गुरुवार, 10 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष जिगर मुरादाबादी की पुण्यतिथि पर मुरादाबाद लिटरेरी क्लब द्वारा उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर ऑन लाइन साहित्यिक परिचर्चा


      वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा "विरासत जगमगाती है" शीर्षक के तहत 8 व 9 सितंबर 2020 को  मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार जिगर मुरादाबादी को उनकी बरसी पर याद किया गया। ग्रुप के सभी सदस्यों ने उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा की। उनकी बरसी 9 सितंबर को थी।
सबसे पहले ग्रुप एडमिन ज़िया ज़मीर ने उन के जीवन के बारे में विस्तार से जानकारी दी कि बीसवीं सदी के अज़ीम शायर जिगर मुरादाबादी का वास्तविक नाम अली सिकन्दर था। वो 1890 ई. में मुरादाबाद में पैदा हुए। जिगर को शायरी विरासत में मिली थी, उनके वालिद मौलवी अली नज़र शायर थे। जिगर की आरम्भिक शिक्षा घर पर और फिर मकतब में हुई। पहले वो अपने पिता से इस्लाह लेते थे। फिर “दाग” देहलवी, मुंशी अमीरुल्लाह “तस्लीम” और “रसा” रामपुरी को अपनी ग़ज़लें दिखाते रहे। जिगर को स्कूल के दिनों से ही शायरी का शौक़ पैदा हो गया था। जिगर आगरा की एक चश्मा बनानेवाली कंपनी के विक्रय एजेंट बन गए। इस काम में जिगर को जगह जगह घूम कर आर्डर लाने होते थे। शराब की लत वो विद्यार्थी जीवन ही में लगा चुके थे। उन दौरों में शायरी और शराब उनकी हमसफ़र रहती थी। जिगर बहुत हमदर्द इन्सान थे। किसी की तकलीफ़ उनसे नहीं देखी जाती थी, वो किसी से डरते भी नहीं थे। लखनऊ के वार फ़ंड के मुशायरे में, जिसकी सदारत एक अंग्रेज़ गवर्नर कर रहा था, उन्होंने अपनी नज़्म "क़हत-ए-बंगाल” पढ़ कर सनसनी मचा दी थी। कई रियासतों के प्रमुख उनको अपने दरबार से संबद्ध करना चाहते थे और उनकी शर्तों को मानने को तैयार थे लेकिन वो हमेशा इस तरह की पेशकश को टाल जाते थे। उनको पाकिस्तान की शहरीयत और ऐश-ओ-आराम की ज़िंदगी की ज़मानत दी गई तो साफ़ कह दिया जहां, पैदा हुआ हूँ वहीं मरूँगा। जिगर आख़िरी ज़माने में बहुत मज़हबी थे। उनके अत्यधिक प्रशंसित कविता संग्रह "आतिश-ए-गुल" के लिए उन्हें 1958 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। जिगर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इतिहास में केवल दूसरे कवि थे, जिन्हें  डी लिट की उपाधि से सम्मानित किया गया - इस सम्मान को प्राप्त करने वाले पहले शायर डॉ इक़बाल थे। उनका निधन गोंडा में 9 सितंबर 1960 में हुआ। जिगर मुरादाबादी का मज़ार, तोपखाना गोंडा में स्थित है।जिगर साहिब रिवायती शायरी के आख़िरी अज़ीम शायर हैं। जिगर साहिब उन चन्द अहद-साज़ शोअरा में शामिल हैं जिन्होंने बीसवीं सदी में ग़ज़ल के मेयार को गिरने नहीं दिया, बल्कि उसको ज़ुबानो-बयान के नये जहानों की सैर भी करायी, उसे नए लहजे और नए उसलूब से रूशनास भी कराया। जिगर साहब ने शायरी को इतना आसान करके दिखाया है और शेर कहने में ऐसा कमाल हासिल किया है कि उसे देख कर सिर्फ़ हैरत की जा सकती है। जिगर साहिब की लगभग हर ग़ज़ल में तीन-चार मतले मिलना आम बात है जबकि मतला कहना सबसे मुश्किल माना जाता है। यह शायरी बिला-शुबह अपने वक़्त की मुहब्बत की तारीख़ तो है ही मगर यह शायरी हर एहद के मुहब्बत करने वालों के दिलों में धड़कती है। हिज्र में तड़पती हुई रूहों को सहलाती है। हर एहद में मुहब्बत के लिए आमादा करती है।
प्रख्यात शायर और जिगर मुरादाबादी फाउंडेशन के अध्यक्ष मंसूर उस्मानी ने ख़िराजे-अक़ीदत पेश करते हुए कहा कि-
था जिसका इकतेदार ग़ज़ल के जहान पर,
उस जैसा बादशाह कहाँ अब नजर में है,
हालांकि उसको गुजरे जमाना हुआ मगर,
अब भी जिगर की टीस हमारे जिगर में है।
वरिष्ठ व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि जिगर साहब बीसवीं सदी के एक ऐसे शायर होकर सामने आये,जो अदब की दुनिया और समाज द्वारा खूब सराहे गए और आज भी उनकी सराहना बुलंदियों पर है। हर समय में अदब और साहित्य को बहुत कुछ देने वाले बहुत से कलमकार होते हैं,पर समाज के सिर चढ़कर बोलने वाले कम ही होते हैं। वह भारत की मिट्टी की आत्मा के शायर थे।
वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि जिगर मुरादाबादी को स्मरण करना मुरादाबाद के मस्ताना अंदाज को याद करना है।सादा मिजाज जिगर अपने घर को लगी आग में उम्र भर झुलसते रहे।  यहीं से शराब का दामन थाम लिया। शायरी में सूफियाना रंग मुरादाबाद की देन है। मुरादाबाद की कल्चर में जो हम आहंगी तबीयत का मिज़ाज है वही जिगर की शायरी में भौतिक और आध्यात्मिक स्वरूप में उभरा है।
मशहूर शायरा डॉ मीना नक़वी ने कहा कि -
शायर हैं, मुसाफ़िर हैं इसी राहगुज़र के
अशआर के पाँव में हैं छाले भी सफ़र के
ग़ज़लों में हमारे भी है कुछ रंगे- तगज़्ज़ुल
हे फ़ख़्र है  कि बाशिन्दा है हम शह् रे-जिगर  के
मशहूर शायर डॉ मुजाहिद फराज़ ने कहा कि मुरादाबाद की धरती अपने ऊपर जितना गर्व करे कम है कि उसे ग़ज़ल के बेताज बादशाह हज़रते जिगर मुरादाबादी की जन्मभूमि होने का गौरव प्राप्त है। यह जिगर मुरादाबादी ही हैं जिन्होंने मुरादाबाद का नाम अदब के हवाले से सारी दुनिया में रोशन किया है। साहित्य के मैदान में ऐसी शख़्सियात कम ही गुज़री हैं जिनकी रचनाओं और व्यक्तित्व में पूरी तरह समानता हो । जिगर साहब ऐसे ही गिने चुने शायरो में से एक हैं। जिगर ने अपनी शायरी के ज़रिए मोहब्बत का जो  पैग़ाम दिया है आज के माहौल में जब सियासत ने हर जगह नफ़रत के अलाव जला रखे हैं उनके पैगाम को आम करने की और भी अधिक ज़रूरत है।
प्रसिध्द नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा कि अनेक शायर हुए हैं जिन्होंने अपनी शायरी से हिन्दुस्तान की रूह को तर किया है, जिगर मुरादाबादी भी ऐसे ही अहम शायरों में शुमार होते हैं। अपनी खूबसूरत शायरी के दम पर मुहब्बतों का शायर कहलाने वाले जिगर के शे’र आज भी लोगों के दिलो-दिमाग़ में बसते हैं जो उन्हें बड़ा और अहम शायर बनाते हैं। जिगर साहब का शे’र पढ़ने का अन्दाज़ बेहद जादूभरा था और तरन्नुम लाजबाव। जिगर साहब के शेर पढ़ने के ढंग से उस दौर के नौजवान शायर इतने ज़यादा प्रभावित थे कि उनके जैसे शेर कहने और उन्हीं के अंदाज़ में शे’र पढ़ने की कोशिश किया करते थे।
मशहूर समीक्षक डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा कि बीसवीं शताब्दी में अली में सिकंदर जिगर मुरादाबादी ने अपनी ग़ज़लों की बुनियाद पर पूरी दुनिया में मुरादाबाद को साहित्यिक पहचान दिलवाई। जिगर ने अपना रंग-ओ-आहंग ख़ुद तय किया उन्होंने शायरी में किसी की पैरवी नहीं की। उन्होंने इश्क़ किया और सिर्फ इश्क़ किया। इश्क़ के रास्ते में जितने पड़ाव आये हर पड़ाव से उनकी शायरी का नया दौर शुरू हुआ। जिगर ने कभी बनावटी शायरी नहीं की बल्कि वह जिस दौर से गुजरे और जो उन्होंने महसूस किया उसे शेर की शक्ल में पेश कर दिया। जिगर की शायरी पर बहुत कुछ लिखा गया और बहुत कुछ लिखा जाता रहेगा।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि कीर्तिशेष जिगर मुरादाबादी जी जैसे ऐतिहासिक शायर को पढ़ना, उनकी रचनाओं को  किसी न किसी माध्यम से सुनना अर्थात् शायरी के एक पूरे युग से जुड़ना, उससे  साक्षात्कार करना।
युवा शायर नूर उज़्ज़मां नूर ने कहा कि यह कहना ग़लत होगा कि जिगर सिर्फ़ इश्क़ो मस्ती के शायर है। बेशक़ जिगर शराब औ शबाब में डूबे हुए हैं लेकिन ऐसा भी नहीं है कि वे अपने आसपास के माहोल से बे ख़बर हैं। वो कहते बंगाल जैसी नज़्म भी कहते हैं जिसमें उस वक़्त की अंग्रेज़ी सरकार को तंक़ीद का निशाना बनाते हैं। उन्होंने "गांधी जी की याद में" " ज़माने का आक़ा गुलामे ज़माना" "ग़ुज़र जा" "ऐलाने जम्हूरियत" जैसी नज़्में भी कही हैं। इन नज़्मों से हमें उनके सियासी शऊर का पता मिलता है। 60 साल गुज़र जाने के बाद भी अगर जिगर के शाइरी में आज भी नये पहलू तलाश किये जा रहे हैं तो ये उनके अज़ीम शाइर होने की ही निशानी है।
युवा कवि मयंक शर्मा ने कहा कि जिगर मुरादाबादी भी कई दूसरे बड़े शायरों की तरह ये भ्रम खड़ा करते हैं कि बेहतरीन शायरी का रास्ता शराबखाने से होकर गुज़रता है। जिगर साहब की शायरी को देखें तो उसमें अलग-अलग रंग दिखाई देते हैं। जिगर आशिक़ मिज़ाज इंसान थे। उन्होंने मेहबूब को टूटकर चाहा। उनके नाम के आगे लिखा मुरादाबादी हमें ये गर्व कराता है कि जिगर साहब हमारे हैं और अपने कलामों से हमेशा हमारे भीतर ज़िन्दा रहेंगे।
युवा कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने कहा कि जिगर साहब की परंपरागत शाइरी हुस्न,इश्क ,ग़म और सादगी में लिपटी  और आधुनिकता का टच लिये हुए है।उनकी रिवायती ग़ज़लों का बेपनाह हुस्न जब चाहने वालों के बीच आया तो दीवानों के मेले लगने लगे।जिगर साहब का मस्तमौला और बेपरवाह ज़िंदगी जीने का अंदाज़ उनकी कलम में भी दिखता है। जब जब दीवाने मुहब्बत करेंगे, तब तब जिगर साहब के शेर पढ़कर ही मुहब्बत के दरिया में  पहला गोता लगाकर ,अपनी मुहब्बत का आगाज़ करते हुए, मुकम्मल करने की कसमे खायेंगे। जिगर मुरादाबादी शाइरी के आसमान में  चमकते रहेंगे।
युवा कवि दुष्यंत कुमार ने कहा कि आली मोहतरम जिगर मुरादाबादी बीसवीं सदी के मुकम्मल गजल लिखने वाले शायर माने जाते हैं। साधारण शिक्षा के बावजूद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ने उन्हें सम्मान स्वरूप डी-लिट की उपाधि से नवाजा। 'जिगर' जब शेर कहना शुरू करते तो लोगों पर जादू सा छा जाता। जिगर उन भाग्यशाली शायरों में से हैं जिनकी रचना उनके जीवनकाल में ही 'क्लासिक' माने जाने लगी।           
युवा और साहित्यिक पत्रकार अभिनव चौहान ने कहा कि जिगर मुरादाबादी शायरों को पेमेंट देने की हिमायत करने वाले पहले शायर थे। मुशायरों में उनसे पहले किसी ने यह मांग नहीं की थी। लेकिन उन्होंने अपने कलाम पेश करने की एवज़ में पेमेंट की परंपरा शुरू की। अतिश्योक्ति न होगी यह कहना कि इसी चलन के कारन सिनेमा में गीतकारों को पूरा सम्मान और बेहतर पारिश्रमिक दिया जाने लगा था। मोहब्बत और अना के शेरों में अक्सर उनका हवाला दिया जाता है।

