बुधवार, 22 अप्रैल 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की बाल कहानी ----- नादान मोलू


   मोलू बंदर आज बहुत परेशान था   उसको समझ नहीं आ रहा कि  वह खुश कैसे  रहे? बह  आम के बाग में गया और एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर कूद कूद कर  उछल कूद करने लगा. इससे बहुत सारी   शाखाएं और अमरुद टूटकर नीचे गिर कर रोने लगे.
​ सबको कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मोलू को आखिर हो क्या गया है?
​ कई अमरुद तो बहुत छोटे छोटे थे जो और बड़े हो सकते थे परंतु  मोलू  की नादानी के कारण हो जमीन पर गिरे बिलख रहे थे.
​ उधर छोटू बाबू  और कालू बंदर मजे से अमरूद खा रहे थे पके पके  अमरूदों को भी आत्म संतोष हो रहा था.
​  मोलू की आंखें लाल हो रही थी गुस्से के मारे और चेहरा सुखा  सा  कोई रौनक नहीं थी चेहरे पर.
​  मोलू अक्सर बहुत गुस्सा करता था इससे उसके माता-पिता हमेशा दुखी रहते  थे की मोलू खुश क्यों नहीं रहता  और  बच्चों के साथ खेलता क्यों नहीं ?
​ उसकी गुस्से के कारण धीरे-धीरे उसके सभी मित्रों से दूर होते गए और  वह अकेला रह गया अब उसको बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था कोई भी उससे बात करने वाला नहीं था.
​ एक दिन वो   मोलू बंदर की मम्मी चंपा ने उसको अपने पास बैठाया और उसकी उदासी का कारण पूछा.
​   मोलूने उदास होते हुए कहा कि उससे कोई नहीं बोलता उसके सारे मित्र  उससे दूर रहते हैं .
​ मम्मी ने प्यार से  मोलू के सिर पर हाथ फेरा और समझाते हुए कहा कि उसको थोड़ा शांत रहना चाहिए अपने आसपास की चीजों से प्रेम करना चाहिए.
​ किसी को भी सताना नहीं चाहिए पेड़ पौधों को भी नहीं क्योंकि उनके भी दर्द होता है जब उनको हम बेरहमी से तोड़ते हैं तो वह तड़पते हैं.
​    मोनू अपनी मम्मी के बात सुन तो रहा था लेकिन ध्यान बिल्कुल नहीं दे रहा था.
​  थोड़ी देर बाद मम्मी अपने घर के काम करने  लगी और  मोलू ने टीवी चला कर टीवी देखना शुरू कर दिया.
​ लेकिन उसे टीवी देखना है बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था उसको अपने मित्रों के बहुत याद आ रही थी जो उससे बोलते नहीं थे.
​ उसने उठकर अपना मुंह धोया और शीशे में खुद को गौर से देखा उसके माथे की लकीरें गहरी हो रही थी क्योंकि वह बहुत गुस्सा करता था.
​ उसने अपने बाल बनाए और आंखों में काजल लगाया, फिर   वह  अपनी मम्मी के पास किचन में गया, मम्मी गीत गाते हुए खाना बना ​​ थी और पापा मुस्कुराते हुए उनकी रसोई में सहायता कर रहे थे.
​  मोलू को दोनों ने अनदेखा कर दिया क्योंकि वह किसी की बात तो मानता नहीं था हमेशा रोता चिल्लाता रहता था.
​ उसने मम्मी से मुस्कुराते हुए कहा कि क्या है उनकी कोई हेल्प कर सकता है.
​ मम्मी पापा दोनों को बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि उन्होंने पहली बार   मोनू का बदला हुआ रूप देखा था.
​" नहीं  मोलू तुम कुछ मत करो बाहर जाकर बैठ जाओ मैं सब कुछ कर लूंगी!"
​ मम्मी ने मुस्कुराते हुए कहा तो मोलू को एहसास हुआ कि हमें अपने सभी कार्य हंसते हुए ही करनी चाहिए.
​ कभी दूसरों पर गुस्सा नहीं करना चाहिए और हमेशा खुश रहना चाहिए.
​ इसके बाद मोलू ने खुश रहना से रहना शुरू कर दिया. उसके सभी मित्र फिर से उसके साथ खेलने लगे और पेड़-पौधे भी उससे खुश रहने लगे.

​  ✍️  राशि सिंह
​ मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
​( अप्रकाशित एवं मौलिक बाल कहानी)

वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। मंगलवार 21 अप्रैल 2020 को आयोजित बाल साहित्य गोष्ठी में प्रस्तुत की गई जितेंद्र कमल आनंद , डॉ प्रीति हुंकार , अशोक विद्रोही , नृपेंद्र शर्मा सागर , राजीव प्रखर ,श्री कृष्ण शुक्ल, सीमा रानी, अभिषेक रुहेला और मंगलेश लता यादव की बाल कविताएं


बच्चे तो बच्चे होते हैं
भोले-भाले दिल के सच्चे
धमा-चौकडी खूब मचाते
जब हँसते हैं लगते अच्छे

खेल-खिलौने, छीना-झपटी
हो बेकार ,कार है रपटी ।
इसका हँसना,उसका रोना
रोज़ चिढ़ाये कहकर नकटी

गुड़िया बहुत अभी है छोटी
नहीं चिड़ाओ कहकर मोटी
बंद सभी को घर में रहना !
बंद करो अब नल की टोटी।।

✍ जितेन्द्र कमल आनंद
रामपुर उ प्र, भारत
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मेरे घर का छोटा उपवन
अब हँसता है मुस्काता है.
उसको खुशियाँ नई मिलीं है
यह बात मुझे बतलाता है.

पहली बार साथियों मैंने
जी भर के उद्योग किया.
लॉक डाउन की अवधि में
समय का सदुपयोग किया.
हरे भरे पेड़ पौधों को नित
देख हृदय हर्षाता है.
उसको...........
थोड़े दिन की देखभाल में
मैने कितना कुछ पाया है.
फल फूलों के गहनों ने
बृक्षों को खूब सजाया है.
ताजे फल सब्जियों से अब
घर मेरा भर जाता है.
उसको........

