जब वो घर के बाहर आती तो बच्चे उससे चिढ़ते थे ।लंबे बालों में ढेर सारा सरसों का तेल लगाती थी ।बेकार में नहीं घूमती ।जब उसकी मां कोई काम बताती ,तभी घर से निकलती अन्यथा केवल घर से स्कूल और स्कूल से घर ।चार बहनों में सबसे बड़ी ,मासूम सी ।कोई बनावट नही ।मैं जब भी छत से देखती ,वह पढ़ती ही दिखती या रसोईं में काम ।
कभी वाद विवाद प्रतियोगिता ,कभी भाषण ,कभी काव्य पाठ ,यही सब उसके शौक थे ,जब नाम छपता था अखबार में तो मुझसे न्यूज़ पेपर की कटिंग ले जाती । बस एक सपना था उसका .......कि कोई नौकरी मिल जाय पढ़ाई के बाद ,जिससे वह अपने भाई बहनों को भी कुछ प्रेरित कर सके । मैं खुश होती थी उसे देख क्योंकि अभावों में भी वह किसी से कम न थी ।
हाई स्कूल का रिजल्ट आने बाला था ।सब स्टूडेन्ट दहशत में थे ,उस समय उसके चेहरे पर एक अजीब सी चमक थी ।
पास होने बाले मिठाई बांट रहे ,अपनी तारीफ करते घूम रहे ।पर वह अगले क्लास के नोट्स बना रही थी ।मैंने पूंछ लिया उससे कि रिजल्ट देखा क्या ?बोली,"नही ,पेपर वाला बीस रुपये माँगता है ।पर मेरी मां पर नहीहै।स्कूल मार्कशीट तो आयगी न ।
अगली सुबह ,कई न्यूज़ पेपर वाले एक एक करके उससे मिलने को उसका इंतजार करते उसके दरबाजे खड़े थे । बस मुझे समझने में देर न लगी । यही वही टीम थी जो टॉपर्स का इंटरव्यू छापते थे । मेरे मुख से स्वतः निकल गया........यह ,तो "गुदड़ी में मोती "है।
डॉ प्रीति हुँकार
मुरादाबाद
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