शनिवार, 22 अगस्त 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की लघुकथा ------अथक परिश्रम

   
छोटी सी नौकरी और छोटी तनख्वाह में वीरू और उनकी पत्नी राजे का अपने तीन बच्चों के साथ गुजारा करना कठिन तो जरूर था लेकिन वे यह जानते थे कि नेक नीयत मंज़िल आसान किसी ने यूँ ही नहीं कहा है।सादा जीवन उच्च विचार कि उक्ति को चरितार्थ करते हुए भगवान पर पूरा भरोसा रखते हुए अपने परिवार में अत्यंत प्रसन्नता के साथ अपने जीवन की गाड़ी को निरंतर आगे बढ़ा रहे थे।
       उनकी जिंदगी का परम उद्देश्य यही था कि उनकी तीनों संतानें खूब पढ़ लिख कर बड़े अधिकारी बनें।इसी उधेड़ बुन में खूब मेहनत और लगन के साथ अपने काम को अंजाम देते। बच्चे भी पढ़ने-लिखने में अच्छे और परिश्रमी थे।हमेशा क्लास में प्रथम रहकर विद्यालय का नाम रौशन करते।
       एक दिन बैठे-बैठे वीरू ने अपने बच्चों से बड़े सहज भाव से यह पूछा कि बच्चों जब हम बूढ़े हो जाएंगे तो हमें अपने पास कौन बुलाएगा।तीनों बच्चों ने उत्सुकता जताते हुए अपने-अपने पास बुलाने की सहमति दी।यह देखकर वीरू ख़ुश तो जरूर हुआ लेकिन उसने बच्चों के सम्मुख एक शर्त भी रख दी।
         वीरू ने कहा कि हम ऐसे ही किसी के पास नहीं जाएंगे,हम तो केवल उसी के पास जाएंगे जिसकी चार पहियों की गाड़ी हमको स्टेशन से लेने आएगी।बच्चों ने स्पर्धा का भाव रखते हुए अपनी-अपनी गाड़ी से लाने को प्राथमिकता दी।
        तब वीरू ने बच्चों को यह समझाया कि बच्चो गाड़ी ऐसे ही नहीं मिलती वह तो अथक परिश्रम और सच्ची लगन के साथ पढ़ाई करने और कंपीटीशन में सर्वोच्च स्थान लाने के उपरांत ही मिलती है।तुम भी ऐसा ही करोगे तभी तुमें गाड़ी भी मिलेगी और सामाजिक सम्मान भी प्राप्त होगा।
         फिर क्या था बच्चो ने इसी को अपना लक्ष्य बना लिया और अंततः उसका बड़ा बेटा राघव जज बन कर ,छोटा बेटा पीयूष सरकारी विभाग  में सीनियर इंजीनियर बनकर तथा बिटिया हिम्मो भी कुशल इंजीनियर की डिग्री लेकर लौटी।
        यह देख कर माता-पिता की खुशी का ठिकाना न रहा।अब तीनों की गाड़ी ही पापा - मम्मी को स्टेशन से लेने जातीं हैं।अब पापा यह सोचते हैं कि किसकी गाड़ी में पहले बैठें।
                     
 ✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ, प्र,
 9719275453         
                     

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