स्वाति विश्वविद्यालय मेंं समाजशास्त्र की प्रवक्ता थी।समाज मेंं होने वाले परिवर्तन पर उसके लेख पत्र पत्रिकाओं मेंं छपते थे।सभी उसके प्रशंसक थे।घर लौटकर कपडे़ बदल वह रसोई मेंं लग जाती।एक रोटी हल्की सी जल गयीं, तभी सास की आवाज सुनायी दी,"बडी़ बडी़ ड्रिग्रियों से रोटी गोल नहीं बनती बल्कि जल जाती है"।पति की जलती हुई आँखे देखकर स्वाति की आँख मे आँसू भर आये और वह कुछ न कह सकी।
✍️डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद
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