मंगलवार, 25 अगस्त 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की कविता


सुनो
सुनो!
कच्चे धागे सा है
हमारा रिश्ता
बहुत नाजुक मगर
रूह सा मुलायम
जिसमें सुगंध भरी है
प्रेम और
विश्वास की
जो लचकता है
झूलता है
मगर सौम्यता से
फलता फूलता है
उम्र भर संभाल कर
चलना होगा
क्योंकि
मैं नहीं चाहती गाँठ पड़े उसमें
कोई
अविश्वास और स्वार्थ की
सुनो!

✍️  राशि सिंह
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश

सोमवार, 24 अगस्त 2020

वाट्सएप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। मंगलवार 11 अगस्त 2020 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों वीरेंद्र सिंह बृजवासी, अशोक विद्रोही, दीपक गोस्वामी चिराग, मरगूब अमरोही, कमाल जैदी वफ़ा, डॉ पुनीत कुमार , सीमा रानी, राजीव प्रखर, डॉ प्रीति हुंकार और रामकिशोर वर्मा की रचनाएं-----


उठो बालको शीघ्र  नहा  लो,
कंघी करके   काजल  डालो,
आजादी  का  दिन  आया है,
नाचो  गाओ  खुशी मना  लो।

उजली-उजली ड्रेस पहनकर,
उसपर  सुंदर  रिबन लगा लो,
स्वयं    तिरंगा   झंडा   लेकर,
गली -गली उसको फहरा लो।

खेल  कूद के  प्रतिभागी  बन,
सबकोअद्भुत खेल खिला लो,
देश भक्ति  के  गीत  सुनाकर,
दिल के  दरवाजे  खुलवा  लो।

सोनू,   मोनू,    सीता,    गीता,
वृक्षा  रोपण   को  अपना  लो,
घर आँगन  को   सुथरा  करके,
जीवन  को   जीवन  पहनालो।

आजादी    का    पर्व     मनाने,
जन,गण,मनअधिनायक गा लो,
ऊंचे   स्वर   में   स्वयं  बोलकर,
सबसे    जयकारा   लगवा  लो।

घर    जाने    से    पहले   सारे,
बच्चो  एक  कतार   बना   लो,
नुक्ती   का   दोना   ले   जाकर,
सबको  बांटो   खुदभी   खालो।

✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
  9719275453
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आज यहां पर नहीं है राजा
                और न कोई रानी
सब बच्चों की बात करूं
      ‌   ये नहीं है कोई कहानी
नई-नई हो गई ये दुनिया
                अब न रही पुरानी
डिजिटल सब कुछ हुआ
       यहां पर खेल हुए बेमानी
मोबाइल,टीवी, कंप्यूटर
           की दुनिया दीवानी
सुबह से लेकर रात तलक
          सब इन पर ही रहते हैं
दुनिया भर के काम सभी
         बस इन पर ही करते हैं
कोरोना के रूप में जग
            पर आई नयी तबाही
बंद हुए स्कूल इन्हीं पर
                  होने लगी पढ़ाई
खेल खेलते इन पर बच्चे
               इन पर ही पढ़ते हैं
इनके कारण कुंठित होकर
                बार-बार लड़ते हैं
हे मधुसूदन कृष्ण कन्हैया
      ‌      अब जल्दी आ जाओ
आज कंस से कोरोना से
             सबकी जान बचाओ
याद करो यह कहा तुम्हीं ने
             फिर फिर मैं जन्मूंगा
जब जब पाप बढ़ेगा जग में
              तब तब मैं आऊंगा
तांडव कोरोना का है अब
             उसकी है मनमानी
कब तक प्राण कोरोना
          लेगा चिंता ये अनजानी
खुशी खुशी खेलें बच्चे फिर
          ‌      ऐसा चक्र चला दो
इस ब्याधि कोरोना से
       प्रभु जग का फंद छुड़ा दो

 ✍️ अशोक विद्रोही
 412 प्रकाश नगर
 मुरादाबाद
82 188 25 541
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माँ! मैं भी बन जाउँ कन्हैया,
मुरली मुझे दिला दे।
और मोर का पंख एक तू,मेरे शीष सजा दे।
ग्वाल-बाल के साथ ओ! मैया,
मैं भी मधुबन जाऊँ।
प्यारी मम्मी! मुझको छोटी गैया एक दिला दे।

यमुना तट पर मित्रों के सँग,
गेंद-तड़ी फिर खेलूँ।
मारूँ तक कर गेंद,ओ माता!
मुझे पड़े तो झेलूँ।
और कदंब के पेड़ों पर मैं,पल भर में चढ़ जाऊँ।
कूद डाल से यमुना में फिर,गोते खूब लगाऊँ।

ऊँची डाली पर बैठूँ मैं,मुरली मधुर बजाऊँ।
मुरली मधुर बजा कर मैया,गैया पास बुलाऊँ।
मैं फोड़ूँ माखन-मटकी भी,माखन खूब चुराऊँ।
मेरे पीछे भागें गोपी,उनको खूब भगाऊँ।

✍️दीपक गोस्वामी 'चिराग'
शिव बाबा सदन,कृष्णाकुंज
बहजोई(सम्भल) 244410 उ. प्र.
मो. 9548812618
ईमेल-deepakchirag.goswami@gmail.com
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चिंटू मिंटू थे दो भाई, कभी ना करते वो तो पढ़ाई।
खेलते रहते वो तो हरदम,उम्र उन्होंने यूं ही गंवाई।।

करते न होमवर्क पूरा, स्कूल से ये शिकायत आई।
लाख समझाया उनको, फिर भी अक्ल नहीं आई।।

पढ़ लिखकर क्या करना है,ये कह देते दोनों भाई।
थके हारे पापा के मन में,एकदिन तो सोच ये आई।।

ले गए एक दिन,फिर दोनों की काउंसलिंग कराई।
धीरे धीरे उन दोनों के, बस फिर ये समझ में आई।।

इसके बिन जीवन व्यर्थ, इसी में है सब की भलाई।
जीवन का गहना ये तो, मेहनत से करनी है पढ़ाई।

✍️ मरग़ूब अमरोही
दानिशमन्दान, अमरोहा
मोब-9412587622
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गुड्डू भाई करो पढ़ाई,
लोग करेंगे तभी बड़ाई।

कोरोना सी आफत आई,
रखना देखो खूब सफाई।

चुन्नू की न करो पिटाई,
तुम हो उसके अग्रज भाई।

फास्ट फूड से नाता तोड़ो,
दूध पियो औ'खाओ मलाई।

मास्टर जी ने बतलाया था,
बुरी बात है मार कुटाई।

मेहनत करके दौलत लाना,
उससे करना सबकी भलाई।

✍️ कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
प्रधानाचार्य,                                                    अम्बेडकर हाई स्कूल बरखेड़ा
सिरसी (सम्भल)
9456031926
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मेरी जन्मभूमि भारत
सारे जग का प्राण है
सबसे महान है

इस विशाल भूमंडल में
ऐसा सुपावन कोई नहीं
सुंदर तो है देश कई पर
ऐसा मनभावन कोई नहीं

मेरी मातृ भूमि भारत
सारे जग की शान है
सबसे महान है

दीपक है गर अन्य देश
मेरा भारत दिनकर है
वो देश हो गया है रोशन
पड़ी रोशनी जिस पर है

मेरी कर्म भूमि भारत
सारे जग की आन है
सबसे महान है

डाॅ पुनीत कुमार
T -2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद 244001
M - 9837189600
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नंदलाल कन्हाई आओ रे,
फिर  माखन मिश्री खाओ रे |
अँखियाँ निशिदिन बरसत हैं,
क्या कृष्णकन्हाई साेवत हैं |
 पल पल ये जीवन बीत रहा ,
इक क्षण सुख ना चैन रहा |
 अब फिर से दरश दिखाओ रे,
 नन्दलाल कन्हाई आओ रे |

अब गीता ज्ञान सुनाओ रे,
और कर्मयोग समझाओ रे |
 चहुँ और अँधेरा छाया है ,
 ये कपटी मन घबराया है |
 लालच नफरत भरी पडी़,
 जाने मिलन की कौन घडी़ |
 अब नैय्या पार लगाओ रे,
 नन्दलाल कन्हाई आओ रे |

 जीवन की बेला बीत रही,
 नटखट की मुरली मौन रही |
 क्या माखन राेटी याद नही,
 या सुनते अब फरियाद नही |
 क्याेंकर मुखड़ा माेड़ लिया,
 क्याें बीच भंवर में छाेड़ दिया |
 अब फिर से माखन चुराओ रे,
  नन्दलाल कन्हाई आओ रे  |

✍🏻सीमा रानी
अमरोहा
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आओ बच्चो, खेलें मिलकर,
अब गोविन्दा आला।

ऊपर को देखो, हूँ लटकी।
सजी-धजी मैं माखन-मटकी।
राजा-जौनी-पापे-असलम,
दृष्टि सभी की मुझ पर अटकी।
कैसे कूदें सोच रहे हैं,
मोटे लल्लन लाला।
आओ बच्चो, खेलें मिलकर,
अब गोविन्दा आला।