:::::::::प्रस्तुति::::::::
ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
मुरादाबाद लिटरेरी क्लब
मो०8755681225

बुधवार, 9 सितंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की कहानी ------- कलाकार का दर्द


      हरिराम जी उदास बैठे हुए थे ।आखिर क्यों न हों! भादो का महीना आ गया और क्वार में रामलीला शुरू होने वाली थी लेकिन कोरोना के चक्कर में सारे काम रुके पड़े हैं। कलाकारों के लिए तो साल में यही एक मौका आता है, जब उनकी कुछ आमदनी हो जाती है और रामलीला मंडली की कुछ आमदनी होती है तथा साल भर का गुजारा उससे चल जाता है । इसी उधेड़बुन में हरिराम जी अपने घर के आँगन में चारपाई पर चिंता की मुद्रा में बैठे हुए थे । यही सोच विचार चल रहा था कि पता नहीं यह साल कैसा बीते ? अगर पिछली जैसी बात होती, तब तो अब तक मंडली बुक हो गई होती और उनके पास भरपूर एडवांस भी आ गया होता । लेकिन इस बार तो छोटे-छोटे कार्यक्रमों के लिए भी कहीं से कोई बुलावा नहीं आ रहा है । मंडली में जितने कलाकार हैं, सभी लोग लगभग रोजाना ही मिलते हैं और पूछते हैं कि कहीं से कोई मंडली पक्की होने का समाचार मिला ? हरिराम जी सबको बता देते हैं कि भैया काम धंधा ठंडा पड़ा हुआ है । सबके चेहरे लटक जाते हैं ।
           इसी चिंतन में बैठे - बैठे सामने से तीन चार कलाकार आए और हरिराम जी के पास आकर बैठ गए।  एक कहने लगा "भाई साहब सारी दुर्गति हम कलाकारों की ही रह गई है वरना सड़क पर न कोई मास्क लगाता है , न सामाजिक दूरी का पालन करता है। सब कुछ बस हमारी मंडली अपनी कला का प्रदर्शन कर दे, इसी पर पाबंदियाँ रह गई हैं ?"
         हरिराम जी ने कहा "सरकार कुछ सोच समझकर ही कर रही होगी ?"
      "क्या खाक सोच समझकर कर रही है। हमारे बच्चे भूखों मर रहे हैं और कहीं कोई लीला होती हुई नजर नहीं आ रही है । "
                "यह तो बात सही है"- एक अन्य आगंतुक ने सहमति का स्वर मिलाते हुए कहा । "अगर रामलीला हो जाए तो हम दर्शकों को मास्क पहना देंगे और सामाजिक दूरी का पालन भी करवा देंगे। कुछ तो काम धंधा चले ! "
        हरिराम जी बोले " दशहरे का मेला भी लगवा दोगे। सोशल डिस्टेंसिंग उसमें भी करा देना।"
      एक कलाकार ने कहा "कमाल है हरी बाबू ! आप स्वयं कलाकार होते हुए भी चीज का मजाक बना रहे हैं ? "
       हरिराम जी ने गंभीरता से कहा "दुखी मैं भी कम नहीं हूँ। लेकिन मैं समझ रहा हूँ कि हम न तो लोगों को मास्क पहनना पाएँगे और न सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करा पाएँगे । कितने लोग मास्क पहनते हैं ? और जो पहनते हैं ,वह भी केवल नाम - मात्र के लिए चेहरे पर लटका लेते हैं । ऐसे क्या कोरोना से बच पाएँगे ? हम अपने आप को धोखा न दें। अपने कारोबार को शुरू करने के चक्कर में पूरे समाज में हम कोरोना फैला देंगे तो क्या हमारे भीतर का कलाकार हमें दोषी नहीं ठहराएगा ? अभी कल ही मेरी चचेरी बहन की मृत्यु हो गई थी । फोन आया था और भी दसियों लोगों की मृत्यु जान - पहचान में अथवा अनजाने लोगों की हो रही है । क्या धनी और क्या निर्धन ,सबको कोरोना खा रहा है। गंभीर बीमारी है । अगर फैल गई तो कौन बचेगा ? क्या हम अपने काम - धंधे के लिए पूरे समाज को परेशानी में डालना स्वीकार करेंगे ?"
      हरिराम जी ने इतना कहकर चुप्पी साध ली और फिर काफी देर तक कोई कुछ नहीं बोला । उसके बाद सब उठ कर अपने - अपने घर चले गए । हरिराम जी अकेले रह गए और उसके बाद फफक कर रोने लगे।

✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
 रामपुर (उत्तर प्रदेश)
 मोबाइल 999761 5451

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ------ बिन बुलाए मेहमान


     .... "कितनी देर से डोर बेल बज रही है देखते क्यों नहीं कौन आया है?"
     "अरे भटनागर साहब आइए" !
'"भाभी जी बिटिया की शादी है यह रहा कार्ड राही गेस्ट हाउस में आप सभी का बहुत-बहुत आशीर्वाद चाहिए कुछ भी हो जाय समय से आ जाना" !!
      " बिल्कुल भाई साहब बिटिया की शादी हो और हम ना पहुंचे ? भला हो सकता है यह?"
             
 "अंकल जी नमस्ते!,, खाना खाते हुए ही  विकल ने मुझे नमस्ते की ।
,,नमस्ते बेटा,,,! और कौन-कौन आया है? मैंने भी विकल की नमस्ते का जवाब देते हुए पूछा ।,, अंकल सभी आए हैं मम्मी पापा भैया !!
       ......और बताओ कैसे हो? आपस में बातें करते करते सब लोग खाना खाने लगे वैसे तो सभी जगह शादियों में खाना अच्छा ही होता है परंतु यहां और भी ज्यादा उच्च कोटि के व्यंजन दिखाई पड़ रहे थे सभी लोग रुचि अनुसार भोजन का रसास्वादन कर भोजन कर रहे थे ।
       अंत में आइसक्रीम पार्लर से आइसक्रीम ले खाने को संपूर्णता प्रदान कर सभी पड़ोसी लिफाफा देने के लिए भटनागर साहब को खोजने लगे परन्तु भटनागर साहब का कहीं पता नहीं था।अब महिलाएं श्रीमती भटनागर को ढूंढने लगी परन्तु वह  भी कहीं दिखाई नहीं पड़ीं ।
    ....जहां दोनों पक्ष मिलकर एक ही जगह  भोज का आयोजन करते हैं वहां अक्सर इस प्रकार की समस्या आती ही है ... सामने एक टेबल पर सभी के लिफाफे लिए जा रहे थे सभी लोगों ने अपने लिफाफे वहीं दे दिए  .... लिफाफे गिनने पर बैठा व्यक्ति एक दूसरे संभ्रांत व्यक्ति के कान में फुसफुसा रहा था कार्ड तो एक हजार ही बांटे थे अब तक ढाई हजार लिफाफे आ चुके हैं  सचमुच किसी ने सही कहा है शादियों में कन्याओं का भाग काम करता है ..... वरना भला ऐसा कहीं हुआ है की 1000 कार्ड बांटने पर ढाई हजार से ज्यादा लिफाफे आ जाएं ....तभी वहीं चीफ कैटर( जिसको कैटरिंग का ठेका दिया था) आया और उन्ही दोनों लोगों से धीरे धीरे परन्तु आक्रोश में कह रहा था "यह बात बहुत गलत है  ! साहब जी ! मुझे 12 सौ लोगों का भोजन प्रबंध करने के लिए कहा गया था आपके यहां ढाई हजार से ज्यादा लोग अब तक भोजन कर चुके हैं सारा खाना समाप्त हो गया है अब मेरे बस का प्रबंध करना नहीं है मैंने खुद खूब बढ़ाकर इंतजाम किया था परंतु इतना अंतर थोड़ी होता है 100 -50 आदमी बढ़ जाएं चलता है .... मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं है अब..... आप स्वयं जानें...
....... रात्रि के 11:00 बज चुके थे घर भी जाना था सब ने अपनी अपनी गाड़ियां निकालीं और घर की ओर चलने लगे.......
.... जब बाहर निकल रहे थे तभी अचानक दूल्हे पर नजर पड़ी दूल्हा गोरा चिट्टा शानदार वेशभूषा में तलवार लगाएं घर वाले भी सभी राजसी पोशाकें पहने जम रहे थे जैसे किसी राजघराने की शादी हो.... सभी लोग आपस में बात करते हुए जा रहे थे "कुछ भी हो भटनागर साहब ने घराना  तो बहुत अच्छा ढूंढा."..... "हां भाई साहब बहुत शानदार शादी हो रही है"!!
   ..... निकलते निकलते मन हुआ द्वार पूजा तो देख लें परन्तु गाड़ियां धीरे धीरे बाहर निकल रहीं थीं..... चलते चलते उड़ती नज़र लड़की के पिता के स्थान पर मौजूद व्यक्ति पर पड़ी तो लगा वह भटनागर साहब नहीं थे.........फिर सोचा हमें कहीं धोखा लगा होगा....
...... परंतु राही होटल से निकलने के बाद कुछ आगे चलकर एक और होटल पड़ा उसका नाम भी राही ही लिखा  हुआ था...... यह देखकर माथा कुछ ठनका सोचते सोचते घर पहुंच गए सभी पड़ोसी लोग  आपस में बातें कर रहे थे कि भटनागर साहब क्यों नहीं मिले ?ऐसा कहीं होता है कि मेहमानों से मिलो ही नहीं ! यह बात किसी को भी अच्छी नहीं लग रही थी.....
........अगले दिन भटनागर साहब गुस्से में सबसे शिकायत कर रहे थे कि "आप लोगों में से कोई भी नहीं पहुंचा.!!!.... भला यह भी कोई बात हुई  सारा खाना बर्बाद हुआ..!!!.... सभी पड़ोसी लोग एक दूसरे का मुंह देख कर मामले को समझने का प्रयत्न कर रहे थे...... आखिर सब लोग किसकी  दावत में शामिल हो गए और व्यवहार के लिफाफे किनको।   थमा कर चले आये......
      ‌.... चौंकने का समय तो अब आया जब अखबार में पढ़ा "राही होटल में शादी में खाना कम पड़ जाने के कारण बरातियों ने हंगामा काटा !! प्लेटें फेंकी .....नाराज़ होकर दूल्हे सहित बरात बिना  शादी किए लौटी !!! ...सभी पड़ोसी स्तब्ध थे.......
                 
