मंगलवार, 6 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की दस ग़ज़लों पर "मुरादाबाद लिटरेरी क्लब'' द्वारा ऑनलाइन साहित्यिक चर्चा

 


वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा 'एक दिन एक साहित्यकार' की श्रृंखला के अन्तर्गत  3 व 4 अक्टूबर 2020 को मुरादाबाद की युवा साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की दस ग़ज़लों पर ऑन लाइन साहित्यक चर्चा का आयोजन किया गया । सबसे पहले मीनाक्षी ठाकुर द्वारा निम्न दस ग़ज़लें पटल पर प्रस्तुत की गयीं----

(1)
हथेली पर नया सूरज किसी ने फिर उगाया है
अँधेरा दूर करने को उजाला साथ लाया है

पकड़ना जब भी चाहा हर खुशी को हाथ से हमने
तभी  तितली सा उड़कर वक्त़ ने हमको रुलाया है

जगह थोड़ी सी माँगी थी किसी के दिल में रहने को
नहीं खाली मकां उसका, यही उसने बताया है

भरोसा करना मत क़िस्मत के लिक्खे फैसलों  का तुम
हमेशा हौसलों ने जीत का मंज़र दिखाया है

मै लिख दूँ आसमां पर नाम अपनी कामयाबी का
बुज़ुर्गों ने सदा मेरे मुझे उठना सिखाया है

(2)
तीर दिल पर चला कर गये हैं
मुझसे दामन छुड़ा कर गये है

हर दुआ दिल ने की जिनकी ख़ातिर
आज वो ही रुला कर गये हैं

छोड़ना ही था गर यूँ सफ़र में
ख़्वाब फिर क्यूँ सजा कर गये हैं

देने आये थे झूठी तसल्ली
चार आँसू बहा कर गये हैं

हैं पशेमाँ वो अपनी ज़फा से
इसलिए मुँह छुपा कर गये हैं

(3)
दोस्ती करके किसी नादान से
हमने झेले हैं बड़े तूफ़ान से

दिल में रहते थे कभी जो हमनवा
आज क्यूँ लगते भला मेहमान से

साथ मेरे तू नहीं तो कुछ नहीं
फ़िर गुलिस्तां भी लगे वीरान से

याद ही बाक़ी रही अब दरमियां
दिल के टूटे हैं कहीं अरमान से

ख़ुदक़ुशी करना नहीं यूँ हारकर
मौत भी आये मगर सम्मान से

वो गये दिल तोड़कर तो क्या हुआ
ज़िंदगी फिर भी चलेगी शान से

तंगदिल देंगे तुम्हें बस घाव ही
आरज़ू करना सदा भगवान से

(4)
हँसा के मुझको रुला रहा था
छुड़ा के दामन वो जा रहा था

उसी ने बदली हैं क्यूँ निगाहें
जो कसमें उल्फ़त में खा रहा था

हुआ किसी का न आज तक जो
वफ़ा के क़िस्से सुना रहा था

मिटाने को मेरी हर निशानी
ख़तों को मेरे जला रहा था

कभी न झाँका जो आइने में
वो मुझ पे उँगली उठा रहा था

(5)
दिल ही दिल में उनको चाहा करते हैं
सीने में इक तूफां पाला करते हैं

जब आये सावन का मौसम हरजाई
यादों की बारिश में भीगा करते हैं

कटती हैं अपनी रातें तो रो-रो कर
वो भी शायद, करवट बदला करते हैं

होते कब सर शानों पर दीवानों के
फिर भी क्यूँ खुद को दीवाना करते हैं

लिक्खें जितने नग़में उनकी यादों में
हँसकर हर महफ़िल में गाया करते हैं

(6)
रस्म उल्फ़त की कुछ तो अदा कीजिए
चाहिए ग़र वफ़ा तो वफ़ा कीजिए

इश़्क करने का अंजाम होता है क्या
दिल के बीमारों से मशविरा कीजिए

तोड़कर सारे रिश्ते चले जाएं पर
हाथ की इन लकीरों का क्या कीजिए

हो दग़ाबाज़ी जिनके लहू में घुली
ऐसे लोगों से बचकर रहा कीजिए

कुछ भरम प्यार का दरमियां ही रहे
ख्व़ाब में ही सही पर मिला कीजिए

(7)
खोकर मुझको रोया होगा
रातों को भी जागा होगा

दिल जो मेरा तोड़ा तूने
तेरा दिल भी टूटा होगा

वादों की तहरीरों में भी
सच का किस्सा झूठा होगा

होगी महफ़िल जब भी तेरी
चर्चा मेरा होता होगा

अश्कों के खारे पानी से
गम का दरिया हारा होगा

(8)
आइना सच हज़ार बोलेगा
इक नहीं बार-बार बोलेगा

क़त्ल होगा जो जिस्म मेरा ये
रूह का तार-तार बोलेगा

सिल गये लब,नज़र झुका ली है
आज तो शर्मसार बोलेगा

लुट गये हम वफ़ा की राहों में
प्यार में कर्ज़दार बोलेगा

मुंतज़िर थे कभी हमारे वो
बस यही राज़दार बोलेगा

(9)
कोई अपना भी रहनुमा होता
दर्द इतना न फिर मिला होता

बैठे हो सर झुकाए गै़रो में
तीर अपनों का सह लिया होता

मुब्तिला थे तेरी ख़ुशी में हम
राज़ ग़म का भी तो कहा होता

तोड़ देते वो दिल मेरा बेशक
मशवरा मुझ से कर लिया होता

भूल जाते हैं इश्क़ करके वो
ये हुनर हमको भी मिला होता

(10)
रो रही ज़िंदगी अब हँसा दीजिये
फूल ख़ुशियों के हर सू खिला दीजिये

इश्क़ करने का जुर्माना भर देंगे हम
फै़सला जो भी हो वो सुना दीजिये

ढक गया आसमां मौत की ग़र्द से
मरती दुनिया को मालिक दवा दीजिये

बंद कमरों में घुटने लगी साँस भी
धड़कनें चल पड़ें वो दुआ दीजिये

जाल में ही न दम तोड़ दें ये कहीं
कै़द से हर परिंदा छुड़ा दीजिये


इन गजलों पर चर्चा शुरू करते हुए वरिष्ठ व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि मीनाक्षी में लेखन के प्रति ललक भी है और उनके भीतर ऊर्जा भी है। पटल पर प्रस्तुत दस ग़ज़लें जहां अपनी भाव संपदा से भरपूर हैं, वहीं मुझे यह विशेष लगा कि वे अपने आकार में उतनी ही हैं जितना कि ग़ज़ल को होना चाहिए। जैसा कि जानकारों ने माना है कि अभी उनकी शुरुआत है। शुरुआत है तो भाव दृष्टि से संतोषजनक है।

वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि बहुत अच्छी कहन है। ईमानदारी और साफगोई के साथ सादा बयानी ने दिल में जगह बनाई है। अभ्यास हर कमी को दुरुस्त कर देगा। एक उभरती हुई मजबूत शायरा का साहित्य जगत में हार्दिक स्वागत है।
मशहूर शायरा डॉ मीना नक़वी ने कहा कि मुझे लगा कि मीनाक्षी छन्द युक्त लेखन पसन्द करती हैं जो ग़ज़ल के लिये अनिवार्य शर्त है।  पटल पर उनकी दस ग़ज़लें मेरी ये बात सिद्ध करने को पर्याप्त हैं। उनकी भाषा की सरलता उनके लेखन का क्षितिज विस्तृत करेगी इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण उनकी ये दस ग़ज़लें  हैं।
मशहूर शायर डॉ कृष्ण कुमार नाज़ ने कहा कि उनकी ग़ज़लें पढ़कर ऐसा महसूस होता है कि वह परिश्रम से कतराने वाली नहीं, बल्कि चुनौतियों का सामना करने की हिम्मत रखती हैं और उसमें सक्षम भी दिखाई देती हैं। ग़ज़ल जैसी कठिन काव्यविधा को साधना बहुत मुश्किल है, लेकिन वह इस मुश्किल को आसान बनाने में पूरी लगन के साथ जुटी हैं। मैं उनकी इस लगन की सराहना करता हूं।
वरिष्ठ कवि आनन्द गौरव ने कहा कि मुरादाबाद के साहित्यिक पटल पर  पारदर्शी ग़ज़ल की हस्ताक्षर का साहित्य जगत में पूर्ण परिपक्वता पर स्वागत व सम्मान निश्चित ही होगा। मीनाक्षी जी को हार्दिक बधाई, शुभकामनाएं। 
वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि पटल पर उनकी 10 ग़ज़लें प्रस्तुत की गई हैं । सभी ग़ज़लों में वह बड़ी सहजता और सादगी से अपनी बात कहती हैं। वह साहित्यिक आकाश में एक नया सूरज उगाने के हौसले के साथ अपनी भावाभिव्यक्ति का उजाला फैलाना चाहती हैं । उनके भीतर अश्कों के खारे पानी से गम के दरिया को हराने का भरपूर जज्बा है ।वह किस्मत के लिखे फैसलों पर भरोसा नहीं करती बल्कि अपने सीने में एक तूफ़ां पालकर आसमां पर अपनी कामयाबी का नाम लिखना चाहती हैं। 
वरिष्ठ कवि शिशुपाल मधुकर ने कहा कि मीनाक्षी ठाकुर जी की ग़ज़लें पहली बार पढ़ने को मिली। अभी तक काफी गोष्ठियों में उनके गीत ही सुनने को मिले थे। इन ग़ज़लों को पढ़कर लगा कि ग़ज़ल लेखन में भी वे उतनी है सिद्ध हस्त हैं जितनी कि गीत लेखन में। प्रस्तुत ग़ज़लों में कथ्य को ग़ज़ल के मिजाज़ के अनुरूप ही पिरोया गया है ताकि ग़ज़ल की गजलियत बरकरार रहे।प्रेम की गहरी अनुभूतियों के साथ साथ जीवन की कटु  सच्चाइयों को भी मीनाक्षी जी ने बहुत ही खूबसूरती के साथ अपनी ग़ज़लों में स्थान दिया है।.                               
नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा कि मीनाक्षी जी की रचनाएं पहली बार पढ़ रहा हूँ जो ग़ज़लों के रूप में प्रस्तुत की गई हैं, हालांकि काव्य-गोष्ठियों में कई बार उन्हें सुना है। आज मुरादाबाद लिटरेरी क्लब के पटल पर प्रस्तुत उनकी रचनाएं उनके उजले साहित्यिक भविष्य की आहट देती हैं और मुरादाबाद को भविष्य की एक सशक्त छांदस कवयित्री मिलने की संभावना को बलवती बनाती हैं।

कवि श्रीकृष्ण शुक्ल ने कहा कि उनकी सभी गज़लें मैंने पढ़ीं, और यह कहने में कोई अतिश्योक्ति न होगी कि उनका गज़ल कहने का अंदाज बिलकुल सरल सीधा सादा और साफगोई वाला है। भाषा अत्यंत सरल और कहन स्पष्ट है। ज्यादातर गज़लें सामाजिकता और व्यावहारिकता पर केंद्रित हैं।  बीच बीच में अत्यंत प्रेरक संदेश भी उनमें निहित हैं।

युवा शायर फ़रहत अली ख़ान ने कहा कि मुरादाबाद में नयी पीढ़ी की चुनिंदा महिला साहित्यकारों में से एक मीनाक्षी जी की ग़ज़लें उम्मीदें जगाती हैं। इन की शायरी में फ़िक्र की गहरायी के निशानात मौजूद हैं। फ़न आते-आते आता है, सो वक़्त और मेहनत के साथ वो बुलंदी ही पाएगा।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि बहन मीनाक्षी ठाकुर जी का  रचनाकर्म इस बात को स्पष्ट दर्शा रहा है कि एक और ऐसी बहुमुखी प्रतिभा की धनी कवयित्री/शायरा का साहित्यिक पटल पर पदार्पण हो चुका है जो भविष्य में अनेक ऊँचाईयों का स्पर्श करेगी। मैं व अन्य अनेक साथी रचनाकार विभिन्न कार्यक्रमों में उनकी प्रतिभा के दर्शन कर चुके हैं। सीधी व सरल भाषा-शैली में  प्रभावपूर्ण ढंग से अपनी बात कह देने वाली यह बहुमुखी प्रतिभा निश्चित ही समय के साथ और भी निखरेगी।
युवा साहित्यकार मनोज वर्मा 'मनु' ने कहा कि साहित्य की अन्य तमाम विधाओं में बेहतर शुरूआत करते हुए गद्य और पद्य में उत्तरोत्तर हाथ आजमाते हुए क्रमशः मुक्तक ....फिर शेरो -शाइरी की तरफ मुत्तासिर होना यह बताता है कि इनके ज़ेहन में शुरू से ही  ग़ज़लियत के अंकुर   विद्यमान रहे हैं... बस उनको आकार देने के लिए जो पर्याप्त वातावरण, प्रोत्साहन और प्लेटफॉर्म की आवश्यकता थी वह  "साहित्यिक मुरादाबाद" वाट्स एप समूह के रूप में समय रहते इन्हें मिला  जिसके  सबब  आज उनकी लगन परिश्रम और हौसले के परिणामस्वरूप इस सम्मानित समूह पर समीक्षा हेतु साहित्य की अन्य विधाओं के इतर 10 गजलें प्रस्तुत की गई हैं।
युवा कवि मयंक शर्मा ने कहा कि आज पटल पर उनकी दस ग़ज़लें प्रस्तुत हुई हैं किंतु मैंने उन्हें मुक्तक, छन्द, कविताएं और कहानी कहते हुए भी सुना है। रचनाओं में भाव और उपयुक्त शब्दों का प्रयोग उनकी ख़ासियत है, जैसा कि आज की दस ग़ज़लों में हमें देखने को भी मिला है। ग़ज़लों की तरन्नुम और उनका प्रस्तुतिकरण श्रोताओं को आकर्षित करने वाला होता है। उनकी सभी दस ग़ज़लें अलग-अलग विषयों और भावों को लिये हुए हैं।

 हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि मीनाक्षी ठाकुर जी ने अपनी आरंभिक रचनाओं से ही जता दिया है कि उन्हें साहित्य के संस्कार उस पावन भूमि की हवाओं से,परिवेश से स्वत: ही प्राप्त हैं और साथ ही उस प्राप्त अंकुरण को गौरवशाली स्तर तक ले जाने के लिए अपनी लगन,सादगी,साफगोही,कहने की निर्भीकता,मेहनत और वरिष्ठ रचनाकारों की सलाह पर विनम्रता से मनन करने जैसी अपनी खूबियों के चलते जो न केवल सर्वथा सक्षम हैं बल्कि इसके लिए प्रयासरत भी हैं।आज के हालात को समेटती हुई,निराशाओं में आशाओं की राह तलाशती,व्यवहारिक समाधान सुझाती इस सामयिक ग़ज़ल को रखकर दस ग़ज़लों के इस शानदार बुके में अन्तिम ग़ज़ल से सुन्दर रैपिंग करते हुए भी मीनाक्षी दी ने अपनी विशिष्टता प्रस्तुत कर दी है।
युवा कवि दुष्यंत 'बाबा' कहा कि आप अंग्रेजी विषय के साथ स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरांत भी हिंदी की एक प्रखर लेखिका है। हिंदी और उर्दू के प्रति इतना स्नेह/लगाव इनके रचनाकर्म में सुस्पष्ट प्रतीत होता है। इनकी रचनात्मकता का प्रदर्शन इनकी गज़लों और कविताओं में देख ही चुके है ।

ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि सबसे अहम बात यह है कि मीनाक्षी का मिज़ाज ग़ज़ल का है। यानी यह महसूस नहीं होता कि उन्होंने ज़बरदस्ती ज़ुबान का स्वाद बदलने के लिए ग़ज़ल कहने की कोशिश की हो। क्योंकि उनका मिज़ाज ग़ज़ल का है इसलिए उनके यहां ग़ज़ल वाकई ग़ज़ल के रूप में नजर आ रही है। यह शुरुआती ग़ज़ल है लेकिन इस ग़ज़ल में बहुत रोशन इमकानात हैं। मीनाक्षी ने ग़ज़ल में किसी तरह अपने आप को मनवाने की कोशिश नहीं की है। यह उनकी सादगी है जो उनके फ़न में और उनकी ग़ज़ल में भी नज़र आती है। ज़ुबान बहुत सादा है। हिंदी और उर्दू के सांझे अल्फ़ाज़ उनकी ग़ज़ल में बहुत आसानी से आ रहे हैं जो कि एक बहुत पॉज़िटिव बात है।