बच्चे सारे बने कन्हैया।
करते जमकर ता-ता-थैया।
रज्जो-रज़िया यों मुस्कातीं,
जैसे हर्षित दोनों मैया।
माखन-मिश्री दूर भगाएं,
सारा गड़बड़झाला।
आओ बच्चो, खेलें मिलकर,
अब गोविन्दा आला।

जिन्हें समर्पित है यह ताली।
जिन पर दुनियां है मतवाली।
उन कान्हा की हर लीला में,
एक छिपी है बात निराली।
उन्हें चढ़ाएं भाव-पुष्प की
मनभावन यह माला।
आओ बच्चो, खेलें मिलकर,
अब गोविन्दा आला।

 ✍️ राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
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सभी गोपियाँ मुझे चिड़ायें,
काला कहके मैया जी ।
ताली मारें मुझे नचायें ,
नाचूँ ता -ता थैया जी ।

लाज न आवै नग्न नहाएँ,
करतीं छप्पक छैया जी ।
सबक सिखाऊं बस्त्र चुराऊं,
कहती बस्त्र चुरैया जी ।

तारी मारैं******
लाठी लेकर उन्हें ढूंढते ,
देखो इनके सैया जी ।
इधर उधर जब बस्त्र न पाए,
करती दैया दैया जी ।
तारी मारैं******

अब न नग्न नहाएँ सर में ,
क्षमा करो हमें भैया जी।
बाल रूप में तुम ही कान्हा ,
सबके लाज बचैया जी ।
तारी मारैं****

✍️ डॉ प्रीति हुँकार
 मुरादाबाद
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अमिया जैसे डाल की
साड़ी भी ज्यों फॉल की
खुशियांँ हों बस हाल की
जय कन्हैया लाल की ।।

घोड़ी दौड़े नाल की
गठरी मिलती माल की
लल्ला झूले पालकी
जय कन्हैया लाल की ।।

बात बिगड़ जा जाल की
झुके कमर जब काल की
तिलक लगाते भाल की
जय कन्हैया लाल की ।।

ऊँचे भारत भाल की
बात गले जब दाल की
या हंँसी नौनिहाल की
जय कन्हैया लाल की ।।
   
 ✍️ राम किशोर वर्मा
रामपुर
मो० नं०- 8433108801

शनिवार, 22 अगस्त 2020

मुरादाबाद क़े साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा ----श्रद्धा


हर साल की तरह इस साल भी,कीर्तन मण्डल की ओर से,गुरु पूर्णिमा पर,एक भव्य शोभायात्रा निकाली गई।शोभा यात्रा में,शहर के अधिकांश गणमान्य व्यक्तियों सहित,काफी बड़ी संख्या में भक्त जन शामिल हुए।
  श्रद्धालुओं में अपूर्व उत्साह था।पूरे मार्ग में हलवा,चना शरवत आदि की जबर्दस्त व्यवस्था थी ।अपनी श्रद्धा के प्रदर्शन की लोगो में होड़ सी लगी थी।लगभग एक किलोमीटर लंबे रास्ते में पचास से अधिक स्थानों पर प्रसाद का वितरण हो रहा था।राह चलते लोगों को भी रोक रोक कर जबरदस्ती प्रसाद दिया जा रहा था। रात के 9 बजे तक ये सिलसिला इसी प्रकार चलता रहा।
     अगले दिन सुबह जब मैं टहलने के लिए  निकला तो मैंने देखा ,पूरी सड़क पर,खाली बोतल, ग्लास, दौने,प्लास्टिक की थैली,कागज की प्लेट,आदि के रूप मै,श्रद्धालुओं की श्रद्धा बिखरी पड़ी थी।
       
✍️  डॉ पुनीत कुमार
T -2/505 
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद -244001
M  -9837189600

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा---समय

 
        "" मारो ! इनको पता नहीं, कहाँ- कहाँ से से चले आते हैं परेशान करने----। मगर हजूर यह तो आप की प्रजा है रामू ने कहा।"
        " वो क्या होती है रे-----?"
   " हजूर वहीं जिसके बल पर आप राज कर रहे हैं---।"
       एक कटु मुस्कान के साथ " हूँ ------राज  कर रहे हैं। सुनो हम राज इनके बल पर नहीं, चाटुकारिता के बल पर कर रहे हैं, समझे।"

अशोक विश्नोई
मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की लघुकथा ------अथक परिश्रम

   
छोटी सी नौकरी और छोटी तनख्वाह में वीरू और उनकी पत्नी राजे का अपने तीन बच्चों के साथ गुजारा करना कठिन तो जरूर था लेकिन वे यह जानते थे कि नेक नीयत मंज़िल आसान किसी ने यूँ ही नहीं कहा है।सादा जीवन उच्च विचार कि उक्ति को चरितार्थ करते हुए भगवान पर पूरा भरोसा रखते हुए अपने परिवार में अत्यंत प्रसन्नता के साथ अपने जीवन की गाड़ी को निरंतर आगे बढ़ा रहे थे।
       उनकी जिंदगी का परम उद्देश्य यही था कि उनकी तीनों संतानें खूब पढ़ लिख कर बड़े अधिकारी बनें।इसी उधेड़ बुन में खूब मेहनत और लगन के साथ अपने काम को अंजाम देते। बच्चे भी पढ़ने-लिखने में अच्छे और परिश्रमी थे।हमेशा क्लास में प्रथम रहकर विद्यालय का नाम रौशन करते।
       एक दिन बैठे-बैठे वीरू ने अपने बच्चों से बड़े सहज भाव से यह पूछा कि बच्चों जब हम बूढ़े हो जाएंगे तो हमें अपने पास कौन बुलाएगा।तीनों बच्चों ने उत्सुकता जताते हुए अपने-अपने पास बुलाने की सहमति दी।यह देखकर वीरू ख़ुश तो जरूर हुआ लेकिन उसने बच्चों के सम्मुख एक शर्त भी रख दी।
         वीरू ने कहा कि हम ऐसे ही किसी के पास नहीं जाएंगे,हम तो केवल उसी के पास जाएंगे जिसकी चार पहियों की गाड़ी हमको स्टेशन से लेने आएगी।बच्चों ने स्पर्धा का भाव रखते हुए अपनी-अपनी गाड़ी से लाने को प्राथमिकता दी।
        तब वीरू ने बच्चों को यह समझाया कि बच्चो गाड़ी ऐसे ही नहीं मिलती वह तो अथक परिश्रम और सच्ची लगन के साथ पढ़ाई करने और कंपीटीशन में सर्वोच्च स्थान लाने के उपरांत ही मिलती है।तुम भी ऐसा ही करोगे तभी तुमें गाड़ी भी मिलेगी और सामाजिक सम्मान भी प्राप्त होगा।
         फिर क्या था बच्चो ने इसी को अपना लक्ष्य बना लिया और अंततः उसका बड़ा बेटा राघव जज बन कर ,छोटा बेटा पीयूष सरकारी विभाग  में सीनियर इंजीनियर बनकर तथा बिटिया हिम्मो भी कुशल इंजीनियर की डिग्री लेकर लौटी।
        यह देख कर माता-पिता की खुशी का ठिकाना न रहा।अब तीनों की गाड़ी ही पापा - मम्मी को स्टेशन से लेने जातीं हैं।अब पापा यह सोचते हैं कि किसकी गाड़ी में पहले बैठें।
                     
 ✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ, प्र,
 9719275453         
                     

शुक्रवार, 21 अगस्त 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा --- समाज सेवा


सोनू दीदी ने समाज सेवा के क्षेत्र में बहुत नाम कमाया। कई संस्थाओं ने उनके कार्यों की फोटो देखकर उन्हें सम्मानित भी किया। आज सोलह साल की एक लड़की फरीदा उनसे मदद माँगने आयी ।बोली,"दीदी मेरे माँबाप मेरी शादी एक 40 साल के व्यक्ति के साथ कर रहे है।प्लीज़ आप मुझे बचा लीजिए।मुझे पढ़ना है।अभी शादी नहीं करनी"।"अपने माँ पिता को समझाओ ", दीदी बोली।"मैने बहुत कहा मगर वो मान नहीं रहे,वो मेरे पिता का कर्ज भी चुकायेगा। ये तो मेरा सौदा हुआ न दीदी।मेरे घर से निकलने पर भी पाबंदी है। बड़ी मुश्किल से आयी हूँ।दीदी मुझे अपने घर में रख लीजिए"। सोनू दीदी बोली"अरे नहीं ऐसा नहीं कर पायेंगे, तुम तो मुस्लिम हो और कहींं हिन्दू मुस्लिम विवाद न हो जाये।तुम अपने घर जाओ।हम पुलिस भेज देंंगे"।फरीदा आँखों मे आँसू लिए खड़ी रह गयी।दीदी  गाड़ी मेंं बैठ अगले कार्यक्रम मेंं सम्मानित होने चली गयीं।

✍️ डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार नजीब जहां की लघुकथा ------ कल्पना


