शनिवार, 3 अक्टूबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता ---मिलावट


मिलावटी खाने से

एक आम आदमी मर गया

सभी प्रमुख अखबारों की

खास खबर बन गया

अगले दिन इसी तरह का

एक और समाचार छपा

एक बेरोजगार युवा

जहर खाकर भी नहीं मरा

ये शायद उसके

नसीब की लिखावट थी

जहर अशुद्ध था

उसमें जबरदस्त मिलावट थी

हमने  सोचा

ना जीने देती है,ना मरने

मिलावट कितनी क्रूर हो गई है

इसकी घुसपैठ हर क्षेत्र में

भरपूर हो गई है

मिलावट ने ऐसा रंग जमाया है

कुछ मिलावट करने वालो को

सबने सर आंखो पर बैठाया है

हमारी गली का दूध वाला

दूध में खुले आम पानी मिलाता है

एक लंबे अरसे से

सबको मिलावटी दूध पिलाता है

पूरा मौहल्ला

उसको दिल से करता है प्यार

क्योंकि वो कोई

नुकसान वाली चीज मिला कर

किसी की सेहत से

नहीं करता खिलवाड़

दूध में केवल पानी मिलाता है

और इस काम के लिए

मिनरल वॉटर प्रयोग में लाता है

दूध में से क्रीम निकालकर

कोलेस्ट्रॉल के खतरे से बचाता है

जिनका हाजमा कमजोर होता है

उनको येे पतला दूध बहुत भाता है


मिलावट की नागिन

पूरे समाज को डस गई है

मिलावट हम सबके

खून में बस गई है

पूरा विश्व विकास का

खंबा नोच रहा है

हमारा देश मिलावट के

नए तरीके खोज रहा है

काली मिर्च में पपीते के बीज

हल्दी में घोड़े की लीद

काजू की बर्फी में

मूंगफली पिसी हुई

सोनपापड़ी  में,मैदा मिली हुई

घी में चर्बी,हल्दी में आटा

चाय की पत्ती में

लकड़ी का बुरादा

और भी ना जानें क्या क्या

मिलाया जा रहा है

हमको खुलेआम

जहर पिलाया जा रहा है

हम कोई भी चीज

असली नहीं खा रहे है

हवा तक मिलावटी हो गई है

लेकिन हम बेशर्मी से

जिए जा रहे है


हे मिलावट के विशेषज्ञों

बहुत विकसित कर चुके

तुम मिलावट का विज्ञान

हमको अपना समझ 

कर दो एक अहसान

राजनीति ने हमको

जाति धर्म और क्षेत्रो में बांट दिया है

हमको एक दूसरे से

बिल्कुल काट दिया है

हमको आपस में

इस तरह से मिला दो

हमारा अलग अलग अस्तित्व

हमेशा के लिए मिटा दो

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई ना रहें

हम इंसान बन जाएं

मराठी बंगाली,मद्रासी नहीं

हिंदुस्तानी कहलाएं ।

✍️ डाॅ पुनीत कुमार

T -2/505, आकाश रेजिडेंसी

मधुबनी पार्क के पीछे

मुरादाबाद 244001

M - 9837189600

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