✍️ ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
"मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" मुरादाबाद
मो० 8755681225

सोमवार, 5 अक्तूबर 2020

हिंदी साहित्य संगम की ओर से रविवार 4 अक्टूबर 2020 को ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। आयोजन में शामिल साहित्यकारों श्री कृष्ण शुक्ल, अशोक विश्नोई, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, शिशुपाल मधुकर, अशोक विद्रोही, डॉ मनोज रस्तोगी, योगेंद्र वर्मा व्योम, राजीव प्रखर, डॉ प्रीति हुंकार, डॉ रीता सिंह, अरविंद कुमार शर्मा आनन्द, राशिद मुरादाबादी, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, प्रशांत मिश्र, जितेंद्र कुमार जौली और विकास मुरादाबादी द्वारा प्रस्तुत की गईं रचनाएं------

 


हम जरा सी तरक्की जो करने लगे।

आपकी आँख में हम खटकने लगे।।

जिस तरह रोज कपड़े बदलते हैं सब
आप किरदार यूँ ही बदलने लगे।

राम का नाम लेने से परहेज था।
आप हनुमान चालीसा पढ़ने लगे।।

बोतलों में भरा था जो विष आपने।
आप हम पर ही सारा उगलने लगे।।

हमने तो आपको रहनुमा था चुना।
अब हमारा ही घर तुम जलाने लगे।।

✍️श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद ।
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मैंने ,
बहुत प्रयास किया
भावनाओं की सुईं से
शब्दों की तुरपाई
कर सकूं
हाँ , मैने
शब्द-शब्द को
एक साथ रखने का
प्रयास भी किया
ताकि वे शब्द
कविता बन जायें
पर ,
मेरी अभिव्यक्ति
की तुरपाई,
हर बार उधड़ जाती है  ।
मैं भी कवि बन सकूँ,
यह अभिलाषा
दिल ही दिल में
रह जाती है ।।

✍️अशोक विश्नोई, मुरादाबाद
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कलम बिक  चुकी है
    ज़हन   बिक  चुके हैं
    शराफत   भरे    सब
    सहन   बिक  चुके हैं
    जिधर   देखिए   बस
    धुआं   ही   धुआं   है
    घुटन  में  घिरा आज
    सारा      जहां       है
    ज़ुबां  बिक  चुकी  है
    वचन  बिक  चुके  हैं।
    कलम बिक---------

    सभी   आज   अपने
    पराय     हुए        हैं
    नगर    नफरतों    के
    बसाए     हुए        हैं
    फूलों   में    भी   गंध
    बारूद      की       है
    हर     ओर    दहशत 
    की     मौजूदगी     है
    महक  बिक  चुकी  है
    चमन  बिक   चुके  हैं।
    कलम बिक---------

     हुआ   है  सभी   का
     यहाँ     खून    पानी
     बड़ी   मुश्किलों   में
     फंसी       जिंदगानी
     नहीं   आज   आदर
     शहीदे    वतन    का
     गया     सूख    पानी
     सभी  के  नयन   का
     हया  बिक   चुकी  है
     नयन  बिक    चुके हैं।
     कलम बिक---------

      ईश्वर  से  कोई   नहीं
      डर         रहा       है
      नहीं  प्यार  इंसान से
      कर         रहा       है
      सुरक्षित     नहीं     है
      उसूलों    की    माला
      रातों      में      घिरने
      लगा     है     उजाला
      ऋचा  बिक  चुकी  है
      हवन  बिक   चुके  हैं।
      कलम बिक---------

      मगरमच्छ   के   जैसे
      आँसू      बचे        हैं
      चेहरे     सभी       के
      रुआंसू     बचे       हैं
      दुआएं सभी  बेअसर
      हो        चुकी        हैं
      बहुत    दूर   भगवान 
      से    हो     चुकी    हैं
      दया  बिक  चुकी   है
      रुदन  बिक  चुके   हैं
      कलम बिक---------
           
      ✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
       मुरादाबाद/ उ, प्र,
       मो0-   9719275453
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झूठ गर सच के सांचे में ढल जाएगा
रोशनी को अंधेरा निगल जाएगा

इतनी बीमार है आज इंसानियत
लग रहा है कि दम ही निकल जाएगा

छोड़ दो उसकी उंगली बड़ा हो गया
ठोकरे खाते खाते संभल जाएगा

आ गए भेष धरकर मुहाफिज का जो
राज उनका भी जल्दी ही खुल जाएगा

अपने हक के लिए सब जो मिलकर लड़ें
देखिए सारा आलम बदल जाएगा

✍️ शिशुपाल "मधुकर"
मुरादाबाद
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भारत के लाल बापू ,दिल में सदा रहेंगे;

है जन्मदिन तुम्हारा ,शत शत नमन करेंगे।

  आपस में मेल करना ,तुमने हमें सिखाया ,
  सपनों का पुर अमन यह ,हिंदोस्तां बनाया।
  हर विपदा हर खुशी में ,सब मिलके हम रहेंगे ।
  है जन्मदिन तुम्हारा ,शत-शत नमन करेंगे।।
जब देश में थी तंगी, तन पर वसन नहीं थे ,
कपड़ों का त्याग करके ,इक धोती में तुम्ही थे ।
वह त्याग तेरा बापू ,कैसे भुला सकेंगे ।
है जन्मदिन तुम्हारा ,शत शत नमन करेंगे ।।
जब भूख से तड़पता ,संकट में देश सारा ,
तब तुम ने व्रत रखा कर, विपदा से था उबारा।
अब शुक्रिया अदा हम ,उस लाल का करेंगे ।
है जन्म दिन तुम्हारा, शत शत नमन करेंगे ।।
ईमान सदगी की ,जलती मश़ाल थे तुम ,
देखी नहीं जहां में ,ऐसी मिसाल थे तुम ।
तुमने है जो दिखाई ,उस राह पर चलेंगे ,
है जन्मदिन तुम्हारा ,शत शत नमन करेंगे।।
दोनों ने अपना जीवन, बस देश हित में वारा,
एक गोलियों ने भूना  ,एक ताशकंद मारा।
दो फूल थे चमन के ,रूहे चमन रहेंगे ,
है जन्मदिन तुम्हारा ,शत-शत नमन करें।।
              
✍️अशोक विद्रोही
मोबाइल फोन नम्बर 82 188 25 541
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इज्जत  हो  रही  तार-तार  देश में
हो  रहे  हैं रोज  बलात्कार  देश में            

खुद ही कीजिएगा हिफाजत अपनी
गहरी  नींद  में  है  पहरेदार  देश में                

बढ़ रही है हैवानियत किस तरह
इंसानियत  हो रही शर्मसार देश में

'एक्शन' के साबुन से होगी क्या साफ                         वर्दी  जो  हो  चुकी है दागदार देश में

चीखने का कोई होगा नहीं असर
हो गई है बहरी अब सरकार देश में

टीआरपी चैनलों की बढ़ रही 'मनोज'
जमकर  बिक  रहे  अखबार देश में
✍️डॉ मनोज रस्तोगी
Sahityikmoradabad.blogspot.com
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कैसे सँभलें भूख के, बिगड़े सुर-लय-ताल
आज सदी के सामने, सबसे बड़ा सवाल

सपनों के बाज़ार में, ‘हरिया’ खड़ा उदास
भूखा-नंगा तन लिए, कैसे करे विकास

घर में पसरी भुखमरी, कैसे हो निर्वाह
'रमुआ' भी इमदाद की, रहा देखता राह

मजदूरों के नाम पर, दिखावटी परमार्थ
राजनीति भी गढ़ रही, कैसे-कैसे स्वार्थ

इधर भूख से चल रहा, बाहर-भीतर द्वंद
राजनीति भी रच रही, उधर नये छल-छंद

तनिक नहीं संवेदना, का जिनमें उल्लेख
राजनीति लिखती रही, स्वार्थ पगे आलेख

जीवन का अस्तित्व भी, हो जब संकटग्रस्त
उचित कहाँ तक तब भला, राजनीति हो मस्त

धीरज रख, कर कोशिशें, गुज़रेगा यह दौर
फिर होगी इंसानियत, दुनिया की सिरमौर

क्या जनहित क्या राष्ट्रहित, ख़त्म हुए एहसास
नैतिकता को दे चुकी, राजनीति वनवास

लेकर फिर अभिव्यक्ति की, आज़ादी की ओट
राजनीति करने लगी, राष्ट्र हितों पर चोट

-योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’, मुरादाबाद
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माँ हिन्दी के नेह की, एक बड़ी पहचान।
इसके आँचल में मिला, हर भाषा को मान।।