कल्पना के माता-पिता नहीं है। गरीब अनाथ बच्चों की सेवा करके कल्पना के मन को शांति मिलती है एक बार कल्पना ट्रेन से गोवा जा रही थी। उस ट्रेन में कुछ अनाथ लड़कियों को गुंडे किडनैप करके बेचने के लिए ले जा रहे थे।
   कल्पना ने अपनी जान जोखिम में डालकर उन गरीब अनाथ लड़कियों को गुंडों से बचाया, फिर क्या था अगली सुबह सारे न्यूज़पेपर्स में कल्पना की फोटो और खबरें छपी थीं। चारों और कल्पना के नाम की
चर्चा हो रही थी।

✍️  नजीब जहां
प्रेम वंडरलैंड, मुरादाबाद
9837508724

मुरादाबाद की साहित्यकार सीमा वर्मा की कहानी ------ - "नास्तिक"


  "अरे ssss"   "भाभीजी , छोड़िए आप ।"    "आप लोगों का क्या ?"    "भई , आप ठहरे नास्तिक लोग ।"    "आपका धर्म और आस्था से क्या लेना - देना ।"
शर्मा जी ने वाणी में मिश्री तो घोली , पर विष तो विष ही होता है । चाहे मीठी जुबान से ही क्यों ना उगला गया हो ।  सुनंदा और अभिषेक अवाक से खड़े रहे , कुछ कह नहीं पाए । वैसे भी जो-जो साथ खड़े थे उनमें हमउम्र कम ही थे  ज्यादातर उनसे बड़े ही थे ।
             सुनंदा और अभिषेक की यह तीसरी पीढ़ी थी जो इस मौहल्ले में रह रही थी ।  अभिषेक के दादा जी इस जगह को लेकर बहुत भावुक थे ।  इसलिए उनके जाने के बाद भी अभिषेक और उसके पिता ने यह घर नहीं बेचा था और सभी अभी तक यहीं रह रहे थे ।
             मौहल्ला क्या था बस यूँ समझिए नन्हा भारत था ।  सभी जातियों और धर्मों के लोग थे वहाँ । पीढ़ियों का साथ था एक दूसरे से ।  अभिषेक के दादा जी सर्जन थे  और पिता भी । वह खुद भी शहर का एक जाना- माना डॉक्टर था  और उसकी पत्नी भी डाॅक्टर थी ।  पूरे शहर में यह मशहूर था कि जिस किसी को इलाज के लिए पैसों की तंगी हो वो बस इनके परिवार से संपर्क कर ले उसका मुफ्त इलाज हो जाता था । किसी को भी दर्द में देख नहीं सकता था यह परिवार ।  ऐसे में पूरे मौहल्ले का मुफ्त इलाज तो होना ही हुआ ।  वैसे भी अभिषेक के पूरे परिवार ने जैसे एक प्रण लिया हुआ था कि वे सभी अपने पेशे से समाज को जितना सेवा दान दे सकते हैं देंगे और वो दे भी रहे थे  ।
        बस पीढ़ियों से इस खानदान पर एक ही बट्टा (इल्ज़ाम) लगा हुआ था कि इन का परिवार किसी भी तरह के धार्मिक अनुष्ठान में हिस्सा नहीं लेता था , जिसका कारण शायद इतना निजी था कि कभी किसी ने इस बात का खुलासा भी नहीं किया  ।
      पिछले कुछ हफ्तों में शहर में कुछ अलग तरह की हलचल थी ।  मौहल्लों में भी यही माहौल था  ।  हर कोई मंदिर निर्माण की बातों को बढ़ा-चढ़ा कर बतियाता दिखाई पड़ता था ।  कई जगहों पर चंदा आदि भी इकट्ठा किया जा रहा था ।  अभिषेक के मौहल्ले में भी चन्दा इकट्ठा करने कुछ लोग आज एक जगह एकत्रित थे ।  वहीं पर अचानक हास्पिटल से लौटते हुए सुनंदा और अभिषेक भी पहुंँच गए । उन्हें पूरी बात पता नहीं थी तो उत्सुकतावश  सुनंदा पूछ बैठी कि चंदा किस प्रक्रिया के लिए है ।
       बस प्रश्न के उत्तर ने उसे निरुत्तर कर दिया ।  और वो और अभिषेक एक दूसरे में अपने   "नास्तिक"  रूप को ढूंढने लगे  ।।

✍️ सीमा वर्मा
बुद्धि विहार
मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद सम्भल) निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघुकथा ------ दौलत

                  
'ज़रीना तुमने आज फिर प्लेट तोड़ दी  तुम रोज़ कुछ न कुछ नुक़सान कर देती हो मै तुमसे कितनी बार कह चुकी हूँ कि ध्यान से काम  किया करो लेकिन तुम हो कि एक कान से सुनती हो और दूसरे से निकाल देती हो' ।
ज़रीना ने मेम साहब की बात सुनकर फ़ौरन जवाब दिया - "हां- हां पूरा ध्यान रखती हूं अरे, अगर एक प्लेट टूट गई तो कौन सी ऐसी आफत आ गई"।
अगले दिन फिर किचिन से तड़ाक! के साथ किसी चीज के टूटने की आवाज आई मेम साहब किचिन में  गई तो वहा का नज़ारा देखकर हैरत व गुस्से से उनका चेहरा लाल हो गया अपने पर नियंत्रण न रख सकीं और ज़रीना पर उबल पड़ी - "अरे कमबख्त, तूने मेरा कितना क़ीमती सैट तोड़ दिया मेरी मामी ने मुझे यह लंदन से भेजा था"। ज़रीना ने पहले की तरह लापरवाही से जवाब दिया -"मेम साहब मैने यह जानकर तो नही तोड़ा "।जरीना का टका सा जवाब सुनकर मेम साहब का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया "खामोश, ज़बान लड़ाती है "
"इसमें ज़बान लड़ाने वाली कौन सी बात है "। ज़रीना ने तपाक से जवाब दिया ।अब मेम साहब से रहा नही गया  ज़रीना की ओर देखकर वह ज़ोर से चिल्लाई -"तुम गरीब लोगों में मैनर्स कहां, इसीलिये तुम गरीब हो और हम अमीरों से जलते हो जान बूझकर हमारा नुक़सान करते हो  इसीलिये दौलत तुमसे दूर भागती है "।  "बस- बस मेम साहब, दौलत का ज़्यादा घमंड मत दिखाओ जिस दौलत पर तुम इतना इतराती हो वह तुम्हे सुकून नही देती तुम्हारी यह दौलत तुम्हें अपनो से दूर करती है  यह दौलत दोस्त कम दुश्मन ज़्यादा बनाती है। अरे,  असली दौलत तो हमारे पास है प्यार की दौलत, मौहब्बत की दौलत,  मेरे पास मेरे बच्चो की, मेरे आदमी की ,मेरे माँ -बाप के प्यार की दौलत है। मैं यहां से थकी हारी जाती हूं तो घर पहुँचकर सबके प्यार की दौलत पाकर मुझे जो खुशी मिलती है वह तुम्हे कहां नसीब? "। कहती हुई ज़रीना मेम साहब के घर से निकल गई उसके जाने के बाद भी उसके कहे गये शब्द मेम साहब के कानों में गूंजते रहे वह सोचने लगीं कही जरीना सच तो नही कह रही ? दौलत कमाने के लिये उसके पति यू एस ए में है उसके दोनों बेटे दुबई में जॉब कर रहे है वो यहां अकेली है कभी कभी तो अकेलापन उसे बहुत कचोटता है यहां भी जो उसके अपने रिश्तेदार थे वह उसकी दौलत के घमंड में कही गई बातों से उससे दूर होते चले गये अब कोई उसके घर नही आता सोचते सोचते मेम साहब बुदबुदाने लगीं-" सच है, प्यार की दौलत सबसे बड़ी दौलत है "।

 ✍️ कमाल ज़ैदी "वफ़ा"
प्रधानाचार्य, अम्बेडकर हाई स्कूल बरखेड़ा
सिरसी (सम्भल)
9456031926

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा ---- प्रेमचंद

 
      बस कल ही की तो बात है, जगन ताऊ मेरे पापा के बचपन के घनिष्ठ मित्र लंदन से यहां मेरठ आए।आते ही शाम  को पापा से मिलने घर पर आ गए।
मैं उनके चरण स्पर्श करने आया.... आशीर्वाद लेने के बाद ताऊ जी ने मेरे पढ़ाई लिखाई के बारे में बात की, फिर मुझसे मेरे भविष्य में किसके जैसा बनना है इसके बारे में पूछे.....
मैं बचपन से ही लिखने में ज्यादा रूचि रखता हूं... सो जाहिर सी बात है, अपने उपन्यासकार और कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद, जिनसे मैं सबसे ज्यादा प्रभावित रहा हूं.... उनके जैसा बनने की  ही इक्षा  जाहिर की।
ताऊ जी  के जाने के बाद पापा मुझ पर झल्लाते हुए कहे, यह क्या बकवास है, गरीब की जिंदगी जीनी है क्या?....
पढ़ लिख कर पैसा कमाने पर ध्यान दो।
दो दिन बाद जब हम सब  परिवार दिल्ली जा रहे थे। तो ट्रेन में किसी साहब को प्रेमचंद जी की किताब गोदान को पढ़ते हुए देखकर पापा ने कहा-  साहब मैंने भी प्रेमचंद जी की बहुत सारी उपन्यास ,नाटक,किताबे पढ़ी  है। कमाल की सटीक पकड़ और नजरिया था उनका, सामाजिक विसंगतियों पर आघात करने का... लगभग 80 साल बाद भी इनको पढ़ने के बाद  ये आज भी सार्थक नजर आते है।
ये सुनकर मेरा निश्चय और भी पक्का हो गया था।।

