मंगलवार, 8 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा ------अपाहिज सोच

किचिन में खाना बना रही अवनि सामने मोबाइल फोन रख कर बच्चों का ऑनलाइन होम वर्क भी देख रही थी ।कोरोना की वजह से सभी शिक्षकों को घर से ही बच्चों का होम वर्क देखना होता है ।यही समय घर के कामों का और यही पढ़ाने का । सोफे पे लेटी अवनि की सास आवाज लगाती हैं कि अरे !अवनि अवहीँ नाश्ता न ले आई देख वो लाला तो नाह धोय के आये गयो री ।हां, लाती हूँ, बस पाँच मिनट और बच्चे ऑनलाइन हैं अम्मा !अवनि ने रसोई में से बताया । अरे,नेक जल्दी कर लिया कर ,एक हाथ की अपाहिज लड़की हमारे छोरा के पल्ले बाँध के माँ बाप हय गए बेफिकर।मुसीबत तो हमरे नसीब पड़ी है ।अब भुगतो ।जिंदगी जाने कैसे कटेगी?अवनि की उलाहना देते हुए बोली ।अम्मा ,क्यों ताने देती हो ,जैसे यह ड्यूटी करते हैं मैं भी तो करती हूँ ,अब एक हाथ ही सही ..........यही तो ..कहते कहते अवनि नाश्ता ले आई ।बचपन में स्कूल जाते समय एक्सीडेंट में उसका हाथ चला गया पर अवनि के माता पिता ने उसकी इस अक्षमता को सक्षमता में कैसे बदला ,यह तो अवनि बहुत अच्छे से जानती थी ।उसकी सरकारी नॉकरी लगी ,तो लड़के वाले स्वयं उसका हाथ मांगने आने लगे । लोग अवनि की तनख्वाह पूछते तो उसके हाथ की कमी किसी को न दिखती ।गौरव को शिकायत थी पर माँ ने उसे खूब समझाया  ।पैसा ही समय पर काम आता है ।लड़की देखने में भी बुरी नही है। अवनि अपनी सास के उस व्यक्तित्व को मन ही मन दोहरा रही थी ।दया आ रही थी उसे समाज के ऐसे लोगों की सोंच पर ,जो किसी सक्षम को भी अपनी निम्न सोंच से बार -बार अपाहिज घोषित करके उसे नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं । असल में विकलांगता तो कहीं और है और ..........इसी चिन्तन में अवनि आपको शाबासी देती हुई अपनी सास को भी नाश्ता कराने लगी ।

✍️ डॉ प्रीति हुँकार
 मुरादाबाद

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