✍ डॉ प्रीति हुंकार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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  शोर मचाता गोलू आया
             मेरे गुब्बारे भरवा दो
मेरी छोटी सी पिचकारी
             ठीक नहीं है लंबी ला दो
सारे बच्चे उधम मचाते
             रंग लगाते घूम रहे हैं
चीनू मीनू गुब्बारे ले
             मुझे मारने झूम रहे हैं
और देरअब नहीं रुकुंगा
           मुझसे भी इनको रंगवा दो
रंग बिरंगी इस होली में
           सब ने मुझे गुलाल लगाया
लाल हरा नीला और पीला
           रंग लगाना मुझको भाया
आओ मिलकर गुझिया खाएं
          पापड़ मठरी खूब उड़ाएं
होली की छुट्टी है भाई
          मिलकर सारे मौज मनाएं
होली का हुड़दंग बजेगा
               होली गाईं जाएंगी
रंगो के ही  संग संग
          सब नाराजी घुल जाएगी
                   
 ✍️ अशोक विद्रोही
 412 प्रकाश नगर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 8218825541
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आओ बच्चों तुम्हे सिखाएं खेल खेलने घर बैठे।
खेल सकेंगे इसको मिकलकर चाहे दो हों चाहे छः।।

पेपर लाओ एक बड़ा तुम चाहे टुकड़ा चार्ट का।
चल जाएगा कोई टुकड़ा भी एक मोटे गत्ते का।

मनपसंद रंग में तुम रंग लो और बनालो खाने सौ।
फिर कुछ करलो चित्र इकट्ठे अपनी पुरानी पुस्तक से।

हाथी घोड़ा शेर भेड़िया साँप और बिछु जो हो।
कुछ जादूगर परी फलों की और टोकरी भी लेलो।

चिपका लो तुम उन चित्रों  गए जो हम रहे बता।
कुछ पंक्ति भी लिखकर तुम इन खानों में लो चिपका।

पाँच नम्बर पर बैठा मेंढक, 10 पर कूद लगाएगा।
बैठा सात पर छोटा बिच्छू 2 पर वापस लाएगा

अगर बारह पर पहुंच गए तो सेब तुम्हे मिल जाएगा।
ख़ाकर सेब मिलेगी ताकत दुगुनी कदम (24)बढ़ाएगा।

सत्रह पर पाओगे घोड़ा जो जाए पच्चीस पर दौड़ा।
बाइस पर  मिले जादूगर खड़ा एक चल दे और बढ़ा।

मिले तीस पर काला नाग, कहे जाओ बीस पर भाग।
पैंतीस पर मिल जाये चुड़ैल, दो चांस  देगी बैठाय।

चालीस पर भेड़िया गुर्राये, बत्तीस पर दे तुम्हे भगाय।
पैंतालीस से पहुंचो साठ फलों की टोकरी गर मिल जाये।

पैंसठ पर मिल जाये परी, समझो चालें चार बढ़ी।
सत्तर पर  खूंखार बाघ, चार घर पीछे को भागे।

हाथी दादा अस्सी पर पहुंचेंगे दस घर आगे।
सत्तानवे पर शेर खड़ा, सीधे सत्तासी पर दे गिरा।

पिचानवे पर जो मिल जाये कार,
समझो हो गए सौ के पार।

✍️  नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद
9045548008 
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सुन्दर स्वप्न सजाओ बच्चो,
छुट्टी में इस बार।

पुस्तक बन कर तुम्हें पुकारें,
प्रेरक गाथाएं।
आने वाले कल की बनकर,
उजली आशाएं।
आगे तुम पर भी आना है,
कर्तव्यों का भार।
सुन्दर स्वप्न सजाओ बच्चो,
छुट्टी में इस बार।

कष्टों में भी डिगे नहीं जो,
कितने ही चेहरे।
कदम बढ़ाते गये राह पर,
कभी नहीं ठहरे।
अपनी प्रतिभा को ऐसे ही,
देते रहना धार।
सुन्दर स्वप्न सजाओ बच्चो,
छुट्टी में इस बार।

नवयुग के प्रतिनिधि बनकर तुम,
बढ़ते जाओगे।
राष्ट्र-प्रतिष्ठा में कितने ही,
चन्द्र लगाओगे।
ऐसा प्यारा कल लाने को,
हो जाओ तैयार।
सुन्दर स्वप्न सजाओ बच्चो,
छुट्टी में इस बार।

🙏 राजीव 'प्रखर'
डिप्टी गंज
मुरादाबाद 244001
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छोटू पापा से ये बोला, कब तक घर में बंद रहूँगा
बैठे बैठे ऊब गया हूँ, कब जाकर के मैं खेलूंगा।

पापा ने उसको समझाया, बाहर जाने में खतरा है।
बाहर कोरोना का संकट, जाने कहाँ कहाँ पसरा है।
कुछ दिन घर में बंद रहेंगे, इसकी कड़ी टूट जाएगी।
बाहर आने जाने पर से, पाबंदी भी हट जाएगी।
तो क्या मैं घर के अंदर ही, निपट अकेला पड़ा रहूँगा।
बैट बॉल, से दूर बताओ, घर में कब तक सड़ा रहूँगा।

घर में कहाँ अकेले हो तुम, मैं भी तो हूँ, मम्मी भी हैं।
घर में रहकर खेल खेलने, के कितने ही साधन भी हैं।।
कुछ दिन हमको दोस्त समझ लो, लूडो, बिजनैस, कैरम खेलो।
जब चाहे साथी बच्चों से, तुरत वीडियो चैटिंग कर लो।।
मान गया छोटू फिर बोला, अच्छा घर में ही खेलूँगा।
रोज हराऊँगा दोनों को, घर में तो मैं ही जीतूँगा।

✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG-69,
रामगंगा विहार, मुरादाबाद।
मोबाइल नं.9456641400
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   रंग बिरंगे लेकर गुब्बारे
   जब फेरीवाला आता है
   मन में उठे धमाचौकड़ी
    जी भरकर ललचाता है |

    कभी नीला तो कभी पीला
    कभी गाेलू प्यारा बडा सजीला
    रंग  बिरंगी   तितली  जैसे
     उड़ उड़ जाये रंग रंगीला |

   ऊंचा ऊंचा उडने काे ज्याें
    हाेड़ लगाये ये  मिल  सारे
    कसकर यदि नही पकडे़
    तो दूर गगन में भागे प्यारे |