✍️ प्रवीण राही
मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार इला सागर रस्तोगी की लघुकथा ----असंतुलन


"इतना क्यों दुखी होती हो भाभी इतना क्यों रो रही हो?" ध्वनि ने भाभी को सांत्वना देते हुए चुप कराने की कोशिश करते हुए कहा।
भाभी ने सिसकियां भरते हुए उत्तर दिया "ध्वनि अब मैं थक गयी हूँ यह सब करते अब और नहीं किया जाता। महीने भर उन अच्छे दिनों का इंतजार फिर कोशिश करने के बाद वजन मत उठाओ, ज्यादा दौड़ो मत, गर्म चीजें मत खाओ, क्या पता इस बार ईश्वर सुन ही ले और फिर टैस्ट किट का प्रयोग और फिर नेगेटिव रिजल्ट फिर भी यही उम्मीद होती है कि शायद किट गलत हो या फलाना हार्मोन अभी अच्छी मात्रा में बने नहीं और फिर उन दिनों का आ जाना और अंत में मेरा बिलखते रोना, किस्मत को कोसना और फिर शुरू होती है एक नई साइकिल। पिछले दस साल से यही तो कर रही हूँ ध्वनि मैं पर अब थक गई । कितना कहा मैने इनसे कि बस अब मुझसे डॉक्टरों के चक्कर नहीं लगाए जाते पर ये भी मजबूर हैं। बच्चा तो चाहिए ही न।"
ध्वनि ने भाभी को गिलास से पानी पिलाते हुए कहा "दुखी मत हो भाभी ईश्वर के घर देर है अन्धेर नहीं। लो आप टीवी देखो मन बदलेगा।"
चैनल लगाते समय ध्वनि ने गलती से न्यूज चैनल लगा दिया। उसपर आती एक खबर ने दोनों का ध्यान आकर्षित किया। खबर में दिखा रहे थे कि किस प्रकार किसी नृशंस मानव ने नवजात जुड़वा बच्चियों को कूड़े के डिब्बे में मरने के लिए डाल दिया।
ध्वनि समझ नहीं पा रही थी कि इस खबर को देखने के बाद अपनी रोती हुई भाभी को वह अब क्या सांत्वना दे चुप कराए।

✍️ इला सागर रस्तोगी
मुरादाबाद

गुरुवार, 20 अगस्त 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की लघुकथा ---- अभिव्यक्ति

 
सेठ जी ने पूरे पाँच हजार रुपये का ठेका अपनी कोठी की सजावट के लिए दिया था। वास्तव में बिजली के ठेकेदार ने इतनी सुंदर सजावट की कि कोठी जगमगा उठी ।सेठ जी कॉलोनी की अन्य कोठियों से अपनी तुलना करते हुए प्रसन्न - भाव से टहलते- टहलते गेट से कब बाहर निकल कर पड़ोस की टूटी- फूटी सड़क पर निकल पड़े ,उन्हें पता ही नहीं चला ।
    थोड़ी दूर चलने पर देखा कि एक साधारण - से मकान में बच्चे और बड़े मिलकर आठ - सात मिट्टी के दिए जला रहे थे और खुश हो रहे थे । सेठ जी का चेहरा यह दृश्य देखकर मुरझा गया । वह दबे कदमों से अपनी कोठी की ओर पीछे लौट पड़े ।

✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार राम किशोर वर्मा की लघुकथा-----वहम


    नीचे वाले फ्लैट में रह रहे चौधरी साहब और उनके पुत्र-पुत्री प्रतिदिन शाम को बिल्डिंग के नीचे आकर टहलते या उनके बच्चे ऊपर छत पर घूमने जरूर आते थे ।
    आज फ्लैट के दो-तीन परिवार  छत पर आये और सभी ने राम जन्म भूमि पूजन के पावन अवसर पर दीपक जलाये । मगर आज चौधरी साहब का परिवार छत पर दीप प्रज्जवलित करने नहीं आया ।
   दीप प्रज्जवलित करके थोड़ी देर खुशियां मनाकर सभी लोग अपने-अपने घर चले गए ।
    छत पर केवल गुप्ता जी और गहलोत जी ही रह गये थे। गुप्ताजी ने गहलोत जी से पूंँछा - "दो-तीन दिन से चौधरी साहब या उनके बच्चे दिखाई नहीं दे रहे। कुशल तो है?"
  गहलोत जी ने गुप्ता जी को बताया - "हम लोग रक्षाबंधन के पर्व पर बाजार के कई चक्कर लगा आयें हैं । इसलिए लगता है कि वह सुरक्षा की दृष्टि से कोरोना के बचाव में अपने-आप को घर में सुरक्षित रखे हुए हैं ।"
    गुप्ता जी बोले - "ऐसे तो यह भी रोज अॉफिस जा रहे हैं और इनका पब्लिक डीलिंग का काम है । तब हमने तो ऐसा नहीं सोचा।"
     गहलोत जी ने कहा - "बहम का कोई इलाज है क्या?"
     
 ✍️ राम किशोर वर्मा
 रामपुर

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेन्द्र शर्मा सागर की लघुकथा -------दिल का मैल


"अजी सुनते हो? इस बार सावन मनाने क्या गीता बीबीजी को नहीं बुलाओगे?" सरिता ने अपने पति सागर से पूछा।
"क्यों?? तुम्हारा पिछले झगड़े से पेट नहीं भरा क्या, जो फिर उसे बुलाकर घर में महाभारत करवाना चाहती हो।
अभी तीन चार महीने पहले ही तो आयी थी वह जयदाद में हिस्सा माँगने। कितनी बातें सुनाई उसने हमें तरह-तरह की। और तुम्हे तो अपनी हर परेशानी के लिए जिम्मेदार तक ठहरा दिया", सागर ने थोड़ा उदास होकर कहा। उस समय अनायास ही उसकी नज़र अपनी कलाई की ओर चली गयी।
"अरे छोड़ो उन बातों को, भाई-बहन और भाई-भाई में ऐसी नोक-झोंक होना कोई नई बात नहीं है। और फिर अगर उन्होंने कुछ कह भी दिया तो अपना समझकर ही कहा होगा। कोई किसी गैर से तो इतने अधिकार से झगड़ भी नहीं सकता", सरिता ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
"ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी! तुम ही  उसे फोन कर लेना", सागर ने सपाट स्वर में कहा और ऑफिस के लिए निकल गया।
दोपहर में सारे काम से फुर्सत पाकर सरिता ने गीता को फोन लगाया-
"हैलो… हेल्लो.. मैं सरिता"
"नमस्ते भाभी कैसे हो और भैया कैसे हैं?" उधर से गीता की धीमी आवाज आई।
"सब ठीक है गीता बीबी जी, आपको तो हमारी याद भी नहीं आती अब", सरिता ने उलाहना दिया।
"ऐसी बात नहीं है भाभी.. वो घर के कामों में…!" गीता ने बात टाली।
"गीता बीबी जी सावन शुरू हुए कितने दिन हो गए आप आयी नहीं अपने घर?" सरिता ने बड़े अधिकार से कहा।
"मेरा घर? मेरा घर तो यही है भाभी। अब उस घर से मेरा क्या नाता रहा गया है", गीता ने धीरे से कहा।
"क्यों?? लाठी मारकर क्या पानी अलग होता है? और फिर अगर यहाँ कोई गैर है तो वह मैं हूँ। आप भाई-बहन का रिश्ता मेरी वजह से खराब हो रहा है। लेकिन क्या मेरी बजह से तुम राखी पर अपने भाई की कलाई सूनी रखोगी?" सरिता ने उदास होकर कहा।
"न..न..नहीं भाभी लेकिन भैया..!" गीता अटकते हुए बोली।
"हाँ तुम्हारे भैया ही कहकर  गए हैं कि तुमसे पूछ लूँ, खुद आएगी या कान पकड़ कर लेने आना पड़ेगा? देखो तीज से पहले ही आ जाना और सलूनो करके ही बापस जाना।
बाकी रही बात झगड़े की, तो उसके लिए सावन के अलावा भी ग्यारह महीने बाकी पड़े हैं", सरिता ने हँसकर कहा।
"भाभी…!!" गीता की हिलकी भर गयी।
इधर सरिता की आँखे भी नम हो आयीं थीं।
तभी आसमान में काली घटाएं घिर आयीं और बारिश की तेज बौछारें पड़ने लगीं मानों बादल भी दिलों पर जमी मैल को धोने के लिए बरस रहे हों।

✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद
उत्तरप्रदेश

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी -----अंत बुरे का बुरा...


