी घर नहीं देखा

*(4)*

यूं तिरी याद का दरवाज़ा खुला रात गए
एक इक लम्हा क़यामत सा कटा रात गए

दिन तो फिर दिन है बहरहाल गुज़र जाता है
हिज्र में होती है नासाज़ फ़ज़ा रात गए

किसकी सांसों से महकती है फ़ज़ा कमरे की
किसने आकर मुझे ख़्वाबों में छुआ रात गए

सारे दुशवार मराहिल से गुज़र जाता हूं
मां मिरे वास्ते करती है दुआ रात गए

जिस्म बिस्तर पे, नज़र दर पे, तमन्ना दिल में
रात यूं गुज़री, कि याद आया ख़ुदा रात गए

याद उसकी मेरी तनहाई सजाने को "फ़राज़"
आई पहने हुए फूलों की क़बा रात गए

*(5)*

वो आज़माएं मझे, उनको आज़माऊँ मैं
फिर आँधियों के लिए इक दिया जलाऊँ मैं

फिर अपनी याद की पुरवाइयाँ भी क़ैद करे
वो चाहता है अगर उस को भूल जाऊँ मैं

उदास आँखों को सौग़ात दे के अश्कों की
ये उसने ख़ूब कहा है कि मुस्कुराऊँ मैं

मियाँ ये ज़ीस्त की सच्चाईयों के क़िस्से हैं
कोई फ़साना नहीं है जिसे सुनाऊँ मैं

फ़िसाद, क़त्ल, तअस्सुब, फ़रेब, मक्कारी
सफ़ेद पोशों की बातें हैं क्या बताऊँ मैं

इसी को कहते हैं मेराज क्या मोहब्बत की!
वह याद आये तो फिर ख़ुद को भूल जाऊँ मैं

तिरे बग़ैर तस्व्वुर ही क्या हो जीने का
अगर वो दिन कभी आए तो मर न जाऊँ मैं

जमाले-यार पे ग़ज़लें तो हो चुकीं हैं बहुत
ये सोचता हूँ उसे आइना दिखाऊँ मैं

*(6)*

यह मत पूछो कच्चे घड़े पर  दरिया  कैसे  पार किया
दीवाना था जान पे खेला लहरों को पतवार किया

इक हमजोली भीतर - भीतर घात लगाता रहता है
इक दुश्मन था सामने आया कहकर मुझ पर वार किया

बीती यादें, चंद किताबें, कुछ तस्वीरें, गहरी सोच
उम्र ढली तो उसने अपने कमरे को संसार किया

इक लोभी ने चैन गवांया, दो दो चार के चक्कर मे
इक दानी को दो पैसों ने जन्नत का हक़दार किया

नादानों ने चार दिनों में उसको जंगल कर डाला
जिस धरती को दीवानों ने खूँ देकर गुलज़ार किया

दुनिया तो धुत्कार चुकी थी नफ़रत और हिक़ारत से
मैं मंज़िल पर कैसे पहुंचा किसने बेड़ा पार किया

दिल जिन से मिलता ही नहीं था उनसे मिलना मजबूरी थी
दिल बेचारा बेबस ठहरा समझौता हर बार किया

*(7)*

उम्र गुज़री इसी मैदान को सर करने में
जो मकाँ हम को मिला था उसे घर करने में

सुब्ह के बाद भी कुछ लोगों की नींदें न खुलीं
और हम टूट गए शब को सहर करने में

इश्क़ आसान कहाँ, उम्र गुज़र जाती है
अपनी जानिब किसी ग़ाफिल की नज़र करने में

मैं जहाँ भर की मुसाफ़त से गुज़र आया हूँ
अपनी आँखों से उन आँखों का सफ़र करने में

लाख दुशवार हो, दिल को तो सुकूँ मिलता है
ज़िन्दगी अपने तरीक़े से बसर करने में

रंग लायेंगी तमन्नाएं ज़रा सब्र करो
वक़्त लगता है दुआओं को असर करने में

आज़मइश से तो बेचारी ग़ज़ल भी गुज़री
इक शहंशाह बहादुर को ज़फ़र करने में ।

*(8)*

पता चला कि मिरी ज़िन्दगी में लिक्खा था
वो जिस का नाम कभी डायरी में लिक्खा था

वो किस क़बीले से है ,कौन से घराने से
सब उसके लहजे की शाइस्तगी में लिक्खा था

नज़र में आये बहुत से सजे-बने चेहरे
मगर जो हुस्न तिरी सादगी में लिक्खा था

वो मुझ ग़रीब की हालत पे और क्या कहता
तमाम ज़हर तो उसकी हंसी में लिक्खा था

गए दिनों की कहानी है जब रईसों का
वक़ार चाल की आहिस्तगी में लिक्खा था

"फ़राज़" ढूँढ रहे हो वफ़ाओं की ख़ुशबू
ये ज़ायका किसी गुज़री सदी में लिक्खा था

*(9)*

बबूल बोते हैं और हम गुलाब मांगते हैं
गुनाह करते हैं उस पर सवाब मांगते हैं

ख़ुदा का नाम भी लेते हैं लोग गिन-गिन कर
ख़ुदा से अज्र मगर बेहिसाब माँगते हैं

तमाम शहर में बे-परदा घूमने वाले
जब अपने गाँव में पहुंचें हिजाब माँगते हैं

गुज़र चुकी है शबे-हिज्र उसकी राह न देख
सहर के बाद कहीं माहताब माँगते हैं

ये लोग करते है दिन-रात भूख- प्यास से जंग
ये किन के चेहरों पे हम आब-ओ-ताब माँगते हैं