   नीला नीला मेरा प्यारे
    बाकी बचे सारे तुम्हारे
    इसकाे लेकर इठलाऊँगा
    फिर जी भर मौज मनाऊंगा |

   लेकर अपना गुब्बारा मै
   मित्र मंडली जाऊँगा,
     सबसे मस्तक ऊँचा करके
    अपनी जय बुलवाऊँगा |

✍🏻सीमा रानी
  अमराेहा
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कविता के माध्यम से *'हिन्दी व्याकरण'* के *'कारक एवं चिह्नों'* की जानकारी-

गोलू  बोला  सर  जी  हमको  एक  बात  बतलाओ,
होते  क्या हैं  'कारक' जल्दी  से हमको  समझाओ।

सर  जी  बोले   गोलू   बेटा   *'कारक'*  होते  आठ,
हिन्दी  में  ये   बहु  उपयोगी  बात   बाँधलो   गांठ।

पहले  *कर्ता* है   बतलाता  हमको  *ने*  का  चिह्न,
दूजा *कर्म*  बताता खुद *को* नहीं  किसी से भिन्न।

तीजा *करण* है कहता  *से, के द्वारा*  आओ  जाओ,
चौथा  *सम्प्रदान*  वर्णन  *के लिए*  लिखा ही पाओ।

पञ्चम *अपादान* कहता *से अलग*-थलग  हो  जाना,
छठवां है *सम्बन्ध* सभी तुम *का, की, के* बन जाना।

सप्तम *में, पे, पर'* कहता है यहाँ  *अधिकरण* कारक,
अष्टम अन्तिम *सम्बोधन* कहता  *हे, अरे*  विकारक।।

✍️ अभिषेक रुहेला
फत्तेहपुर विश्नोई, मुरादाबाद
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 कब तक बंद रहेंगे घर में बोली नन्ही मुनिया
मन करता है देखूँ पापा बाहर की अब दुनिया।

बोले पापा बढ़े प्यार से सुन प्यारी सी मुनिया
आयेगा वो दिन जल्दी ही जब घूमेगी तू दुनिया ।

बाहर बैठा ऐसा दुश्मन  डरी है सारी दुनिया
छूने भर से लग जाता है सुन  ओ मेरी मुनिया ।

नहीं समझ में आता घर में बैठी है सारी दुनिया
बंद किया बच्चों को खुद घूम रहा सारी दुनिया।

कोई नही इलाज अभी तक खोजे सारी दुनिया
क्या समझाउँ तूझको बेटा  छोटी है तू  मुनिया।

अच्छा पापा समझ गई कितनी बेबस है ये दुनिया
ढूंढ दवा  देगी एक दिन सब को नन्ही सी मुनिया।
     
  ✍️   मंगलेश लता यादव
जिला पंचायत कम्पाउंड
कोर्ट रोड मुरादाबाद
9412840699
9045031789

मुरादाबाद की साहित्यकार पूनम गुप्ता की कविता ---- सबसे बड़ा अदृश्य युद्ध है, आओ इससे दो-दो हाथ करें


मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता की गजल --- हंस की रातरानी सुनो, दो दिलों की कहानी सुनो ....


मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की बाल कहानी------ जादुई दाने


चिंटू आठ साल का एक बहुत प्यारा सा
 बच्चा था। वह कक्षा दो में पढ़ता था,
 परंतु दिन भर शैतानी करना और कार्टून देखना उसे बहुत पसंद था।जब भी उसके मम्मी पापा उसे पढ़ने के लिये टोकते तो वह मुँह बनाकर एक ओर बैठ जाता था,ज्यादा ज़ोर देने पर थोड़ा बहुत बेमन से पढ़ता फिर जल्द ही टी.वी. देखने बैठ जाता था।डाँट फटकार और प्यार से समझाने पर भी उस पर कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा था।उसका ट्यूशन भी लगवा दिया पर उसकी समझ में कुछ बात न आयी थी।धीरे धीरे परीक्षाएं नजदीक आ गयीं थीं। उसकी मम्मी मीनू और उसके पापा ,सुमित को  उसकी पढ़ाई को लेकर  बहुत चिंता होने लगी थी ।तब मीनू ने  एक तरकीब निकाली।
     अगले दिन जल्दी उठकर नहा धोकर पूजा पाठ करके उसने  कुछ चीनी के दाने मंत्र पढ़कर चिंटू को  दिये और कहा,"ये खा लो चिंटू। " ये क्या है मम्मी,?" चिंटू ने पूछा।"आप मन-मन में क्या बड़बड़ा रहीं थीं अभी ?"
"ये जादुई दाने हैं,इन्हें खाकर जो बच्चा लगातार रोज एक -एक घंटा सुबह शाम पढ़ाई करता है,वह क्लास में फर्स्ट आता है।"चिंटू की मम्मी ने गम्भीर भाव से कहा।
"अच्छा, ऐसा है तो मैं अभी खा लेता हूँ और पढ़कर देखता हूँ।"चिंटू ने आश्चर्य से कहा।
"पर हाँ....इन दानों को खाने के पश्चात
पूरे एक घंटे से पहले यदि पढ़ाई छोड़ दी तो  ये दाने असर नहीं करेंगें और जितना पढ़ा होगा वो भी भूल जाओगे।"
"अरे वाहहहहहह... ये तो मैं आज ही खा लेता हूँ और फिर देखता हूँ मेरे अलावा कोई और क्लास में कैसे फर्स्ट आता है।"
चिंटू ने अकड़ते हुऐ कहा।
" हाँ  पहले नहा तो लो...ये पवित्र दाने हैं...।"मुस्कुराती हुयी मीनू  बोली।
थोड़ी देर बाद चिंटू चीनी के दाने खाकर मीनू के निर्देशानुसार पढ़ने बैठ गया।पूरे एक घंटे बाद उठा और खेलने चला गया।शाम को भी उसने यही किया।यही क्रम रोज चलने लगा।धीरे धीरे परीक्षाएं भी सम्पन्न हो गयीं थीं।
आज चिंटू का रिज़ल्ट आना था।उसकी मम्मी घर के दरवाज़े पर चिंटू की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रही थीं।आज चिंटू के पापा भी उसके साथ स्कूल गये थे।जैसे ही दरवाजे पर चिंटू के पापा की स्कूटी रुकी,चिंटू दौड़कर अपनी मम्मी से लिपट गया और खुशी से चहकता हुआ बोला,"मम्मी आपके चीनी के जादुई दानो ने तो कमाल ही कर दिया,देखिये मैं पूरी क्लास में फर्स्ट आया हूँ!!"
मीनू उसके सर पर प्यार से हाथ फेरती हुई अंदर घर में ले आयी और माथा चूमते हुऐ बोली, शाबाश बेटा!!बहुत अच्छे!पर बेटा ये कमाल तुम्हारी मेहनत का है चीनी के दानो का नहीं।"
"क्या मतलब?"
"मतलब यह कि तुमने रोज दो घंटा पढ़ाई की इसीलिए तुम क्लास मे फर्स्ट आये।"
"पर आपने तो कहा था कि...."
"हाँ कहा था,पर मैं तुम्हें यही बताना चाहती थी  कि बेटा...  सफलता का एक ही रास्ता है,और वह है मेहनत। वह दाने तो मैने डिब्बे से निकाल कर यों ही दे दिये थे ।तुम ऐसे दो घंटे पढ़ने को तैयार नहीं थे।"मम्मी हँसते हुऐ बोलीं।
"ओहहहहह मम्मी,!!...आप कितनी अच्छी हो ! अब से मैं रोज दो घंटे पढ़ूँगा।"चिंटू अपने हाथ में लिये रिज़ल्ट और ट्राफी की ओर देखते हुए बोला।
"अरे भई माँ बेटा बातें ही करते रहोगे क्या?आओ मुँह तो मीठा कर लो,....और हाँ चिंटू....ये मुँह मीठा चीनी के दानो से नहीं..स्पेशल लड्डुओं से होगा"कहकर चिंटू के पापा जोर से हँसे और चिंटू के मुँह में एक लड्डू रख दिया। आज चिंटू मेहनत के फल को समझ चुका था और मीनू के चीनी के जादुई दाने आज लड्डू बनकर पूरे मौहल्ले में बँट रहे थे।