 सिमलेश ...!.. तुम यहां !!!     तुम्हें तो वहीं रहना था... दादी के पास कौन है??.. पवन ने विसफारित नेत्रों से देखते हुए सिमलेश से पूछा....
......तुम्हारी चिट्ठी को देख कर ही तो मैं आई हूं अम्मा कहां है ? कैसी तबीयत है उनकी ?
उत्तर में विस्मय से सिमलेश ने कहा...
चिट्ठी....!.. कौन सी चिट्ठी ? हमने कब चिट्ठी भेजी.....?? जरूर कोई गड़बड़ हुई है.... !! खतरे को भांपते हुए पवन ने उन्हें कहा !!
 ....   तभी अम्मा  कमरे से बाहर आते हुए आश्चर्य से बोली आज बहुत बुरा हुआ ....निश्चय  ही तेरी दादी की जान को खतरा है रात बहुत हो गई है चलो अब सुबह देखेंगे....!!
    सुबह 6:00 बजे गांव से एक आदमी आया जिसने बताया दादी का मर्डर हो गया है...... डकैतों ने सब कुछ लूट कर दादी को मार डाला .......!!!
       दादी जो कि मुनसन के नाम से मशहूर थीं ..अवस्था 90 साल बड़ी सी हवेली, 1oo बीघा जमीन के अलावा घर में सोने, चांदी, हीरे ,जवाहरात का खजाना भरा था एक संदूक चांदी के रुपयों से ही भरा था ...मुनसन के अपनी कोई औलाद नहीं थी इसलिए उसने ससुराल वालों पर भरोसा न करके अपने भतीजे पवन के बेटे राकेश को गोद ले लिया था और उसी के नाम वसीयत लिख दी थी परंतु वह सब लोग शहर में रहते थे उनकी देखभाल के लिए राकेश की दादी और बुआ सिमलेश मुनसन के पास रह कर सेवा करते थे बगल में ही जेठ के लड़के शमशेर का मकान था जिसके बेटे महेश और देवेश हमेशा बुढ़िया की जान के दुश्मन बने रहते थे मौके की तलाश में रहते थे कि कब बुढ़िया अकेली मिले और उसका गला दबा दें और सारा माल साफ कर दें उन्होंने छल से  एक चिट्ठी लिखी और सिमलेश को वहां से हटा दिया और रात में पहुंच गए 90 साल की बुढ़िया पैरों पर गिर कर खूब रोई गिड़गिड़ाई .... मेरे प्राण छोड़ दो परंतु महेश दिनेश को दया नहीं आई... जरा सा गला दबाने से आसानी से बुढ़िया केप्राण निकल गए सारा माल खाली कर दिया और पुलिस में रिपोर्ट लिखा दी कि डाकू आए थे  रात को डाकू लूट कर ले गए और बुढ़िया को मार गए
    पुलिस के सुआ मोर पोस्टमार्टम में स्पष्ट हो गया कि मुनशन की हत्या गला दबाकर की गई
महेश और देवेश को पुलिस पकड़ कर ले गई घर में बहुत भीड़ थी काफी लोगों के बीच में वसीयत पढ़ी गई वसीयत में 50 बीघा जमीन मुनसन ने महेश और देवेश के नाम लिख रखी थी जांच कराई गई वसीयत असली थी यह देखकर महेश और देवेश के नाम लिखी थी जानकर महेश और देवेश को बहुत ही दुख हुआ
 सब किया कराया मुंनशन के जेठ के लड़के शमशेर  का था अब पश्चाताप के अलावा कुछ नहीं हो सकता था
कोर्ट द्वारा महेश और देवेश को आजन्म कारागार की सजा सुनाई गई शमशेर के अंतिम समय में उसके पास दोनों बेटों में से कोई भी ना था पश्चाताप में बड़ी ही मुश्किल से प्राण निकले !!!
.....किसी ने सच ही कहा है ....
अंत बुरे का बुरा......

 ✍️ अशोक विद्रोही
82 188 25 541
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा -------गुदड़ी में मोती


     जब वो घर के बाहर आती तो बच्चे उससे चिढ़ते थे ।लंबे बालों में ढेर सारा सरसों का तेल लगाती थी ।बेकार में नहीं घूमती ।जब उसकी मां कोई काम बताती ,तभी घर से निकलती अन्यथा केवल  घर से स्कूल और स्कूल से घर ।चार बहनों में सबसे बड़ी ,मासूम सी ।कोई बनावट नही ।मैं जब भी छत से देखती ,वह पढ़ती ही दिखती या रसोईं में काम ।
कभी वाद विवाद प्रतियोगिता ,कभी भाषण ,कभी काव्य पाठ ,यही सब उसके शौक थे ,जब नाम छपता था अखबार में तो मुझसे न्यूज़ पेपर की कटिंग ले जाती । बस एक सपना था उसका .......कि कोई नौकरी मिल जाय पढ़ाई के बाद ,जिससे वह अपने भाई बहनों को भी कुछ प्रेरित  कर सके । मैं खुश होती थी उसे देख क्योंकि अभावों में भी वह किसी से कम न थी ।
हाई स्कूल का रिजल्ट आने बाला था ।सब  स्टूडेन्ट दहशत में थे ,उस समय उसके चेहरे पर एक अजीब सी चमक थी ।
पास होने बाले मिठाई बांट रहे ,अपनी तारीफ करते घूम रहे ।पर वह अगले क्लास के नोट्स बना रही थी ।मैंने पूंछ लिया उससे कि रिजल्ट देखा क्या ?बोली,"नही ,पेपर वाला बीस रुपये  माँगता है ।पर मेरी मां पर नहीहै।स्कूल मार्कशीट तो आयगी न ।
अगली सुबह ,कई न्यूज़ पेपर वाले एक एक करके उससे मिलने को उसका इंतजार  करते उसके दरबाजे खड़े थे । बस मुझे समझने में देर न लगी । यही वही टीम थी जो टॉपर्स का इंटरव्यू छापते थे । मेरे मुख से स्वतः निकल गया........यह ,तो "गुदड़ी में मोती "है।

 डॉ प्रीति हुँकार
मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा ---------सन्नाटा

सन्नाटा..........दूर तक फैला था उस घर में......न पति पत्नी में नोक झोंक ,न बच्चों के खिलौने टूटने की आवाज़,बड़ें बूढ़ों के खाँसने की आवाज़ भी नही आती थी........
एक दिन चुपके से मैंने झाँक कर देखा कि उस घर में तीन लोग थे जो अपने अपने काम में व्यस्त थे ।उस घर में जो आदमी था वह लैपटॉप के सामने बैठे कोई महत्वपूर्ण गुत्थी सुलझाने में इतना व्यस्त था कि फ़ोन पर बात करते करते हुए भी लैपटॉप पर उँगलिया तेज़ी से चल रही थी।बच्चा मज़े से विडीओ गेम में दुश्मनो पर गोलियाँ दाग़ रहा था और मैडम किटी पार्टी की तैयारी में नाख़ून चमका रही थी कि तभी मैडम का फ़ोन बजा ....नेल पोलिश ख़राब होने के डर से स्पीकर पर डाल दिया ,जिससे आवाज स्पष्ट आ रही थी
‘’मैडम मैं वृद्धाश्रम से सोनू बोल रहा हूँ ।माँ, बाबू जी आप को बहुत याद करते हैं,,,,,,,।
 बस फिर क्या था मुझे उस घर की शान्ति का राज समझते देर नहीं लगी।मैं चुपचाप घर आ गई और देखा कि बच्चे अपने दादा दादी  के साथ खेल में व्यस्त थे।
                       
 ✍️ प्रीति चौधरी
 गजरौला,अमरोहा

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ब्रजभूषण सिंह गौतम अनुराग की पुण्यतिथि पर " मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" द्वारा उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा ---


      वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा  "ज़मीं खा गयी आसमां कैसे कैसे" शीर्षक के तहत 17 अगस्त 2020 को साहित्यकार ब्रजभूषण सिंह गौतम अनुराग की पुण्यतिथि पर उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर चर्चा की गई। चर्चा दो दिन चली। सबसे पहले ग्रुप के सदस्य योगेंद्र वर्मा व्योम ने ब्रजभूषण सिंह गौतम अनुराग के प्रतिनिधि गीत पटल पर रखे।