मन की आँखें खोल कर, देख सके तो देख।
कोई है जो लिख रहा, कर्मों के अभिलेख।।

सुन गोरी के पाँव से, पायल की झंकार।
ढल जाने को काव्य में, मचल उठा श्रृंगार।।

पुतले जैसा जल उठे, जब अन्तस का पाप।
तभी दशहरा मित्रवर, मना सकेंगे आप।।

✍️राजीव 'प्रखर'
(मुरादाबाद)
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आज कलम की नोक को असि धार करलूँ।
कलुषित कुकर्मी काट सिर को हार करलूँ।
साध कर चुप्पी कब तक पाप की भागी बनूँ मैं,
काली का अवतार धर के भू का भार हरलूँ।

अहिंसा अस्त्र को धारा सकल अरि को झुकाया था।
सतत सच्चाई पर चलना सदा जिसने सिखाया था।
नमन उनको हमारा है कि जिनको कहते सब बापू,
हमें आदर्श जीवन का तुम्ही ने पथ दिखाया था ।

धन्य हुई भारत की भूमि, दमक उठा दिनमान ।
धरती के इस लाल ने ,खूब बढ़ाया मान ।
सादा जीवन उच्च विचार  थे जिनके आदर्श ,
उनका यह उदघोष था जय जवान जय किसान ।।

✍️डॉ प्रीति हुँकार मुरादाबाद
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वह सुबह कब यहाँ आयेगी ?
जब सूनी सड़कों पर बेटी
हो निडर घूम - फिर पायेगी ।
वह सुबह कब यहाँ आयेगी ?

मुखौटा पुरुषों का पहनकर
दानव वहशी बन डोल रहे
लगती नारी भोग की वस्तु
वे समझ न उसका मोल रहे ।
ऐसे विष विचारों से मुक्त
क्या धरा कभी हो पायेगी ?
वह सुबह कब यहाँ आयेगी ?

भय नहीं जिनको राज विधि का
मान न जिनको माँ ममता का
रखकर मनुजता है किनारे
कर रहे आचरण पशुता का ।
नर तुम्हारे कलुष रूप से
कभी नारी उबर पायेगी ?
वह सुबह कब यहाँ आयेगी ?

नन्हीं कली तोड़ दी जातीं
खिली पँखुरी मोड़ दी जाती
महकातीं जो सुमन डालियाँ
बीच राह झिंझोड़ दी जातीं ।
चमन के माली घड़ी बताओ
जब कुसुम शाख लहरायेगी !
वह सुबह कब यहाँ आयेगी

डॉ रीता सिंह, मुरादाबाद
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आपके प्यार से मै निखर जाऊँगा।
मै जरा सा सही पर सँवर जाऊँगा।।

तू जो कर दे करम तो मिरे हमनशीं।
मै तिरे दिल में ही बस उतर जाऊँगा।।

राह में जिंदगी की मिलो फिर से तुम।
अब ज़माने की हद से गुजर जाऊँगा।

जिंदगी में तिरी अब न होगी कमी।
बनके खुशबू मै तुझमें बिखर जाऊँगा।।

याद करके तो देखो मुझे दिल से तुम।
मै ख़ुशी का तिरी बन पहर जाऊँगा।।

एक ख़ुशी की लहर दिल में फिर से उठी।
अब लगे मै तिरी हो खबर जाऊँगा।।

अब मैं तनहा हुआ जो फिर से सनम
कुछ बता दो जरा मै किधर जाऊँगा।।

अब के आये न मिलने मिरे बोल पर।
है खुदा की कसम फिर बिफर जाऊँगा।।

✍️अरविंद कुमार शर्मा "आनंद"
मुरादाबाद
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कूंचा ए दिल में बड़ा अंधेरा है
मेरी बेबसी ने फिर मुझे घेरा है,

ग़म की काली रात ढलती नहीं,
जाने कहाँ छुप गया सवेरा है,

क्या करोगे सुनके मेरी दास्ताँ,
दर्द में डूबा किस्सा ये मेरा है,

रहता था तू कभी दिल में मेरे,
अब कहाँ दिल में तेरा बसेरा है,

ऐं ज़िन्दगी तुझे समझा है कौन,
किसने तेरा राज़ यहाँ उकेरा है,

सुलझती नहीं किसी जतन से,
मुश्किलों ने मुझे ऐसा घेरा है,

चले जायेंगे हम भी दुनिया से,
सदा हुआ किसका यहाँ डेरा है,

राशिद मुरादाबादी
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मैं फूल हूँ
सभी को जीवन का सार सिखाता हूँ
हे मनुष्य  तुझे मानवीय व्यवहार सिखाता हूँ
कांटो में खिलकर भी कभी कटीला नही हूँ
बिन भेदभाव के सभी पर खुशबू लुटाता हूँ
मैं फूल हूँ
सभी को जीवन का सार सिखाता हूँ
गर्मी,सर्दी, बरसात सब सहता हूँ
भँवरों पर भी अपना सब लुटाता हूँ
मैं फूल हूँ
सभी को जीवन का सार सिखाता हूँ
अपने रस से मधु बनता हूँ
देवो के भी चरणों मे चढ़ाया जाता हूँ
कभी नहीं खुद पे इठतलता हूँ
सभी को दुनिया पर लूटना सिखाता हूँ
मैं फूल हूँ
सभी को जीवन का सार सिखाता हूँ

✍️आवरण अग्रवाल "श्रेष्ठ"
चंद्रनगर, मुरादाबाद
मोबाइल नंबर:- 7599211176
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स्कूल में सभी के रंग एक थे,
लंच में किसी के पराठे, किसी में मैगी, और किसी में रखे सेब थे
पर न जाने कौन सिर पर टोपी
और माथे पर तिलक लगा जाता है
दोस्तों को हिन्दू
और मुझे मुसलमान बता जाता है

✍️प्रशान्त मिश्र
राम गंगा विहार
मुरादाबाद
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सब धर्मों को नमन करो!
क्या होता है हिन्दू-मुस्लिम,
सब ही भाई-भाई हैं।
ये जात-पात की दीवारें,
हमने सभी बनाई हैं।।
मानो ये कहना मेरा,
अब हर घर में अमन करो।
सब धर्मों को नमन करो।।

मजहब नहीं सिखाता हमको,
आपस में लड़ना-मरना।
दहशतगर्दी फैलाने को,
रोज-रोज दंगे करना।।
अब छोड़ो सारे झगड़े,
सबके दिल में चमन करो।
सब धर्मों को नमन करो।।
.
आजादी पायी थी हमने,
देश सभी को प्यारा था।
जात-धर्म के नाम पर ही,
किया गया बंटवारा था।।
भाईचारा लाने को,
मिलकर यारों हवन करो।
सब धर्मों को नमन करो।।

✍️जितेंद्र कुमार जौली, मुरादाबाद
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ठंडी पुरवाई मगर ऊमस रहा बदन
गर्म पछुआ चल रही है जल रहा
चमन !
उत्तरी व दक्षिणी हवा को क्या
कहें ;
उनको ये खबर नहीँ कहां है निज
वतन !

हालत नहीँ समाज की है अच्छी
आज कल !
बढ़  रहा  है  जाति  द्वेष भाव आज कल !
समाज में समानता की बात करते
सब
बिछाते भेद भाव  की  बिसात
आज कल !

देवी मानी जाती हैं भारत में बेटियां !
मगर सुरक्षित आज कहां भारत में
बेटियांं !
कितनी मनीषा और कितनी निर्भया यहां ;
दरिन्दों की बलि चढ़ रहीं हैं आज
बेटियां !