 ✍️  अशोक विद्रोही
412 प्रकाश नगर
 मुरादाबाद
82 188 25 541

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा ------ 'टूटते ख्वाब '


मीतु सिर पर रखे पल्लू को संभालती हुई रसोई में इधर से उधर जल्दी जल्दी चलते हुए खाना बनाती जा रही थी. शादी के बाद आज उसकी पहली रसोई थी उसे बहुत डर लग रहा था कि वह सही से खाना बना भी पाएगी या नहीं?
उसे याद है कि वह अपने मायके में खाना बनाने के उद्देश्य से बहुत ही कम गई थी बस मम्मी जब खाना बनाती थी तब उनको यह बना दो वो बना दो यही कहने जाती थी और मम्मी भी हँसते हुए अपनी गुड़िया के पसंद के पकवान बनाकर बहुत ही खुशी महसूस करती थीं.
"बहू जल्दी करो सब लोग आ चुके हैं खाने के लिये l"
सासू माँ ने कड़क आवाज मे कहा.
"जी मम्मी जी अभी बस थोड़ी देर मे तैयार करने वाली हूँ खाना l" उसने सहमते हुए कहा.
"हमारी बहु तो बहुत ही अच्छा खाना बनाती है.... उसने तो कुकिंग का कोर्स किया है न!" मिसेज गुप्ता ने खुश होते हुए कहा. सुनकर सभी मुस्कराने लगे.
मीतु ने टेबल पर खाना रख दिया और सभी चटकारे ले लेकर खाने लगे.
खाना लजीज बना हुआ था कोई कुछ नहीं बोला हाँ सासू माँ ने इतना जरूर कहा.
" खाना बनाना कोई बड़ी बात थोड़े ही नहीं है सभी बना लेते हैं l"
सुनकर सभी ने हाँ मे हां मिला दी और खाकर मीतु को गिफ्ट आदि देकर चली गईं.
मीतु को अच्छा लगा... खुशी महसूस हुई कि उसने सबके लिए अच्छा खाना बनाया.
वह जो भी अच्छा काम करती उसके लिए तो ससुराल मे कोई कुछ नहीं कहता उत्साहजनक शब्द सुनाने को उसके कान तरस गए थे और गलतियों को ऎसे उछाला जाता जैसे उसने पता नहीं कितना बड़ा अपराध कर दिया.
धीरे धीरे उसको भी सुनने की आदत सी हो गई किसी से कोई उम्मीद ही नहीं रही कि कोई उसके अच्छे काम के लिए दो उत्साहवर्धक शब्द भी बोलेगा.
धीरे  धीरे उसको लगने लगा कि कमी उसमें ही है वह डिप्रेशन में आ गई और कॉन्फिडेंस तो जैसे छूमंतर ही हो गया.
शादी से पहले वह कितनी खुश थी लगता था माँनो वह कहीं की महारानी बनने जा रही हैं सभी उसको प्यार करेंगे उसके अच्छे आचरण और व्यवहार के लिए मगर यहां तो सब कुछ उल्टा ही था.
ख्वाबों को टूटते हुए देखकर उसकी आँखें भर आतीं .
 ✍️ राशि सिंह
मुरादाबाद उत्तर प्रदेश

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद सम्भल) निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघुकथा -------- फरमाबरदार बीवी


     कहना न मानने पर जमील मियां ने पहली बीवी को तलाक़ दे दिया था .अब वह चाहते थे कि उन्हें ऐसी बीवी मिले जो उनका हर हुक्म बजा लाये . जल्द ही उनकी यह ख्वाहिश पूरी हो गई उनकी रिश्ते की खाला नईमा ने अपने मौहल्ले की सीधी सादी लड़की रमशा से उनकी शादी करा दी.  रमशा जमील मियां का हर हुक्म बिना चूं चरा के बजा लाती थी . जमील मियां भी खुश थे कि उन्हें कितनी कहना मानने वाली बीवी मिली है. मौहल्ले में भी चर्चा थी कि जमील मियां की दूसरी बीवी बड़ी फरमाबरदार है. बुधवार को दफ्तर से घर आये जमील मियां कुछ झल्लाये हुए थे . उनके आने पर रोज़ाना की तरह शीशे के गिलास में पानी लेकर आई रमशा उनके पास आकर बोली -'लीजिये पानी ' 'रख दो ' झल्लाये जमील मियां ने जवाब दिया. 'कहाँ?'रमशा ने फिर सवाल दाग दिया. गुस्साए जमील मियां ने कहा -'मेरे सर पे दे मारो ' इतना सुनते ही फरमाबरदार  रमशा ने शीशे का गिलास जमील मियां के सर पर दे मारा।
 
✍️  कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
प्रधानाचार्य, अम्बेडकर हाई स्कूल बरखेड़ा
सिरसी (सम्भल)
9456031926

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा ----हार की खुशी


सुखवीर हॉकी का बेहतरीन खिलाड़ी था। आसपास के कई जिलों में उसकी टक्कर का कोई नहीं था। वो एक अच्छा कोच भी था। दूर दूर से युवा ,उसके पास हॉकी सीखने के लिए आते थे। वो सबको बड़ी लगन और मेहनत से सिखाता था।
  पिछले दिनों उसकी टीम का मैच पड़ोसी ज़िले की टीम के साथ हुआ। मैच में पूरे समय रोमांचक खेल चल रहा था।आखिरी क्षणों में विपक्षी टीम ने एकजुट होकर अपनी पूरी ताकत लगा दी और एक गोल ठोक कर जीत हासिल कर ली। पूरे स्टेडियम में सन्नाटा छा गया। लोग विश्वास नही कर पा रहे थे कि जिस टीम में सुखवीर जैसा खिलाड़ी हो,वो टीम हार गई है।उदासी और मायूसी से सब के चेहरे लटके हुऐ थे लेकिन सुखवीर को मन ही मन खुशी महसूस हो रही थी,क्योंकि जीतने वाली टीम के सभी खिलाड़ियों को उसने ही खेलना सिखाया था ।

✍️  डॉ पुनीत कुमार
T -2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद - 244001
M  - 9837189600

मंगलवार, 8 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की लघुकथा ------ कमीशन


  डॉक्टर साहब खाली टाइम में बैठे अपने दोनो कंपाउंडर से बात कर रहे थे ।डॉक्टर साहब का नया अस्पताल बन रहा था और वह कंपाउंडरो को समझा रहे थे कि किस प्रकार से व्यवस्था को संभालना है । डॉक्टर साहब ने अपने कंपाउंडर सुशील से कहा मैं तो दुखी हो गया हूं, इनमें मिस्त्रीयों से और लकड़ी के काम करने वालों से जहां देखो कमीशन का माहौल बना रखा है।  जो भी सामान खरीदने जाता हूं , इन लोगों का कमीशन वहां पर सेट होता है इस हिसाब से तो मुझे नए अस्पताल में बहुत पैसा खर्च करना पड़ेगा । अभी यह बात चल ही रही थी कि अचानक डॉक्टर साहब के पास एक जनाना मरीज आ गया । डॉक्टर साहब ने फौरन अपनी वाइफ को बुलाया और उन्हें मरीज को लेबर रूम में शिफ्ट कर दिया । डॉक्टर साहब की वाइफ जो कि एक महिला डाक्टर थी,   मरीज को देखने लगी, कुछ ही देर में डॉक्टर साहब के केबिन में एक बैग टांगे आशा वर्कर का प्रवेश हुआ आशा के आते ही डॉक्टर साहब ने कहा आओ शीला बैठो तुम्हारे मरीज को क्या परेशानी है  बताओ । आशा वर्कर ने कहा इसका डिलीवरी का टाइम है और मैं भाभी जी से इसका प्रसव कराने के लिए लाई हूं । कुछ देर पश्चात आशा वर्कर ने अपनी ड्यूटी का हवाला देते हुए डाक्टर  साहब से जाने की इजाजत मांगी और जाते-जाते डॉक्टर साहब से बोली डॉक्टर साहब मेरे कमीशन का ध्यान रखना अब तो मैं लगातार आपके पास केस लेकर आती हूं । कंपाउंडर सुशील के सामने इस तरह के शब्द सुनकर डॉक्टर साहब कुछ असहज से हुए । यह कह आशा वर्कर तो चली गई लेकिन कंपाउंडर सुशील डॉक्टर साहब को नजरें गड़ाए देख रहा था। डाक्टर साहब भी कंपाउंडर सुशील से नजर बचाते हुए अपने काम में व्यस्त हो गए ।


✍️ विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
Vivekahuja288@gmail.com

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर की लघुकथा -----भुखमरी


"धप्प...." की आवाज़ के साथ उन्होंने भोजन से आधी भरी प्लेट डस्टबिन के हवाले की और 'देश में भुखमरी' विषय पर अपना आलेख पूरा करने में लग गए।

✍️राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद सम्भल) के साहित्यकार धर्मेंद्र सिंह राजौरा की लघुकथा ----धूल


नन्ही जया अपने घर के आंगन में खेल रही थी तभी बाहर से आती एक मधुर ध्वनि  उसके कानों में पड़ी| ध्वनि सुनकर जया मचल उठी|   गली में फेरीवाला 'आइसक्रीम वाला' कहकर आइसक्रीम बेच रहा था | बरामदे में उसकी दादी पुराने कपड़े सिल रही थीं| जया उनके पास गई और बड़े आतुर भाव से उनके कान में कुछ कहा|
" अपने बाप से जा कर ले" दादी ने कहा था|
 जया  मायूस हो गई बच्ची को उदास देखकर दादी उठी और खुंटी पर टंगे  अपने पति के कुर्ते को ले आईं जो उन्हें  सिलना भी था ,अचानक दादी ने जया को पुकारा और 10 का नोट दे दिया जो उन्हें कुर्ते से मिला था | जया खुशी से कूदती घर से बाहर चली गई और आइसक्रीम ले आई एक अपने लिए और एक अपने भाई के लिए |
थोड़ी देर बाद जया के दादाजी घर आए उन्होंने सिला कुरता देखा लेकिन जेब खाली देखकर व्यग्र हो  उठे
" इसमें कुछ पैसे थे "उन्होंने अपनी पत्नी से पूछा
"10 का नोट निकला था उससे बच्चों ने आइसक्रीम ले ली " जया की दादी ने जवाब दिया
 "अब मैं बीड़ी किससे लाऊंगा मेरे पास एक पैसा भी नहीं  है|"
 " बच्चे जिद कर रहे थे मैंने पैसे दे दिए|"
"अच्छा किया ! मैं पूरे दिन खेतों में बैल की तरह कमाता हूं , एक दो बीड़ी पी लेता हूं तो क्या गुनाह  है? "
   "थूकते खांसते तो फिरते हो गली मोहल्ले में ,आज बच्चों ने कुछ खा लिया तो क्या गुनाह कर दिया ? बीड़ी पीने से क्या होता है ,कम से कम बच्चों ने कुछ  पेट में तो खाया|"
 बलधारी सिंह निरुत्तर थे और इससे पहले उन्होंने अपनी पत्नी को कभी इतना मुखर नहीं देखा वह  उदास होकर खटिया पर जा बैठे|
 पड़ोस के वकील चाचा उनके पास आए और उन्होंने दो बीड़ी  जलाकर एक बलधारी सिंह को दे दी |बलधारी जी ने एक दम लगाया लेकिन आज उन्हें बीड़ी का स्वाद कसैला लगा| उन्होंने  बीड़ी तोड़ कर फेंक दी , वकील चाचा आश्चर्य से देखते रह गए| बलधारी उठे और अपनी बैठक में चले गए | सामने की अलमारी में भगवान राम का चित्र लगा हुआ था और नीचे  मानस का गुटका रखा  था | बलधारी जी ने देखा गुटके पर धूल जमी हुई थी उन्होंने उस पवित्र पुस्तक को उठाया और अपने कुर्ते से साफ किया फिर उन्होंने गुटका यथा स्थान रख दिया और तस्वीर के सामने नतमस्तक हो गए| उनके अंतस से भी धूल हट चुकी थी गुटके की मानिन्द|
                   
