गुरुवार, 20 अगस्त 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी -----अंत बुरे का बुरा...


 सिमलेश ...!.. तुम यहां !!!     तुम्हें तो वहीं रहना था... दादी के पास कौन है??.. पवन ने विसफारित नेत्रों से देखते हुए सिमलेश से पूछा....
......तुम्हारी चिट्ठी को देख कर ही तो मैं आई हूं अम्मा कहां है ? कैसी तबीयत है उनकी ?
उत्तर में विस्मय से सिमलेश ने कहा...
चिट्ठी....!.. कौन सी चिट्ठी ? हमने कब चिट्ठी भेजी.....?? जरूर कोई गड़बड़ हुई है.... !! खतरे को भांपते हुए पवन ने उन्हें कहा !!
 ....   तभी अम्मा  कमरे से बाहर आते हुए आश्चर्य से बोली आज बहुत बुरा हुआ ....निश्चय  ही तेरी दादी की जान को खतरा है रात बहुत हो गई है चलो अब सुबह देखेंगे....!!
    सुबह 6:00 बजे गांव से एक आदमी आया जिसने बताया दादी का मर्डर हो गया है...... डकैतों ने सब कुछ लूट कर दादी को मार डाला .......!!!
       दादी जो कि मुनसन के नाम से मशहूर थीं ..अवस्था 90 साल बड़ी सी हवेली, 1oo बीघा जमीन के अलावा घर में सोने, चांदी, हीरे ,जवाहरात का खजाना भरा था एक संदूक चांदी के रुपयों से ही भरा था ...मुनसन के अपनी कोई औलाद नहीं थी इसलिए उसने ससुराल वालों पर भरोसा न करके अपने भतीजे पवन के बेटे राकेश को गोद ले लिया था और उसी के नाम वसीयत लिख दी थी परंतु वह सब लोग शहर में रहते थे उनकी देखभाल के लिए राकेश की दादी और बुआ सिमलेश मुनसन के पास रह कर सेवा करते थे बगल में ही जेठ के लड़के शमशेर का मकान था जिसके बेटे महेश और देवेश हमेशा बुढ़िया की जान के दुश्मन बने रहते थे मौके की तलाश में रहते थे कि कब बुढ़िया अकेली मिले और उसका गला दबा दें और सारा माल साफ कर दें उन्होंने छल से  एक चिट्ठी लिखी और सिमलेश को वहां से हटा दिया और रात में पहुंच गए 90 साल की बुढ़िया पैरों पर गिर कर खूब रोई गिड़गिड़ाई .... मेरे प्राण छोड़ दो परंतु महेश दिनेश को दया नहीं आई... जरा सा गला दबाने से आसानी से बुढ़िया केप्राण निकल गए सारा माल खाली कर दिया और पुलिस में रिपोर्ट लिखा दी कि डाकू आए थे  रात को डाकू लूट कर ले गए और बुढ़िया को मार गए
    पुलिस के सुआ मोर पोस्टमार्टम में स्पष्ट हो गया कि मुनशन की हत्या गला दबाकर की गई
महेश और देवेश को पुलिस पकड़ कर ले गई घर में बहुत भीड़ थी काफी लोगों के बीच में वसीयत पढ़ी गई वसीयत में 50 बीघा जमीन मुनसन ने महेश और देवेश के नाम लिख रखी थी जांच कराई गई वसीयत असली थी यह देखकर महेश और देवेश के नाम लिखी थी जानकर महेश और देवेश को बहुत ही दुख हुआ
 सब किया कराया मुंनशन के जेठ के लड़के शमशेर  का था अब पश्चाताप के अलावा कुछ नहीं हो सकता था
कोर्ट द्वारा महेश और देवेश को आजन्म कारागार की सजा सुनाई गई शमशेर के अंतिम समय में उसके पास दोनों बेटों में से कोई भी ना था पश्चाताप में बड़ी ही मुश्किल से प्राण निकले !!!
.....किसी ने सच ही कहा है ....
अंत बुरे का बुरा......

 ✍️ अशोक विद्रोही
82 188 25 541
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद

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