✍️ विकास मुरादाबादी

रविवार, 4 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल (वर्तमान में नोएडा निवासी) के साहित्यकार अटल मुरादाबादी की रचना ----सलवटें जब पड़ीं भाल पर, आइना देख डरने लगे


वक्त गुजरा संवरने लगे।
बात से बात करने लगे।

काल के भाल पर सलवटें,
देखकर वो सिहरने लगे।

याद उनको वही बात है,
याद करके विचरने लगे।

सलवटें जब पड़ीं भाल पर,
आइना देख डरने लगे।

गमजदा हैं बहुत वो मगर,
चैन की सांस भरने लगे।

कर न पाया सहन ये 'अटल',
जख्म उसके उभरने लगे।

✍️अटल मुरादाबादी
बी -142 सेक्टर-52
नोएडा उ ०प्र०
मोबाइल 9650291108,
8368370723
Email: atalmoradabadi@gmail.com
& atalmbdi@gmail.com







शनिवार, 3 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार शिशुपाल सिंह मधुकर का गीत ---रोजगार का नहीं भरोसा महंगा बिजली पानी , दिल्ली साहूकारों जैसी करती है मनमानी, अब सरकार नहीं सुनती है किसी के दिल की हाय


सौ में दस की खातिर ही अब होते सभी उपाय

बोलो बाकी लोगों कब तक सहोगे यह अन्याय


रोजगार का नहीं भरोसा महंगा बिजली पानी

दिल्ली साहूकारों जैसी करती है मनमानी

 अब सरकार नहीं सुनती है किसी के दिल की हाय

 बोलो ---------

 बढ़ती जाती रोज गरीबी खुश होते धनवान

 मेहनत करने वालों का अब होता है अपमान

 बेईमानों ने सारे में लिया है जाल बिछाय

 बोलो -----------

 होता है अपराध साथियों किसी जुल्म को सहना

 शोषण अत्याचार के आगे खतरनाक चुप रहना

 अब तक का इतिहास हमें तो रहा है यही बताय

✍️  शिशुपाल सिंह "मधुकर", मुरादाबाद


मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक की ग़ज़ल ----वे ही आ पहुँचे हैं जंगल में आरी लेकर, जो अक्सर कहते थे उनको छाँव बचानी है।


पंछी  नभ  में  उड़ता  था  यह  बात  पुरानी है,

अब  तो  बस  पिंजरा  है ,उसमें दाना-पानी है।


वे   ही  आ   पहुँचे  हैं  जंगल  में  आरी  लेकर,

जो  अक्सर  कहते  थे  उनको छाँव बचानी है।


आज  सफलता चूम रही है जो इन  क़दमों को,

इसके   पीछे   संघर्षों    की   एक  कहानी  है।


मुस्काते  हैं   असली  भाव  छुपाकर  चहरे   के,

कुछ   लोगों  का   हँसना-मुस्काना  बेमानी  है।


बाँध लिया जब अपना बिस्तर बरखा की रुत ने,

जान   गए   सब   आने   वाली   सर्दी  रानी  है।


क्यों  होता  है  जग  में  लोगों  का आना-जाना,

आज  तलक  भी बात भला ये किसने जानी है।


✍️ओंकार सिंह विवेक ,रामपुर

मोबाइल 9897214710

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार डॉ अजय जनमेजय की ग़ज़ल ----प्यार करने को मिली है माँ अजय ,कैसी ये तेरी अलामत है मुझे


 ✍️ डॉ अजय जनमेजय

 मकान नम्बर 1,गली नम्बर 1 एसडीपुरम कॉलोनी
बिजनौर -246701
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9412215952

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा) की साहित्यकार डॉ मधु चतुर्वेदी की कविता ---कौन है वो


धूप के पाँवों मेँ पाज़ेब नहीं होती

फिर भी वह छन से उतरती है-

घर की मुंडेर पर और बिखेर देती है

किरणों के घुँघरू दूर तलक

रात के बदन से नहीं आती कोई खुशबू

न जाने क्यों उसकी एक छुअन से

महक उठती है रातरानी

चाँदनी के पास नहीं होता कोई चुम्बक

कैसे खींच लेती है सबको अपनी ओर

हवा के हाथ मेँ कभी देखी नहीं बाँसुरी

मगर जब-जब गुज़रती है पास से

कानोँ मेँ घोल देती है एक सुरीला राग

भोर कोई जौहरी तो नहीं

न जाने कहाँ से समेट लाती है

गठरी  भर मोती और बडी उदारता से-

टाँक देती है उन्हेँ, घास के नर्म अँकुरों पर

तो कौन है वो,जो धूप को पहनाता है पाज़ेब

रात को देता है भीनी भीनी ख़ुशबू

चाँदनी को थमा देता है चुम्बक

हवा  को पकड़ा देता है बाँसुरी

और भोर को बना देता है जौहरी

हाँ, यह शायद वही है-

जो कहीँ नहीँ है

और यहीँ कहीं है

यहीँ कहीँ है

✍️डॉ. मधु चतुर्वेदी

गजरौला गैस एजेंसी

चौपला,गजरौला

जिला अमरोहा 244235

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9837003888

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी का गीत ----अधर ये मौन रहेंगे , पर नयन तुमसे सब कहेंगे । रिक्त अंतस में एक रोज़, तुमको उतर जाना है


बहुत कुछ कहना है तुमसे

फ़ुरसत से बताना है

दिल में दबी कुछ बातों को

चुपके से सुनाना है


आँखो से निकले नहीं जो

आँसू जम गये हैं भीतर

बैठो पास तुम एक रोज़

मुझे उनको पिघलाना है

बहुत कुछ कहना है तुमसे


परतें खुलेंगी ,वो बरसों से

इंतज़ार में है एक दोस्त के

अपनी छुअन से एक रोज़

तुमको उन्हें सहलाना है

बहुत कुछ.......


अधर ये मौन रहेंगे

पर नयन तुमसे सब कहेंगे

रिक्त अंतस में एक रोज़

तुमको उतर जाना है

बहुत कुछ कहना है तुमसे

फ़ुरसत से बताना है

✍️ प्रीति चौधरी, गजरौला,अमरोहा

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता ---मिलावट


मिलावटी खाने से

एक आम आदमी मर गया

सभी प्रमुख अखबारों की

खास खबर बन गया

अगले दिन इसी तरह का

एक और समाचार छपा

एक बेरोजगार युवा

जहर खाकर भी नहीं मरा

ये शायद उसके

नसीब की लिखावट थी

जहर अशुद्ध था

उसमें जबरदस्त मिलावट थी

हमने  सोचा

ना जीने देती है,ना मरने

मिलावट कितनी क्रूर हो गई है

इसकी घुसपैठ हर क्षेत्र में

भरपूर हो गई है

मिलावट ने ऐसा रंग जमाया है

कुछ मिलावट करने वालो को

सबने सर आंखो पर बैठाया है

हमारी गली का दूध वाला

दूध में खुले आम पानी मिलाता है

एक लंबे अरसे से

सबको मिलावटी दूध पिलाता है

पूरा मौहल्ला

उसको दिल से करता है प्यार

क्योंकि वो कोई

नुकसान वाली चीज मिला कर

किसी की सेहत से

नहीं करता खिलवाड़

दूध में केवल पानी मिलाता है

और इस काम के लिए

मिनरल वॉटर प्रयोग में लाता है

दूध में से क्रीम निकालकर

कोलेस्ट्रॉल के खतरे से बचाता है

जिनका हाजमा कमजोर होता है

उनको येे पतला दूध बहुत भाता है


मिलावट की नागिन

पूरे समाज को डस गई है

मिलावट हम सबके

खून में बस गई है

पूरा विश्व विकास का

खंबा नोच रहा है

हमारा देश मिलावट के

नए तरीके खोज रहा है

काली मिर्च में पपीते के बीज

हल्दी में घोड़े की लीद

काजू की बर्फी में

मूंगफली पिसी हुई

सोनपापड़ी  में,मैदा मिली हुई

घी में चर्बी,हल्दी में आटा

चाय की पत्ती में

लकड़ी का बुरादा

और भी ना जानें क्या क्या

मिलाया जा रहा है

हमको खुलेआम

जहर पिलाया जा रहा है

हम कोई भी चीज

असली नहीं खा रहे है

हवा तक मिलावटी हो गई है

लेकिन हम बेशर्मी से

जिए जा रहे है


हे मिलावट के विशेषज्ञों

बहुत विकसित कर चुके

तुम मिलावट का विज्ञान

हमको अपना समझ 

कर दो एक अहसान

राजनीति ने हमको

जाति धर्म और क्षेत्रो में बांट दिया है

हमको एक दूसरे से

बिल्कुल काट दिया है

हमको आपस में

इस तरह से मिला दो

हमारा अलग अलग अस्तित्व

हमेशा के लिए मिटा दो

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई ना रहें

हम इंसान बन जाएं

मराठी बंगाली,मद्रासी नहीं

हिंदुस्तानी कहलाएं ।

✍️ डाॅ पुनीत कुमार

T -2/505, आकाश रेजिडेंसी

मधुबनी पार्क के पीछे

मुरादाबाद 244001

M - 9837189600

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश के कहानी संग्रह "रवि की कहानियां" के संदर्भ में प्रख्यात गीतकार भारत भूषण द्वारा लिखा गया एक पत्र । यह पत्र उन्होंने रामपुर से प्रकाशित साप्ताहिक पत्र "सहकारी युग"के सम्पादक महेंद्र गुप्त जी को लिखा था ।