 ✍️ धर्मेंद्र सिंह राजौरा
बहजोई

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा ----- गुलाबी साड़ी


गुलाबी साड़ी बहुत फबती थी माधुरी पर........जब भी वह गुलाबी साड़ी पहनती राजेश तो उन्हें ही देखते रहते।राजेश माधुरी के पति थे जो अब रिटायर हो चुके थे और पत्नी माधुरी के साथ शांताकुंज के निजनिवास में रहते थे।जिस दिन माधुरी गुलाबी साड़ी पहन लेती वह भूल जाते कि अब वह रिटायर हो चुके है ,उन्हें ऐसा लगता जैसे माधुरी नयी नवेली दुल्हन है और उन्हें वही दिन याद आ जाते जब वह माधुरी के साथ शहर में अकेले आए थे जबकि उनका बेटा अमन भी अब शिक्षा दीक्षा पूर्ण कर दिल्ली में उच्च कम्पनी में कार्यरत था और वही अपनी बीवी के साथ रहता था ।पर राजेश की दुनिया तो माधुरी में बसी थी ।कितनी सुंदर लगती हो तुम आज भी .......और गुलाबी साड़ी में तो तुम्हारा गोरा रंग ऐसे चमकता है जैसे गुलाब को दूध में भीगो दिया हो ।’इस उम्र में भी आप ......रहने दो ।पोते खिलाने की उम्र में ये बातें शोभा देती है क्या........’माधुरी पति राजेश को कहती रहती कि आपका ध्यान बस मुझपर ही रहता है।समय का लेकिन कुछ नही पता ........राजेश को दिल का दौरा पड़ा....माधुरी अकेली रह गयी ।बेटा अमन अपनी माँ को दिल्ली ले आया।अमन अपनी माँ का बहुत ध्यान रखता था ....समय गुज़रता गया ।’माँ आज शाम को मेरे दोस्त की बहन की शादी है ।सब चलेंगे आप तैयार हो जाना।’अमन कहते हुए ऑफ़िस चला गया ।’सब हो गये तैयार ,लुकिंग वेरी ब्यूटिफ़ुल डियर........’अमन ने अपनी पत्नी को देखते ही कहा।माँ ...चलो बैठो कार में ....
कार में बैठ माधुरी की आँखे भीग गयी ,वह चुपचाप अपनी हल्के रंग की गुलाबी साड़ी को देख रही थी जो
कुछ सुनने का इंतज़ार कर रही थी .........
गुलाबी साड़ी में तो तुम्हारा रंग................
पर यह कहने वाला तो बहुत दूर जा चुका था............
                                                               
✍️ प्रीति चौधरी
गजरौला ,अमरोहा

मुरादाबाद की साहित्यकार स्वदेश सिंह की लघुकथा ---पश्चाताप


     जब मंच से स्वाति का नाम पुकारा गया तो पूरा  हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से भर गया। यह सब देख कर रश्मि की आँखों से आँसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे।.... आज उसके जीवन की तपस्या पूरी हुई । आज उसकी बेटी ने   उत्तर प्रदेश  हाईस्कूल बोर्ड  परीक्षा की मेरिट में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। जिसके कारण आज उसे जिलाधिकारी द्वारा सम्मानित किया जा रहा है।....उसने अपने विद्यालय के साथ- साथ अपने जिले का नाम भी रोशन किया है ।... जिलाधिकारी ने स्वाति  को गोल्ड मेडल पहनाया और शील्ड दी। जिसे देखते - देखते रश्मि अपने अतीत में खो गई।....... रश्मि अपने समय की प्रतिभाशाली छात्रा रही थी।.... वह हर कक्षा में प्रथम आती थी और उसे भी अनेकों बार गोल्ड मेडल और शील्ड प्राप्त हुई थी ।...परंतु अपनी एक गलती के कारण उसने अपना सभी मान- सम्मान खो दिया ।उसने एक  लड़के के साथ  प्रेम विवाह घर से भाग  कर किया था । .... जो कि उसके माता पिता को बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्होंने उससे  संबंध तोड़ लिए थे।
 स्पीकर ने मंच से जब स्वाति की माँ का नाम पुकारा तो... अपना नाम सुनकर रश्मि की तंद्रा  भंग हुई वह मंच पर गई और मंच पर जाकर माइक से बोलते हुए कहा कि हमेशा अपने माता-पिता का कहना मानना चाहिए।.. क्योंकि माता- पिता ही आपको सही रास्ते पर चलना सिखाते हैं ।...और उनके बताए रास्ते पर चलने से ही जीवन की सभी खुशियाँ प्राप्त होती हैं।  यह कहकर फूट-फूट कर रोने लगी क्योंकि 25 साल से मन में दबा हुआ गुबार निकाला और पश्चाताप की आग जो कि उसके सीने में जल रही थी ,आज  शांत हुई । रश्मि के माता -पिता भी समारोह में शामिल थे  जब उन्होने  अपनी बेटी को इस तरह रोते बिलखते देखा तो उनका 25 साल पुराना गुस्सा भी उनके आंसुओं में बह गया और उन्होंने मंच पर आकर अपनी बेटी को गले लगा लिया ।

✍️  स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
 मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेन्द्र शर्मा सागर की लघुकथा ----- शहीद


"ये जवान जो बॉर्डर पर लड़ते हुए शहीद हुआ है, ये हमारे गाँव का गौरव है। हम इसके नाम पर गाँव के विकास के लिए योजनाएं लाएँगे।" एक नेता जी ने तिरंगे में लिपटे फौजी के शव की ओर इशारा करके कहा।
"ये  फौजी हमारी कौम का था, हमारी कौम का नाम रौशन किया है इसने। हम इसके नाम से बड़ा स्मारक बनवाएंगे।" तभी दूसरे नेताजी खड़े होकर बोले।
"अरे मंत्री जी आ गए...", तभी एक शोर उठा।
"ये जवान जो पड़ोसी मुल्क से की जा रही गोलाबारी का सामना बहादुरी से करते हुए शहीद हुआ है, ये हमारे क्षेत्र का है। जिसने हमारे क्षेत्र का मान बढ़ाया है। मैं सरकार में मन्त्री होने के नाते ये घोषणा करता हूँ इनके घर की तरफ आने वाली सड़क को चौड़ा करके मुख्य मार्ग से जोड़ा जाएगा और इस रोड का नाम इस शहीद के नाम पर होगा।
और जैसा कि हमारे साथी विपक्षी नेता जी ने अभी कहा था तो मैं इनके घर को स्मारक बनाने के लिए फंड दिलाने का आश्वासन देता हूँ।"
नेता जी की जय, मंत्रीजी जिंदाबाद के नारों के बीच बेटे के कफ़न-दफन का इंतज़ाम करता उसका बाप अब मन ही मन अपने रहने के इंतज़ार के बारे में भी सोच रहा था।

 ✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की कहानी ---- मां

   
राजू की पत्नी रमा चीख-चीख कर अम्मा-अम्मा की आवाज़ लगा रही थी और सोच रही थी कि बुढ़िया कहाँ मर गई।घर का सारा काम पड़ा है,बच्चे भी स्कूल से लौट रहे होंगे उनके लिए भी नाश्ता-पानी कुछ तैयार नहीं है।मैं भी अभी अभी स्कूल से लौटी हूँ।मैं क्या-क्या काम करूं।बर्तन माँजूं ,रसोई साफ करूं या इस कामचोर बुढ़िया को बैठकर कोसूं।
        आवाज़ सुनकर अम्मा जो तेज़ बुखार/सरदर्द के कारण पैरासिटामोल की गोली लेकर लेट गई थी उससे कुछ आराम मिला तो नींद आ गई हड़बड़ाकर उठी और डरते-डरते बहू के पास पहुंची और बोली बहू क्यों परेशान हो रही हो।मैं  जब कपड़े धोकर सुखाने डाल रही थी तभी अचानक तेज सरदर्द के कारण दवा लेकर लेट गई बुखार होने के कारण कुछ करने का मन नहीं हुआ।
       बहू इतना सुन आग बबूला होकर बोली बुढ़िया तू बहाने मत बना हल्का बुखार ही तो था,मर तो नहीं रही थी।सारे घर का काम कौन करेगा।मैं भी हारी-थकी आई हूँ। मेरी एक प्याली चाय और बच्चों के लिए शाम के नाश्ते की जरूरत तुझे दिखाई नहीं देती क्या,,
     अम्मा हिम्मत करके बोली बहू इसमें इतना नाराज़ होने की क्या जरूरत धीरे से भी तो कह सकती हो।चल-चल ज्यादा ज़ुबान मत लड़ा रसोई में जाकर चाय -नाश्ता बना।सब कुछ दस मिनट में हो जाना चाहिए।
        इतने में रमा का पति राजू भी ऑफिस से लौटआया। रमा की तरफ देखकर बोला डार्लिंग तुम्हारा मूड आज कुछ उखड़ा-उखड़ा लग रहा है क्या कोई बात हो गई।रमा ने राजू को अपनी ओर झुकते हुए देख आंखों में घड़ियाली आंसू भरकर अम्मा के बारे में न जाने कितनी झूठी बातों को भी सच का लबादा उढ़ाकर अपनी जान का दुश्मन तक कह डाला।
     राजू ने आव देखा न ताव लगा अम्मा पर बरसने।अम्मा को झूठी ,कामचोर,हरामखोर,निकम्मीऔर न जाने क्या-क्या कहते हुए उसपर चप्पल तान कर मारने को उतारू हो गया। अम्मा भी अपनी सफाई में कुछ कहना चाह रही थी मगर उसकी बात तो राजू के गुस्से   की आग में घी का काम कर रही थी।हारकर माँ चुप हो गई और आंखों में आंसू भर कर बेमन से काम में जुट गई।
      अब तो यह रवैया रोज़ का ही  अंग बनता जा रहा था।यहां तक कि बहू भी अम्मा पर हाथ छोड़ने में संकोच न करती।यह बात वहां के संभ्रांत नागरिकों को  अखरने लगी परंतु वे इसे उस परिवार का निजी मामला मानकर चुप रहते।
        परंतु जब उस असहाय अम्मा पर ज्यादतियों की रफ्तार इतनी बढ़ गई कि अम्मा की चीखों को घर के खिड़की,दरवाजे भी रोकने में नाकाम होने लगे तो किसी ने चुपके से सौ नंबर पुलिस को सूचित करके सारी व्यथा कथा से अवगत करा दिया।
    चंद मिनटों के पश्चात ही पुलिस  ने राजू के घर का दरवाजा खटखटाया और बाहर आने को कहा।तुरंत राजू ने पत्नी के साथ डरते-डरते दरवाजा खोला और बाहर आकर पुलिस वालों से आने का कारण पूछा तब पुलिस वालों ने उनसे थाने चलने को कहते हुए कहा हमारे पास आपके विरुद्ध माँ के साथ दुर्व्यवहार करने की शिकायत दर्ज है।आप लोग माँ के साथ मार पीट करते हैं तथा उनसे घर का सारा काम करने का दवाब बनाकर उनको शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताड़ित करते हैं।
     राजू और उसकी पत्नी ने कुछ कहना चाहा तो पुलिस वालों ने कहा जो भी कहना है थाने चलकर कहें।इतना कहकर उन्हें गाड़ी में बैठाकर चलने को तैयार हो गए।
         गाड़ी स्टार्ट होती इससे पहले बूढ़ी अम्मा ने आकर पुलिस वालों से कहा कि मेरा बेटा और बहू बहुत अच्छे हैं।मेरे बड़ा खयाल रखते हैं।मुझे पलंग पर ही खाना देते है और मेरी दवा का भी पूरा-पूरा ध्यान रखते हैं।मैं तो इन्हीं की बदौलत ज़िंदा हूँ वरना मेरा और कौन है।मेरा बेटा तो हज़ारों में एक है।भगवान ऐसा बेटा सबको दे।तभी पोता बोला नहीं पुलिस अंकल मेरी दादी झूठ बोल रही है।दादी ने उसे भी डांटते हुए अंदर भेज दिया।
        पुलिस वालों को बूढ़ी अम्मा पर दया आ गई,उन्होंने राजुऔर उसकी पत्नी को खास हिदायत देते हुए छोड़ दिया। लेकिन राजू और उसकी पत्नी अपनी करनी पर अंदर ही अंदर बहुत लज्जित हो रहे थे।यहां तक कि अपनी मां से आँखें मिलाने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहे थे।
      दोनों तुरंत माँ के चरणों में गिरकर बार-बार क्षमा याचना करने लगे और भविष्य में ऐसा न करने की कसमें खाने लगे।ऐसा घ्रणित विचार भी अपने मन में न लाने का प्रण करते हुए माँ की महिमा का गुणगान करते हुए सभी से कहने लगे कि,,
माँ तो साक्षात ईश्वर का स्वरूप होती है।माँ का दिल आईने की तरह साफ होता है।हमारी सारी भूलों को एक पल में क्षमा करके हमें सुपुत्र का दर्जा अगर कोई दे सकता है तो वह है हमारी माँ।
   हम भूल कर सकते हैं परंतु एक मां भूल से भी कभी ऐसी कोई भूल नही कर सकती।
      अर्थात मां तो साक्षात ईश्वर की प्रतिमूर्ति है।
     
