सोमवार, 5 अक्टूबर 2020

हिंदी साहित्य संगम की ओर से रविवार 4 अक्टूबर 2020 को ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। आयोजन में शामिल साहित्यकारों श्री कृष्ण शुक्ल, अशोक विश्नोई, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, शिशुपाल मधुकर, अशोक विद्रोही, डॉ मनोज रस्तोगी, योगेंद्र वर्मा व्योम, राजीव प्रखर, डॉ प्रीति हुंकार, डॉ रीता सिंह, अरविंद कुमार शर्मा आनन्द, राशिद मुरादाबादी, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, प्रशांत मिश्र, जितेंद्र कुमार जौली और विकास मुरादाबादी द्वारा प्रस्तुत की गईं रचनाएं------

 


हम जरा सी तरक्की जो करने लगे।

आपकी आँख में हम खटकने लगे।।

जिस तरह रोज कपड़े बदलते हैं सब
आप किरदार यूँ ही बदलने लगे।

राम का नाम लेने से परहेज था।
आप हनुमान चालीसा पढ़ने लगे।।

बोतलों में भरा था जो विष आपने।
आप हम पर ही सारा उगलने लगे।।

हमने तो आपको रहनुमा था चुना।
अब हमारा ही घर तुम जलाने लगे।।

✍️श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद ।
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मैंने ,
बहुत प्रयास किया
भावनाओं की सुईं से
शब्दों की तुरपाई
कर सकूं
हाँ , मैने
शब्द-शब्द को
एक साथ रखने का
प्रयास भी किया
ताकि वे शब्द
कविता बन जायें
पर ,
मेरी अभिव्यक्ति
की तुरपाई,
हर बार उधड़ जाती है  ।
मैं भी कवि बन सकूँ,
यह अभिलाषा
दिल ही दिल में
रह जाती है ।।

✍️अशोक विश्नोई, मुरादाबाद
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कलम बिक  चुकी है
    ज़हन   बिक  चुके हैं
    शराफत   भरे    सब
    सहन   बिक  चुके हैं
    जिधर   देखिए   बस
    धुआं   ही   धुआं   है
    घुटन  में  घिरा आज
    सारा      जहां       है
    ज़ुबां  बिक  चुकी  है
    वचन  बिक  चुके  हैं।
    कलम बिक---------

    सभी   आज   अपने
    पराय     हुए        हैं
    नगर    नफरतों    के
    बसाए     हुए        हैं
    फूलों   में    भी   गंध
    बारूद      की       है
    हर     ओर    दहशत 
    की     मौजूदगी     है
    महक  बिक  चुकी  है
    चमन  बिक   चुके  हैं।
    कलम बिक---------

     हुआ   है  सभी   का
     यहाँ     खून    पानी
     बड़ी   मुश्किलों   में
     फंसी       जिंदगानी
     नहीं   आज   आदर
     शहीदे    वतन    का
     गया     सूख    पानी
     सभी  के  नयन   का
     हया  बिक   चुकी  है
     नयन  बिक    चुके हैं।
     कलम बिक---------

      ईश्वर  से  कोई   नहीं
      डर         रहा       है
      नहीं  प्यार  इंसान से
      कर         रहा       है
      सुरक्षित     नहीं     है
      उसूलों    की    माला
      रातों      में      घिरने
      लगा     है     उजाला
      ऋचा  बिक  चुकी  है
      हवन  बिक   चुके  हैं।
      कलम बिक---------

      मगरमच्छ   के   जैसे
      आँसू      बचे        हैं
      चेहरे     सभी       के
      रुआंसू     बचे       हैं
      दुआएं सभी  बेअसर
      हो        चुकी        हैं
      बहुत    दूर   भगवान 
      से    हो     चुकी    हैं
      दया  बिक  चुकी   है
      रुदन  बिक  चुके   हैं
      कलम बिक---------
           
      ✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
       मुरादाबाद/ उ, प्र,
       मो0-   9719275453
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झूठ गर सच के सांचे में ढल जाएगा
रोशनी को अंधेरा निगल जाएगा

इतनी बीमार है आज इंसानियत
लग रहा है कि दम ही निकल जाएगा

छोड़ दो उसकी उंगली बड़ा हो गया
ठोकरे खाते खाते संभल जाएगा

आ गए भेष धरकर मुहाफिज का जो
राज उनका भी जल्दी ही खुल जाएगा

अपने हक के लिए सब जो मिलकर लड़ें
देखिए सारा आलम बदल जाएगा

✍️ शिशुपाल "मधुकर"
मुरादाबाद
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भारत के लाल बापू ,दिल में सदा रहेंगे;

है जन्मदिन तुम्हारा ,शत शत नमन करेंगे।

  आपस में मेल करना ,तुमने हमें सिखाया ,
  सपनों का पुर अमन यह ,हिंदोस्तां बनाया।
  हर विपदा हर खुशी में ,सब मिलके हम रहेंगे ।
  है जन्मदिन तुम्हारा ,शत-शत नमन करेंगे।।
जब देश में थी तंगी, तन पर वसन नहीं थे ,
कपड़ों का त्याग करके ,इक धोती में तुम्ही थे ।
वह त्याग तेरा बापू ,कैसे भुला सकेंगे ।
है जन्मदिन तुम्हारा ,शत शत नमन करेंगे ।।
जब भूख से तड़पता ,संकट में देश सारा ,
तब तुम ने व्रत रखा कर, विपदा से था उबारा।
अब शुक्रिया अदा हम ,उस लाल का करेंगे ।
है जन्म दिन तुम्हारा, शत शत नमन करेंगे ।।
ईमान सदगी की ,जलती मश़ाल थे तुम ,
देखी नहीं जहां में ,ऐसी मिसाल थे तुम ।
तुमने है जो दिखाई ,उस राह पर चलेंगे ,
है जन्मदिन तुम्हारा ,शत शत नमन करेंगे।।
दोनों ने अपना जीवन, बस देश हित में वारा,
एक गोलियों ने भूना  ,एक ताशकंद मारा।
दो फूल थे चमन के ,रूहे चमन रहेंगे ,
है जन्मदिन तुम्हारा ,शत-शत नमन करें।।
              
✍️अशोक विद्रोही
मोबाइल फोन नम्बर 82 188 25 541
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इज्जत  हो  रही  तार-तार  देश में
हो  रहे  हैं रोज  बलात्कार  देश में            

खुद ही कीजिएगा हिफाजत अपनी
गहरी  नींद  में  है  पहरेदार  देश में                

बढ़ रही है हैवानियत किस तरह
इंसानियत  हो रही शर्मसार देश में

'एक्शन' के साबुन से होगी क्या साफ                         वर्दी  जो  हो  चुकी है दागदार देश में

चीखने का कोई होगा नहीं असर
हो गई है बहरी अब सरकार देश में

टीआरपी चैनलों की बढ़ रही 'मनोज'
जमकर  बिक  रहे  अखबार देश में
✍️डॉ मनोज रस्तोगी
Sahityikmoradabad.blogspot.com
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कैसे सँभलें भूख के, बिगड़े सुर-लय-ताल
आज सदी के सामने, सबसे बड़ा सवाल

सपनों के बाज़ार में, ‘हरिया’ खड़ा उदास
भूखा-नंगा तन लिए, कैसे करे विकास

घर में पसरी भुखमरी, कैसे हो निर्वाह
'रमुआ' भी इमदाद की, रहा देखता राह

मजदूरों के नाम पर, दिखावटी परमार्थ
राजनीति भी गढ़ रही, कैसे-कैसे स्वार्थ

इधर भूख से चल रहा, बाहर-भीतर द्वंद
राजनीति भी रच रही, उधर नये छल-छंद

तनिक नहीं संवेदना, का जिनमें उल्लेख
राजनीति लिखती रही, स्वार्थ पगे आलेख

जीवन का अस्तित्व भी, हो जब संकटग्रस्त
उचित कहाँ तक तब भला, राजनीति हो मस्त

धीरज रख, कर कोशिशें, गुज़रेगा यह दौर
फिर होगी इंसानियत, दुनिया की सिरमौर

क्या जनहित क्या राष्ट्रहित, ख़त्म हुए एहसास
नैतिकता को दे चुकी, राजनीति वनवास

लेकर फिर अभिव्यक्ति की, आज़ादी की ओट
राजनीति करने लगी, राष्ट्र हितों पर चोट

-योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’, मुरादाबाद
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माँ हिन्दी के नेह की, एक बड़ी पहचान।
इसके आँचल में मिला, हर भाषा को मान।।

मन की आँखें खोल कर, देख सके तो देख।
कोई है जो लिख रहा, कर्मों के अभिलेख।।

सुन गोरी के पाँव से, पायल की झंकार।
ढल जाने को काव्य में, मचल उठा श्रृंगार।।

पुतले जैसा जल उठे, जब अन्तस का पाप।
तभी दशहरा मित्रवर, मना सकेंगे आप।।

✍️राजीव 'प्रखर'
(मुरादाबाद)
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आज कलम की नोक को असि धार करलूँ।
कलुषित कुकर्मी काट सिर को हार करलूँ।
साध कर चुप्पी कब तक पाप की भागी बनूँ मैं,
काली का अवतार धर के भू का भार हरलूँ।

अहिंसा अस्त्र को धारा सकल अरि को झुकाया था।
सतत सच्चाई पर चलना सदा जिसने सिखाया था।
नमन उनको हमारा है कि जिनको कहते सब बापू,
हमें आदर्श जीवन का तुम्ही ने पथ दिखाया था ।

धन्य हुई भारत की भूमि, दमक उठा दिनमान ।
धरती के इस लाल ने ,खूब बढ़ाया मान ।
सादा जीवन उच्च विचार  थे जिनके आदर्श ,
उनका यह उदघोष था जय जवान जय किसान ।।

✍️डॉ प्रीति हुँकार मुरादाबाद
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वह सुबह कब यहाँ आयेगी ?
जब सूनी सड़कों पर बेटी
हो निडर घूम - फिर पायेगी ।
वह सुबह कब यहाँ आयेगी ?