✍️ मीनाक्षी ठाकुर
मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद मंडल के चन्दौसी ,जनपद सम्भल ( वर्तमान में मेरठ निवासी) साहित्यकार डॉ कृष्ण कुमार बेदिल की गजल ----नींदे तेरी, सपने तेरे, रातें तेरी अपना क्या, लुत्फ़ हमें तो रातों रातों ,जगने में मिल जाये है।


मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार डॉ अशोक रस्तोगी की रचना -- लॉक डाउन


हल    कोरोना   का   समझ   नहीं   आता ,
मानव   पर   हावी  आतंक   का  साया  है !
एक निराशा, एक थकन, एक बेबसी सी है ,
हर  आदमी  बेचैनी  की जद  में  आया   है !!

शासन  का  आदेश  है  दूरी  बनाकर   रहो ,
फिर   क्यों  सीसा   पत्थर  से  टकराया  है ?
विषाणु  कितना  हठी  है  जानते   हैं   सब ,
फिर  क्यों  लॉक डाउन नहीं  अपनाया   है ??

हवन , प्राणायाम  को भूल  गया  था   वह ,
आज  फिर  उसी  शरण में आ समाया  है !
करबद्ध  नमस्ते  पर  हंसता  था  हर  बार ,
आज  फिर मजबूरी  में वहीं लौट आया है !!

 ✍️ डॉ अशोक रस्तोगी
अफजलगढ. बिजनौर
उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की कृति ' स्पंदन ' की मनोज मनु द्वारा की गई समीक्षा --- -- "मानवीय संवेदना की पराकाष्ठा से उपजा सृजन है स्पंदन ".


लाओ,
 कलम और कागज
उस पर लिखो
भूखे -नंगों की चीख...
लूट खसौट का हिसाब....
मासूम परिंदों के
नोच डाले गए पर...
मानवीय संवेदना की पराकाष्ठा तक मूल्यों के अवनमन के लिए जिम्मेदार परिस्थितियों, राजनीतिक मद में चूर आसीन सत्तारूढ़ सरकार के निरंकुश पन से आहत, सबल द्वारा शोषित वर्ग की मार्मिकता को अपने व्यंग्य के माध्यम से समाज को सौंपने और उसकी उदासीनता को झझकोरते हुए सजग करने वाली लेखनी के स्वामी आदरणीय अशोक विश्नोई जी अपने सामान्य व्यवहार में भी मूलतः वही धार रखने वाले एक सम्मानित एवं साहित्यिक व्यक्तित्व हैं,....
    आपके रचना कर्म के कैनवास में दूर तक जो दृश्य नजर आता है उसमें अधिकांशत सामाजिक परिवेश में पनपती अपने आसपास की तत्कालीन छोटी-छोटी किंतु असहनीय मानसिक पीड़ा दायी, विषम परिस्थितियां कुरीतियां एवं दोगलेपन को इंगित करती छींटाकशी के खिलाफ बड़े निर्भीक अंदाज में उस पर प्रहार करता प्रतीत होता है ....
    यही विलक्षणता विश्नोई जी को साहित्य के क्षेत्र में अपने समकालीन साहित्यकारों से अलग इंगित करती है....अपने रचनाकर कर्म में विश्नोई जी की पैनी नजर से कोई भी स्वयं को बचा पाने में असमर्थ रहा है... तो चाहे फिर वह शोषण का हामी नामवर सत्ताधारी हो,समाजवाद, पूंजीवाद /बाजारवाद .. या सरकार द्वारा झुनझुने स्वरूप किए गए लुभावने वादे हो.. या उसके द्वारा आंकड़ों की बाजीगरी का खेल.. या सामाजिक कुरीति झेलते रिश्ते, आदरणीय दादा ने अपने व्यंग्य के माध्यम से प्रत्येक को आईना दिखाया है....
  कुछ बानगिया दृष्टिगत हों-
  आंकड़े,
आंकड़ों से टकरा गए..
कुर्सी के
नीचे आ गए
...
....__

गांधी जी ने,
 "गांव को उठाना है"
नारा दिया,
हमारी सरकार ने
इसे कितना सार्थक किया,
अगले दिन हमने देखा..
गांव उठ चुके थे,
अब वहां मैदान शेष था!...
      वास्तव में हृदयस्पर्शी संवेदना में गोता लगाए बिना ऐसा सृजन असंभव है, आर्थिक विसंगति का मुख्य कारण, पूंजीवाद में लिप्त हो सरकार द्वारा शोषित जनता के प्रतिकार के चलते एक आम नागरिक की व्यथा को उकेरती एक सशक्त रचना..