               
✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
 मुरादाबाद/उ,प्र,
 मोबाइल-  9719275453
   
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मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा ------ रोटियां


स्वाति विश्वविद्यालय मेंं समाजशास्त्र की प्रवक्ता थी।समाज मेंं होने वाले परिवर्तन पर उसके लेख पत्र पत्रिकाओं मेंं छपते थे।सभी उसके प्रशंसक थे।घर लौटकर कपडे़ बदल वह रसोई मेंं लग जाती।एक रोटी हल्की सी जल गयीं, तभी सास की आवाज सुनायी दी,"बडी़ बडी़ ड्रिग्रियों से रोटी गोल नहीं बनती बल्कि जल जाती है"।पति की जलती हुई आँखे देखकर स्वाति की आँख मे आँसू भर आये और वह कुछ न कह सकी।

 ✍️डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा ------अपाहिज सोच

किचिन में खाना बना रही अवनि सामने मोबाइल फोन रख कर बच्चों का ऑनलाइन होम वर्क भी देख रही थी ।कोरोना की वजह से सभी शिक्षकों को घर से ही बच्चों का होम वर्क देखना होता है ।यही समय घर के कामों का और यही पढ़ाने का । सोफे पे लेटी अवनि की सास आवाज लगाती हैं कि अरे !अवनि अवहीँ नाश्ता न ले आई देख वो लाला तो नाह धोय के आये गयो री ।हां, लाती हूँ, बस पाँच मिनट और बच्चे ऑनलाइन हैं अम्मा !अवनि ने रसोई में से बताया । अरे,नेक जल्दी कर लिया कर ,एक हाथ की अपाहिज लड़की हमारे छोरा के पल्ले बाँध के माँ बाप हय गए बेफिकर।मुसीबत तो हमरे नसीब पड़ी है ।अब भुगतो ।जिंदगी जाने कैसे कटेगी?अवनि की उलाहना देते हुए बोली ।अम्मा ,क्यों ताने देती हो ,जैसे यह ड्यूटी करते हैं मैं भी तो करती हूँ ,अब एक हाथ ही सही ..........यही तो ..कहते कहते अवनि नाश्ता ले आई ।बचपन में स्कूल जाते समय एक्सीडेंट में उसका हाथ चला गया पर अवनि के माता पिता ने उसकी इस अक्षमता को सक्षमता में कैसे बदला ,यह तो अवनि बहुत अच्छे से जानती थी ।उसकी सरकारी नॉकरी लगी ,तो लड़के वाले स्वयं उसका हाथ मांगने आने लगे । लोग अवनि की तनख्वाह पूछते तो उसके हाथ की कमी किसी को न दिखती ।गौरव को शिकायत थी पर माँ ने उसे खूब समझाया  ।पैसा ही समय पर काम आता है ।लड़की देखने में भी बुरी नही है। अवनि अपनी सास के उस व्यक्तित्व को मन ही मन दोहरा रही थी ।दया आ रही थी उसे समाज के ऐसे लोगों की सोंच पर ,जो किसी सक्षम को भी अपनी निम्न सोंच से बार -बार अपाहिज घोषित करके उसे नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं । असल में विकलांगता तो कहीं और है और ..........इसी चिन्तन में अवनि आपको शाबासी देती हुई अपनी सास को भी नाश्ता कराने लगी ।

✍️ डॉ प्रीति हुँकार
 मुरादाबाद

वाट्सएप पर संचालित समूह ''साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है । मंगलवार 18 अगस्त 2020 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों डॉ ममता सिंह, अशोक विद्रोही, श्री कृष्ण शुक्ल, अटल मुरादाबादी, डॉ श्वेता पूठिया, दीपक गोस्वामी चिराग ,डॉ रीता सिंह, आयुषि अग्रवाल, स्वदेश सिंह, नजीब जहां, रवि प्रकाश, नृपेन्द्र शर्मा सागर ,कंचनलता पांडेय , कमाल जैदी वफ़ा, रामकिशोर वर्मा, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, सीमा वर्मा , राजीव प्रखर जी कविताएं और विवेक आहूजा की कहानी-----


मेरा प्यारा मिट्ठू तोता,
मन से मिर्ची खाता है।
राम नाम का जाप उसे तो,
हर दिन देखो भाता है।

जब भी चाहूँ उसे पकड़ना,
झट से वह उड़ जाता है।
इधर उधर है छिपता फिरता,
हाथ नहीं वह आता है।।

देख डांस शो टीवी पर वह ,
ठुमके खूब लगाता है।
साथ साथ उन ठुमकों के ही,
गाना हमें सुनाता है।।

घर में हर बच्चे बूढ़े का,
लेकर नाम बुलाता है।
मुझको तो ऐसा लगता है,
गहरा उससे नाता है।।

 ✍️ डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद
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इन्द्र धनुष का रंग निराला
इसका रूप बड़ा मतवाला
वर्षा रुकी बदरिया छाई
जब सूरज ने झलक दिखाई
सूरज की विपरीत दिशा में
यह न दिखेगा कभी निशा में
अद्भुत दृश्य नजर एक आया
सात रंगो ने जिसे बनाया
जादू जैसा कोई चलाएं
कैसे इंद्रधनुष बन जाए ?
इंद्रदेव वर्षा करते हैं
इस जग की पीड़ा हरते हैं
मेघों से जल बूंदे झड़तीं
सूर्य किरण उन पर जब पड़तीं
सातों रंग उभर तब आते
मिलकर इंद्रधनुष बन जाते
दौड़ दौड़ बच्चों की टोली
इसे निहारे करे ठिठोली
बैंगनी, नीला फिर आसमानी
देखो अम्मा ! देखो नानी !
हरा,पीला,नारंगी ,लाल
सात रंगों ने किया कमाल
सब मिल अद्भुत छटा दिखाते
सब बच्चों के मन को भाते
बच्चों बात हमारी मानो !
इसमें छुपा रहस्य पहिचानो !
मिलजुल  कर जब रहते सारे
रंग निखरते कितने प्यारे
तुम सब भी मिल जुल कर रहना !
इंद्रधनुष सम जग से कहना !
अगणित जन जन भिन्न प्रकार
मिलकर बनता है संसार
अलग अलग हम भले अनेक
सब मिल कर बन जायें एक !
इससे कितना सुख पाओगे !
सबके प्यारे बन जाओगे !

✍️अशोक विद्रोही
 8218825541
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
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आओ थोड़े वृक्ष लगायें
हरी भरी ये धरा बनायें।

ये धरती को बाँधे रखते।
भूजल का संरक्षण करते।
स्वयं धूप में तपते हैं पर
प्राणवायु ये हमको देते।
फर्ज हमारा भी है बच्चो,
हम भी मिलकर इन्हें बचायें।
आओ थोड़े वृक्ष  लगायें।

पत्थर खाकर फल देते हैं।
पथ पर ये छाया देते हैं।
गिर जाते हैं पर मिट कर भी,
खुद जल कर ईंधन देते हैं।
इनके उपकारों का सोचो,
कैसे हम सब मूल्य चुकायें।
आओ थोड़े वृक्ष लगायें।।

✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG 69,
रामगंगा विहार, मुरादाबाद
मोबाइल  9456641400
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अम्मा-अम्मा चाँद दिला दो।
मुझको चंदा से मिलवा दो।।
मैं अब  रोटी नहीं खाउँगा-
मैं अब स्कूल नहीं जाऊँगा।
          पूरी   मेरी   मांग  करा   दो।
          अम्मा-अम्मा चाँद दिला दो।।

भैया बहुत चिढ़ाते हैं अब।
मुझको बहुत रुलाते हैं सब।
गुड़िया गुड्डे हुए बिछोने ,
टूटे सारे खेल -खिलौने।
              अब तो कोई नया दिला दो।
             अम्मा-अम्मा चाँद दिला दो।।

अम्मा मैं मेला जाऊंगा  ,
मैं तो चाऊमीन खाउँगा ।
पूरी कर दो मेरी यह विश,
दिलवा दो जीभचटोरी डिश।
           मुझको तुम अब ही मॅगवा दो।
             अम्मा-अम्मा चाँद दिला दो।।

वरना मेरी कुट्टी तुमसे ,
बोलूंगा अब  ना ही तुमसे।
प्यार दिखाओ चाहे जितना ,
लाड़ लड़ाओ चाहे कितना।

            चाहे पूड़ी -खीर खिला दो।
             अम्मा-अम्मा चाँद दिला दो।।
                   
 ✍️ अटल मुरादाबादी
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माँ मेरी है सबसे प्यारी
इसकी हर बात निराली
हमको सारी रोटी देकर
खुद पानी पी सो जाती।
जब हम माँगे नर्म सा बिस्तर,
अपनी गोद मे हमे  सुलाती,
लोरी गाकर मन हर्षाती।
अपने सारे दर्द छुपाकर
हमारे संग मुस्काती
दर्द हमारे, आँसू उसके,
सच कहती हूँ
माँ मेरी है सबसे प्यारी।।

✍️ डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद
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मैं हूं राष्ट्रीय पक्षी मोर।
पीउँ-पीउँ का करता शोर।
जब भी हो वर्षा घनघोर।
नाचूँ-झूमूँ मैं चहुँ ओर।
 देख पंख मेरे अति सुंदर,
 भाल सजाए *माखनचोर*।

सांँप देख सब ही डर जाते।
 उसको झट हम चट कर जाते।
 'मंगल भवन अमंगलहारी'।
 शिव का बेटा करे सवारी।
कौन है उसका नाम बताओ।
फिर भाई ज्ञानी कहलाओ।

✍️ दीपक गोस्वामी 'चिराग'
शिव बाबा सदन,कृष्णा कुंज
बहजोई (सम्भल) पिन-244410
मो. 9548812618
ईमेल-deepakchirag.goswami@gmail.com*
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आलू राजा सदाबहार
खाने में यह सबका प्यार ।

चाँट पकौड़ी अरु कचौड़ी
ये सब इसके ही उपहार ।

टिक्की हो या फिर समोसा
आलू इनका पक्का यार ।

हर सब्जी का साथ निभाये
ऐसा इसका है व्यवहार ।

लगा रोग मंहगाई जब
लगता सूना है बाजार ।

✍️ डॉ रीता सिंह
मुरादाबाद
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एक दिन चूहा बन गया शेर,
करने निकला जंगल की सैर।

धमा-चौकड़ी खूब मचाता,
रौब से था सबको धमकाता।

सारे जानवर मिलकर संग,
देख रहे सब उसे हो दंग।

छुपी बैठी थी बिल्ली रानी,
चुप देखे उसकी मनमानी।

जब बिल्ली को गुस्सा आया,
गुस्से से माथा ठनकाया।

बिल्ली ने फिर डाँट लगाई,
ची-ची कर भागे चूहे भाई।

✍️ आयुषी अग्रवाल
कम्पोजिट विद्यालय शेखूपुर खास
कुन्दरकी (मुरादाबाद)
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आओ बच्चों पेड़ लगायें
धरा को हरा-भरा बनायें

