शुक्रवार, 21 अगस्त 2020

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद सम्भल) निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघुकथा ------ दौलत

                  
'ज़रीना तुमने आज फिर प्लेट तोड़ दी  तुम रोज़ कुछ न कुछ नुक़सान कर देती हो मै तुमसे कितनी बार कह चुकी हूँ कि ध्यान से काम  किया करो लेकिन तुम हो कि एक कान से सुनती हो और दूसरे से निकाल देती हो' ।
ज़रीना ने मेम साहब की बात सुनकर फ़ौरन जवाब दिया - "हां- हां पूरा ध्यान रखती हूं अरे, अगर एक प्लेट टूट गई तो कौन सी ऐसी आफत आ गई"।
अगले दिन फिर किचिन से तड़ाक! के साथ किसी चीज के टूटने की आवाज आई मेम साहब किचिन में  गई तो वहा का नज़ारा देखकर हैरत व गुस्से से उनका चेहरा लाल हो गया अपने पर नियंत्रण न रख सकीं और ज़रीना पर उबल पड़ी - "अरे कमबख्त, तूने मेरा कितना क़ीमती सैट तोड़ दिया मेरी मामी ने मुझे यह लंदन से भेजा था"। ज़रीना ने पहले की तरह लापरवाही से जवाब दिया -"मेम साहब मैने यह जानकर तो नही तोड़ा "।जरीना का टका सा जवाब सुनकर मेम साहब का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया "खामोश, ज़बान लड़ाती है "
"इसमें ज़बान लड़ाने वाली कौन सी बात है "। ज़रीना ने तपाक से जवाब दिया ।अब मेम साहब से रहा नही गया  ज़रीना की ओर देखकर वह ज़ोर से चिल्लाई -"तुम गरीब लोगों में मैनर्स कहां, इसीलिये तुम गरीब हो और हम अमीरों से जलते हो जान बूझकर हमारा नुक़सान करते हो  इसीलिये दौलत तुमसे दूर भागती है "।  "बस- बस मेम साहब, दौलत का ज़्यादा घमंड मत दिखाओ जिस दौलत पर तुम इतना इतराती हो वह तुम्हे सुकून नही देती तुम्हारी यह दौलत तुम्हें अपनो से दूर करती है  यह दौलत दोस्त कम दुश्मन ज़्यादा बनाती है। अरे,  असली दौलत तो हमारे पास है प्यार की दौलत, मौहब्बत की दौलत,  मेरे पास मेरे बच्चो की, मेरे आदमी की ,मेरे माँ -बाप के प्यार की दौलत है। मैं यहां से थकी हारी जाती हूं तो घर पहुँचकर सबके प्यार की दौलत पाकर मुझे जो खुशी मिलती है वह तुम्हे कहां नसीब? "। कहती हुई ज़रीना मेम साहब के घर से निकल गई उसके जाने के बाद भी उसके कहे गये शब्द मेम साहब के कानों में गूंजते रहे वह सोचने लगीं कही जरीना सच तो नही कह रही ? दौलत कमाने के लिये उसके पति यू एस ए में है उसके दोनों बेटे दुबई में जॉब कर रहे है वो यहां अकेली है कभी कभी तो अकेलापन उसे बहुत कचोटता है यहां भी जो उसके अपने रिश्तेदार थे वह उसकी दौलत के घमंड में कही गई बातों से उससे दूर होते चले गये अब कोई उसके घर नही आता सोचते सोचते मेम साहब बुदबुदाने लगीं-" सच है, प्यार की दौलत सबसे बड़ी दौलत है "।

 ✍️ कमाल ज़ैदी "वफ़ा"
प्रधानाचार्य, अम्बेडकर हाई स्कूल बरखेड़ा
सिरसी (सम्भल)
9456031926

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