मैं
हवाई चप्पल पहनने वाला,
एक साधारण सा आदमी
अपना कार्य
कराने हेतु
चांदी का जूता,
कहां से लाता....? ??
प्रजातंत्र के हास को पूरी मुस्तैदी के साथ व्यक्त करती एक रचना का अंश...
उठाओ
एक कोरा कागज,
उस पर लगाओ निशान
बताओ उसका हाशिया....
दर्शाओ
मासूमों की चीख पुकार,
सजाओ... खूनी धब्बों से
तब देखो
बन जाएगा प्रजातंत्र की
पुस्तक का जीता जागता
"आवरण.."
यथा समाज में व्याप्त विसंगतियों, मानवीयता के गिरते मूल्यों का मार्मिक वर्णन...
अपने ही घर की
दहलीज पर बैठी
भूख से त्रस्त बुढ़िया,
दूर खड़े कुत्ते को
ललचाई  दृष्टि से,
रोटी खाता देख रही है,..
और त्योहार पर
पाव छूती  बहुओं को
"दूधो नहाओ पूतो फलो"
का आशीष दे रही है...._
राजनीति की वास्तविक दुर्दशा पर..
सिद्ध करो
कि देश की शांति अखंडता
को भंग करने के बाद भी
तुम्हारे... चरण क्यों पखारे जाते हैं ....?...आखिर क्यों??
अन्यान्य इसी प्रकार अन्नदाता किसान की दीन दशा... रोजगार की परिस्थिति के सम्मुख हताशा लिए चेहरे... एवं प्रकृति के दोहन पर सचेत करती व्यंग्य रचनाओं के माध्यम से आदरणीय श्री अशोक विश्नोई जी ने अपनी लेखनी द्वारा समाज को उसके कर्तव्यों के प्रति सचेत करते रहने का जो प्रशंसनीय एवं पुनीत योगदान दिया है वह समाज एवं साहित्य के क्षेत्र में चिरकाल तक अपना विशेष स्थान बनाए रखेगा मैं ईश्वर से उनके स्वस्थ ... दीर्घायु.. एवं प्रसन्न जीवन की प्रार्थना करता हूं...
                 
** कृति :   स्पंदन (काव्य)
रचनाकार : अशोक विश्नोई, डी-12, अवंतिका                          कालोनी, मुरादाबाद -244001                            उत्तर प्रदेश, भारत
प्रकाशक :   विश्व पुस्तक प्रकाशन
                  नई दिल्ली -63
प्रथम संस्करण: 2018
मूल्य      :   150₹
समीक्षक : मनोज वर्मा 'मनु'
               C/o विद्या भवन
              निकट रामलीला मैदान, लाइनपार
              मुरादाबाद 244001
               उत्तर प्रदेश, भारत
              मोबाइल फोन नंबर  63970 93523

संस्कार भारती मुरादाबाद की ओर से रविवार 19 अप्रैल 2020 को ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस आयोजन की अध्यक्षता अशोक विद्रोही ने की । मुख्य अतिथि मनोज मनु तथा विशिष्ट अतिथि बाबा संजीव आकांक्षी थे। इस आयोजन में 21 साहित्यकारों सर्वश्री अभिषेक रुहेला , शुभम कश्यप, अरविंद कुमार शर्मा आनन्द, अमित कुमार सिंह, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ , ईशांत शर्मा, मीनाक्षी ठाकुर , रश्मि प्रभाकर, डॉ मीना कौल, मोनिका मासूम, हेमा तिवारी भट्ट, डॉ रीता सिंह, डॉ अर्चना गुप्ता, राजीव प्रखर, डॉ मनोज रस्तोगी, योगेंद्र वर्मा व्योम, अशोक विश्नोई ,श्री कृष्ण शुक्ल, बाबा संजीव आकांची, मनोज मनु और अशोक विद्रोही ने अपनी रचना प्रस्तुत की। कार्यक्रम का संचालन ईशांत शर्मा ने किया।


इक आस  दबी  है  सीने  में,
कल वो दिन भी  आ जायेगा।
वसुधा पर जो यह  रोग लगा,
निश्चित ही वह  टल  जायेगा।

थोड़ा-सा तुम  भी  सब्र  करो,
थोड़ा-सा  हम   सन्तोष  करें।
समझा  दें  सबको  नमता  से,
कोई भी व्यक्ति  न  रोष  भरे।
तम  ने जो  डेरा  डाल  लिया,
दीपक   ही   उसे   बुझायेगा।
वसुधा पर जो यह  रोग  लगा,
निश्चित ही  वह  टल  जायेगा।

था भटक गया  मानव  पथ से,
लेकिन अब तो यह भान हुआ।
क़ुदरत को हानि  न  देना  तुम,
जिससे  वह  चिन्तावान  हुआ।
अब भवनवास  ही  जीवन  में,
नित   नया   सवेरा    लायेगा।
वसुधा पर जो  यह  रोग  लगा,
निश्चित ही  वह  टल  जायेगा।।

✍️ अभिषेक रुहेला'
ग्रा०पो०- फत्तेहपुर विश्नोई,
मुरादाबाद (उ०प्र०)-244504
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ऐसा लगता है अंतकाल आया
एक कयामत लिए ये साल आया

आदमी आदमी से डरता है
खौफ का ऐसा अंतराल आया

खून इंसानियत का होता है
आसमा से ये क्या बबाल आया

लुट गया कारावाने सब्र-ओ-करार
उनको फिर भी न कुछ मलाल आया

उसने रख्खा शुभम भरम अपना
उसके जैसा न ज़ुल-जलाल आया

 ✍️ शुुभम कश्यप
बाग गुलाब राय
बाजार मुफ़्ती
मुरादाबाद 244001
मोबाइल नम्बर -6396191319
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देश ये फिर से यारों सँवर जाएगा।
जल्द ही ये करोना भी मर जाएगा।।