चर्चा शुरू करते हुए प्रख्यात नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा कि गौतम जी ने पर्याप्त मात्रा में लेखन किया है और छांदस कविता के क्षेत्र में प्रचलित लगभग सभी छंद विधानों में अपनी लेखनी चलाई है। ऐसी सामर्थ्य पूर्ण प्रतिभा विरल लोगों में ही होती है ।
वरिष्ठ कवि शचीन्द्र भटनागर ने कहा कि अनुराग जी आयु में लगभग दो वर्ष बड़े थे मुझसे, पर घर हो या मंच, मुझे भाईसाहब कहकर ही संबोधित करते थे। ग़ज़ब की बेबाकी थी उनमें, पर विनम्र भी इतने कि यदि किसी से उनका मन आहत हुआ वर्णन करते समय आंखें गीली हो जाती थीं। गौतम जी ने जो लिखा वह विपुलता और गुणवत्ता दोनों ही दृष्टियों से श्रेष्ठ है। उनकी सृजन क्षमता ग़ज़ब की थी। उनके स्वयं के शब्दों में वह एक दिन में एक दर्जन से अधिक नवगीत लिख देते थे।
वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि अनुराग जी की रचनाओं में जीवन का बहुआयामी चित्रण मिलता है। अपने समय में बहुत परिश्रम से समाज में अपनी पहचान बनाई थी। ग्राम्य परिवेश और नगरीय वातावरण दोनों को बारीकी से देखना उन्हें भली-भांति आता था। साहित्य में मुरादाबाद में उनका स्थान रिक्त है। रचनाकर्म के प्रति अब वैसा समर्पण अलभ्य है।
वरिष्ठ व्यंग कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि अनुराग जी एक बड़े साहित्यकार थे।उनका लेखन लोकगान भी था और लोकधाम भी।उनका सृजन अपनी मिट्टी की सौंधी गंध से पूर्णतः महका हुआ है।लोक की चिंताओं के साथ-साथ लोक कल्याण की भावना भी उनके साहित्य में भरी पड़ी है। असमानता, असंगति,विसंगति और समाज की समरसता को उन्होंने गाया है।समाज को उन्होंने गहराई से पढ़ कर  उसके लिए जो गढ़ा है वह कविता और समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
मशहूर शायरा डॉ  मीना नक़वी ने कहा कि स्मृति शेष कविता के मूर्धन्य समर्थ महाकवि अनुराग 'गौतम' जी को  अनेकानेक  गोष्ठियों में सुनने का गौरव प्राप्त हो चुका है। इसमें कोई संदेह नहीं कि इनकी रचनाओं का आकाश बहुत विस्तृत है जो अपनी धरती को एक क्षण नहीं भूलता। समर्थ छाँदस रचनायें उन्हें साहित्य में विशिष्ट स्थान दिलाती हैं।
वरिष्ठ कवियत्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा कि गीतों के सरस अनवरत निर्झर झरने की प्रकृति के कवि गौतम जी एक कोमल ह्र्दय के कवि थे। उनके गीतों में श्रंगार रस की अभिव्यक्ति अधिक रही, चाहें संयोग हो अथवा वियोग रस। जीवन की कष्ट वेदनाओं की अपरमित गाथा उनकी गजलों, उनके गीतों में भरी पड़ी है। गौतम जी ने अपने दुख को भी बहुत संवेदनशीलता के साथ उन्मुक्त भाव से व्यक्त किया।
वरिष्ठ कवि आनंद कुमार गौरव का दर्पण मेरे गाँव का और चाँदनी जैसी अमर कृतियों के कीर्तिशेष काव्य साधक के रचनाकर्म पर टिप्पणी के रूप में कहना था कि "बना घरौंदे नम माटी के मन की गागर भर लेने दो"और "मनमुटाव से बुझे पड़े हैं मन के सभी अलाव" जैसे सहजतह स्वीकार्य अनुभावों के साथ"दादी अम्मा की खटिया पर टूटी छप्पर छाँव, कैसे आज लौटकर आऊँ फिर पुरुखों के गाँव" लिखकर विवशता और पीड़ा अभिव्यक्ति, स्वयं प्रमाणित कर देती है,कि सत्य की कडुवाहट को पीना और उसी सत्य के साथ जीना ही, सहज, सात्विक, अनुशासनप्रिय, अनुराग गौतम जी को सदा प्रिय रहा।
वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि स्मृति शेष ब्रजभूषण सिंह गौतम 'अनुराग' जी के सम्पूर्ण साहित्य में ग्रामीण जीवन से लेकर महानगर की कोलाहल भरी जिंदगी तक के विभिन्न चित्र मिलते हैं। उनके गीतों में बहुआयामी प्रेम और विरह वेदना के स्वर है तो सामाजिक विषमताओं और विवशता की पीड़ा भी। जहां वह नायिका के रूप सौंदर्य का बखान करते हुए श्रंगार रस से परिपूर्ण गीत रचते हैं तो वहीं उनकी कलम आतंकवाद और राजनीति के छल प्रपंच के ऊपर भी चलती है। वह अपने आसपास होने वाली घटनाओं को भी अनदेखा नहीं करते। नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों के पतन पर भी चिंता व्यक्त करते हैं।
मशहूर नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने कहा कि अनुराग जी का कृतित्व निश्चित रूप से अनूठा है, अनौखा है, विलक्षण है इसलिए उनके कृतित्व की तुलना किसी भी अन्य देशी अथवा विदेशी व्यक्तित्व के कृतित्व से करना किसी भी दृष्टि से कदापि उचित नहीं होगा। उनके समग्र सृजन का यद्यपि अभी तक उस स्तर पर मूल्यांकन भले ही न हो पाया हो जिस स्तर के मूल्यांकन का सुपात्र उनका रचनाकर्म है, किन्तु यह अकाट्य सत्य है कि ‘अनुराग’ जी का समग्र सृजन हिन्दी साहित्य के इतिहास में मील का पत्थर है और भावी पीढ़ियों के लिए पथ-प्रदर्शक भी।
समीक्षक डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा कि मेरे नज़दीक अनुराग जी को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि उनकी जो कृतियां अभी तक अप्रकाशित हैं उन्हें प्रकाशित कराया जाए ताकि एक अनमोल धरोहर हमारे सामने आ सके। एक गुज़ारिश यह भी है कि ऐसे महान स्मृतिशेष व्यक्ति के संबंध में दो चार लेख इस तरह के आने चाहिएं जिससे नई पीढ़ी उन से भली-भांति परिचित हो जाए। जैसे उस व्यक्ति के प्रारम्भिक रचना कर्म पर लिखा जाए, जिन परिस्थितियों में जीवन गुजा़रा और साहित्य सर्जन के लिए जो परिश्रम किया उस पर लिखा जाए। तत्पश्चात कृतियों और रचनाओं पर चर्चा हो ताकि नई पीढ़ी को हौसला मिल सके और उसका मार्गदर्शन हो सके और यह मालूम हो सके कि ऐसे व्यक्ति को यहां तक पहुंचने में कितनी मेहनत करनी पड़ी है।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि श्री ब्रजभूषण सिंह गौतम 'अनुराग' अन्तस की वेदना को जीवंत कर देने वाले दुर्लभ रचनाकार थे। अपने मनमोहक गीतों के माध्यम से मुरादाबाद के साहित्यिक इतिहास में अमर 'अनुराग' जी ऐसे गीतकार हुए हैं, जिनकी रचनाऐं हृदय को भीतर तक स्पर्श करती हैं। जो वेदना उनकी रचनाओं के केन्द्र में रही, उसे उन्होंने स्वयं भी अवश्य अनुभव किया होगा, जिया होगा।
युवा कवियत्री हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि स्मृति शेष बृजभूषण सिंह गौतम अनुराग की विलक्षण प्रतिभा होने का ही साक्ष्य है क्योंकि प्रतिस्पर्धा में कुछ पंक्तियांँ, कुछ कविताएंं तो लिखी जा सकती हैं पर अस्वस्थता के बावजूद 190 छंद के मुकाबले 218 छंद लिखना वह भी कला और भाव पक्ष की स्तरीयता के साथ, यह कार्य किसी सामान्य लेखक के बूते का नहीं है। तभी तो वह मेरे लिए कौतूहल जगाते व्यक्तित्व ही हैं। उनका समर्पण भाव और सिद्धहस्तता ही उनके लेखन कौशल की वह विशेषता है जो आमतौर पर आज के समय के लेखकों में दुर्लभ है।
युवा कवि मयंक शर्मा ने कहा कि आदरणीय अनुराग जी के गीतों को पढ़कर सहज ही उनकी उत्कृष्ट लेखनी का अंदाज़ा लग जाता है। गीतों में प्रेम में मिलन की आस है तो विरह की वेदना भी है। सामाजिक विद्रूपताओं के विरुद्ध खड़ा होने वाला प्रतिनिधि कवि है तो प्रकृति का चितेरा, पुष्प की सुगंध और कांटों की चुभन को महसूस करने वाला कोमल ह्रदयी भी। शहरी जीवन से उकता कर गांव जाकर नीम की छाँव और मिट्टी की ख़ुशबू लेने की उत्कंठा भी है। हर रचना में सुंदर शब्दों से मनभावन वाक्य संयोजन किया गया है। इनको पढ़ना काव्य की कक्षा में अच्छा समय व्यतीत करने जैसा रहा।
युवा कवियत्री मीनाक्षी ठाकुर ने कहा कि अनुराग जी ने शायद समाज में आयी संबंधों की रिक्तता, स्वार्थपरता ,शहरीकरण, गाँवों का शहरों को पलायन, प्रकृति से दूरी का दर्द, सब कुछ तो समेट लिया है। दर्द के बावज़ूद कहीं न कहीं मानव मन में सहज भाव से उपजने वाले श्रृंगारिक भावों को भी बड़ी ही सुंदरता से जीवंत करता उनके  गीत बरबस ही प्रकृति व पुरूष के परस्पर आकर्षण को सजीव करते प्रतीत होते हैं। प्रकृति का सजीव चित्रण,दर्द की पीड़ा ,श्रृंगार की चमक ,समाज में अनुशासनहीनता व विद्ररुपता पर चलती पैनी कलम से सम्भवतः कहीं कुछ छुटा ही नहीं है।
ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि बृजभूषण सिंह गौतम अनुराग जी मुरादाबाद के वरिष्ठ कवि हैं। जिन्होंने बहुत लिखा है। गौतम जी के यहां प्रकृति से जुड़े शब्दों और प्रकृति से संबंधित गीत और रचनाएं अधिक देखने को मिलती हैं। जिसमें उन्होंने अपने कवि को व्यक्त किया है। इसके अलावा उनके यहां कुछ ऐसे शब्द भी हैं जो पुनरावृत हो कर आते हैं और खास तौर पर जिनका प्रयोग बाल साहित्य में अधिक होता है। इस तरह हम कह सकते हैं कि शब्दों को प्रयोग करने में उन्हें किसी तरह की झिझक नहीं थी चाहे वह साहित्यिक शब्द हो या ना हो इससे यह साबित होता है कि उनके पास शब्दों का बहुत अधिक भंडार था। यहां प्रस्तुत गीतों में बहाव भी है और भाव भी है। मुझे गौतम जी के कुछ गीत अच्छे लगे।