इसी को कहते हैं दीवानगी मोहब्बत में
किसी की आँखों में हम अपने ख़्वाब माँगते हैं

शुमार करने हैं लम्हात अपने माज़ी के
नए ज़माने के बच्चे हिसाब माँगते हैं

*(10)*

बीच समुंदर रहता हूँ
लेकिन फिर भी प्यासा हूँ

अपने बच्चों की नज़रों में
मैं दो दिन का बच्चा हूँ

ज़ुल्म सहूँ, ख़ामोश रहूँ
क्या मैं एक फ़रिश्ता हूँ

सदियाँ पढ़ कर दुनिया की
लम्हे इसके समझा हूँ

सच कहने की आदत है
यूँ मैं मुजरिम ठहरा हूँ

भीड़ में तन्हा रहने का
ज़हर हमेशा पीता हूँ

सब अपने से लगते है
मैं भी कितना सीधा हूँ
     
         इन गजलों पर चर्चा करते हुए वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि "फ़राज़ साहब शहर के गम्भीर शायरों में शुमार किये जाते हैं। उनकी ग़ज़लें सामाजिक जीवन के उजालों का सुंदर रूप सामने रखती हैं"।
       वरिष्ठ व्यंग कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि "यथार्थ की दुनिया और दुनिया के यथार्थ तक डॉ फ़राज़ की पैनी नज़र विचरण करती प्रतीत होती है। उनकी शायरी से फूंक-फूंक कर कदम रखने की आहट आती है"।
       वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि "कुल मिलाकर डॉ मुजाहिद फ़राज की गजलें एक आम आदमी के दर्द को उजागर करती हैं"।
        समीक्षक डॉ मौहम्मद आसिफ़ हुसैन ने कहा कि "फ़राज़ साहब की ग़ज़लें पढ़ने के बाद यह बात बिना झिझक कही जा सकती है की उनकी ग़ज़लें ज़ुबानो-बयान और फिक्रो-फन के ऐतबार से कसौटी पर खरी उतरती हैं"।
        अंकित गुप्ता अंक ने कहा कि "डॉ. फ़राज़ ने ज़िंदगी के हर पहलू को बड़ी ही बारीकी से अशआर की शक्ल दी है। उनकी ग़ज़लें बेचैनी, बेबसी और लाचारगी को एक शफ़्फ़ाफ़ आईने में उतारती हैं"।
       डॉ मीना नकवी  ने कहा कि डा. मुजाहिद फ़राज़ साहब एक सुलझे हुये गंभीर इंसान , बेहतरीन शायर और मंझे हुये मंच संचालक हैं।
         हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि डॉ फ़राज की    ग़ज़लें सार्वभौमिता का पुट लिए होती हैं।आम भाषा में ग़ज़लियत भरा गम्भीर चिन्तन व दर्शन पेश कर देना उनकी खूबी है।
         श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा कि डा• मुज़ाहिद फ़राज़ की गज़लें जिंदगी के विभिन्न पहलुओं, सामाजिक परिवेश और असमानता के कारण उत्पन्न परिस्थितियों को बखूबी दर्शाती हैं।
         फरहत अली खान का कहना था कि मुजाहिद ‘फ़राज़’ की शायरी की दो बड़ी ख़ूबियाँ हैं- ज़बान का आम-फ़हम होना और ख़्याल का गहरा और वसी होना। ख़्याल के लेवल पर आप बड़े डोमेन के शायर हैं। ज़बान को दिल से निकल कर अल्फ़ाज़ में कोडेड हो कर सामने वाले तक पहुँच कर डीकोड हो कर उस के दिल तक पहुँचने में किसी अड़चन का सामना नहीं करना पड़ता। इस तरह की शायरी यक़ीनन असरदार होती है। उनकी शायरी में रिवायत और जदीदियत दोनों ही के निशानात साफ़-तौर पर देखे जा सकते हैं।
       डॉ अज़ीम उल हसन ने कहा कि  मुजाहिद साहब की ग़ज़लों को पढ़कर महसूस हुआ कि आपने शायरी के कैनवास पर अपने जज़्बात और एहसासात की तस्वीर कशी इस नायाब अंदाज़ से की है जिसमें ज़िन्दगी का हर रंग नुमाया है। आपके कलाम को पढ़कर क़ारी को ज़िन्दगी की तल्ख़ सच्चाइयों का इल्म होता है।
        मनोज वर्मा मनु ने कहा कि डॉ फ़राज के तक़रीबन सभी  अश'आर  उनकी फ़िक्र, उनकी तमन्ना ...और ज़माने की इन खुरदरी हक़ीक़तों  पर  उनके अंदर के  हस्सासी इंसान की  सकारात्मक नतीजों की ख्वाहिश (ओं ) का  मुज़ाहिरा हैं .. ।
        शिशुपाल मधुकर ने कहा कि ज़िन्दगी की बुनाबट  परतो को व्याख्यायित करती डॉ फ़राज की ग़ज़लें एक नई रोशनी का दीदार करती हैं ।
         ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि "जज़्बों के तवाज़ुन का यह गाढ़ापन डॉ फ़राज़ साहब की शायरी को जहां ठहराव अता करता है वहीं दावते हमसफ़री पर भी आमादा करता है"।

:::::::प्रस्तुति::::::::

✍️ ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
"मुरादाबाद लिटरेरी क्लब"
 मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मो० 7017612289

मुरादाबाद की साहित्यकार इंदु रानी की रचना ---- कारीगरी का मेरी सिला क्या दिया


मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मुजाहिद चौधरी की गजल


मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार सन्तोष कुमार शुक्ल संत की रचना


साहित्यकार कंचन लता पांडे की रचना


सोमवार, 15 जून 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ की रचना


मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार का गीत ----- यह कैसा बिष घोल दिया तुमने हवाओं में


मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी का गीत ----- जल जीवन है जीवन ही जल है


मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी का गीत -----उड़ रही रेत गंगा किनारे


🎤✍️ डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की रचना ---- देश है यह आपका इसे जरा संवारिये


मुरादाबाद के साहित्यकार अनुराग रोहिला की गजल ------- मेरा दिन ढल चुका है शाम बाकी है


मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की ग़ज़ल----- जिन दरख़्तों को गिराना चाहती हैं आंधियां


मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की दो हास्य कविताएं


मुरादाबाद के साहित्यकार योगेंद्र वर्मा व्योम का गीत ----- एक अजब सा डर लिखता है रोज नया अध्याय


मुरादाबाद की साहित्यकार मोनिका शर्मा मासूम की गजल------- जिंदगी तेरी रहगुज़र तौबा


मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की कविता एहसास


रविवार, 14 जून 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की गजल --------हथेली पर नया सूरज किसी ने फिर उगाया है......


मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की रचना------ पतझड़ आया है आए आशा मधुमास ना छोड़ो


मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मरगूब हुसैन अमरोही की रचना ------मेरा दिल रोने लगता है वो मंजर याद आने पर


🎤✍️मरगूब हुसैन अमरोही
दानिशमन्दान, अमरोहा
मोबाइल--9412587622

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद संभल ) निवासी साहित्यकार दीपक गोस्वामी चिराग का गीत ---कभी-कभी मन करता मेरा, पाती माँ के नाम लिखूँ....


कभी-कभी मन करता मेरा, पाती माँ के नाम लिखूँ।
राम-राम, सत श्री अकाल या,दिल से उसे सलाम लिखूँ।

उसके उदर पला तो उसको, मिलते कितने कष्ट रहे,
प्रसव पीर सहने से पहले, अनगिन थे आघात सहे।।
जो रातें थीं टहल गुजारी ,उन रातों के नाम लिखूँ।
कभी-कभी मन करता मेरा .......

घुटमन-घुटमन मैं चलता था,ताली बजा बुलाती थी।
फिर-फिर कर लेती थी बलैयाँ,गोद ले चाँद दिखाती थी।
जो माँ मुझसे बातें करती, रोज सुबह और शाम लिखूँ।
कभी-कभी मन करता मेरा ......

मुझको नींद न जब आती थी, थपकी दे दुलराती थी।
जाग-जाग कर रात-रात भर ,लोरी सुना सुलाती थी।
राजा-रानी के अफसाने, परी-कथाएं तमाम लिखूँ।
कभी-कभी मन करता मेरा .......

लिख दूँ सब बचपन की बातें,वर्षा की काली रातें।
बिजली कौंधी हृदय लगाती,चुम्बन की दे सौगातें।
माँ की महिमा लिखी न जाए,चाहे आठों याम लिखूँ।
कभी-कभी मन करता मेरा .........

✍️ दीपक गोस्वामी 'चिराग'
शिव बाबा सदन
(निकट एस.बी. कान्वेंट स्कूल)
कृष्णा कुंज
बहजोई 244410
जनपद सम्भल 
उत्तर प्रदेश, भारत
 मोबाइल फोन नंबर 9548812618

शनिवार, 13 जून 2020

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हस्ताक्षर की ओर से आज शनिवार 13 जून 2020 को मुक्तक गोष्ठी का आयोजन प्रख्यात साहित्यकार यश भारती माहेश्वर तिवारी जी की अध्यक्षता में किया गया। राजीव प्रखर द्वारा संचालित इस ऑनलाइन गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों यश भारती माहेश्वर तिवारी, शचीन्द्र भटनागर, डॉ अजय अनुपम, डॉ मनोज रस्तोगी , डॉ पूनम बंसल, योगेंद्र वर्मा व्योम, ओंकार सिंह विवेक, श्री कृष्ण शुक्ल, मनोज वर्मा मनु, राजीव प्रखर, मोनिका शर्मा मासूम , मीनाक्षी ठाकुर और रीता सिंह द्वारा प्रस्तुत मुक्तक

(1)
झूठे भी तो आधार हुआ करते हैं
सपनों के भी संसार हुआ  करते हैं
कुछ ऐसी परिधि अनोखी निर्माणों की
उजड़ों के भी घरबार हुआ करते हैं

(2)
गाँव का गाँव सूना पड़ा है
जेठ का सूर्य इतना कड़ा है
छिप गये छाँव में सब पखेरू
धूप में वृद्ध पीपल खड़ा है

✍️माहेश्वर तिवारी
मुरादाबाद 244001
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1-
दूसरों की पीर जो अनुभव करे इनसान है
भाव के जिसके विशद् हों दायरे इनसान है
व्यक्ति को बीहड़ विजन पथ पर अकेला देखकर
स्नेह- करुणा से ह्रदय जिसका भरे इनसान है
2-
आदमी की भीड़ में इनसान मिल पाते नहीं
प्यार के, अपनत्व के अनुमान मिल पाते नहीं
हैं बहुत जो आग की बौछार करते  हर तरफ़
पर कहीं तुलसी, कहीं रसखान मिल पाते नहीं
3-
जो सभी को प्यार में नहला सके, इनसान है
दर्द से दुखता हृदय सहला सके, इनसान है
अब न युग को देवताओं की ज़रूरत है कहीं
जो यहाँ इनसानियत दिखला सके, इनसान है
4-
मीत, मत उनको सराहो, जो बहारों में जिए
जो सदा ऐश्वर्य के मादक इशारों में जिए
है वही इनसान, सेवा में जिसे आनंद हो
जो सदा असहाय, बेबस, बेसहारों में जिए
5-
आज धरती को नहीँ धन का ज़खीरा चाहिए
प्रेम, श्रद्धा, त्याग की प्रतिमूर्ति मीरा चाहिए
जो निडर- निष्पक्ष होकर कह सके बानी सही
आज व्याकुल विश्व को ऐसा कबीरा चाहिए

✍️ शचींद्र भटनागर
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन 80571-92199
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(1)
वे हमारे हुए या तुम्हारे हुए
हर कठिन काल गति में सहारे हुए
तिक्तताएं हृदय की समेटे सभी
चलपड़े इसलिये अश्रु खारे हुए

(2)
हो विवश थम गई भावना की नदी
निमिष भर में गयी बीत जैसे सदी
शब्द,संकेत भी जब न सम्भव लगे
एक उच्छ्वास ने सब कथा बांच दी

(3)
भाव की चांदनी के रजत कोष हैं
दाहपूरित,सजल, शांति मय,रोष हैं
नित अमलकांति वाले रजत अश्रुकण
बुद्धि पर भावना का विजय घोष हैं

(4)
मुक्तहोकर वासना के भार से
आन्तरिक अनुभूति के दृग-द्वार से
झांक कर देखो प्रणय की दिव्यता
देह-कामी स्थूलता के पार से

(5)
मुक्तस्वर से मौन भी गाने लगे
जलन सबका दर्द सहलाने लगे
प्यारवह संगीत है सुनकर जिसे
आंसुओं को भी हंसी आने लगे

✍️डॉ. अजय अनुपम
मुरादाबाद 244001
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(1)
सुन  रहे यह साल  आदमखोर है
हर तरफ  चीख, दहशत, शोर है
मत कहो वायरस जहरीला बहुत
आजकल इंसान  ही   कमजोर है

(2)
मौतों   का  सिलसिला  जारी है
व्यवस्था की कैसी ये लाचारी है
आप  शोक संदेश  पढ़ते  रहिये
आपकी इतनी ही जिम्मेदारी है

डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
 मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश ,भारत
मोबाइल नंबर 945 6687 822
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शूल के संग हंसते सुमन देखिये
नीर से हैं भरे दो नयन देखिये
छेड़ कर फिर नयी प्रेम की रागनी
नेह की बारिशों के सपन देखिये

नहीं वो ज़िन्दगी जो दर्द से अनजान होती है
किसी भी आदमी की कर्म से पहचान होती है
ख़ुशी के रास्ते की हर बला को रोक देती है
मिली आशीष की पूंजी बनी दरबान होती है

याद में नैन उनकी तरल हो गए
प्यार के रंग सारे विरल हो गए
दर्द का ये गरल जब ख़ुशी से पिया
रास्ते ज़िन्दगी के सरल हो गए

न बदली ज़िन्दगी मेरी न बदला ये ज़माना है
कभी जो स्वप्न था देखा वही सपना सजाना है
लहर से खेलते हैं ये किनारे मुस्कुराते हैं
उम्र की कश्तियाँ लेकर सभी को पार जाना है

धूप में छाँव में राह चलने लगी
ज़िन्दगी हादसों से बहलने लगी
बदलियों ने ढकीं चाँद की शोखियाँ फिर नयी एक चाहत मचलने लगी

 ✍️ डॉ पूनम बंसल
मुरादाबाद 244001
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(एक)
अब न गौरैया चहकती है मुँडेरों पर
हो रहा हावी अजाना डर बसेरों पर
यह समय का खेल है या फिर सियासत है
रात भारी पड़ रही है अब सवेरों पर
(दो)
चाह में उत्साह की प्रस्तावना भी हो
शून्यता में नवसृजन संभावना भी हो
मंज़िलें निश्चित मिलेंगी शर्त इतनी है
कोशिशों में भी ललक हो साधना भी हो
(तीन)
त्यागकर स्वार्थ का छल भरा आवरण
तू दिखा तो  सही प्यार का आचरण
शूल  भी  फिर नहीं दे सकेंगे चुभन
जब छुअन का बदल जाएगा व्याकरण
(चार)
द्वंद  हर  साँस  का साँस के संग है
हो  रही  हर  समय स्वयँ से जंग है
भूख - बेरोज़गारी  चुभे   दंश - सी
ज़िन्दगी  का  ये  कैसा  नया रंग है
(पांच)
हों नयी उत्पन्न अब संभावनाएँ
नित जगें साहित्य के प्रति भावनाएँ
हम लिखें जो हो भला उससे सभी का
दिग्भ्रमित ना हों कभी नव कल्पनाएँ

 ✍️ योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’
मुरादाबाद 244001
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1.
प्यार  की  बातें करें सब और सब में मेल हो,
नफ़रतों  का अब यहाँ पर बंद सारा खेल हो।
सैनिकों के शौर्य पर भी जो सियासत कर रहे,
 माँग  है  यह  ही  हमारी शीघ्र उनको जेल हो।

2.
धर्म-भाषा-बोलियों  का  जो  यहाँ  विस्तार  है,
 राष्ट्र  की  यह  एकता  का  एक दृढ़ आधार है।
  झुक नहीं  सकता कभी भारत किसी के सामने,
  जानता  इस  बात  को  अच्छी  तरह संसार है।
 
3.
डगर का  ज्ञान होता है अगर माँ साथ होती है,
  सफ़र  आसान होता है अगर माँ साथ होती है।
  कभी मेरा जगत में बाल बाँका हो नहीं सकता,
  सदा  यह भान  होता है अगर माँ साथ होती है।

 ✍️  ओंकार सिंह विवेक
 रामपुर
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सामने आकर मधुर स्वर बोलता है।
पीठ पीछे सिर्फ विष ही घोलता है।।
आदमी से दोस्त, दर्पण ही भला है।
जो भी दिखता है बराबर बोलता है।।

एक नुस्खा आजमाना चाहिए
दर्द में भी मुस्कुराना चाहिए
चार बातें यूँ ही उनसे कीजिए
दोस्ती का कुछ बहाना चाहिए।

अँधेरे दिलों के मिटाते रहेंगे।
दिये प्यार के बस जलाते रहेंगे।
हवाओं से यदि तुम करोगे हिफ़ाजत।
दिये रात भर जगमगाते रहेंगे।

सब प्रशंसा करें, आप ऐसे बनो,
साथ सबका मिले, मीत ऐसे बनो,
जल रहा है स्वयं, दे रहा रोशनी,
हो सके तो किसी, दीप जैसे बनो।।

दुख के बादल सभी आज छँट जाएंगे।
राम के हाथों पुतले निपट जाएंगे
तुम ह्रदय में बसाओ तो श्री राम को।
मन के भीतर के रावण भी मिट जाएंगे।

 ✍️  श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG-69, रामगंगा विहार,
मुरादाबाद 244001
मोबाइल नं. 9456641400
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खुदा भी, गॉड भी, भगवान भी, वाहेगुरु भी तू,
हमारी कोशिशों के हौसले का दम शुरू भी तू,
तेरी मर्जी से होता है यहां ज़र्रा भी सूरज सा ,
तू ही मुझ में बसा है और मेरे रूबरू भी तू ,,
............

किसे हक़ है तेरी मर्जी में कोई भी दखल दे दे,
जो तू चाहे करिश्मे को हक़ीक़त का अमल दे दे,
भला तुझे सा करम फ़रमा सिवा तेरे कहीं  होगा,
कि जन्नत की रिहाइश एक नेकी का बदल दे दे,,
..........

 कुछ तो था जिसका ग़म नहीं जाता,
 दिल से वो... दम से कम नहीं जाता ,
कोई ...शिद्दत  से  याद  करता।  है ,
मुद्दतों ...यह   वहम    नहीं    जाता ,,
...........

ना रुसवाई का ग़म होता ये  हिस आहत ना होती,
 खलिश रहती तेरे दिल में कभी राहत न होती,
 ये कितने हुस्न के पैकर बिखर जाते हैं  तन्हा,
कभी सोचा? अगर तेरी हमें चाहत न होती,,
............

मुझे लगता है मेरे ख्वाब भी अब,
मेरे दिल से तिजारत कर रहे हैं,
 तेरे एहसास को दलदल बनाकर,
 मेरी जां से से बगावत कर रहे हैं,,
.............