 8 - 5  -90

 प्रिय महेंद्र जी

        नमस्कार

                  प्रिय रवि की कहानियाँ पढ़ीं।  उनमें बहुत सुंदरता से  समाज की  विविध मानसिकता का चित्रण किया गया है । कुछ बहुत अच्छे अंश हैं। मैंने नोट कर लिए हैं  ।जैसे

 *पृष्ठ 19--  तैरती लाशों के बीच एक जिंदा समझ अभी जवान है 

 *प्रष्ठ 27-- गर्मियों की रातें काटना ... नहीं है ।

 *पृष्ठ 28--  रात के अंधेरे में कमाया धन ... नसीब ।

 *पृष्ठ 46-- सचमुच आदमी ... हो गई  ।

 *पृष्ठ 49-- संसार में मृत्यु ... बाप मर गया है ।

 *पृष्ठ 50--  तुम इतनी  जिद कर ... चल बसा ।

 *पृष्ठ 73-- आपको तो..  पूछ  नहीं  थी  ।

 *पृष्ठ 75--  जीवन की कठोर  ..पाया जा सकता ।

 *पृष्ठ 77-- मुझे तो शाहजहाँ.... बेटे बहू ने। 

 *पृष्ठ 89-- लोग चाहते हैं  ...कुछ हो  ।

 *पृष्ठ 89--  पर देवत्व ... आतुर रहती हैं  ।

 *पृष्ठ 96 --हर बार... हो जाती है ।

            यह ऐसे अंश हैं जो रवि जी को एक अच्छी ऊँचाई तक ले जा सकते हैं। मैं मूलतः कवि हूँ, इसलिए गद्य  - लेखन के बारे में मेरी दृष्टि शायद कमजोर हो । किंतु फिर भी इस संग्रह की भावगत और वाक्यों के विन्यास की कुछ कमियों पर पुस्तक में ही निशान लगाए हैं। मैं चाहता हूँ कि उन पर रवि जी से ही बात हो तो अच्छा है । वैसे मैंने वर्षों से यह निश्चय किया हुआ है कि किसी को भी उसकी कमियाँ नहीं बताऊँगा । उसका अनुभव अधिकतर कड़वा रहा है । प्रिय रवि को मैं बहुत स्नेह करता हूँ। इसलिए चाहता हूँ कि यह प्रारंभिक दोष अभी दूर हो जाएँ, फिर आदत पड़ जाएगी इनकी ही । अब रिटायर भी हो रहा हूँ। इसलिए समयाभाव तो रहेगा नहीं । रामपुर अब मुझे भूल गया है। सम्मेलन अब पराए हो गए हैं भ्रष्ट हो गए हैं मैं क्योंकि भ्रष्ट नहीं हुआ हूँ, केवल इसी लिए निमंत्रण कम हो गए हैं। 

           अभी कुछ पूर्व आपके पत्र में रिपोर्ट पढ़ी थी कि शशि जी की स्मृति में सम्मेलन हुआ था । दुख भी हुआ आश्चर्य भी कि मुझे नहीं बुलाया जबकि शशि जी मुझे भी बहुत स्नेह करते थे ।

           मैं रामपुर आऊँगा किसी दिन ,केवल रवि जी से बात करने । अभी गर्मी बहुत है। 1 - 2 बारिश हो जाए। गर्मी के कारण अभी अभी एक सप्ताह में डिहाइड्रेशन से उठा हूँ। 5-6 कार्यक्रम ,एक दूरदर्शन का भी था, छोड़ दिए । कौन पैसे के लिए मरता फिरे ! यह वृत्ति आरंभ से ही रही । प्रभु कुछ अच्छा लिखाते रहें, ये ही बहुत है ।मैं पूर्ण संतुष्ट हूँ, इसी में ही। प्रिय रवि को मेरा स्नेह । बच्चों को आशीष। संभव हो तो पत्र दें।

           सप्रेम

       भारत भूषण


:::::::;प्रस्तुति ::::::::


रवि प्रकाश 
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार निवेदिता सक्सेना का गीत-- लो जिंदगी का एक और दिन निकल गया .....


 


मुरादाबाद के साहित्यकार अखिलेश वर्मा के नारी अस्मिता पर दोहे ----






मुरादाबाद के साहित्यकार ( वर्तमान में आगरा निवासी) ए टी ज़ाकिर की कविता --- नया कानून




✍️ ए. टी. ज़ाकिर

फ्लैट नम्बर 43, सेकेंड फ्लोर
पंचवटी, पार्श्वनाथ कालोनी
ताजनगरी फेस 2,फतेहाबाद रोड
आगरा-282 001
मोबाइल फोन नंबर. 9760613902,
847 695 4471.
Mail-  atzakir@gmail.com

मुरादाबाद की ( वर्तमान में नई दिल्ली निवासी) साहित्यकार मंगला रस्तोगी की कविता ----आखिर कब तक

तारीख़ बदलती रही हर बार

साल आते रहे, जाते रहे

बदलती रहीं सत्तायेंं 

नहीं बदली रेप की मानसिकता 

1973 में अरुणा शॉनबाग 

 1980 में  बागपत में हुआ 

माया त्यागी कांड 

या हो..

 2012 का  निर्भया रेप केस 

यहां तक की कठुआ रेप केस के बाद भी 

क्यों जगा नहीं हिन्दुस्तान?

 बात हाथरस की हो या हो

 किसी शहर मोहल्ले की 

देख हैवानियत दरिंदों की

जन्म लेने से भारत में 

अब बेटी की रूह कांंपती होगी 

देश की अंतरात्मा अब भी नहीं 

तो पता नहीं फिर कब जागेगी 

बेटी बचाओ तो कैसे हर मां 

दिन रात यही सोचती होगी

बलात्कारी देश के हर कोने में छुपा है।

 हर गली और हर चौराहे पर है, 

वो बस में भी है, 

वो स्कूल में भी है, 

वो जेलों में भी है, 

वो अस्पतालों में भी है, 

वो धार्मिक संस्थानों में भी है, 

वो कठुआ में भी है,

 वो उन्नाव में भी है।

 वो शहर में भी है

 वो गांंव में भी है 

कौन सी जगह बताओ 

जहां वो नहीं

 धर्म-मज़हब ,जात -पात को

 ना हथियार बनाओ 

साथ एक दूसरे का दो 

मानवता का धर्म निभाओ 

मासूमोंं को करो सुरक्षित हाथ बढ़ाओ 

दरिंदगी करने वालोंं  की 

इस खतपतवार का खात्मा

अब बहुत जरूरी है 

क्यों कि बलात्कारी 

देश के हर कोने में छुपा है।


मंगला रस्तोगी, नई दिल्ली

गुरुवार, 1 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा ----बधाई



ज़िले के लोकप्रिय समाचारपत्र में छपा कविंद्र जी का मुक्तक सबको बहुत पसन्द आया और उनके पास बधाई संदेशों की लाइन लग गई

उनको पढ़कर कविंद्र जी सोच रहे थें "येे कैसी बधाई है,इस मुक्तक मेेें तो एक शब्द भी मेरा नहीं है।पहली पंक्ति पत्नी ने और दूसरी पंक्ति कविमित्र ने बदल दी थी।तीसरी पंक्ति में मात्रा दोष बताकर गुरुजी ने नई पंक्ति डाल दी थी,और चौथी पंक्ति संपादक महोदय को रुचिकर नहीं लगी तो उन्होंने अपने हिसाब से लिख दी थी।"

✍️

डाॅ पुनीत कुमार

T -2/505,आकाश रेजिडेंसी

मधुबनी पार्क के पीछे

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा ---- मां


राजू ने माँ के कंधे पर हाथ रखकर कहा "माँ !भूख लगी है।रोटी दो ना।माँ तुम सुनती क्यों नहीं ?"

