मंगलवार, 8 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की कहानी ---- मां

   
राजू की पत्नी रमा चीख-चीख कर अम्मा-अम्मा की आवाज़ लगा रही थी और सोच रही थी कि बुढ़िया कहाँ मर गई।घर का सारा काम पड़ा है,बच्चे भी स्कूल से लौट रहे होंगे उनके लिए भी नाश्ता-पानी कुछ तैयार नहीं है।मैं भी अभी अभी स्कूल से लौटी हूँ।मैं क्या-क्या काम करूं।बर्तन माँजूं ,रसोई साफ करूं या इस कामचोर बुढ़िया को बैठकर कोसूं।
        आवाज़ सुनकर अम्मा जो तेज़ बुखार/सरदर्द के कारण पैरासिटामोल की गोली लेकर लेट गई थी उससे कुछ आराम मिला तो नींद आ गई हड़बड़ाकर उठी और डरते-डरते बहू के पास पहुंची और बोली बहू क्यों परेशान हो रही हो।मैं  जब कपड़े धोकर सुखाने डाल रही थी तभी अचानक तेज सरदर्द के कारण दवा लेकर लेट गई बुखार होने के कारण कुछ करने का मन नहीं हुआ।
       बहू इतना सुन आग बबूला होकर बोली बुढ़िया तू बहाने मत बना हल्का बुखार ही तो था,मर तो नहीं रही थी।सारे घर का काम कौन करेगा।मैं भी हारी-थकी आई हूँ। मेरी एक प्याली चाय और बच्चों के लिए शाम के नाश्ते की जरूरत तुझे दिखाई नहीं देती क्या,,
     अम्मा हिम्मत करके बोली बहू इसमें इतना नाराज़ होने की क्या जरूरत धीरे से भी तो कह सकती हो।चल-चल ज्यादा ज़ुबान मत लड़ा रसोई में जाकर चाय -नाश्ता बना।सब कुछ दस मिनट में हो जाना चाहिए।
        इतने में रमा का पति राजू भी ऑफिस से लौटआया। रमा की तरफ देखकर बोला डार्लिंग तुम्हारा मूड आज कुछ उखड़ा-उखड़ा लग रहा है क्या कोई बात हो गई।रमा ने राजू को अपनी ओर झुकते हुए देख आंखों में घड़ियाली आंसू भरकर अम्मा के बारे में न जाने कितनी झूठी बातों को भी सच का लबादा उढ़ाकर अपनी जान का दुश्मन तक कह डाला।
     राजू ने आव देखा न ताव लगा अम्मा पर बरसने।अम्मा को झूठी ,कामचोर,हरामखोर,निकम्मीऔर न जाने क्या-क्या कहते हुए उसपर चप्पल तान कर मारने को उतारू हो गया। अम्मा भी अपनी सफाई में कुछ कहना चाह रही थी मगर उसकी बात तो राजू के गुस्से   की आग में घी का काम कर रही थी।हारकर माँ चुप हो गई और आंखों में आंसू भर कर बेमन से काम में जुट गई।
      अब तो यह रवैया रोज़ का ही  अंग बनता जा रहा था।यहां तक कि बहू भी अम्मा पर हाथ छोड़ने में संकोच न करती।यह बात वहां के संभ्रांत नागरिकों को  अखरने लगी परंतु वे इसे उस परिवार का निजी मामला मानकर चुप रहते।
        परंतु जब उस असहाय अम्मा पर ज्यादतियों की रफ्तार इतनी बढ़ गई कि अम्मा की चीखों को घर के खिड़की,दरवाजे भी रोकने में नाकाम होने लगे तो किसी ने चुपके से सौ नंबर पुलिस को सूचित करके सारी व्यथा कथा से अवगत करा दिया।
    चंद मिनटों के पश्चात ही पुलिस  ने राजू के घर का दरवाजा खटखटाया और बाहर आने को कहा।तुरंत राजू ने पत्नी के साथ डरते-डरते दरवाजा खोला और बाहर आकर पुलिस वालों से आने का कारण पूछा तब पुलिस वालों ने उनसे थाने चलने को कहते हुए कहा हमारे पास आपके विरुद्ध माँ के साथ दुर्व्यवहार करने की शिकायत दर्ज है।आप लोग माँ के साथ मार पीट करते हैं तथा उनसे घर का सारा काम करने का दवाब बनाकर उनको शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताड़ित करते हैं।
     राजू और उसकी पत्नी ने कुछ कहना चाहा तो पुलिस वालों ने कहा जो भी कहना है थाने चलकर कहें।इतना कहकर उन्हें गाड़ी में बैठाकर चलने को तैयार हो गए।
         गाड़ी स्टार्ट होती इससे पहले बूढ़ी अम्मा ने आकर पुलिस वालों से कहा कि मेरा बेटा और बहू बहुत अच्छे हैं।मेरे बड़ा खयाल रखते हैं।मुझे पलंग पर ही खाना देते है और मेरी दवा का भी पूरा-पूरा ध्यान रखते हैं।मैं तो इन्हीं की बदौलत ज़िंदा हूँ वरना मेरा और कौन है।मेरा बेटा तो हज़ारों में एक है।भगवान ऐसा बेटा सबको दे।तभी पोता बोला नहीं पुलिस अंकल मेरी दादी झूठ बोल रही है।दादी ने उसे भी डांटते हुए अंदर भेज दिया।
        पुलिस वालों को बूढ़ी अम्मा पर दया आ गई,उन्होंने राजुऔर उसकी पत्नी को खास हिदायत देते हुए छोड़ दिया। लेकिन राजू और उसकी पत्नी अपनी करनी पर अंदर ही अंदर बहुत लज्जित हो रहे थे।यहां तक कि अपनी मां से आँखें मिलाने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहे थे।
      दोनों तुरंत माँ के चरणों में गिरकर बार-बार क्षमा याचना करने लगे और भविष्य में ऐसा न करने की कसमें खाने लगे।ऐसा घ्रणित विचार भी अपने मन में न लाने का प्रण करते हुए माँ की महिमा का गुणगान करते हुए सभी से कहने लगे कि,,
माँ तो साक्षात ईश्वर का स्वरूप होती है।माँ का दिल आईने की तरह साफ होता है।हमारी सारी भूलों को एक पल में क्षमा करके हमें सुपुत्र का दर्जा अगर कोई दे सकता है तो वह है हमारी माँ।
   हम भूल कर सकते हैं परंतु एक मां भूल से भी कभी ऐसी कोई भूल नही कर सकती।
      अर्थात मां तो साक्षात ईश्वर की प्रतिमूर्ति है।
     
               
✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
 मुरादाबाद/उ,प्र,
 मोबाइल-  9719275453
   
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