किसी को ख्वाब की ता'बीर मिल गई होती,
आप मिलते अगर .. तकदीर मिल गई होती ,
और रांझे ने.... भला कौन  खुदा मांगा था?
 वही मिल जाता..अगर  हीर मिल गई होती,

 ✍️ मनोज वर्मा 'मनु'
  63970 93523
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(1)
शब्द पिरोने का यह सपना, इन नैनो में पलने दो।
मैं राही हूँ लेखन-पथ का, मुझे इसी पर चलने दो।
कल-कल करती जीवन-धारा, पता नहीं कब थम जाए,
मेरे अन्तस के भावों को, कविता में ही ढलने दो।

(2)
हरे-भरे कलरव से गुंजित, प्यारा सा संसार मिला।
घोर अकेलेपन से लड़कर, जीने का आधार मिला।
वर्षों से सूनी बगिया में, ज्यों ही पौध लगायी तो,
मैंने पाया मुझको मेरा, बिछुड़ा घर-परिवार मिला।

(3)
घोर विनाशक अन्धेरे ने , ऐसी सेज सजाई है।
श्वास-श्वास मटमैली होकर, सकल-सृष्टि थर्राई है।
सदा निरंकुश रह कर तूने, किया साधनों का दोहन,
तेरे ही इन दुष्कर्मों की, धुन्ध धरा पर छायी है।

(4)
राजनीति सा हो गया, मौसम का व्यवहार।
कभी भानु बहुमत रखें, कभी मेघ सरदार।।
असमंजस में पड़ गये, नीचे वाले लोग।
पता नहीं चलने लगे, कब किसकी सरकार।।

✍️ - राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
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1
उसके मकाने-दिल में हमने घर बना लिया
चौखट को उसकी चूम कर मंदिर बना लिया
तकदीर अपनी छोड़ दी उसके नसीब पर
किस्मत को उसकी अपना मुकद्दर बना लिया
2
ओ चन्दा तेरे ही जैसा उज्जवल मेरा भाग रहे
जैसे तू बरसाए ,मुझ पर भी उनका अनुराग रहे
मैं भी प्रीत की रीत सँवर कर धवल चाँदनी हो जाऊं
मांगू तुझ से बस इतना मेरा भी अखंँड सुहाग रहे
 3
हैं कांच की चूड़ियां सिंगार नारी का
इनकी खनक में गूंजता है प्यार नारी का
नाजुक सी हैं भले, मगर कमजोर नहीं हैं
यह बांध के रखती हैं घर संसार नारी का
4
गज़ल कोई फिर सरफरोशी लिखी है
मुहब्बत में यूं गर्म जोशी लिखी है
वजूद अपना "मासूम" ने खुद मिटाकर
मुक़द्दर में खाना बदोशी लिखी है
5
कहूं हिटलर का पोता या उसे सद्दाम का नाती
न जाने क्यों मेरी कोई अदा उसको नहीं भाती तरसती है मेरी आंखें बस इक मुस्कान को उसकी
मुई, सौतन है ये भी सामने मेरे नहीं आती

✍️ मोनिका मासूम
मुरादाबाद 244001
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                    1
देख दुर्दशा मज़दूरों की,पल-पल आँसू बहते हैं,
हाय ! गरीबी लड़े मौत से,भूखे तन कब सुनते हैं।
कभी गाँव से चली डगर थी,शहरों में पाने रोटी,
आज उसी रोटी की खातिर, शहर गाँव को मुड़ते हैं।।
                     2
होकर जिधर से निकला, ये कारवां हमारा,
कर ली फत़ेह हासिल, हुआ आसमां हमारा,
मर कर भी न मरें हम,कुछ ऐसा करके जाएँ,
सदियों रहे सलामत,हिंदोस्तां हमारा।।
                      3
कहे मीरा दिवानी ये,मुक़म्मल ठौर क्या करना,
तेरी बाँहों में दम निकले, सफ़र अब और क्या करना ।
ज़हर पीकर भी ज़िंदा हैं,तमन्ना में तेरी ज़ालिम,
लगे दम ज़िंदगी मेरी,दुआ पर गौर क्या करना।।

 ✍️ मीनाक्षी ठाकुर
 मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
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भोर के सूरज से निकलती , लहक हैं बेटियाँ
घर उपवन में खिले सुमन की , महक हैं बेंटियाँ
चहचहातीं जो अंजुली भर , खुले आसमां में
बाबुल अँगना की वो मीठी , चहक हैं बेटियाँ ।

बहें जिस लहर सँग भाई वो , बहक हैं बेटियाँ
छोड़तीं राखी के लिये सभी , हक हैं बेटियाँ
हो जाती भस्म जिसमें , कुरुवंश की कुरूपता
याज्ञसैनी के उस क्रोध की , दहक हैं बेटियाँ ।

 ✍️ डॉ. रीता सिंह
चन्दौसी (सम्भल)

::::::::प्रस्तुति:::::::

डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता ------ मै चोर बन गया हूं



आप सब की नज़रों में
मैं चोर बन गया हूं
मैंने,न केवल चोरी की है
चोरी करते पकड़ा भी गया हूं
मैं कोई खानदानी चोर नहीं हूं
ना ही चोरी करना मेरा पेशा है
शायद इसीलिए
मैं ठीक से चोरी नहीं कर पाया
और मेरे इस कार्य को
आप सभी ने देखा है
जब मैं
अपने चारों ओर नजर घुमाता हूं
अधिकतर लोगों को
चोरी और लूटपाट करते हुए पाता हूं
हमारे नेता,चुनाव जीतते ही
देश को लूटने में लग जाते हैं
पूरे पांच साल तक
पब्लिक से नज़रें चुराते हैं
हम लाचार लोग
उनका कुछ नहीं कर पाते हैं
अगले चुनाव में
वो फिर चुन लिए जाते हैं
हमारे फिल्मकार
विदेशी फिल्मों से आइडिया चुरा रहे हैं
एक से बढ़कर एक
हिट फिल्में बना रहे हैं
साहित्य के क्षेत्र में भी
चोरों का बोलबाला है
अलग अलग कवियों की
अलग अलग लाइनें चुरा कर
कुछ कवियों ने
पूरा खंड काव्य लिख डाला है
कुछ ऐसे जोड़ तोड़ किए हैं
बड़े बड़े सम्मान पा लिए हैं
सरकारी कर्मचारी,समय चुराते हैं
दस बजे ऑफिस खुलता है
ग्यारह बजे आते हैं
उसके बाद काम से जी चुराते हैं
कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता है
उनको समय से पहले
प्रमोशन भी मिल जाता है
व्यवसाय से जुड़े लोग
जितना अधिक टैक्स चुराते हैं
उतने ही बड़े व्यापारी कहलाते हैं
कोई  उन पर उंगली नहीं उठाता है
उनको समाज का
प्रतिष्ठित नागरिक समझा जाता है
युवा लड़के लड़कियां भी
इस क्षेत्र में अपना हाथ आजमा रहे हैं
किसी की नींद ,किसी का चैन
किसी का दिल चुरा रहे हैं
हम इसको बड़ी सहजता से लेते हैं
कभी मुंह फेर लेते हैंं
कभी मुस्करा देते हैं