           जीवन का है यह आधार
             धरती का करते सिंगार

मोनू यह लो पेड़ नीम का
करता यह काम हकीम का

            दीपा तुम लगाओं पीपल
           देता ये ऑक्सीजन हर पल

लगाओं तुम सब क्यारी- क्यारी
देना खाद,पानी सब बारी-बारी

          करना सब इनकी रखवाली
        पेड़ जीवन में लाते खुशहाली

✍️ स्वदेश सिंह
 सिविल लाइन्स
 मुरादाबाद
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पेड़ों ने हमको जीवन दिया
सब कुछ अपना अर्पण किया।
फल दिए लकड़ी और दी छाया
फिर क्यों इंसान समझे पराया।
काटो नहीं वृक्ष नए-नए लगाओ
जीवन को स्वस्थ, स्वच्छ बनाओ।
एक वृक्ष सदियों  साथ निभाता
इंसान यह क्यों समझ नहीं पाता।
दुनिया के इंसान को बात समझनी है
प्रकृति भी हमारी जीवन जननी है।

✍️ नजीब जहां
प्रेम वंडरलैंड, मुरादाबाद
9837508724
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गुड़िया  को  ले मेला जाते
चक्की  चूल्हा  बेलन लाते
चकले पर थी रोटी बिलती
दो-दो रोटी सबको मिलती
मिट्टी  की  थी  सभी रसोई
टूटी  तो  फिर  गुड़िया रोई
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अब  हैं  खेल- खिलौने न्यारे
प्लास्टिक के दिखते हैं प्यारे
अब  है  गैस - सिलेंडर भारी
बिजली  की  चीजें   हैं सारी
मिक्सी   से   सिलबट्टा  हारा
गया    पुराना    युग   बेचारा

✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
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क्या है ये गड़बड़ घोटाला
चूहे🐀 ने हाथी🐘 धो डाला।
मोटा ताज़ा एक परिंदा 🦅
 मच्छर सिंह🦟 का बना निबाला।।
शेर सिंह 🦁 ने पूँछ दबाई
 जब लोमड़ 🦊को आते देखा।
देख मगर 🐊को पेड़ पर चढ़ते।
बन्दर जी🐒 ने जिगर उछाला।
क्या है ये गड़बड़ घोटाला,
जँगल में दंगल कर डाला।
चिंटू चूहे 🐁 से सब डरकर,
ओढ़ रहे अज्ञात दुशाला।।

✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा,मुरादाबाद
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पेड़ आपनें लगाये बहुत हैं
कुछ हमें भी सिखाओ ना मैडम
कैसे मिट्टी बनाते हैं पहले
फिर पौधे लगाये कैसे मैडम
कौन सी पौध रोपें किस मौसम
विस्तार पूर्वक बताओ न मैडम
कितना खाद व कब कितना पानी
हम सबको समझा देना मैडम

✍️ कंचन लता पाण्डेय
आगरा
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अम्मा मुझको अच्छा लगता तेरे हाथ का खाना,
पापा से कह दूंगा अब बाजार से कुछ न लाना।

आलू साग की सब्जी भी तू बढ़िया बहुत बनाती,
अपने हाथ से देके निवाला स्वाद को और बढ़ाती।

आलू भरे परांठे तेरे सबको खूब है भांते,
बड़े चाव से सब घर वाले बैठ के संग में खाते।

तेरे हाथ की खीर के घर मे सब ही है दीवाने,
तेरे जैसे बना न पाये कोई भी घर मे खाने।

मैगी पिज्जा बर्गर  वर्गर अब न कुछ खाऊंगा,
तेरे प्यारे हाथों का यह स्वाद कहा पाऊंगा।

✍️ कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
प्रधानाचार्य,
अम्बेडकर हाई स्कूल बरखेड़ा
सिरसी (सम्भल)9456031926
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घर की एक न मानें बच्चे
जितनी अध्यापक की ।
बहुत गुणी उनके सम्मुख हैं
उनके अध्यापक जी ।
अध्यापक ने जब पेड़ लगाया
बच्चों को वह बहुत ही भाया।
सब बच्चे पेड़ एक लाये
विद्यालय प्रांगण रोपाये ।
किसी ने गड्ढ़ा खोद दिया
तो खाद किसी ने डाल दिया ।
पेड़ लगाकर तरह-तरह के
पर्यावरण संदेश दिया ।
घर पर अब कहते हैं बच्चे
पौधे अवश्य लगाने हैं ।
शुद्ध हवा भी मिलेगी इनसे
सुमन बहुत मन भाने हैं ।
     
✍️ राम किशोर वर्मा
रामपुर
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क्यों तोते को  कैद किया  है?
बोलो तनिक  बुआ  जी तुम,
क्योंइसको ये सजा मिली है?
बोलो तनिक बुआ जी  तुम।
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तार पकड़ कर  ऊपर  नींचे,
गिरता   चढ़ता    रहता    है,
कब इससे  बाहर  निकलूंगा,
यही    सोचता    रहता    है,
कब  इसको आज़ाद करोगी,
बोलो तनिक बुआ  जी  तुम।

बिखर  गया  है  रोटी  दाना,
पानी     नहीं    कटोरी    में,
हरी मिर्च भी सूख  चुकी  है,
भूखा    है     मजबूरी     में,
किसने  पूछा  भूख लगी  है,
बोलो तनिक  बुआ जी तुम।

उड़ते  सब तोतों  से कहता,
मैं   हूँ   बेबस     बंद   पड़ा,
तुम ही आकर के बतलाओ,
कैसे    काटूं     फंद    बड़ा,
बुरा नहीं लगता क्या तुमको?
बोलो तनिक  बुआ जी तुम।

आज़ादी   सबको  भाती  है,
तुमको   भी    भाती    होगी,
क्या तोते  को  ही आजीवन,
सजा    रास   आती    होगी,
कब  इसपर उपकार करोगी,
बोलो तनिक  बुआ जी  तुम।

बढ़  करके  दरवाजा   खोलो,
पिंजड़े    से    आजाद   करो,
खुशी - खुशी अम्बर में उड़ने,
जीवन   को    आबाद    करो,
फिर कब  अत्याचार  करोगी,
बोलो तनिक  बुआ  जी  तुम।

✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
मो0-9719275453
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       छोटा सा आलू बड़े काम का
               मोटा सा आलू बड़े काम का
     छोटा सा आलू बड़े काम का
               मोटा सा आलू बड़े काम का 
   
     गोभी मटर के साथ
                  इतना बड़ा रिश्ता है   
     गाजर और पालक के साथ भी
                            यह दिखता है
      छोटा सा आलू बड़े काम का
               मोटा सा आलू बड़े काम का
   
     मुन्नी जब रूठे तो
                         आलू खाती है
             मुन्ना जिद कर बैठे जब
                            आलू भाता है
     छोटा सा आलू बड़े काम का
                मोटा सा आलू बड़े काम का     
 
      भिंडी टमाटर भी भी
                              इसके यार हैं
      हर एक की सब्जी को
                              इससे प्यार है
      छोटा सा आलू बड़े काम का
                मोटा सा आलू बड़े काम का

      आलू का हलवा
                      आलू की चाट
      सब्जियों का राजा है
                      इसके बड़े ठाट
      छोटा सा आलू बड़े काम का
                मोटा सा आलू बड़े काम का ।।
✍️  सीमा वर्मा
मुरादाबाद
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        जंगल के राजा शेर ने आपसी भाईचारे को बनाए रखने के लिए सभी जीव जंतुओं की जंगल में एक सभा का आयोजन किया।  जंतुओं को संबोधित करते हुए सभा में पधारने का धन्यवाद दिया व सभी से अपनी अपनी समस्याएं रखने का प्रस्ताव रखा। सर्वप्रथम गधा कुमार जी ने खड़े होकर अपनी समस्या रखने के लिए महाराज से गुजारिश की जो कि तुरंत स्वीकार कर ली गई ।तत्पश्चात गधे कुमार जी ने कहना शुरू किया "महाराज मुझे अपने जीव जंतु समुदाय से कोई शिकायत नहीं है परंतु मानव जाति ने मेरा जीना मुश्किल करा हुआ है" आगे बताते हुए गधा कुमार जी बोले "मानव दिन रात मुझे सामान ढोने पर लगाए रहता है और एक पल भी मुझे आराम करने नहीं देता" गधे ने रूआंसु होकर कहा सरकार इतनी मेहनत करने के बाद भी मानव समाज में मेरी कोई इज्जत नहीं है।गधे  की बात समाप्त होते ही तोता श्री फुदक कर सभा के मध्य आ गए और तीखी आवाज में बोले "महाराज मानव ने हमें तो बिल्कुल गुलाम ही बना रखा है और हमारा जीवन सालों साल पिंजरे में कैद होकर रह जाता और पिंजरे में ही हम लोग मर जाते हैं, महाराज हमें पिंजरे की गुलामी से आजादी दिलाई जाए"  तोता श्री बोले    मानव तो अब उनका भक्षण भी कर रहे हैं ।  भक्षण की बात सुन मुर्गा और बकरे ने शोर मचा दिया जोर से सभा में दहाड़े मार-मार कर रोने लगे शेर महाराज ने उन्हें बमुश्किल चुप कराया और उनसे रोने का कारण पूछा तो वह रोते हुए बोले "महाराज मानव से हमारी रक्षा करें इन लोगों ने तो हमारा जीवन दूभर कर दिया है इनकी कोई दावत होती है वह हमारी जान लेकर ही जाती है" और तो और हम लोग तो अपनी पूरी जिंदगी भी नहीं कर पाते इससे पहले ही मानव हमारा भक्षण कर लेता है सब की समस्याएं सुन महाराज शेर ने लंबी सांस लेते हुए कहा आप सब की समस्याएं काफी गंभीर हैं  और इन सब के निस्तारण की भी अति आवश्यकता है। सभी छोटे-बड़े जीव-जंतुओं ने एक सुर में महाराज से कहा "अब बात समझाने से आगे निकल चुकी है" अतः अब मानव को सबक सिखाने का वक्त आ गया और सभी जीव जंतु समुदाय ने सर्वसम्मति से मानव जाति के विरुद्ध जंग का प्रस्ताव पास कर दिया। महाराज ने सभी को समझाया की जंग से कोई फायदा नहीं आपस में ही बैठ कर सुलाह कर लेते हैं। परंतु कोई भी जीव मानने को तैयार नहीं हुआ । सभी ने महाराज से आग्रह किया कि मानव को एक बार सबक सिखाना अत्यंत आवश्यक है । महाराज जी ने कहा मैंने मानव को सबक सिखाने के लिए एक योजना बनाई है। और इस योजना में "कोरोना विषाणु" बेटा हमारी मदद करेगा सभी जीव जंतुओं ने महाराज से पूछा यह कैसे संभव है ।कोरोना तो बहुत छोटा है और नंगी आंखों से हम इसे देख भी नहीं सकते फिर यह हमारी मदद किस प्रकार कर सकेगा ।महाराज ने कहा कोरोना ही हमारी मदद कर सकता है और मानव को अच्छी तरह सबक सिखा सकता है ।उन्होंने करोना  को बुलाया और उसे आदेश दिया कि पृथ्वी के पूर्वी हिस्से में किसी खाद पदार्थ में मिलकर अपना दुष्प्रभाव दिखाना शुरू करो वह एक से दूसरे दूसरे से तीसरे फिर हजारों लाखों करोड़ों लोगों में अपना दुष्प्रभाव पृथ्वी के सभी देशों में फैला दो। महाराज से आज्ञा लेकर कोरोना विषाणु ने पूर्व से पश्चिम तक पूरी पृथ्वी पर अपना दुष्प्रभाव चलाना शुरु कर दिया। लाखों की संख्या में मानव मरने लगे। सभी जीव जंतुओं को मानव द्वारा अपने ऊपर किए गए अत्याचार का बदला मिल गया था और सब एकत्र होकर महाराज के पास आए व बोले "महाराज मानव जाति को अब काफी सबक मिल चुका है ,अब आप कोरोना को वापसी का आदेश दें" महाराज शेर ने तुरंत कोरोना को बुलवाया और उससे मानव जाति पर उसके प्रभाव की रिपोर्ट मांगी। कोरोना विषाणु ने सीना चौड़ा कर महाराज से कहा कि "मै आपको अभी अपने प्रभाव की छमाही रिपोर्ट देता हूं" यह कहकर करोना ने बताना शुरू किया "मानव मेरे प्रभाव से मुंह पर कपड़ा बांधकर घूमता है ,  इसके अलावा सबसे मजेदार बात यह है कि मानव एक दूसरे से दूर दूर होकर बैठता है " यह कहकर कोरोना ने एक जबरदस्त ठहाका लगाया सभी जीव जंतु छमाही रिपोर्ट सुनकर अति प्रसन्न हुए ,तत्पश्चात सभी जीव जंतुओं ने महाराज से कहा अब बहुत हुआ मानव को सबक मिल चुका है आप कोरोना से कहे कि वह अपने प्रभाव को खत्म करें और शांत हो जाए । महाराज ने कोरोना को तुरंत आदेश दिया कि वह अपना बोरिया बिस्तर समेट कर पूरे विश्व से रवाना हो जाए । किंतु करोना तो घमंड में चूर हो चुका था उसने महाराज का आदेश  मानने से साफ इंकार कर दिया । यह सुन सभी जीव जंतु बहुत गुस्सा हुए और उन्होंने कोरोना को सभा से धक्के मार कर अपनी जमात से बाहर कर दिया। कोरोना की इस हरकत पर सभी जीव जंतु बहुत दुखी थे ।महाराज ने कहा  "पृथ्वी पर भारतवर्ष के पीएम बहुत अच्छे व्यक्ति हैं मैं उन्हें अपने पत्रवाहक कबूतर को भेजकर खबर करता हूं" कि कैसे जीव-जंतुओं की नासमझी के कारण यह समस्या खड़ी हो गई है व करोना बागी हो गया है।  उन्होंने कबूतर जी को पत्र देकर रवाना किया ।
तत्पश्चात भारतवर्ष के पीएम नेअपने वैज्ञानिकों, डॉक्टरों की पूरी टीम को करोना पर कार्यवाही के लिए लगा दिया और जल्द ही पूरा विश्व कोरोना के प्रभाव से मुक्त हो गया। इस प्रकार सभी जीव जंतुओं ने महाराज शेर के सम्मुख अपनी गलती स्वीकारी , अब उन्हे अच्छे से समझ आ चुका था कि दुनिया को प्यार से ही जीता जा सकता है ना कि बदले से, और सभी ने महाराज शेर के समक्ष प्रण किया कि अब वह मानव जाति के साथ प्रेम से ही जीवन व्यतीत करेंगे ।