:::;;;:प्रस्तुति;;;;;;;;
ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
मुरादाबाद लिटरेरी क्लब
मो०8755681225

बुधवार, 19 अगस्त 2020

संस्कार भारती मुरादाबाद की ओर से रविवार 16 अगस्त 2020 को आयोजित ऑनलाइन काव्य गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों संजीव आकांक्षी, डॉ मीना कौल, डॉ पूनम बंसल, डॉ अर्चना गुप्ता, सुमित सिंह, डॉ रीता सिंह, डॉ ममता सिंह, राजीव प्रखर, एमपी बादल जायसी, इला सागर रस्तोगी, विभांशु दुबे विदीप्त, प्रशांत मिश्र, इंदु रानी, ईशांत शर्मा, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ और डॉ मनोज रस्तोगी की रचनाएं ------


(1)
तुम झटकते हो
गीले गेसू
इत्र सा पानी
मुझको छू
झंकृत कर जाता है
मन वीणा के तार
देह में साँसें
बची रहतीं  हैं बस
ह्रदय धड़कता रहता है
बे बस
और कुछ क्षण के लिए
रच लेता हूँ
स्वर्ग सा सुन्दर
एक
सपनों का संसार।
(2)
तुम झटकते हो
हाथ मेरा
जब भी कभी
एकांत में
स्तब्ध होता हूँ
एक क्षण के
हज़ारवें हिस्से के लिए
और फिर बटोर कर
सारी हिम्मत
शौर्य से लबरेज़
खड़ा होता हूँ
तुम्हारे समक्ष
और कह देता हूँ
अपनी बातl
(3)
तुम झटकते हो
हाथ मेरा
जब भी कभी
किसी महफ़िल में
कुछ मिनट के लिए
स्तब्ध रह
बड़ा अपमान सह
और फिर अचानक
सजा लेता हूँ
चेहरे पर एक
बेशर्मी सी मुस्कान
पी लेता हूँ
विष सा क्रोध
पुरावृत्ति के दर से
कुछ घंटो के लिए
नहीं करता हूँ
कोई अनुरोध
फिर माफ़ कर देता हूँ
तुम्हें अपना मान
सारी बातें
तुमसे नहीं
स्वयं से कह ।

✍️ संजीव आकांक्षी
मुरादाबाद
--------------------------------

आओ लिखें नई कहानी,हम देश को सजाने की,
न हो जिसमे राजा- रानी,न हो बात खजाने की।1

ले अतीत से उजला सोना, वर्तमान को रचें सुनहरा
नीव में रखें अभिलाषा हम,भविष्य उच्च बनाने की।2

अपनी मिट्टी अपना पानी,अपना घर अपना समाज
अपनी धरती आप चुनें हम,फसलें नई उगाने की।3

चल सागर से मोती लाएं, अम्बर से तारे लाएं हम,
लिखें नाम हवाओं पर लें,सौगन्ध सुगंध फैलानेकी।4

सत्य अहिंसा करूणा क्षमा, चरित्र चेतना अनुशासन
जीवन शिक्षा हो संपादित ,सर्वत्र सर्वदा पढ़ाने की ।5

अपनी माता अपनी भाषा,निज गौरव इसे बनाएं हम
बन जाएँ आदर्श भावना,सकल विश्व को सिखाने की।

मन दर्पण पर जमी  हुईं ,भूलें सारी अब हटाएं हम
रखें सब पर समान दृष्टि ,वसुधैव कुटुंब बसाने की।7

हम ही राष्ट्र के सजग प्रहरी,हम ही वीरों की संतान
बात नहीं उठने देंगे कभी,निज देश को झुकाने की।8

रंग  बिरंगे सुमन खिलें , यहाँ सतरंगी छटा निखरे
अपनी डगर बना मीना, हर दिल में समा जाने की।9

 डाॅ मीना कौल
मुरादाबाद
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मुस्कानों के तिलक लगा कर आंसू का सत्कार करो
दुख सुख जो भी मिलें राह में सबको अंगीकार करो

दूर दूर तक द्वेष घृणा का फैल रहा है अँधियारा
रात अमावस की काली है नहीं तनिक है उजियारा
पहले बन कर दीप जलो तुम फिर तम पर अधिकार करो

फैशन की आंधी ने तोड़ीं लाज भरी मर्यादाएं
बढ़ती इच्छाओं ने ही दीं रोज़ नयी ये विपदाएं
छोटी छोटी खुशियों से ही स्वप्न बड़े स्वीकार करो

पैसे की खातिर रिश्तों ने रिश्तों का ही क़त्ल किया
ममता के आँचल को बेचा अहंकार का जाम पिया
भृष्ट आचरण के दानव का और नहीं विस्तार करो

डॉ पूनम बंसल
मुरादाबाद
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अपने भारत देश परकभी
आँच नहीं आने देंगे हम।
जान चली भी जाएगी तो
हमें नहीं होगा कोई गम।
वंदे मातरम, वंदे मातरम वंदे मातरम, वंदे मातरम

भारत की पावन नदियों का,
मीठा जल जैसे हो अमृत।
और यहाँ की माटी भी तो
नहीं महकती चंदन से कम।

दुश्मन अगर उठाता है सर
उसे कुचल देते है फौरन।
भारत को ललकार सके है,
नहीं किसी में भी इतना दम।

पूजे जाते जिस भारत में,
सूरज चाँद सितारे भी हैं।
कैसे कहीं ठहर सकता है
वहाँ कभी फिर कोई भी तम।

लोकतांत्रिक देश हमारा,
इस पर गर्व हमें होता है।
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
सबको ही अधिकार मिले सम।

अतिथि होते देव सरीखे
सिखलाते संस्कार हमारे।
मगर सामने दुश्मन हो तो
हम भी बन जाते हैं फिर यम।

प्रत्येक क्षेत्र में हमने लोहा
 मनवाया है, मनवाएँगे।
लहराएगा सदा तिरंगा अपना
 सबसे ऊँचा परचम।

कहीं हिमालय की चोटी हैं,
कहीं बहे गंगा की धारा।
यहीं स्वर्ग कश्मीर हमारा,
छटा 'अर्चना' इसकी अनुपम।

डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद
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पागल मन में जितनी उलझन होती है
बाहर सबसे उतनी अनबन होती है

जब-जब ग़ुस्सा, घबराहट, डर बढ़ते हैं
तब-तब सांसों में इक सिहरन होती है

जिसकी साँसें भीतर सधने लगती हैं
उससे पूछो कैसी थिरकन होती है

उस घर की दीवारें गिरने लगती हैं
जिसकी बुनियादों में सीलन होती है

रमना मतलब एक जगह घुल-मिल जाना
बेमतलब चलना तो भटकन होती है

कौन बुझा सकता है उस लौ को,बोलो
जो उसकी मर्ज़ी से रौशन होती है

यूँ डसती है उम्र फिसलकर हाथों से
जैसे इक ज़हरीली नागन होती है

चलते-चलते जब मैं थकने लगता हूँ
मेरी हिम्मत मेरा ईंधन होती है

सुमित सिंह "मीत"
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रजनी बोली , अरी बदरिया !
क्यों बाबरिया मन तेरा है
ऐसा मेरे घर में क्या है
जो दर मेरा यूँ घेरा है ।

चमके उज्जवल नभ घनेरा
जब आते चाँद सितारे हैं
टिम टिम करते मुस्काते हैं
ये लगते कितने प्यारे हैं
डाल न इन पर भीगी चूनर
ये हीरे मोती न्यारे हैं ।

चम चम चम चम चमक चाँदनी
वसुन्धरा को चमकाती है
श्वेत रजत बिखरी कण कण में
मन में उमंग उपजाती है
बिखरा नभ में बूँद कणों को
क्यों पानी सब पर फेरा है !