रौशनी हर क़दम फिर से होगी यहाँ।
तीरगी से वतन जब उभर जाएगा।।

मारना है अगर मार नफ़रत को तू।
मारकर बेगुनह को किधर जाएगा।।

नासमझ बनके जो जाल फैला रहा।
खुद उसी जाल में फँस के मर जाएगा।।

जंग ग़ुरबत से भी आज है देखलो।
हौसला रख ये पल भी गुजर जाएगा।।

बात शासन की मानों मिरे दोस्तों।
गर न मानें मरज़ ये निगर जाएगा।।

है मुझे ये शपथ आज के हाल पर।
अब न 'आनंद' कोई भी दर जाएगा।।

✍️ अरविंद कुमार शर्मा "आनंद"
मुरादाबाद
 उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर - 8979216691
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मैंने अब जीना सीख लिया है,
रोते-रोते हंसना सीख लिया है।
डसती आंखे,चुभती बातें,
मन की तड़पन, तन की ज्वाला,
इन सबको सहना सीख लिया है।
रोते-रोते हंसना सीख लिया है,
हर गम को पीना सीख लिया है,
मैंने अब जीना सीख लिया है।।

चुभती आंखों में कुछ अच्छा ढूंढ लिया है,
खुद की आँखों से खुद को पढ़ना सीख लिया है,
मैंने अब जीना सीख लिया है।
रोते-रोते हंसना सीख लिया है,
मैंने अब जीना सीख लिया है।
रास्ते के पत्थरों को भी पूजना सीख लिया है,
हर परेशानी से जूझना सीख लिया है,
मैंने अब जीना सीख लिया है।।।

   
✍🏻अमित कुमार सिंह
 7 सी/61, बुद्धि विहार
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन नंबर 9412523624
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कोरोना से क्या रोना
जो होना है सो होना
रहो तुम घर के अंदर
रखो तुम साफ-सफाई
घर से जब बाहर जाओ
तो मास्क लगना भाई
लौट के घर मे आकर
हाथो की करो धुलाई
कुछ दिन सह लो परेशान
कि फिर दिन आये सुखदाई
कि घर में रहने में ही
हैं हम सबकी भलाई
कोरोना से क्यों रोना
जो होना है सो होना ।।

✍️ आवरण अग्रवाल "श्रेष्ठ"
मुरादाबाद 244001
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देश को अपना असली चेहरा दिखा गये,
आस्तीनों के सांप सड़कों पर आ गये,
मुरादाबाद के पत्थर दुनिया भर में छा गये,

रहम नहीं था दिल मे डॉक्टर की
जान लेने पर आ गये,
जब पुलिस ने दौड़ाया तब घबरा गये,
मौका लगते ही फूल बरसाने आ गए

मुरादाबाद के पत्थर दुनिया भर में छा गये,

भरी प्लेटें बिरयानी की शौक से खा गये,
नाम पूरे भारत में बदनाम करा गये,
पीतल के शहर पर कालिख़ पुतवा गये,

मुरादाबाद के पत्थर दुनिया भर में छा गये

✍️ ईशांत शर्मा "ईशु"
        मुरादाबाद
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अमीरो की बीमारी ने छीन लिया
निवाला गरीबों का..
बुझ गये चूल्हे रामधन और
मुनिया के।
सोच रहे हैं.....
झोंपड़ी के तिनको को शायद सैनिटाइज़
करने की ज़रूरत तो नहीं ...।
देहातियों को हिकारत से देखने वाले
बड़े लोग...
रखे जा रहे हैं एकांतवास में..
समाज से पृथक,
क्योंकि... वो ऊँचे लोग हैं।
उन्हें प्रारम्भ से ही अकेला पन भाता
आया है। अब लौट रहे है...वतन को
विदेश से...,क्या वतन की याद आयी है..
या कुछ और है....?
वातानुकूलित कमरों में रहने वाले
अचानक ही चाहने लगे..
 तपती जेठ की दुपहरियां
गँवार लोग सहमे हैं....पूछते हैं वैद्य जी से,"ई अमीरों का खाँसी जुकाम भी कुछ
अलग होत  है का?"
खेतों में हल चलाता बुधिया पूछता है..
"ई ढोर डंगर से दूर कैसन रहत बा...?
निःशब्द समाज..!!!
नाइट क्लबों में देर रात तक जागते
युगल ...अब कहाँ है?सम्भवतः अनुशा
सन में रहेंगे कुछ देर के लिये,
जब तक महामृत्यु का तांडव चलेगा...!!
काँपती धरती...विदीर्ण होते शरीर
आज शायद प्रकृति  अपने आवरण से हटा रही है...दूषित तन और मन..सम्भवतः चाहती है करना
 स्वयं को सैनिटाइज़....!!!!

✍️ मीनाक्षी ठाकुर
मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
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मचा हर ओर हाहाकार, मेरे प्रभु राम आ जाओ,
बड़ी मुश्किल में है संसार, मेरे घनश्याम आ जाओ।।

ये कैसी आपदा आयी, थमा पहिया समय का है,
हुए बेबस सभी प्राणी, और आभास भय का है,
हैं संकट में सभी घर द्वार, मेरे प्रभु राम आ जाओ।।

हुए हैं त्रस्त विपदा से,तुम्हें सबने पुकारा है,
निकालो मुश्किलों से अब, तुम्हारा ही सहारा है,
लो अब फिर से कोई अवतार, मेरे प्रभु राम आ जाओ।।

परिस्थितियां हुईं विकराल, संयम टूट ना जाये,
प्रभू आशाओं का दामन कहीं अब छूट ना जाये,
तुम्हीं हो आसरा सरकार, मेरे प्रभू राम आ जाओ।।

✍️ रश्मि प्रभाकर
सेक्टर10, बुद्धि विहार
मुरादाबाद
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तेरे कारण
तेरे कारण
कोरोना तेरे कारण
कितने दिन हो गए
काम पे नहीं गए
भूल गए सारे सपनों को
नजरबंद हो गए
तेरे कारण
कोई कितना भी लुभाए
निकलूँगी न मैं घर से
घर में ही बैठूँगी
कमरे बदल बदल के
दरवाजे पर गई
झांक के मैं आ गई
आग लगे इस वायरस को
दूर अपने हो गए
तेरे कारण
झाडू मैं जोर जोर से
सब घर के कोने कोने
फिर याद आया
बरतन भी हैं धोने
झट रसोईघर गई
काम सब कर गई
कूकर में चावल
मिक्सी में चटनी
फिर खाली हो गई
तेरे कारण
तेरे कारण
कोरोना तेरे कारण