     काफी देर हो गई बच्चे को कहते हुए, आखिर माँ ने कहा," जा पड़ोस से मांग ला--।"

     बच्चा गया और रोटी मांग लाया।"लो माँ तुम भी खा लो ।" 

      " नहीं बेटा।"

    " परन्तु माँ तुम खाओगी नहीं तो जियोगी कैसे ?"

      माँ बोली," बेटा!मैं तुझे देख कर ही जी लूंगी--तू रोटी तो खा मेरे लाल ।"

✍️ अशोक विश्नोई, मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद सम्भल )निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघुकथा ---- लॉक डाउन

लॉक डाउन में चप्पे चप्पे पर पुलिस बल तैनात था कोरोना संक्रमण रोकने के लिये पुलिस सख्ती कर रही थी किसी को घर से बाहर नही निकलने दे रही थी चारो तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था चौराहे पर ड्यूटी दे रहे दरोगा जी समीप के एक घर मे घुस गये जाते ही उन्होंने एक खूबसूरत महिला को बाहों में भर लिया दरोगा जी की बाहों में कसमसाती महिला डरते हुए कहने लगी- 'छोड़ो जी, कोई आ जायेगा'   महिला को आश्वस्त करते हुए कुटिल मुस्कान के साथ दरोगा जी बोले -'डरो नही डार्लिंग, कोई नही आ सकता । बाहर लॉक डाउन लगा है ।' सुनकर महिला भी मुस्करा दी ।

✍️कमाल ज़ैदी 'वफ़ा' , सिरसी (सम्भल)   9456031926

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की कहानी ----उपहार


आज अचानक बैसाखी लाल के दरवाजे की घंटी बजी तो ,बैसाखी लाल ने अपनी छोटी बेटी रजनी को आवाज लगाई..... "बेटा देखो दरवाजे पर कौन है" रजनी ने दरवाजा खोला तो सामने डाक बाबू खड़े थे,   उन्होंने कहा .....बेटा जाओ पापा को बुला लाओ उनका अमेरिका से एक पार्सल आया है । 

 अमेरिका का नाम सुनकर रजनी उछल पड़ी व भागकर अपने पापा के पास आई और बोली "पापा देखो रमेश भैया का पार्सल आया है ,डाक बाबू आपको बुला रहे हैं" बैसाखी लाल दौड़कर गेट पर पहुंचे और डाक बाबू से पार्सल रिसीव किया । 

बैसाखी लाल , उनकी पत्नी व बेटी रजनी बड़ी उत्सुकता से पार्सल को देख रहे थे ।  रजनी बोली "पापा इसे जल्दी से खोलो ,  देखो भैया ने इसमें क्या भेजा है"  बैसाखी लाल ने ड्राइंग रूम में आकर पार्सल खोला ,  तो सारे परिवार के लोग उसे देख हैरान रह गए,  रमेश ने पूरे परिवार के लिए बहुत से उपहार भेजे थे , साथ ही उसमें कुछ कागज भी रखे थे ।  बैसाखी लाल ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे अतः उन्होंने अपनी बेटी राखी और दामाद सुनील , जो कि उनके घर के पास ही रहते थे , उन्हें अपने घर बुलवा लिया । 

बैसाखी लाल ने सुनील से कहा "बेटा देखो यह कैसे कागज हैं, मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा कि मेरे भतीजे डॉ रमेश ने इसमें क्या भेजा है"  सुनील ने सारे कागजों का गहराई से अध्ययन किया तो चेहरे पर मुस्कान लाते हुए बोला "पापा जी आपके भतीजे ने आपको तोहफे में अमेरिका से कार भेजी है" "फोर्ड कार" यह अमेरिका की सबसे महंगी गाड़ियों में से एक है , फोर्ड कार का नाम सुनते ही बैसाखी लाल धम से सोफे पर बैठ गए , उनकी आंखों से अश्रु की धार बह निकली ।  सुनील बैसाखी लाल के पास आया व  बोला .....पापा जी यह तो खुशी की बात है कि आपका भतीजा आपको कितनी इज्जत देता है और उसने आपको अमेरिका से गाड़ी भेजी है । आप खुश होने की बजाय रो रहे हैं क्या बात है । बैसाखी  लाल चुप रहे और अपना मुंह छुपा कर सोफे पर बैठ गये । सुनील बैसाखी  लाल के पैरों के पास आकर बैठ गया और भावुक होते हुए बोला "मैं आपका दामाद हूं ,लेकिन मैंने आपको हमेशा अपना पिता का ही दर्जा दिया है, अगर आप मुझे अपना बेटा समझते हैं तो मुझे सच सच बताएं क्या बात है"  बैसाखी लाल ने सुनील को पैरों के पास से उठाया और बोले मैं तुम्हें सब कुछ बताऊंगा कि मुझसे कितना बड़ा पाप हुआ है बैसाखी लाल ने कहना शुरू किया ....

हम लोग लुधियाना के पास एक गांव में रहते थे ,मेरे पिताजी रेलवे में एक फोर्थ क्लास कर्मचारी थे । पिताजी की अचानक मृत्यु के पश्चात रमेश के पिताजी ने मुझे अपने बेटे की तरह पाला और पिताजी की जगह मुझे रेलवे में फोर्थ क्लास नौकरी पर लगवा दिया । रेलवे में नौकरी करते करते , मैं दिल्ली आकर बस गया और आर्थिक रूप से भी संपन्न हो गया । लेकिन इसके विपरीत मेरे बड़े भाई साहब की गांव में एक छोटी सी हलवाई की दुकान थी ,जो ना के बराबर चलती थी उनकी आर्थिक स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही थी । लेकिन इस सबके बावजूद रमेश ने बहुत मेहनत की और दिल्ली के आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लेने में सफल रहा । 

बैसाखी  लाल ने आगे बताना शुरू किया , भाई साहब रमेश को मेरे पास छोड़ गए क्योंकि वह हॉस्टल का खर्च वहन करने की स्थिति में नहीं थे ।  रमेश का कॉलेज हमारे घर से 3 किलोमीटर की दूरी पर था रहन-सहन के मामले में रमेश बिल्कुल सादा सुधा व्यक्तित्व वाला छात्र था । उसके पास सिर्फ दो ही जोड़े थे ,वह एक जोड़ा पहनता और एक धोता था । उधर बैसाखी  लाल का रहन सहन शाही था ,लेकिन उसने कभी रमेश की मदद करने का मन नहीं बनाया । एक दिन रमेश ने हिम्मत करके अपने चाचा बैसाखी लाल से कहा मेरा कॉलेज आपके घर से 3 किलोमीटर की दूरी पर है और मुझे रोज पैदल जाना होता है । आपके घर साइकिल ऐसे ही पड़ी रहती है , अगर आप इजाजत दें तो मैं आपकी साइकिल ले जाया करू, चाचा जी ने बड़ी बेरुखी से रमेश को साइकिल के लिए मना कर दिया और कह दिया "मैं अपनी साइकिल किसी को नहीं देता" यह बात जब रमेश के दोस्तों को कॉलेज में पता चली तो सभी ने संयुक्त रूप से मदद कर रमेश का हॉस्टल में प्रवेश करा दिया । उसके पश्चात रमेश कॉलेज के हॉस्टल में ही रहने लगा और अपने चाचा जी से कभी कभार ही मिलने आया करता था।  5 वर्ष का कोर्स करने के पश्चात रमेश ने एक केरल की नर्स के साथ शादी कर ली और बाद में उसकी पत्नी की अमेरिका में नौकरी लग गई । अमेरिका में एक वर्षीय  कोर्स करने के पश्चात रमेश भी वहां पर नौकरी करने लगा । आज करीब आठ 10 वर्षों के पश्चात रमेश का यह "उपहार" हमें प्राप्त हुआ है । बैसाखी लाल अपनी बात को विराम देकर चुप हो गए । 

सभी लोग उनकी बातों को बड़े ध्यान से सुन रहे थे । माहौल एकदम शांत था ,  तभी फोन की घंटी बजी तो बैसाखी लाल ने फोन उठाया दूसरी ओर से आवाज आई "हेलो,  मैं रमेश बोल रहा हूं चाचा जी" रमेश की आवाज सुन बैसाखी लाल भावुक हो गए और उन्होंने रमेश से कहा "बेटा ,मैंने तेरे साथ बहुत बुरा किया है, फिर भी तूने मुझे याद रखा, मुझे माफ कर दे" 