रजनी बोली , अरी बदरिया ......।

डॉ रीता सिंह
मुरादाबाद
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आओ मिल कर कदम बढ़ाये।
देश की रक्षा में जुट जायें ॥

भारत के उन्नत ललाट को,
जग में ऊॅचा और उठायें ॥

प्राण दिये हैं  जिन वीरों ने ,
हम उनकी गाथाएँ गायें ॥

बुरी नजर जो डाले हम पर ,
हम उसको इक सबक सिखायें ॥

हर भारतवासी के मन में ,
देश प्रेम की अलख जगायें ॥

स्वतंत्रता के महापर्व को,
जन जन का हम पर्व बनायें ॥

डाॅ0 ममता सिंह
मुरादाबाद
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मुझको मुझमें ही मिले, सारे तीरथ-धाम।
अन्तस-पट पर जब लिखा, मैंने जय श्रीराम।

लो दुश्मन की नाक में, कसने चला नकेल।
भारत माँ का लाडला, महाबली राफ़ेल।।

क्या तीरथ की कामना, कैसी धन की प्यास।
जब बैठी हो प्रेम से, अम्मा मेरे  पास।।

जिस जंगल की रोज़ ही, उजड़ रही तक़दीर।
उसकी काग़ज़ पर मिली, हरी-भरी तस्वीर।।

चन्दा बिन्दी भाल की, तारे नौलख हार।
रजनी करके आ गयी, फिर झिलमिल श्रृंगार।।

प्यासे को संजीवनी, घट का शीतल नीर।
दम्भी सागर देख ले, तू कितना बलवीर।।

- राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
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न आना है न जाना है
         ये हिला है बहाना है
आशिंके तशौबर में
          इ़क शहरे तमन्ना है

         ये ख्वाब कि दुनियाँ है
क्या इ़सका ठिकाना है
         मांझी के ख्यालो में
तुफा़न का आना है
     
ये उनकी अद़ायें हैं
            या दिल का जलाना है
तू लाख सितमगर है
            हम भी तो सहमसार हैं

            इक वो भी जम़ाना था
इक ये भी जम़ाना है
        हँस्ते थे कभी हम भी बादल
अब अश्क बहाना है
     
डा एम पी बादल जायसी
      आजा़द नगर मुरादाबाद
         93 193 18 919
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स्वतंत्र हुए परातंत्रता से
अंग्रेजो की हुकूमत से,
स्वतंत्रता का उद्घोष गूंजता
स्वतंत्रता दिवस के प्रत्येक जश्न संग।

लेकिन कर क्या रहें भारतवासी
अराजकता साम्प्रदायिकता रूपी विष फैलाके,
अंग्रेजों से स्वतंत्र हों
स्वार्थ की परांतत्रता में जकड़े।

हिन्दु मुस्लिम सिख ईसाई
नींव सभी धर्म भारत की,
जाति पांति के बंधनों में उलझ
उलझा रहे देशवासियों के सौहार्द को।

इस पावन मिट्टी को मान सम्पदा अपनी
चूर चूर कर रहे देश की अखण्डता को,
उस देश को जिसे एकता के सूत्र में बांधा
देशप्रेमी स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान ने।

बिसरे नागरिक, नहीं सम्पदा यह माटी उनकी
यह तो है धरोहर जो देनी अगली पीढ़ी को अपनी,
धर्म सम्प्रदायों में विभाजित कर
नफरत फैला देश का बंटाधार कर रहे।

समय अभी भी शेष है,
सावधान होने को उन चालाकों से,
जो झोंक रहे भारत की स्वतंत्रता को
स्वार्थसिद्धि, स्वार्थपूर्ति की भट्टी में।

इला सागर रस्तोगी
मुरादाबाद
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निधि बन जी के तरु शाख सब यूं मस्ती में लहरत हैं
कृष्ण राधिका के संग मिलकर निधि बन में यूँ महारास करत हैं

पूछीं गौरा शिव शंकर से, ये क्या लीला श्याम रचत हैं
जरा हमको भी समझाओ नाथ कैसे ये महारास रचत हैं

भेद जानने महारास का शिव रूप गोपी का धरत हैं
पहुँच बैठे निधिवन में जहाँ श्याम महारास करत हैं

कभीबंसी बजाए कभी नाच नचाये
कभी कमर लचाये कभी लटक जाये
आगे भागे राधा रानी ,पीछे पीछे श्याम फिरत हैं
कृष्ण राधिका के संग मिलकर निधि बन में यूँ महारास करत हैं

हर गोपी को निधिवन जी में खुद के श्याम मिलत हैं
देख दृश्य अद्भुत ये शिव शम्भू अचरज में परत हैं
जाने कैसी माया ये प्रभु की , कैसी लीला रचत हैं
कृष्ण राधिका के संग मिलकर निधि बन में यूँ महारास करत हैं

कहत मनमौजी राधा श्याम यूं निधि बन में रास करत हैं
राधा साधे मुरली हाथों में, श्याम राधा का भेस धरत हैं

पहन घाघरा डाले चुनरी,गालों पर लाली धरत हैं
कजरारे नैन, होठों पर लाली, श्याम राधा का भेस धरत हैं

निधि बन जी के तरु शाख सब यूं मस्ती में लहरत हैं
कृष्ण राधिका के संग मिलकर निधि बन में यूँ महारास करत हैं  ll

विभांशु दुबे विदीप्त "मनमौजी"
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हिंदुस्तान जब भी हारा है
अपने जयचन्दों से हारा है,
सीमा पर लाखों शहीद हुए
फिर भी ये कहते पाकिस्तान हमारा है

इनके नापाक इरादों की
अब तो होली जलनी होगी,
बीच चौराहा पकड़कर ठोक डालो
अब तो छाती छलनी करनी होगी

-प्रशान्त मिश्र
मुरादाबाद
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पलना के ललना खेलाय रही
देखी  लाल मुस्काय रही होssssss
बीती दुखयारी रतिया के घरवा अब
 नंद के अंजोर भइले हो।

नंद बाबा मन मन गाय रहे
हियरा बढाय रहे होssssssss
देखी चाँद को टुकड़ो अँगनवा त
ब्रज को बुलाय रहे हो।

सातों दर झूमे घुमड़ घन
 झम झम बरसेला होssssssss
झीनी झीनी आए बरखा बदरवा
 त अपनो आशीष दिहले हो।

चम चम चमके बिजुरिया
लहर उठे सागर होsssssss
सिंधु उठी उठी पगवा पखारे के
केतना अधीर भइले हो।

झुकी झुकी डरिया झुकल जाए
 फूल बरसावेले होssssssss
रात की रानिया हो गम गम गमके त
गालियां महकावे ले हो।

इंदु रानी
मुरादाबाद
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देश खड़ा है रणभूमि में
दुश्मन को यह समझाना है

बस एक साथ रहकर के
अपना धर्म निभाना है

सारे विश्व में अब भारत की
जय जयकार होगी,

जब हमारी सेना शरहद के पार होगी,

बहुत हो चुकी शांति शांति,
अब क्रांति की मशाल जलानी है

अपने देश की ये ताकत
 मिलकर के हमे दिखानी है,

वीरों की कुर्बानी को हम
बेकार नही जाने देंगे,

हम भारत के सपूत हैं
खून की नदियां बहा देंगे,                 

ईशांत शर्मा "ईशु"
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मैं फूल हूँ
सभी को जीवन का सार सीखता हूँ
हे मनुष्य  तुझे मानवीय व्यवहार सीखता हूँ
कांटो में खिलकर भी कभी कटीला नही हूँ
बिन भेदभाव के सभी पर खुशबू लुटाता हूँ
मैं फूल हूँ
सभी को जीवन का सार सीखता हूँ
गर्मी,सर्दी, बरसात सब सहता हूँ
भवरों पर भी अपना सब लुटाता हूँ
मैं फूल हूँ
सभी को जीवन का सार सीखता हूँ
अपने रस से मधु बनता हूँ
देवो के भी चरणों मे चढ़ाया जाता हूँ
कभी नहीं खुद पे इठतलता हूँ
सभी को दुनिया पर लूटना सीखता हूँ
मैं फूल हूँ
सभी को जीवन का सार सीखता हूँ

आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ
मुरादाबाद
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लेकर फिर हाथ में वो मशालें निकल पड़े हैं
बेकुसूरों  के  घर  वो जलाने निकल पड़े हैं
यह सोच कर उदास हैं चौराहों पर लगे बुत
हमारे शहर में  वो लहू बहाने निकल पड़े हैं

डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822