मंगलवार, 8 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की लघुकथा ------ कमीशन


  डॉक्टर साहब खाली टाइम में बैठे अपने दोनो कंपाउंडर से बात कर रहे थे ।डॉक्टर साहब का नया अस्पताल बन रहा था और वह कंपाउंडरो को समझा रहे थे कि किस प्रकार से व्यवस्था को संभालना है । डॉक्टर साहब ने अपने कंपाउंडर सुशील से कहा मैं तो दुखी हो गया हूं, इनमें मिस्त्रीयों से और लकड़ी के काम करने वालों से जहां देखो कमीशन का माहौल बना रखा है।  जो भी सामान खरीदने जाता हूं , इन लोगों का कमीशन वहां पर सेट होता है इस हिसाब से तो मुझे नए अस्पताल में बहुत पैसा खर्च करना पड़ेगा । अभी यह बात चल ही रही थी कि अचानक डॉक्टर साहब के पास एक जनाना मरीज आ गया । डॉक्टर साहब ने फौरन अपनी वाइफ को बुलाया और उन्हें मरीज को लेबर रूम में शिफ्ट कर दिया । डॉक्टर साहब की वाइफ जो कि एक महिला डाक्टर थी,   मरीज को देखने लगी, कुछ ही देर में डॉक्टर साहब के केबिन में एक बैग टांगे आशा वर्कर का प्रवेश हुआ आशा के आते ही डॉक्टर साहब ने कहा आओ शीला बैठो तुम्हारे मरीज को क्या परेशानी है  बताओ । आशा वर्कर ने कहा इसका डिलीवरी का टाइम है और मैं भाभी जी से इसका प्रसव कराने के लिए लाई हूं । कुछ देर पश्चात आशा वर्कर ने अपनी ड्यूटी का हवाला देते हुए डाक्टर  साहब से जाने की इजाजत मांगी और जाते-जाते डॉक्टर साहब से बोली डॉक्टर साहब मेरे कमीशन का ध्यान रखना अब तो मैं लगातार आपके पास केस लेकर आती हूं । कंपाउंडर सुशील के सामने इस तरह के शब्द सुनकर डॉक्टर साहब कुछ असहज से हुए । यह कह आशा वर्कर तो चली गई लेकिन कंपाउंडर सुशील डॉक्टर साहब को नजरें गड़ाए देख रहा था। डाक्टर साहब भी कंपाउंडर सुशील से नजर बचाते हुए अपने काम में व्यस्त हो गए ।


✍️ विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
Vivekahuja288@gmail.com

1 टिप्पणी: