शनिवार, 3 अक्टूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक की ग़ज़ल ----वे ही आ पहुँचे हैं जंगल में आरी लेकर, जो अक्सर कहते थे उनको छाँव बचानी है।


पंछी  नभ  में  उड़ता  था  यह  बात  पुरानी है,

अब  तो  बस  पिंजरा  है ,उसमें दाना-पानी है।


वे   ही  आ   पहुँचे  हैं  जंगल  में  आरी  लेकर,

जो  अक्सर  कहते  थे  उनको छाँव बचानी है।


आज  सफलता चूम रही है जो इन  क़दमों को,

इसके   पीछे   संघर्षों    की   एक  कहानी  है।


मुस्काते  हैं   असली  भाव  छुपाकर  चहरे   के,

कुछ   लोगों  का   हँसना-मुस्काना  बेमानी  है।


बाँध लिया जब अपना बिस्तर बरखा की रुत ने,

जान   गए   सब   आने   वाली   सर्दी  रानी  है।


क्यों  होता  है  जग  में  लोगों  का आना-जाना,

आज  तलक  भी बात भला ये किसने जानी है।


✍️ओंकार सिंह विवेक ,रामपुर

मोबाइल 9897214710

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