रमेश ने चाचा जी से कहा "नहीं चाचा जी ,आप पुरानी बातों को दिल से ना लगाएं आप हमारे बड़े हैं , मैं आपको पिताजी के बराबर ही सम्मान देता हूं" कृपया करके मेरे द्वारा भेजा गया "उपहार" स्वीकार करें । यह कह रमेश ने फोन रख दिया ।  भतीजे रमेश से फोन पर बात करके  बैसाखी  लाल का मन हल्का हो गया, उन्होंने सुनील से कहा ......"बेटा चलो , एयरपोर्ट गाड़ी की डिलीवरी लेने चलना है" और वह दोनों एयरपोर्ट पर "उपहार" में आई फोर्ड गाड़ी की डिलीवरी लेने चले गए ।

✍️विवेक आहूजा, बिलारी, जिला मुरादाबाद 

@9410416986

Vivekahuja288@gmail.com

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की दो लघुकथाएं ----- 'भ्रांत धारणा ' और 'यथावत'


(1)   'भ्रांत धारणा '
आज अदिति बुरी तरह से दर्द से कराह रही थी , गर्भाशय की रसौली का ऑपरेशन जो हुआ था , डॉक्टर तो ऑपरेशन के बाद बस सुबह शाम हाल चाल पूछने आते थे बाकि पूरे दिन दवाई देने से लेकर ....साफ सफाई तक का काम सफेद कोट पहने छोटी उम्र से लेकर बड़ी उम्र तक की लड़कियां और महिलाएं नर्स ही कर रही थी .
​उनकी जिंदगी के झंझावत भी कम नहीं होते फिर भी कितनी खुशी खुशी काम करती हैं यदि इनको भगवान का दूसरा रूप कहिए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी .
​"आप उधर करवट लीजिए आपका पैड चेंज करना है l"मधुर आवाज उसके कानों में गूंजी तो अदिति उसकी ओर देखने लगी  .
​"बेटा खाना खा लेना ....दाल बनाई है ....अब पढ़ाई कर लो मन नहीं लग रहा तो क्या हुआ ?"उसने फोन पर मीठी सी दाँट लगाते हुए कहा .
​"आपका बच्चा था क्या ?"अदिति ने जिज्ञासावश पूछ लिया .
​"जी...बच्ची थी  l"उसने हंसते हुए कहा .
​"घर  पर किसके पास रहती है ?"
​"कोई नहीं है ....l"
​"आपके पति ....?"
​"वह भाग गया l"
​"कहाँ ?"
​"दूसरी औरत के पास l"उसने फटाफट सफाई करते हुए कहा अदिति मन ही मन सकुचा रही थी .
​"कितना मीठा बोलती हैं सारी सिस्टर्स यहां l"
​"हाँ मैडम जिंदगी ने सबको इतने कड़वे अनुभव दे रखे हैं कि और किसी से क्या कड़वा बोलें l"उसने फिर से मुस्कराते हुए कहा .
​"जब जरूरत हो तो फोन करवा दीजिए ...मैं आ जाऊंगी l"कहती हुई वह रूम से बाहर निकल गई और अदिति का मन भर आया .
​नर्सों क़ो लेकर अदिति के मन में हमेशा के लिए एक धारणा बन गई थी जब उसकी दीदी के बेटा हुआ और वह अस्पताल में गई थी कितनी खुशी खुशी ये नर्सें अपने काम कर रही थीं जिनको करने में एक आम इंसान क़ो बड़ी शर्म आए ......वक्षस्थल से लेकर योनि तक की सफाई छी   .."कोई भी नौकरी कर लो मगर यह नहीं करनी चाहिए l"अदिति ने मन ही मन सोचा .
​लेकिन कभी मन में आया ही नहीं था कि इस काम के लिए कितना बड़ा जिगरा चाहिए .
​"क्या हुआ ?"पति ने अदिति के कांधे पर हाथ रखा तो अदिति की तंद्रा भंग हुई और वह मन में ग्लानि लिए फिर से लेट गई .
(2)    यथावत

पार्क  के चारों और बड़े बड़े छाँवदार  वृक्ष  लगे हुए थे ,जिनपर  बैठे पक्षिओं  का कलरव  मन को पुलकित  कर सकता था ,मगर कोई सुने  तब न !,वहीं छोटी छोटी  फूलो की क्यारियां  और हवा  के झौंके  के साथ हिलते  मुस्कराते फूल वातावरण की ताजगी  में चार चाँद लगा रहे थे l 

घनी आबादी  के बीच बना यह पार्क  जैसे ऑक्सीजन  का इकलौता  साधन  था मोहल्ले  वालों को l 

झूलों  पर बच्चे झूल  रहे थे l कई जोड़े  तेज कदमों  से चलकर  शरीर पर जमी चर्बी  को सुखाने  का काम कर रहे थे और चर्बी मुस्करा रही थी कि काम धाम  किसी को है नहीं ,खाने को घर की दाल रोटी काटने को दौड़ती  है सड़क पर लगे ठेलों  पर मख्खिओं  की भांति शाम होते ही भिनभिनाने  लगते हैं ,और मुझ  बेचारी(हवा) को देखकर रोते हैं कि कहीं से भी निकल लेती हूँ. 

जहां -तहाँ  पडी बैंचों  पर कई महिलायें  आधुनिक  वस्त्रों  में लिपटी  ,लिपी  -पुती  गर्दन मटका  -,मटका कर चेहरे पर बनावटी  मुस्कान लिए बतिया   रहीं थीं l 

मशगूल थीं सब चुगलखोरी  करने में कोई सास की तो कोई बहु की ,कोई पति की  ,कोई पड़ोसी  की कोई कामवाली   की l 

बेचारी हवा को सब कुछ सुनना पड़ रहा था l सब कुछ बदल गया है मगर नारी  का स्वभाव   यथावत  है हर क्षेत्र में बेहतरी  मगर अपनी विरासत  (चुगलखोरी )को भला कैसे छोड़ दें  तन्हा ?

✍️राशि सिंह 

मुरादाबाद उत्तर प्रदेश 


मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की लघुकथा ---अम्मा का श्राद्ध

 


सुनो, कल अम्मा का श्राद्ध है, इस बार श्राद्ध कैसे मनेगा, पंडित जी से बात कर लो, और हाँ नहाने से पहले आज बाजार जाकर कुछ सामान भी ला दो, सुनीता ने थैला थमाते हुए गोपाल से कहा।

अरे, सामान तो मैं ला दूंगा लेकिन कोई पंडित जी या पंडिताइन आजकल जीमने नहीं आयेगी। मंदिर भी आजकल बंद हैं, गोपाल बोला।

हुम्म,  तो क्या इस बार श्राद्ध नहीं होगा, सुनीता ने पूछा।

होगा क्यों नहीं, सोचने दो, कोई रास्ता निकलेगा।

गोपाल को अम्मा की याद आ गई । वह भी दादी दादा का श्राद्ध बड़ी श्रद्धा से मनाती थी उस समय गोपाल के लिये तो श्राद्ध केवल खीर पूड़ी, आदि पकवान बनने के त्योहार जैसा ही था। सुनीता भी उसी श्रद्धा से अम्मा का श्राद्ध करती थी।

गोपाल अभी सोच में ही डूबा था कि दरवाजे की घंटी बजी। दरवाज़ा खोला तो कामवाली बाई खड़ी थी। सुनीता उसे देखते ही बोली, अम्मा अभी कुछ दिन और रुक जाओ, अभी बीमारी थमी नहीं है। कोई बात नहीं बीबी जी,

आज तो आपसे कुछ पैसे मांगने आयी हूं। घर पर खाने के लाले पड़े हुए हैं। चार महीने हो गये कोई काम नहीं करवा रहा है, गिड़गिड़ाती हुई बाई बोली ।

अभी संगीता कुछ जबाब देती उससे पहले ही गोपाल ने उसे एक ओर बुलाया और कहा: लो तुम्हारी प्राब्लम साॅल्व हो गयी। अम्मा स्वयं तुम्हारे पास आ गयीं। इन्हें महीने भर के राशन के पैसे दे दो। अम्मा का इससे अच्छा श्राद्ध और कुछ नहीं होगा। स्वर्ग में बैठी अम्मा भी खुश हो जायेंगी।


✍️श्रीकृष्ण शुक्ल

MMIG -69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद ।

मोबाइल नंबर  9456641400