इस चोरी के माहौल में
मैंने केवल कुछ रोटियां चुराई हैं
खुद नहीं खाई हैं,बच्चो को खिलाई हैं
मैं हालात के आगे मजबूर था
वो फैक्ट्री बंद हो गई,
जिसमे मैं मजदूर था
अपनी कमजोर पीठ पर
कुछ दिनों तक
बेरोज़गारी का बोझ उठाता रहा
बेटी के दहेज़ के लिए
बचाए पैसे से घर चलाता रहा
लेकिन जब बच्चे
भूख से तड़पने लगे
संयम की सीमा लांघ कर बिखरने लगे
मुझे ना चाहते हुए भी
ये काम करना पड़ा है
ये तथाकथित चोर
अब आपके सामने खड़ा है
इसे जो चाहे सजा दीजिए
लेकिन मेरे बच्चो को
भूख से बचा लीजिए ।

✍️ डॉ पुनीत कुमार
T- 2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद -244001
M-9837189600






वाट्स एप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है । मंगलवार 9 जून 2020 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों सर्व श्री दीपक गोस्वामी चिराग, नवल किशोर शर्मा नवल, प्रीति चौधरी , कमाल जैदी वफ़ा, रागिनी गर्ग, सीमा वर्मा ,अशोक विद्रोही , वीरेंद्र सिंह बृजवासी, सीमा रानी, अमितोष शर्मा, कंचनलता पांडेय, मनोरमा शर्मा और स्वदेश सिंह की कविताएं----

अंकपत्र की स्पर्धा में, बस्ते झूल रहे।
माली की चाहत की खातिर, मुरझा फूल रहे।

नहीं कहानी दादी की,ना; चूरन की पुड़िया।
अलमारी में गुमसुम बैठी; बिन ब्याही गुड़िया।
नैट-चैट गपशप से मुनिया; बिल्कुल 'कूल' रहे।

कहीं न दिखते ग्वाल-बाल अब; यमुना के तट पर।
लील रहे बचपन को कैसे, नैट औ'र कम्प्यूटर।
सारी दुनिया अँगुली पर है, बचपन भूल रहे।

कैसे लाए हामिद अपनी, दादी को चिमटा।
दिया स्वार्थ ने वृद्धाश्रम जब,अम्मा को सिमटा।
सम्बंधों पर खुदगर्जी की, चढ़ती धूल रहे।

महत्वाकांक्षाओं के गिरि से, बचपन हैं पिसते।
उच्च पदों के मैराथन में, प्रतिभागी मरते ।
कक्षा में 'पोजीशन' के भी ,चुभते शूल रहे।

✍️दीपक गोस्वामी 'चिराग'
बहजोई (सम्भल)
ईमेल deepakchirag.goswami@gmail.com
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खा लेंगे इक रोटी कम पर,घर पर रहना ओ पापा!
आप बिना दर दर की ठोकर,घर पर रहना ओ पापा!

बिना काम घूमो न बाहर,कोरोना खतरा भारी,
पास हमारे बैठो आकर,घर पर रहना ओ पापा!

लॉकडाउन की हुई घोषणा,जरा विचारो तुम पापा,
कोरोना बन घूम रहा खर,घर पर रहना ओ पापा!

वक्त बड़ा क्रूर है मानो,छिपकर रहना ही होगा,
सरकारी इमदाद मिले घर,घर पर रहना ओ पापा!

जनहित में हर काज निहित हो,देश बचायेंगे हम सब,
कोरोना है बहुत ही शातिर,घर पर रहना ओ पापा!

कोरोना से जूझ रहे हैं,पुलिस,डॉक्टर अन्य सभी,
पार करेंगे बाधा को हर,घर पर रहना ओ पापा।

जठराग्नि व्याकुल है करती,पर हार नहीं मानूंगा मैं,
नवल' रोये बच्चा यह कहकर,घर पर रहना ओ पापा!

✍️नवल किशोर शर्मा  'नवल'
----------------------------
बचपन के बस्ते में छुपे
क़िस्मत के ख़ज़ाने थे।
कच्ची पेंसिल से लिखे
सफलता के फ़साने थे।
छोटे से उस बस्ते के अंदर
जो अनंत ज्ञान समाये थे।
जीवन जीने के सबक़ हम
उनसे ही सीख पाए थे।
सच्चाई और मेहनत के मोती
उसकी पुस्तक पर चमकते थे।
जिनकी रोशनी से हम अपनी
मंज़िल की तरफ़ बढ़ते थे।
आज करते है जो ज्ञान वर्षा
मेघ,  उस बस्ते ने बनाए थे।
कहता बसता ,बाँटते रहॊ जग में,
 ज्ञान जो ,सीखकर मुझसे आए थे।।

✍️ प्रीति चौधरी
शिक्षिका, राजकीय बालिका इण्टर कॉलेज, हसनपुर, जनपद अमरोहा
--------------------- --
आओ दोस्तों पेड़ लगाएं,
चहु ओर हरियाली लाएं।           
               आओ दोस्तो पेड़------                     

सावन में फिर झूला झूले,
गीत खुशी के फिर से गाएं।
               आओ दोस्तो पेड़------

चारो ओर महके फुलवारी,
चम्पा चमेली गुलाब उगाएं।
               आओ दोस्तो पेड़-----

कूड़ा कचरा नही जलाएं।
वातावरण को स्वच्छ बनाएं             
              आओ दोस्तों पेड़-----

स्वच्छ जल हो स्वच्छ हवाएं,
ऐसा फिर माहौल बनाएं।
              आओ दोस्तों पेड़------

पेड़ काटना जुर्म बड़ा हो,
ऐसा कुछ कानून बनाएं।
           आओ दोस्तो पेड़--------

जैसे पानी हम पीते है,
ऐसे उनको रोज पिलाएं।
              आओ दोस्तो पेड़-----

जैसे खाना हम खाते है,
ऐसे उनको खाद लगाएं।
               आओ दोस्तो पेड़-----

पेड़ हमे देते है जीवन,
पेड़ो को ही दोस्त बनाएं।
              आओ दोस्तो पेड़ -------

✍️  कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
सिरसी (सम्भल)
9456031926
--------------------------- 
मम्मी -मम्मी यह बतलाओ
कोरोना क्यों आया है?

