मानव पर हावी आतंक का साया है !
एक निराशा, एक थकन, एक बेबसी सी है ,
हर आदमी बेचैनी की जद में आया है !!
शासन का आदेश है दूरी बनाकर रहो ,
फिर क्यों सीसा पत्थर से टकराया है ?
विषाणु कितना हठी है जानते हैं सब ,
फिर क्यों लॉक डाउन नहीं अपनाया है ??
हवन , प्राणायाम को भूल गया था वह ,
आज फिर उसी शरण में आ समाया है !
करबद्ध नमस्ते पर हंसता था हर बार ,
आज फिर मजबूरी में वहीं लौट आया है !!
✍️ डॉ अशोक रस्तोगी
अफजलगढ. बिजनौर
उत्तर प्रदेश, भारत
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