 ✍️ विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
Vivekahuja288@gmail.com

सोमवार, 7 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार मनोज वर्मा मनु की दस ग़ज़लों पर ''मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" द्वारा ऑनलाइन साहित्यिक चर्चा


    वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह  'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा  'एक दिन एक साहित्यकार' की श्रृंखला के अन्तर्गत 5 व 6 सितंबर 2020 को मुरादाबाद के युवा शायर मनोज वर्मा मनु 
की दस ग़ज़लों पर ऑन लाइन साहित्यिक चर्चा की गई । सबसे पहले मनोज वर्मा मनु द्वारा निम्न दस ग़ज़लें पटल पर प्रस्तुत की गयीं-

(1)

खाक़ दिल की दवा करे कोई
जब न मरहम शिफा करे  कोई

कोई तो हो कि ग़म की बात करे
ज़ख्म दिल का हरा  करे  कोई

इश्क़ में क्या सुकूँ  मिला  हमको
काश ये  मशवरा   करे   कोई

आप  की  रहमतें  ही  इतनी  हैं
किस  तरह  हक़  अदा करे कोई

लाख कोशिश करें भुलाने की
फिर तेरा तज़किरा करे कोई

क़ौल पर मुस्तनद रहे अपने
और वादा  वफ़ा  करे  कोई

बुत-परस्त अब नहीं रहे हैं हम
अब न हमसे गिला  करे  कोई

(2)

खा रहा सबको यही मुंह का निवाला आजकल
हम पतंगे हर तरफ़ झूठा उजाला आजकल

हैं बड़ी खुश फ़हमियां मेहरूमियों के बीच भी
किस क़दर अंदाज़ है अपना निराला आजकल

कौन कहता है हंसी अब लापता हो जाएगी
कौन रोता है बज़ाहिर बात वाला आजकल

हादसों में जिंदगी घुटनों तलक तो आ गई
और इन मजबूरियों ने मार डाला आजकल

झूठ बिक जाता है हाथों हाथ अच्छे दाम में
और सच्चाई का मुंह होता है काला आजकल

हाँ मुझे अहसास होता है  कि तू नज़दीक है
दें रही हैं खुशबुएँ तेरा हवाला  आजकल

(3)

कभी जो हक़ किसी का काटता है
जमीरो-ज़र्फ़ खुद का काटता है

सियासी अस्लियत में हो गया वो
जो अस्ली  है वो  मुद्दा  काटता है

बज़ाहिर जो हिमायत में खड़ा था
गला अब खुद हमारा काटता ह

दिले-हस्सास भी नादाँ है कितना
वफ़ा करता है ख़दशा काटता है

कभी जज़्बात की रौ में न बहना
गरम लोहे को ठंडा काटता है

नज़र का फेर है या फिर हक़ीक़त
बिकाऊ वक़्त अच्छा काटता है

ज़मीरो-ज़र्फ़ का तो ये है साहिब
जो रखता है वो घाटा काटता है

अदालत किस क़दर अंधी हुई है,
कि पैसा हक़ का क़िस्सा काटता है

(4)

हमारी क़ुव्वतों से भी सिवा हैरान रखता है
कि अपने फैसले से वो हमें अनजान रखता है

हज़ारों किस्म के दुनिया मे भरता रंग भी है वो
हज़ारों बार दुनिया भी वही  वीरान रखता है

जिन्हें हम सुन नहीं सकते जिन्हें छू भी नहीं सकते
उसी की दस्तरस में है वो सब में जान रखता है

अज़ीज़ों में नहीं कोई रक़ीबों  में  नहीं कोई
मगर वो रहमतों में रहम दिल  इंसान रखता है

मिरे रब शुक्रिया सद शुक्रिया सद शुक्रिया तेरा
तू ही दोनों जहां मेरे लिए आसान  रखता है

उसे जितने भी सजदे हों 'मनु' कम है इबादत में
हमारे वास्ते क्या ख़ूब वो मीज़ान  रखता है

(5)

चाह में उसकी न जाने क्या मुक़द्दर हो गया
मंजिलों का एक मुसाफिर एक पत्थर हो गया

दर्द जो लेकर किसी का बाँटता खुशियां रहा
एक दरिया से वही इंसाँ समंदर  हो गया

जीतने को सरहदें जीती सिकंदर ने मगर
जो दिलों को जीत पाया वह कलंदर हो गया

मुद्दतों पहलू में पाला चार दिन का यह असर
दिल हमारी जान का खुद ही सितमगर हो गया

एक सराय बन गई संसद हमारे मुल्क की
मकतबे-रिश्वत यहां हर एक दफ्तर हो गया

मैं बज़ाहिर तो बहुत ही नर्मो - नाज़ुक था मगर
किस तरह टेढ़ा मेरे क़ातिल का खंजर हो गया

हौसला जिसने नहीं हारा है अपना वो 'मनु'
आग में तापे गए कुंदन से  बेहतर  हो गया

(6)

ज़मीं पे पांव फलक पे निगाह याद रहे
मियाँ बुज़ुर्गों की ये भी सलाह याद रहे

अगर हो ग़ैर से तक़रार बात दीग़र है
मगर हो भाई से तो बस निबाह याद रहे

करें जो नेकियाँ उनको भुला भी सकते हैं
मगर गुनाह से तौबा गुनाह याद रहे

नवाज़ता है वही मत गुमान में डूबो
कि कर वो देगा कभी भी तबाह  याद रहे

रहम पसन्द बनो ये पसन्द है उसको
मुआफ़ियों में है रब की पनाह  याद रहे

हमेशा मनु रहे दिल में ख़्याल मालिक का
कभी बिगड़ने न देगा ये राह याद रहे

(7)

उसे खोने का ग़म ही उसको बतलाने नहीं देता
ये ख़दशा क्यों मेरे दिल से खुदा जाने नहीं देता

हमें अपनी तरक्की पर बशर्ते नाज़  हो कितना
मगर जो उसका रुतबा है वो  इतराने नहीं देता

उसे हक़ है कि मुझको आज़माए अपनी शर्तों पर
मुझे इतना यकीं है मुंह की वो  खाने नहीं देता

ये क़ुदरत है फकत उसकी कि हर जा सब्ज़ बिखरा है
वगराना ज़िन्दगी क्या गर वो अफ़साने नहीं देता

ग़ुरूर इतना है तुझको शम्म: अपने नूर पे लेकिन
ये जज़्बे जां निसारी गर वो परवाने नहीं देता?

ये ख़ुद मुख्तारियत उलझा रही है पर निज़ाम उसका
किसी शय को किसी पर भी सितम ढाने नहीं देता

(8)

हां न पैरहन जाए
और न ही कफ़न जाए

नेकियों बताओ तो
क्या किया जतन जाए

आ गया है दुनिया में
अब कहां हिरन जाए?

तू खुदा नहीं लेकिन
तू खुदा न बन जाए

है अदब शनासा जो
गंगा-ओ-जमन जाए

देर तक ख़ुशी फैले
दूर तक अमन जाए

अब  वही  ठिकाना है
जिस गली सजन जाए

रूह में बसा जब से
अब न बांकपन जाए

(9)

तेरे ख़याल में बैठे हुए हैं मुद्दत से,
हम अपने आप में उलझे हुए हैं मुद्दत से,

अना की ख़ैर हो, सूरत कोई निकल आए
कि इस हिसार में जकड़े हुए हैं मुद्दत से

बिखर न जाएं ये तस्वीरे-आरज़ू के सदफ़
बड़ी संभाल के रख्खे हुए हैं मुद्दत से

खुदा के वास्ते कोई समेट ले हमको
कि हम ज़मीन पे बिखरे हुए हैं मुद्दत से

खुदा बराए करम रास्ता दिखा उनको
ये राहबर ही जो भटके हुए हैं मुद्दत से

चले भी आओ कि फिर से बहार आ जाए
चमन निगाह के उजड़े हुए हैं मुद्दत से

तेरे ही नूर की सहबा में मस्त है यह नज़र
गिलास मेज़ पे रक्खे हुए हैं मुद्दत से

(10)

