वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा "विरासत जगमगाती है" शीर्षक के तहत 8 व 9 सितंबर 2020 को मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार जिगर मुरादाबादी को उनकी बरसी पर याद किया गया। ग्रुप के सभी सदस्यों ने उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा की। उनकी बरसी 9 सितंबर को थी।
सबसे पहले ग्रुप एडमिन ज़िया ज़मीर ने उन के जीवन के बारे में विस्तार से जानकारी दी कि बीसवीं सदी के अज़ीम शायर जिगर मुरादाबादी का वास्तविक नाम अली सिकन्दर था। वो 1890 ई. में मुरादाबाद में पैदा हुए। जिगर को शायरी विरासत में मिली थी, उनके वालिद मौलवी अली नज़र शायर थे। जिगर की आरम्भिक शिक्षा घर पर और फिर मकतब में हुई। पहले वो अपने पिता से इस्लाह लेते थे। फिर “दाग” देहलवी, मुंशी अमीरुल्लाह “तस्लीम” और “रसा” रामपुरी को अपनी ग़ज़लें दिखाते रहे। जिगर को स्कूल के दिनों से ही शायरी का शौक़ पैदा हो गया था। जिगर आगरा की एक चश्मा बनानेवाली कंपनी के विक्रय एजेंट बन गए। इस काम में जिगर को जगह जगह घूम कर आर्डर लाने होते थे। शराब की लत वो विद्यार्थी जीवन ही में लगा चुके थे। उन दौरों में शायरी और शराब उनकी हमसफ़र रहती थी। जिगर बहुत हमदर्द इन्सान थे। किसी की तकलीफ़ उनसे नहीं देखी जाती थी, वो किसी से डरते भी नहीं थे। लखनऊ के वार फ़ंड के मुशायरे में, जिसकी सदारत एक अंग्रेज़ गवर्नर कर रहा था, उन्होंने अपनी नज़्म "क़हत-ए-बंगाल” पढ़ कर सनसनी मचा दी थी। कई रियासतों के प्रमुख उनको अपने दरबार से संबद्ध करना चाहते थे और उनकी शर्तों को मानने को तैयार थे लेकिन वो हमेशा इस तरह की पेशकश को टाल जाते थे। उनको पाकिस्तान की शहरीयत और ऐश-ओ-आराम की ज़िंदगी की ज़मानत दी गई तो साफ़ कह दिया जहां, पैदा हुआ हूँ वहीं मरूँगा। जिगर आख़िरी ज़माने में बहुत मज़हबी थे। उनके अत्यधिक प्रशंसित कविता संग्रह "आतिश-ए-गुल" के लिए उन्हें 1958 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। जिगर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इतिहास में केवल दूसरे कवि थे, जिन्हें डी लिट की उपाधि से सम्मानित किया गया - इस सम्मान को प्राप्त करने वाले पहले शायर डॉ इक़बाल थे। उनका निधन गोंडा में 9 सितंबर 1960 में हुआ। जिगर मुरादाबादी का मज़ार, तोपखाना गोंडा में स्थित है।जिगर साहिब रिवायती शायरी के आख़िरी अज़ीम शायर हैं। जिगर साहिब उन चन्द अहद-साज़ शोअरा में शामिल हैं जिन्होंने बीसवीं सदी में ग़ज़ल के मेयार को गिरने नहीं दिया, बल्कि उसको ज़ुबानो-बयान के नये जहानों की सैर भी करायी, उसे नए लहजे और नए उसलूब से रूशनास भी कराया। जिगर साहब ने शायरी को इतना आसान करके दिखाया है और शेर कहने में ऐसा कमाल हासिल किया है कि उसे देख कर सिर्फ़ हैरत की जा सकती है। जिगर साहिब की लगभग हर ग़ज़ल में तीन-चार मतले मिलना आम बात है जबकि मतला कहना सबसे मुश्किल माना जाता है। यह शायरी बिला-शुबह अपने वक़्त की मुहब्बत की तारीख़ तो है ही मगर यह शायरी हर एहद के मुहब्बत करने वालों के दिलों में धड़कती है। हिज्र में तड़पती हुई रूहों को सहलाती है। हर एहद में मुहब्बत के लिए आमादा करती है।
प्रख्यात शायर और जिगर मुरादाबादी फाउंडेशन के अध्यक्ष मंसूर उस्मानी ने ख़िराजे-अक़ीदत पेश करते हुए कहा कि-
था जिसका इकतेदार ग़ज़ल के जहान पर,
उस जैसा बादशाह कहाँ अब नजर में है,
हालांकि उसको गुजरे जमाना हुआ मगर,
अब भी जिगर की टीस हमारे जिगर में है।
वरिष्ठ व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि जिगर साहब बीसवीं सदी के एक ऐसे शायर होकर सामने आये,जो अदब की दुनिया और समाज द्वारा खूब सराहे गए और आज भी उनकी सराहना बुलंदियों पर है। हर समय में अदब और साहित्य को बहुत कुछ देने वाले बहुत से कलमकार होते हैं,पर समाज के सिर चढ़कर बोलने वाले कम ही होते हैं। वह भारत की मिट्टी की आत्मा के शायर थे।
वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि जिगर मुरादाबादी को स्मरण करना मुरादाबाद के मस्ताना अंदाज को याद करना है।सादा मिजाज जिगर अपने घर को लगी आग में उम्र भर झुलसते रहे। यहीं से शराब का दामन थाम लिया। शायरी में सूफियाना रंग मुरादाबाद की देन है। मुरादाबाद की कल्चर में जो हम आहंगी तबीयत का मिज़ाज है वही जिगर की शायरी में भौतिक और आध्यात्मिक स्वरूप में उभरा है।
मशहूर शायरा डॉ मीना नक़वी ने कहा कि -
शायर हैं, मुसाफ़िर हैं इसी राहगुज़र के
अशआर के पाँव में हैं छाले भी सफ़र के
ग़ज़लों में हमारे भी है कुछ रंगे- तगज़्ज़ुल
हे फ़ख़्र है कि बाशिन्दा है हम शह् रे-जिगर के
मशहूर शायर डॉ मुजाहिद फराज़ ने कहा कि मुरादाबाद की धरती अपने ऊपर जितना गर्व करे कम है कि उसे ग़ज़ल के बेताज बादशाह हज़रते जिगर मुरादाबादी की जन्मभूमि होने का गौरव प्राप्त है। यह जिगर मुरादाबादी ही हैं जिन्होंने मुरादाबाद का नाम अदब के हवाले से सारी दुनिया में रोशन किया है। साहित्य के मैदान में ऐसी शख़्सियात कम ही गुज़री हैं जिनकी रचनाओं और व्यक्तित्व में पूरी तरह समानता हो । जिगर साहब ऐसे ही गिने चुने शायरो में से एक हैं। जिगर ने अपनी शायरी के ज़रिए मोहब्बत का जो पैग़ाम दिया है आज के माहौल में जब सियासत ने हर जगह नफ़रत के अलाव जला रखे हैं उनके पैगाम को आम करने की और भी अधिक ज़रूरत है।
प्रसिध्द नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा कि अनेक शायर हुए हैं जिन्होंने अपनी शायरी से हिन्दुस्तान की रूह को तर किया है, जिगर मुरादाबादी भी ऐसे ही अहम शायरों में शुमार होते हैं। अपनी खूबसूरत शायरी के दम पर मुहब्बतों का शायर कहलाने वाले जिगर के शे’र आज भी लोगों के दिलो-दिमाग़ में बसते हैं जो उन्हें बड़ा और अहम शायर बनाते हैं। जिगर साहब का शे’र पढ़ने का अन्दाज़ बेहद जादूभरा था और तरन्नुम लाजबाव। जिगर साहब के शेर पढ़ने के ढंग से उस दौर के नौजवान शायर इतने ज़यादा प्रभावित थे कि उनके जैसे शेर कहने और उन्हीं के अंदाज़ में शे’र पढ़ने की कोशिश किया करते थे।
मशहूर समीक्षक डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा कि बीसवीं शताब्दी में अली में सिकंदर जिगर मुरादाबादी ने अपनी ग़ज़लों की बुनियाद पर पूरी दुनिया में मुरादाबाद को साहित्यिक पहचान दिलवाई। जिगर ने अपना रंग-ओ-आहंग ख़ुद तय किया उन्होंने शायरी में किसी की पैरवी नहीं की। उन्होंने इश्क़ किया और सिर्फ इश्क़ किया। इश्क़ के रास्ते में जितने पड़ाव आये हर पड़ाव से उनकी शायरी का नया दौर शुरू हुआ। जिगर ने कभी बनावटी शायरी नहीं की बल्कि वह जिस दौर से गुजरे और जो उन्होंने महसूस किया उसे शेर की शक्ल में पेश कर दिया। जिगर की शायरी पर बहुत कुछ लिखा गया और बहुत कुछ लिखा जाता रहेगा।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि कीर्तिशेष जिगर मुरादाबादी जी जैसे ऐतिहासिक शायर को पढ़ना, उनकी रचनाओं को किसी न किसी माध्यम से सुनना अर्थात् शायरी के एक पूरे युग से जुड़ना, उससे साक्षात्कार करना।