✍️ डॉ मीना कौल
मुरादाबाद 244001
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उँगलियों पर जिंदगी हमको नचाना छोङ दे
बेरहम जीने सुकूं से दे सताना छोङ दे

वक्त इतना तो मयस्सर कर संभल जाएँ  ज़रा
हर घङी कर मोङ पर ठोकर लगाना छोङ दे

या सजा ख्वाबों को दे या नींद से हमको जगा
आब का देके भरम सहरा पिलाना छोङ दे

बेबहर बिखरे हुए तकदीर के अशआर हैं
गा सूरीला गीत या फिर गुनगुनाना छोङ दे

छोङ दे ग़म खिङकियों से घर में घुसने की अदा
ऐ खुशी तू चौखटों को छू के जाना छोङ दे

कर अता नज़रें करम 'मासूम' फूलों पर ज़रा
शाख पे खारों की नाज़ुक गुल खिलाना छोङ दे

✍️ मोनिका"मासूम"
मुरादाबाद 244001
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कोरोना ने देख लो,क्या कर दीन्हा हाल।
हुस्न छिपा है मास्क में,बन्दा छोंके दाल।।
बन्दा छोंके दाल,सीन बदला है भाई।
नार करे अपलोड,मियां की साफ सफाई
घर में गूँजे गान,'सनम जी' 'बाबू' 'शोना'
रार हुई घर बंद,कि जब आया कोरोना।।
 
कुछ दोहे-------

*संकट की आये घड़ी,हो ना वक्त मुफीद*
*माँ बेटी के रूप में,नारी तब उम्मीद।।१।।*

*कब करना है क्या सही,समय तराजू तोल।*
*होशियार होता नहीं,जोखिम ले जो मोल।।२।।*

*जब आहट हो मौत की,रही द्वार खटकाय।*
*भेदभाव हर भूल के,बढ़ें सभी  समुदाय।।३।।*

*समय कसौटी कस रहा,विपदा रूप धराय।*
*नर,दानव या देवता,मन का मुकुर दिखाय।।४।।*

 *समय कभी टिकता नहीं,हर पल बने अतीत।*
*अधरों पर रखना सखे,बस हिम्मत के गीत।।५।।*
 
✍️ हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद 244001
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कैसा यह कोरोना आया
सारे जग में ही है छाया
ठप्प कर रोजगार सभी के
जन जन घर में कैद कराया ।

दिखे विकसित देश भी हारे
हुए मजबूर सब बेचारे
एक एक कर इसने देखो
सारे जग में पैर पसारे ।

मशीनी अब विज्ञान हिला है
नहीं अभी उपचार मिला है
चीन तुम्हारे नव प्रयोग ने
दुनिया को दे दिया सिला है ।

भारतवासी तुम घर रहना
राजन का है बस यह कहना
साथ यदि है सबने दिया तो
देश धरा का होगा गहना ।

✍️ डॉ. रीता सिंह
आशियाना , मुरादाबाद ।
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*सोच रही हूँ मोदी रक्खूँ , उस पुस्तक का नाम*
******************

मैं सोच रही हूँ क्या रक्खूँ  , उस पुस्तक का नाम
कोरोना है जिसमें रावण , मोदी जी हैं राम

राम की तरह मर्यादा का वो पालन करते हैं
पलटवार करते दुश्मन पर कभी नहीं डरते हैं
मोदी जी को भी है जनता प्राणों से भी प्यारी
धर्मनीति मानवता से करते जो हर तैयारी
शीश झुकाकर इस योगी को, करते सभी प्रणाम
मैं सोच रही हूँ क्या रक्खूँ , उस पुस्तक का नाम

कोरोना ने किया आक्रमण बुरा वक्त है आया
मोदी जी ने तभी देश में लोकडाउन करवाया
करते रहते हैं जनता से, अक्सर बातें मन की
रहती फिक्र हमेशा उनको भारत के जन जन की
नहीं रात दिन कभी देखते, करते रहते काम
मैं सोच रही हूँ क्या रक्खूँ, उस पुस्तक का नाम

कोरोना का वध होगा देश मुक्त हो जाएगा
दीपमालिका करके फिर भारत जश्न मनाएगा
गले मिलेंगे ईद मनाएंगे खुशियों से मिलजुल कर
होली के रंगों से खेलेंगे हम आपस मे खुलकर
मोदी जी के यत्नो के आएंगे शुभ परिणाम
*सोच रही हूँ मोदी रक्खूँ , उस पुस्तक का नाम*

✍️ डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद
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साफ़-सफ़ाई-चौकसी, अनुशासित व्यवहार।
कोरोना से युद्ध में, यही प्रमुख हथियार।।


जब तक ढीली हो नहीं, कोरोना की पैठ।
सबसे अच्छा है यही, जमकर घर में बैठ।।

कोरोना से जंग में, एक बड़ी दरकार।
मास्क पहन कर ही करें, घर की हद को पार।।


प्राणों पर भी खेल कर, आयी सबके काम।
वर्दी तेरे शौर्य को, बारम्बार प्रणाम।।

✍️  राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
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,घर से बाहर  न  निकलिए  साहिब ।
चेहरे पर मास्क लगा मिलिए साहिब ।।

अपना घर परिवार ही है जन्नत । 
कैदखाना इसे न समझिये साहिब ।।

यह न मौका है इल्जाम लगाने का ।
कुछ दिन तो मुंह को  सिलिए साहिब ।।

कुछ गलती तेरी थी कुछ थी मेरी।
भुलाकर इसे अब चलिए साहिब।।

एक दूसरे से बनाकर रखें फासला ।
 दिल में अपने दूरी न रखिए साहिब ।।

जलाएं मोहब्बत के दिये हर तरफ ।
नफरत का जहर न भरिए साहिब ।।

हम एक थे, एक हैं, एक ही रहेंगे ।
मिलकर कोरोना से लड़िये साहिब ।।

✍️ डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822
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मन का हर उल्लास मौन है, बड़ी विवशता है
अधरों पर मृदुहास मौन है, बड़ी विवशता है
क्या कहता है रोज़नामचा, कब तक रुकना है
आती-जाती सांस मौन है, बड़ी विवशता है

