बुधवार, 9 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा ------ 'टूटते ख्वाब '


मीतु सिर पर रखे पल्लू को संभालती हुई रसोई में इधर से उधर जल्दी जल्दी चलते हुए खाना बनाती जा रही थी. शादी के बाद आज उसकी पहली रसोई थी उसे बहुत डर लग रहा था कि वह सही से खाना बना भी पाएगी या नहीं?
उसे याद है कि वह अपने मायके में खाना बनाने के उद्देश्य से बहुत ही कम गई थी बस मम्मी जब खाना बनाती थी तब उनको यह बना दो वो बना दो यही कहने जाती थी और मम्मी भी हँसते हुए अपनी गुड़िया के पसंद के पकवान बनाकर बहुत ही खुशी महसूस करती थीं.
"बहू जल्दी करो सब लोग आ चुके हैं खाने के लिये l"
सासू माँ ने कड़क आवाज मे कहा.
"जी मम्मी जी अभी बस थोड़ी देर मे तैयार करने वाली हूँ खाना l" उसने सहमते हुए कहा.
"हमारी बहु तो बहुत ही अच्छा खाना बनाती है.... उसने तो कुकिंग का कोर्स किया है न!" मिसेज गुप्ता ने खुश होते हुए कहा. सुनकर सभी मुस्कराने लगे.
मीतु ने टेबल पर खाना रख दिया और सभी चटकारे ले लेकर खाने लगे.
खाना लजीज बना हुआ था कोई कुछ नहीं बोला हाँ सासू माँ ने इतना जरूर कहा.
" खाना बनाना कोई बड़ी बात थोड़े ही नहीं है सभी बना लेते हैं l"
सुनकर सभी ने हाँ मे हां मिला दी और खाकर मीतु को गिफ्ट आदि देकर चली गईं.
मीतु को अच्छा लगा... खुशी महसूस हुई कि उसने सबके लिए अच्छा खाना बनाया.
वह जो भी अच्छा काम करती उसके लिए तो ससुराल मे कोई कुछ नहीं कहता उत्साहजनक शब्द सुनाने को उसके कान तरस गए थे और गलतियों को ऎसे उछाला जाता जैसे उसने पता नहीं कितना बड़ा अपराध कर दिया.
धीरे धीरे उसको भी सुनने की आदत सी हो गई किसी से कोई उम्मीद ही नहीं रही कि कोई उसके अच्छे काम के लिए दो उत्साहवर्धक शब्द भी बोलेगा.
धीरे  धीरे उसको लगने लगा कि कमी उसमें ही है वह डिप्रेशन में आ गई और कॉन्फिडेंस तो जैसे छूमंतर ही हो गया.
शादी से पहले वह कितनी खुश थी लगता था माँनो वह कहीं की महारानी बनने जा रही हैं सभी उसको प्यार करेंगे उसके अच्छे आचरण और व्यवहार के लिए मगर यहां तो सब कुछ उल्टा ही था.
ख्वाबों को टूटते हुए देखकर उसकी आँखें भर आतीं .
 ✍️ राशि सिंह
मुरादाबाद उत्तर प्रदेश

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