कुछ पहर और मेरी जां,मुझे जीना होगा,
तिरे ,इस ज़ुल्मों-सितम को मुझे पीना होगा.
तेरा हर ज़ुल्म मेरा हौसला बढ़ाता है,
हार तू जायेगा , इतना मुझे बताता है.
आज की रात सितम कर तुझे थक जाना है,
मुझको सहना है सितम, और मुझे बच जाना है.
काली लम्बी सही पर रात खत्म होती है,
ज़ुल्म की स्याही सिमिटती है,सुब्ह होती है.
खूब कुरेद मेरे घाव, मैं न चीखूंगा,
हार मानूंगा नहीं,अश्कों को मैं पी लूंगा.
तिरे इस ज़ुल्मो -सितम की मीयाद थोड़ी है,
कुछ घड़ी और है सहना, मेरी मजबूरी है.
मुझको उफ़ करना नहीं,ओंठ भींच लेने हैं,
अब मुझे दिखने वाले रॊशनी के घेरे हैं.
तू ज़ुल्म करके थक चुका,मगर मैं ज़िन्दा हूं,
आज पिंजड़ा है टूट जाना,वो परिन्दा हूं.
बस अभी आसमां में सुर्ख़ी उभर आयेगी,
हार जायेगा सितमगर,सहर हो जायेगी.
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