युवा शायर नूर उज़्ज़मां नूर ने कहा कि यह कहना ग़लत होगा कि जिगर सिर्फ़ इश्क़ो मस्ती के शायर है। बेशक़ जिगर शराब औ शबाब में डूबे हुए हैं लेकिन ऐसा भी नहीं है कि वे अपने आसपास के माहोल से बे ख़बर हैं। वो कहते बंगाल जैसी नज़्म भी कहते हैं जिसमें उस वक़्त की अंग्रेज़ी सरकार को तंक़ीद का निशाना बनाते हैं। उन्होंने "गांधी जी की याद में" " ज़माने का आक़ा गुलामे ज़माना" "ग़ुज़र जा" "ऐलाने जम्हूरियत" जैसी नज़्में भी कही हैं। इन नज़्मों से हमें उनके सियासी शऊर का पता मिलता है। 60 साल गुज़र जाने के बाद भी अगर जिगर के शाइरी में आज भी नये पहलू तलाश किये जा रहे हैं तो ये उनके अज़ीम शाइर होने की ही निशानी है।
युवा कवि मयंक शर्मा ने कहा कि जिगर मुरादाबादी भी कई दूसरे बड़े शायरों की तरह ये भ्रम खड़ा करते हैं कि बेहतरीन शायरी का रास्ता शराबखाने से होकर गुज़रता है। जिगर साहब की शायरी को देखें तो उसमें अलग-अलग रंग दिखाई देते हैं। जिगर आशिक़ मिज़ाज इंसान थे। उन्होंने मेहबूब को टूटकर चाहा। उनके नाम के आगे लिखा मुरादाबादी हमें ये गर्व कराता है कि जिगर साहब हमारे हैं और अपने कलामों से हमेशा हमारे भीतर ज़िन्दा रहेंगे।
युवा कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने कहा कि जिगर साहब की परंपरागत शाइरी हुस्न,इश्क ,ग़म और सादगी में लिपटी और आधुनिकता का टच लिये हुए है।उनकी रिवायती ग़ज़लों का बेपनाह हुस्न जब चाहने वालों के बीच आया तो दीवानों के मेले लगने लगे।जिगर साहब का मस्तमौला और बेपरवाह ज़िंदगी जीने का अंदाज़ उनकी कलम में भी दिखता है। जब जब दीवाने मुहब्बत करेंगे, तब तब जिगर साहब के शेर पढ़कर ही मुहब्बत के दरिया में पहला गोता लगाकर ,अपनी मुहब्बत का आगाज़ करते हुए, मुकम्मल करने की कसमे खायेंगे। जिगर मुरादाबादी शाइरी के आसमान में चमकते रहेंगे।
युवा कवि दुष्यंत कुमार ने कहा कि आली मोहतरम जिगर मुरादाबादी बीसवीं सदी के मुकम्मल गजल लिखने वाले शायर माने जाते हैं। साधारण शिक्षा के बावजूद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ने उन्हें सम्मान स्वरूप डी-लिट की उपाधि से नवाजा। 'जिगर' जब शेर कहना शुरू करते तो लोगों पर जादू सा छा जाता। जिगर उन भाग्यशाली शायरों में से हैं जिनकी रचना उनके जीवनकाल में ही 'क्लासिक' माने जाने लगी।
युवा और साहित्यिक पत्रकार अभिनव चौहान ने कहा कि जिगर मुरादाबादी शायरों को पेमेंट देने की हिमायत करने वाले पहले शायर थे। मुशायरों में उनसे पहले किसी ने यह मांग नहीं की थी। लेकिन उन्होंने अपने कलाम पेश करने की एवज़ में पेमेंट की परंपरा शुरू की। अतिश्योक्ति न होगी यह कहना कि इसी चलन के कारन सिनेमा में गीतकारों को पूरा सम्मान और बेहतर पारिश्रमिक दिया जाने लगा था। मोहब्बत और अना के शेरों में अक्सर उनका हवाला दिया जाता है।
:::::::::प्रस्तुति::::::::
ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
मुरादाबाद लिटरेरी क्लब
मो०8755681225