मम्मी-मम्मी! यह बतलाओ,
कोरोना क्यों आया है?
सबने इसके भय से खुद को,
बन्द घरों में पाया है।

छुपा वस्त्र के पीछे मइया,
सुन्दर सा मुखडा़ मेरा।
नहीं खेलने जा सकता है।
माता ये  लल्ला तेरा।
बैठ बैठ कर,घर के भीतर ,
मेरा मन घबराया है।
मम्मी-मम्मी यह बतलाओ,
कोरोना क्यों आया है?

अब स्कूल हुये बंद हमारे,
मित्रों  से  नाता टूटा।
हिल-मिल साथी  खाते  खाना।
अपना वो  खाना छूटा।
मोबाइल  पर  करूँ  पढा़ई,
मेरा सर चकराया है,
मम्मी-मम्मी मुझे बताओ,
कोरोना क्यों आया है?

सुन ले बेटा!माता बोली,
मनुज कर्म फल पाता है।
 सृष्टि मात मनु, खूब सताया,
आज सताया जाता है।
विज्ञान और भौतिकता ने,
मानव को भरमाया है।
यह कोरोना मेरे बच्चे!
नर ने स्वयं बनाया है।

वर्चस्व बनाने को अपना,
मानव ने की शैतानी।
ईश्वर बनने की इच्छा है,
 इसकी देखो! नादानी।
चीन देश ने की गद्दारी,
दुनिया में फैलाया है
यह कोरोना मेरे बच्चे!
नर ने स्वयं बनाया है।
 
 ✍️ रागिनी गर्ग
रामपुर
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एक बिल्ली ने चूहा पकड़ा   
कसकर हाथों में था जकड़ा
 
चूहा भय से भरा हुआ था
ऐसा जानो मरा हुआ था

बिल्ली ने सोचा घर ले जाऊँ
बैठ मजे से इसको खाऊँ

पर घर पे थीं उसकी बहनें
आईं थीं कुछ दिन जो रहने

बिल्ली अब थोड़ा घबराई
कैसे बाँटे अपनी कमाई

घर आकर बोली सुनो बहना
आज हम सबको व्रत है रहना

ये देखो पंडित है आया
कहकर उसने चूहा दिखाया

अब चूहे की शामत आई
पर उसने एक जुगत लगाई

बोला अब सब हाथ को जोड़ो
ध्यान करो मोह - माया सब छोड़ो

जैसे ही बिल्लियाँ भक्ति में आईं
चूहे जी ने दौड़ लगाई ।।।

✍️ सीमा वर्मा
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बनकर मैं जांबाज सिपाही
             अपने हिंदुस्तान का
शत्रु से बदला लूं एक दिन
           पापा के बलिदान का
आका जिनके आतंकी
     शिविरों के बल पर ऐंठे थे
कुछ बाहर,कुछ अंदर
    छुप कर आस्तीन में बैठे थे
सर्जिकल स्ट्राइक से भ्रम
              टूटा पाकिस्तान का
शत्रु से बदला लूं एक दिन
                पापा के बलिदान का
गद्दारी का रोग हिंद को
             बहुत पुराना भारी है
इसीलिए लंबे अरसे से
           जंग अभी तक जारी है
पहले किस्सा खत्म करो
          तुम अंदर के शैतान का
शत्रु से बदला लूं एक दिन
         पापा  के बलिदान का
पूरे देश को बतला दो
         जो भारत में रहना चाहे
उसके मुंह से कभी बुराई
             देश की न होने पाये
करें सभी गुणगान हमेशा
             भारत मां की शान का
शत्रु से बदला लूं एक दिन
             पापा के बलिदान का
पुलवामा में पापा तुम को
           शत्रु ने जब छीन लिया
हर एक पल अपने सुख का
    तब किस्मत ने था बीन लिया
शोले भड़क रहे हैं दिल में
            मंजर है तूफान का
शत्रु से बदला लूं एक दिन
            पापा के बलिदान का
नारों से या बातों से जो
            जहर हमेशा ही घोले
करे कलंकित मातृभूमि को
             भारत की जय ना बोले
आगे बढ़कर शीश काट लो
             ऐसे    हर इंसान का
 शत्रु से बदला लूं एक दिन
            पापा के बलिदान का

   ✍️   अशोक विद्रोही
 412, प्रकाश नगर ,मुरादाबाद
 मोबाइल फोन नंबर 8218825541
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चिक-चिक करती पूंछ हिलाती
रोज़     गिलहरी     आती     है
खोज-खोज  खाने   की   चीजें
तुरत     उठा    ले   जाती    है।

कुतर-कुतर  कर   सारा   खाना
जल्दी - जल्दी      खाती       है
बड़े  प्यार  से  बैठ   के  भोजन
करना     हमें      सिखाती    है।

पत्तों   के   झुरमुट   में  छुपकर
आँख   मूँद     सो    जाती    है
बिल्ली,   सांप,  नेवले   से   वह
चौकन्नी        हो      जाती     है।

हरी  भरी  सब्जी   फल  खाकर
सेहत      रोज़      बनाती      है
पेड़ों  से  फल  कुतर-कुतर  कर
नीचे        खूब      गिराती     है।

गिरे    बीज   से    फूटे    अंकुर
देख - देख        हर्षाती         है
इसी  तरह   नित  पेड़   उगाकर
पर्यावरण         बचाती         है।

खाली   नहीं   बैठती   दिन   भर
श्रम    का    साथ    निभाती   है
सक्रियता   जीवन     की    पूंजी 
सबको    यह     समझाती     है।

नाज़ुक   रेशों   को    ले   जाकर
घर    भी     स्वयं     बनाती    है
साथ  सुलाकर   सब  बच्चों  को
जीवन    का    सुख    पाती   है।

बिस्कुट,   रोटी,    सेव,   पपीता
आओ     सब    लेकर      आएं
सुंदर       धारीदार       गिलहरी
के      आगे     रखकर     आएं।

✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद
9719275453
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घर पर रहकर प्यारे बच्चों,
बोर नहीं अब हो ना तुम।
नित नई-नई मिठाई खाकर,
मन ही मन खुश हो ना तुम।

कभी जलेबी कभी रसगुल्ला,
कभी रसमलाई खुल्लम खुल्ला।
मीठी नई इमरती बालूशाही,
जी भर खाओ मिलकर भाई।

आलू टिक्की पानी पूरी,
 इडली डोसा गरम कचोरी।
प्यारे मिलजुल खाओ तुम,
जी भर  मौज मनाओ तुम।

लोक डाउन का पालन करना,
सभी सुरक्षित घर में रहना।
दो गज दूरी सब को समझाना,
बस याद रहे कोरोना हराना।

✍🏻सीमा रानी
 अमरोहा
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बापू काम पे जाओ न
अच्छा भोजन लाओ न ।
चटनी खिचड़ी अब न भाय,
दाल सब्जियां लाओ न।

नहीं मिली साबुन की टिक्की
कैसे रोज नहायें हम।
दंत मंजन के बिना आजकल
 मुख को कैसे छुपाएँ हम ।
नेकर भी बंदर ने फाड़ा,
नया हमें दिलवाओ न।
बापू काम पे .......
रिंकू टिंकू सीना गीता
रोज जलेवी खाते हैं ।
मेरी टूटी चप्पल देखके
बच्चे खूब चिढ़ाते हैं ।

पहले के जैसे तुम बापू
मां से चीले बनवाओ न ।
बापू काम पे.........

✍️ डॉ प्रीति हुंकार
 मुरादाबाद
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करते हैं तुझसे प्रार्थना |
    हे जगपिता......
         1
मेरे देश मे सदभाव हो l
नवचेतना का राग हो l
करें राष्ट्र की आराधना l
हे जगपिता...........
              2
मेरे देश मे सब स्वस्थ हों l
सब नवसृजन मे व्यस्त हों l
ज्योतिर्मई हो साधना l
हे जगपिता.........
             3
संसार मे कहीं हम रहें l
तेरी नज़र मे हम रहें l
हमें दुख भँवर से तारना l
हे जगपिता..........
 ✍️ अमितोष शर्मा
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आओ बच्चों तुम्हें सिखायें

पत्ते पे पत्ता
बेसन औ मसाला
संग चिपका

चलो पकाओ
पहले भाप फिर
तल के खाओ

नाम पतोड़
ये पात्रा रिकवँच
और तू जोड़

देखके आए
सबके मुँह पानी
सबको भाए

~ कंचन
आगरा
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गोल गोल मोती सी आँखे
आँखों में है चमक भरी,
सरर- सरर कर दौड़ लगाती
गज़ब की फुर्ती भरी हुई ,
भोली -भाली चितवन से तुम
लगती हो बड़ी क्यूट सी ,
एक-एक दाना उठा-उठा
नन्हें पंजों में भर लेती ,
इधर-उधर सब देखभाल कर
अपने मुख तक ले जाती ,
-गिल्लू रानी आज सैर पर ,
लगती है बड़ी स्वीट सी

✍️मनोरमा शर्मा
जट बाजार
अमरोहा
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बिल्ली मौसी बड़ी सयानी
चूहे से दोस्ती की ठानी
                                 
चूहे से बोली बाहर आ!
बिल में से मुँह को मत दिखला

तेरे लिए चॉकलेट लायी
ले जल्दी से खा ले भाई

चॉकलेट तो खिलवाओगी
फिर तुम मुझको खा जाओगी

✍️  स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
मुरादाबाद
9456222230

शुक्रवार, 12 जून 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष ईश्वर चंद्र गुप्त की कृति "चा का प्याला" के कुछ अंश--- उनकी यह कृति वर्ष 1994 में ईश प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुई थी।












::::प्रस्तुति::::::

डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822

प्रख्यात साहित्यकार बाबा नागार्जुन का मुरादाबाद से भी गहरा नाता रहा है । वह यहां कई बार आए। यहां वह प्रख्यात साहित्यकार यश भारती माहेश्वर तिवारी जी के गोकुलदास रोड स्थित प्रकाश भवन आवास पर ठहरते थे। वर्ष 1992 में भी उन्होंने यहां कुछ दिन प्रवास किया। इस दौरान 6 जून को कृषि एवं प्रौद्योगिक प्रदर्शनी मुरादाबाद की ओर से आयोजित कवि सम्मेलन में भी वह शामिल हुए। इस अवसर के दो दुर्लभ चित्र ------


मुरादाबाद की साहित्यकार विशाखा तिवारी की कविता------ हथेलियों में चाँदनी


तुमने जाना है मुझे
शायद
मुझसे भी अधिक
मेरे अपने को
पहचाना है उतना
जितना
नहीं पहचान पाया
कोई अपना
तुमने पढ़ा है मुझे
भीतर तक
परत-दर-परत
मेरे अभावों को
सम्पन्नताओं को
दुर्बलताओं को
लड़खड़ाहट को
पढ़ा है तुमने
हाँ केवल तुमने
तुम्ही तो हो
मेरे आत्मबल
मेरे स्वाभिमान के उत्प्रेरक
भर जाता है
एक नया उल्लास
धमनियों में
तुम्हारे स्पर्श मात्र से
नापने लगती हूँ
मन-प्राण की
अतल गहराईयां
एक नए उत्साह के साथ
तैयार पाती हूँ स्वयं को
एक नई यात्रा के लिए
तुम्हें गुनगुनाते हुए
भर जाती हूँ
नई ताज़गी से
खो जाती हूँ
सप्तस्वरों के विस्तार में
रच जाता है
एक संगीत
अक्षय जलधारा-सा
प्रवाहमान
बजने लगता है
धमनियों में मृदंग
गूँजने लगते हैं
बाँसुरी के स्वर
तब मैं
कसने लग जाती हूँ
सितार के तार-सी
तुम्हारे शब्द
बन जाते हैं झरने
जीवन की पहाड़ी से
झर-झर अविरल
झरने से
भींग जाता है तन-मन
उनकी फुहारों से
अँजुरी में भर लेती हूँ
उनका जल
और लगता है
जैसे
चाँदनी उतर आई है
हथेलियों में

✍️ विशाखा तिवारी
हरसिंगार, नवीन नगर
कांठ रोड, एमडीए
मुरादाबाद 244001