काश ऐसा कमाल हो जाता
वो मेरा हम ख्याल हो जाता

देख लेता निगाह भर के अगर
दिन मेरा बेमिसाल हो जाता

हाथ उठते ही बस दुआ के लिए
और पूरा सवाल हो जाता

छेड़ता मैं कभी शरारत से
उसका चेहरा गुलाल हो जाता

दूर रख कर किसे परखता मैं
मेरा जीना मुहाल हो जाता

आपकी बात टालता कैसे
चाहतों में न बाल हो जाता

कौन आता मुझे मनाने को
मैं अगर बद-ख्याल हो जाता

आंख में अक्स तैरता तेरा
आईना-ए-जमाल हो जाता
चर्चा शुरू करते हुए विख्यात  नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा कि मनोज मनु एक निष्कलुष मन के सीधे सच्चे इंसान हैं उनका यही अक्स उनकी शायरी ,गीतों दोहों में झलकता है।
एक अच्छा कवि या शायर बनने के लिए जो प्राथमिक शर्त है एक अच्छा इंसान होना ,वह गुण उनके व्यक्तित्व की पहचान में शामिल है। बाकी प्रतिभा, निपुणताऔर अभ्यास में भी प्रतिभा उनके पास है, निपुणता हासिल करनी है अभ्यास की निरंतरता से किसी हद उसे भी हासिल किया जा सकता है, बस उसके साथ आवश्यक है किसी उस्ताद या गुरु की वात्सल्य पूर्ण अशीषवती छाया। अधिक से अधिक साहित्य का अध्ययन। वे अभी वनफूल हैं। उनमें सुगंध भी है अपनी लेकिन उस सुगंध से शायद अभी वे स्वयं परिचित नहीं हैं।
मशहूर शायर मंसूर उस्मानी ने कहा कि कोई शक नहीं कि मनोज मनु के अंदर आने वाले वक़्तों का एक होनहार शायर मौजूद है। मनोज के पास ये सलाहियत मौजूद है। उनके बहतरीन विवेक के रूप में पटल पर प्रस्तुत उनकी ग़ज़लों में पाठक का दामन थामने लायक शक्ति महसूस की जा सकती है।
मशहूर शायरा डॉ मीना नकवी ने कहा कि मनोज 'मनु' अपने बड़ों के प्रति अत्यधिक विनयशील शायर और कवि है जो अपनी ग़ज़लों, गीतों और दोहों में परिपक्वता की ओर अग्रसर होता प्रतीत होता है। जहाँ तहाँ उर्दू शब्दों को अपनी रचनाओं में निस्संकोच प्रयोग करने वाला यह रचनाकार हिन्दी भाषा पर भी  सशक्त पकड़ रखता है। प्रेम या रोमांस की शायरी से हट कर रचनाकार सामाजिक सरोकारों के प्रति अधिक अाकर्षित है। जिसके दर्शन प्राय: सभी रचनाओं में परिलक्षित होते हैं।
मशहूर शायर डॉ कृष्ण कुमार नाज़ ने कहा कि मनोज मनु हमारे शहर के होनहार शायर हैं। उनकी शायरी परंपरा और आधुनिकता का संगम है। वह बहुत सोच-समझकर शेर कहते हैं। वह चूंकि व्यवहार कुशल व्यक्ति हैं, इसलिए उनकी शायरी में भी व्यवहार की वही सादगी छिपी हुई है। अपनी शायरी के कैनवास पर वह ख़ुद भी हैं, समाज भी है, राजनीति भी है, घर परिवार भी हैं और वर्तमान हालात का चित्रण भी है। सामाजिक चिंतन की ड्योढ़ी पर मनु कहीं-कहीं शिक्षक की भूमिका में भी आ जाते हैं और समस्याओं के साथ-साथ निदान का रास्ता भी सुझाते हैं। वह अपनी शायरी के प्रारंभिक दौर से गुज़र रहे हैं, लेकिन उनका यह प्रारंभिक दौर भी बेहद ख़ूबसूरत है।
वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि मुरादाबाद के साहित्यकार मनोज वर्मा मनु जी द्वारा प्रस्तुत रचनाएं सराहनीय हैं । वह अपनी रचनाओं के माध्यम  से समाज में व्याप्त विसंगतियों को उजागर करते हैं ।भूमंडलीकरण के दौर में लुप्त होती जा रही सम्वेदनाओं पर चिन्ता व्यक्त करते हैं वहीं अपनी संस्कृति और परंपराओं से भी जुड़े रहने का आह्वान करते हैं।
प्रसिद्ध नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा कि मनोज मनु जी की ग़ज़लें परंपरागत शायरी की मिठास लिए हुए हैं, इसलिए ग़ज़ल के मूल भाव श्रंगार की चहलकदमी उनके अश'आर में यहाँ-वहाँ स्वभाविक रूप से दिखाई दे ही जाती है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ और सिर्फ श्रंगार या प्रेम की प्रचुरता हो, उनकी शायरी में जीवन जगत के अनुभव संपन्न यथार्थ भी उपस्थित हैं। उनकी ग़ज़लों में कहीं कहीं सूफ़ियाना रंग भी अपनी एक अलग ही खुशबू लिए उपस्थित नज़र आता है।
मशहूर समीक्षक डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा कि मनु जी की शायरी का उजला पहलू उर्दू शब्दों का इस्तेमाल है जिसके लिए वह खूब कोशिश करते हैं, जो सराहनीय है। समय के साथ साथ इसमें और परिपक्वता आएगी और शब्दों के इस्तेमाल पर पकड़ मज़बूत होती जाएगी। मनु जी अपनी बात कहने में खूब सक्षम है। उनका कहन स्पष्ट है। उनके नज़दीक शायरी सिर्फ दिल लगी और वक्त गुजारी का साधन नहीं बल्कि समाज को सही राह दिखाने का माध्यम भी है।
युवा शायर फरहत अली खान ने कहा कि मनु जी की तहरीरें उर्दू की चाशनी में डूबी होती हैं और एक ख़ास रवानी रखती हैं। मनु जी समाज का अक्स अदब के आइने में देख कर उस से शायरी बर-आमद करते हैं। सब से अच्छी बात ये कि शेर जैसे उतरते हैं, वैसे ही तशकील पाते हैं। यानी ख़्याल से बे-ज़रूरत छेड़खानी नहीं दिखती। फ़िक्र नैचुरल रहती है, आर्टिफिशल नहीं लगती। यानी ख़्याल को शक्ल देने के लिए लफ़्ज़ों के इन्तेख़ाब और उन के प्लेसमेंट पर काम करने की गुंजाइश नज़र आती है। कई जगह मिसरे अपने ख़्याल को अपनी पूरी क़ुव्वत के साथ भी अच्छी तरह ज़ाहिर नहीं कर पाते, यानी ख़्याल तो वज़्नी होता है, मगर मिसरा हल्का रह जाता है।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि महानगर मुरादाबाद की गौरवशाली ग़ज़ल परम्परा के सशक्त प्रतिनिधि, भाई मनोज 'मनु' जी ऐसे उत्कृष्ट रचनाकारों में से हैं, जिनकी लेखनी संवेदना के प्रत्येक स्वरूप को भीतर तक स्पर्श करने की शक्ति रखती है। भाई मनोज 'मनु' जी की ग़ज़लें व अन्य रचनाएं बोलती हैं तथा बोलते-बोलते कब अन्तस को स्पर्श कर जायें, श्रोताओं/पाठकों को पता ही नहीं चलता।
युवा कवि मयंक शर्मा ने कहा कि ग़ज़ल का क्षेत्र मनु जी का अपनी रुचि के आधार पर है। आम तौर पर बातचीत में भी वह उर्दू के अल्फ़ाज़ का प्रयोग करते हैं। यही उनकी प्रस्तुत की गई ग़ज़लों में भी दिखाई देता है। उर्दू के थोड़े से मुश्किल शब्दों का प्रयोग हुआ है। कुछ ग़ज़लों की ज़मीन बहुत अच्छी है। मनु जी की हिंदी रचनाएँ भी गोष्ठियों में सुनी हैं। इसका अर्थ है कि वह भाषा के हर मैदान पर खेलते हैं।
युवा शायर  नूर उज्जमा ने कहा कि मनोज मनु साहिब के कलाम को पढ़ते हुए महसूस होता है कि उन्हें शाइरी से दिली मुहब्बत है। शायद ग़ज़ल में उन्होंने अपने सफ़र का आगाज़ हाल ही में किया है। एक ऐसे सफ़र का जो न सिर्फ तवील है बल्कि पुरख़ार भी है। ऐसे में एहतियात लाज़िमी है जिसकी और बुज़ुर्गों और दोस्तों ने इशारा भी किया है। मुझे लगता है कि छोटी बहरों में कहे गये उनके ज़्यादातर मिसरे ख़ूबसूरत हैं, या यूँ कहे काफ़ी आसानी से कहे गये मालूम होते है। हालांकि बड़ी बहरों में कहे गये अशआर में शायद उन्हें ये आसानी नहीं रही होगी। वहाँ मेहनत ज़्यादा दिखाई देती है।
ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि मनु की ग़ज़ल का लहजा इस्लाही है यानी वह ग़ज़ल में अपने साथ के लोगों और अपने बाद के लोगों की तरबियत करते हुए नज़र आते हैं। उनकी शायरी में इश्क लगभग न के बराबर है और अगर है तो अभी बहुत कम है। अभी यह हल्के से छूकर गुज़र गया है। इसके पीछे वज्ह शायद यह हो कि मनु शायरी को इश्क़ का इज़हार न मानते हों और उनके नज़दीक शायरी सिर्फ इस्लाह का ज़रिया हो। ज़माने को अपने अंदाज़ से देखने की ललक ज़रूर है मगर अपना नज़रिया दूसरों पर ज़ाहिर करने का एतमाद भी कम दिखाई देता है। अभी उनकी शायरी शुरुआती मरहलों में है इसलिए उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले वक़्त में उनकी शायरी में मज़बूती आएगी और यह शायरी अपनी तरफ खींचने की ताक़त रखेगी।

:::::::प्रस्तुति::::::
ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
"मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" मुरादाबाद।
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हिंदी साहित्य संगम, मुरादाबाद द्वारा गूगल मीट पर 6 सितंबर 2020 को आयोजित ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी



मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य संगम द्वारा रविवार 6 सितंबर 2020 को गूगल मीट एप के माध्यम से एक ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया । राजीव 'प्रखर' द्वारा प्रस्तुत माँ शारदे की वंदना से आरंभ हुए इस कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ ग़ज़लकार श्री ओंकार सिंह 'ओंकार' ने की। मुख्य अतिथि डॉ० प्रेमवती उपाध्याय एवं विशिष्ट अतिथि श्रीमती सरिता लाल रहीं। संचालन जितेन्द्र कुमार 'जौली' ने किया।

काव्य-गोष्ठी में ओंकार सिंह 'ओंकार ' ने कहा -
मैं गीत में वो सुखद भावनाएँ भर जाऊँ ,
कि छंद- छंद में बनकर खु़शी उतर जाऊँ !!

शिशुपाल "मधुकर" ने कहा -
सौ में दस की खातिर ही अब  होते सभी उपाय।
बोलो बाकी लोगों कब तक सहोगे यह अन्याय।

डाॅ० मीना कौल ने कहा -
वीरों को नमन करो
वीरों को नमन करो
संकट में साथ निभाते
वीरों को नमन करो

डॉ० मनोज रस्तोगी ने कहा-
उड़ रही गन्ध, ताजे खून की
बरसा रहा जहर,मानसून भी
घुटता है दम अब बारूदी झोंकों के बीच

जितेन्द्र कुमार जौली ने कहा -
गाड़ी में बैठा कर ले गए हमको
हथकड़ियों में जकड़ा गया
बिना लाइसेंस कविताएं सुनाता था
इसलिए पकड़ा गया

राजीव 'प्रखर' का कहना था-
किया तिरंगा ओढ़ कर, वीरों ने ऐलान।
क़तरा-क़तरा खून का, माटी पर क़ुर्बान।।

पीछे सारे रह गये, मज़हब-फ़िरके-ज़ात।
जब लोगों ने प्यार से, की हिंदी में बात।।

इन्दु रानी ने कहा -
सता कर के गरीबों को कहां फिर चैन पाओगे
जलन रखते हो साँसों मे थकन कैसे मिटाओगे

प्रशान्त मिश्र का कहना था -
जब अपना ही घर लूट लिया,
देश के ग़द्दारों ने
जनता खड़ी देखती रही,
सिमटी अपने किरदारों में..

अरविंद कुमार शर्मा "आनंद" ने कहा -
जिंदगी रंग हर पल बदलती रही।
साथ गम के ख़ुशी रोज़ चलती रही।।
शम्अ जो राह में तुम जला के गये।
आस में आपकी बुझती जलती रही।।

विकास मुरादाबादी का कहना था -
आओ मिलकर बात करें हम, स्वयं नेक बनाने की !
बात करें भारत समाज को , आओ एक बनाने की !!
इस अवसर पर डॉ प्रेमवती उपाध्याय, डॉ सरिता लाल, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ ने भी काव्य पाठ किया । जितेन्द्र कुमार 'जौली' द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम विश्राम पर पहुँचा।

::::::: प्रस्तुति::::::
राजीव प्रखर
मुरादाबाद