गुरुवार, 20 अगस्त 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेन्द्र शर्मा सागर की लघुकथा -------दिल का मैल


"अजी सुनते हो? इस बार सावन मनाने क्या गीता बीबीजी को नहीं बुलाओगे?" सरिता ने अपने पति सागर से पूछा।
"क्यों?? तुम्हारा पिछले झगड़े से पेट नहीं भरा क्या, जो फिर उसे बुलाकर घर में महाभारत करवाना चाहती हो।
अभी तीन चार महीने पहले ही तो आयी थी वह जयदाद में हिस्सा माँगने। कितनी बातें सुनाई उसने हमें तरह-तरह की। और तुम्हे तो अपनी हर परेशानी के लिए जिम्मेदार तक ठहरा दिया", सागर ने थोड़ा उदास होकर कहा। उस समय अनायास ही उसकी नज़र अपनी कलाई की ओर चली गयी।
"अरे छोड़ो उन बातों को, भाई-बहन और भाई-भाई में ऐसी नोक-झोंक होना कोई नई बात नहीं है। और फिर अगर उन्होंने कुछ कह भी दिया तो अपना समझकर ही कहा होगा। कोई किसी गैर से तो इतने अधिकार से झगड़ भी नहीं सकता", सरिता ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
"ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी! तुम ही  उसे फोन कर लेना", सागर ने सपाट स्वर में कहा और ऑफिस के लिए निकल गया।
दोपहर में सारे काम से फुर्सत पाकर सरिता ने गीता को फोन लगाया-
"हैलो… हेल्लो.. मैं सरिता"
"नमस्ते भाभी कैसे हो और भैया कैसे हैं?" उधर से गीता की धीमी आवाज आई।
"सब ठीक है गीता बीबी जी, आपको तो हमारी याद भी नहीं आती अब", सरिता ने उलाहना दिया।
"ऐसी बात नहीं है भाभी.. वो घर के कामों में…!" गीता ने बात टाली।
"गीता बीबी जी सावन शुरू हुए कितने दिन हो गए आप आयी नहीं अपने घर?" सरिता ने बड़े अधिकार से कहा।
"मेरा घर? मेरा घर तो यही है भाभी। अब उस घर से मेरा क्या नाता रहा गया है", गीता ने धीरे से कहा।
"क्यों?? लाठी मारकर क्या पानी अलग होता है? और फिर अगर यहाँ कोई गैर है तो वह मैं हूँ। आप भाई-बहन का रिश्ता मेरी वजह से खराब हो रहा है। लेकिन क्या मेरी बजह से तुम राखी पर अपने भाई की कलाई सूनी रखोगी?" सरिता ने उदास होकर कहा।
"न..न..नहीं भाभी लेकिन भैया..!" गीता अटकते हुए बोली।
"हाँ तुम्हारे भैया ही कहकर  गए हैं कि तुमसे पूछ लूँ, खुद आएगी या कान पकड़ कर लेने आना पड़ेगा? देखो तीज से पहले ही आ जाना और सलूनो करके ही बापस जाना।
बाकी रही बात झगड़े की, तो उसके लिए सावन के अलावा भी ग्यारह महीने बाकी पड़े हैं", सरिता ने हँसकर कहा।
"भाभी…!!" गीता की हिलकी भर गयी।
इधर सरिता की आँखे भी नम हो आयीं थीं।
तभी आसमान में काली घटाएं घिर आयीं और बारिश की तेज बौछारें पड़ने लगीं मानों बादल भी दिलों पर जमी मैल को धोने के लिए बरस रहे हों।

✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद
उत्तरप्रदेश

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