✍️ योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
मुरादाबाद 244001
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मास्क मुँह पर लगाइये साहिब,
भीड़ से बचकर रहिये साहिब
लापरवाही इतनी भी अच्छी नहीं,
बात अब मान भी जाइये साहिब ।

दोहा
कोरोना दिखला रहा, सबको ऐसा रंग ।
बदल गये हैं देखलो, सबके अपने ढंग ।

✍️ अशोक विश्नोई
 मुरादाबाद
मोबाइल,9411809222
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चतुष्पदी

कुछ दिन तो घर की रोटी और दाल खाइए।
महफूज आप घर में हैं बाहर न जाइए।।
छुप छुप के वार करता है दुश्मन अजीब है।
छुप कर के घर में आप भी खुद को बचाइए।।

गृहणियों की गुहार


मोदीजी गृहणियों को भी राहत दिलाइए।
पुरुषों के लिये भी तो ये फरमान लाइए।।
पाबंदियां जब तक हैं ये पतियों को बोल दो।
कुछ रोज काम घर का भी कर के दिखाइए।

पति पत्नी संवाद


पाबंदियो में प्रिये मत गुस्सा दिखाइए।
कैसे मनाएं आपको खुद ही बताइए।
बाजार मॉल मल्टीप्लेक्स बंद पड़े हैं।
मजबूरियों को समझिए अब मान जाइए।
सुनकर के मेरी बात फिर बीबी ने ये कहा।
कुछ जिम्मेदारी आप भी घर की उठाइए।
पाबंदियां बाहर लगी हैं घर में तो नहीं।
पकवान जो भी खाना हो, खुद ही बनाइए।।

  ✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG 69, रामगंगा विहार
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश
मोबाइल : 9456641400
 -------------------------------------------------------

तेज़ाब मुंह में भरके,
करें कुल्ला दूसरों पे।
कोरोना से कुछ ऐसे,
"जमाती" पड़े हैं झुलसे।।

✍️ बाबा संजीव आकांक्षी
 मुरादाबाद 244001
--------------------------–----------------- -----

क्यों फिरे है तू जहालत पर यूं इतराया हुआ,
कर हिफ़ाज़त जिस्म की ये नूर से पाया हुआ,,

वक्त नाज़ुक है बड़ा घर से निकल मत बावले,
इस कोरोना का क़हर है हर तरफ छाया हुआ,,
-----------------------------------  -

सोचो फिर क्या होगा भाई?
अगर जान पे खुद बन आई?

फिर इसका उपचार नहीं है,
बचें  रहे बस  यही  भलाई ,,

कोरोना  से  दम  घुटता है ,
इससे  मौत  बड़ी  दुखदाई,,

एक तरीका  इसे  मात  का,
बस  बचाव  में रखो सफाई,

बहुत ज़रूरी अगर निकलना,
फॉलो  रूल  करो सब  भाई,,

जात पात ये नहीं  देखता,
थोड़ी भी मत करो ढिलाई ,,

घर के लोग भी साथ न होंगे,
हालत   गर  संदिग्ध   बताई ,,

घर से बाहर मत ही निकलो,
जिससे  खानी  पड़े  पिटाई,,

✍️  मनोज 'मनु'
मुरादाबाद 244001
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सूनी सूनी सड़के हो गईं निर्जन हैं चौराहे
कोरोना  के रूप में यम ने खुद फैलाईं बाहें
पूरी दुनिया में तांडव कोरोना ने मचाया है
गये हजारों कालगाल मे  ये कैसा युग आया है
नहीं दिखाई देता फिर भी  हरदिन बढ़ता जाए
कोरोना के रुप में यम ने खुद फैलाईं बाहें
जो घमंड में ऐंठ रहे थे  गलतफहमियां दूर हुईं
विकसित देशों तक   सारी शक्ति चकनाचूर हुई
बड़े बड़ों के कोरोना से होश ठिकाने आये
 कोरोना के रूप में यम ने खुद फैलाई बाहें
 सत्य सनातन संस्कार ही  लौट लौट फिर आते हैं
फिर फिर धोओ हाथ स्वच्छता का ही पाठ पढ़ाते हैं
 दूर-दूर से करें नमस्ते कैसे हाथ मिलायें
कोरोना के रूप में यम ने खुद फैलाई बाहें
लॉक डाउन का पालन करके ही जीवन बच सकता है
कड़ी तोड़ दो कोरोना की वायरस फिर मर सकता है
जानी दुश्मन बना चीन जो कोरोना फैलाये
 कोरोना के रूप में यम ने खुद फैलाई बाहें
 सूनी सूनी सड़कें हो गई सूने हैं चौराहे
कोरोना के रूप में यम ने खुद फैलाई बाहें   

 ✍️ अशोक विद्रोही
412 ,प्रकाश नगर
मुरादाबाद 8288 2541
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      :::::::::::::::प्रस्तुति::::::::::::::
   
                डॉ मनोज रस्तोगी
                8,जीलाल स्ट्रीट
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      मोबाइल फोन नंबर 9456687822

सोमवार, 20 अप्रैल 2020

वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद में प्रत्येक रविवार को वाट्सएप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया जाता है। इस आयोजन में साहित्यकार अपनी हस्तलिपि में रचनाएं प्रस्तुत करते हैं । रविवार 19 अप्रैल 2020 को आयोजित 198 वें वाट्सएप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे में 26 साहित्यकारों सर्वश्री अभिषेक रूहेला, ओंकार सिंह विवेक ,नवाज अनवर खान,अरविंद कुमार शर्मा आनन्द, राजीव प्रखर, प्रीति चौधरी, जितेंद्र कमल आनंद, अशोक विश्नोई, मीनाक्षी ठाकुर, रवि प्रकाश, मुजाहिद चौधरी, अशोक विद्रोही, श्री कृष्ण शुक्ल, संतोष कुमार शुक्ल, डॉ अशोक रस्तोगी, अनुराग रुहेला, नृपेंद्र शर्मा सागर, डॉ पुनीत कुमार, इंदु रानी, डॉ.प्रीति सक्सेना हुंकार, डॉ.मुजाहिद फ़राज़, प्रवीण राही, प्रीति अग्रवाल, अमितोष शर्मा, डॉ अलका अग्रवाल और डॉ मनोज रस्तोगी ने अपनी हस्तलिपि में रचना प्रस्तुत की ।




























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