मुखौटा पुरुषों का पहनकर
दानव वहशी बन डोल रहे
लगती नारी भोग की वस्तु
वे समझ न उसका मोल रहे ।
ऐसे विष विचारों से मुक्त
क्या धरा कभी हो पायेगी ?
वह सुबह कब यहाँ आयेगी ?

भय नहीं जिनको राज विधि का
मान न जिनको माँ ममता का
रखकर मनुजता है किनारे
कर रहे आचरण पशुता का ।
नर तुम्हारे कलुष रूप से
कभी नारी उबर पायेगी ?
वह सुबह कब यहाँ आयेगी ?

नन्हीं कली तोड़ दी जातीं
खिली पँखुरी मोड़ दी जाती
महकातीं जो सुमन डालियाँ
बीच राह झिंझोड़ दी जातीं ।
चमन के माली घड़ी बताओ
जब कुसुम शाख लहरायेगी !
वह सुबह कब यहाँ आयेगी

डॉ रीता सिंह, मुरादाबाद
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आपके प्यार से मै निखर जाऊँगा।
मै जरा सा सही पर सँवर जाऊँगा।।

तू जो कर दे करम तो मिरे हमनशीं।
मै तिरे दिल में ही बस उतर जाऊँगा।।

राह में जिंदगी की मिलो फिर से तुम।
अब ज़माने की हद से गुजर जाऊँगा।

जिंदगी में तिरी अब न होगी कमी।
बनके खुशबू मै तुझमें बिखर जाऊँगा।।

याद करके तो देखो मुझे दिल से तुम।
मै ख़ुशी का तिरी बन पहर जाऊँगा।।

एक ख़ुशी की लहर दिल में फिर से उठी।
अब लगे मै तिरी हो खबर जाऊँगा।।

अब मैं तनहा हुआ जो फिर से सनम
कुछ बता दो जरा मै किधर जाऊँगा।।

अब के आये न मिलने मिरे बोल पर।
है खुदा की कसम फिर बिफर जाऊँगा।।

✍️अरविंद कुमार शर्मा "आनंद"
मुरादाबाद
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कूंचा ए दिल में बड़ा अंधेरा है
मेरी बेबसी ने फिर मुझे घेरा है,

ग़म की काली रात ढलती नहीं,
जाने कहाँ छुप गया सवेरा है,

क्या करोगे सुनके मेरी दास्ताँ,
दर्द में डूबा किस्सा ये मेरा है,

रहता था तू कभी दिल में मेरे,
अब कहाँ दिल में तेरा बसेरा है,

ऐं ज़िन्दगी तुझे समझा है कौन,
किसने तेरा राज़ यहाँ उकेरा है,

सुलझती नहीं किसी जतन से,
मुश्किलों ने मुझे ऐसा घेरा है,

चले जायेंगे हम भी दुनिया से,
सदा हुआ किसका यहाँ डेरा है,

राशिद मुरादाबादी
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मैं फूल हूँ
सभी को जीवन का सार सिखाता हूँ
हे मनुष्य  तुझे मानवीय व्यवहार सिखाता हूँ
कांटो में खिलकर भी कभी कटीला नही हूँ
बिन भेदभाव के सभी पर खुशबू लुटाता हूँ
मैं फूल हूँ
सभी को जीवन का सार सिखाता हूँ
गर्मी,सर्दी, बरसात सब सहता हूँ
भँवरों पर भी अपना सब लुटाता हूँ
मैं फूल हूँ
सभी को जीवन का सार सिखाता हूँ
अपने रस से मधु बनता हूँ
देवो के भी चरणों मे चढ़ाया जाता हूँ
कभी नहीं खुद पे इठतलता हूँ
सभी को दुनिया पर लूटना सिखाता हूँ
मैं फूल हूँ
सभी को जीवन का सार सिखाता हूँ

✍️आवरण अग्रवाल "श्रेष्ठ"
चंद्रनगर, मुरादाबाद
मोबाइल नंबर:- 7599211176
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स्कूल में सभी के रंग एक थे,
लंच में किसी के पराठे, किसी में मैगी, और किसी में रखे सेब थे
पर न जाने कौन सिर पर टोपी
और माथे पर तिलक लगा जाता है
दोस्तों को हिन्दू
और मुझे मुसलमान बता जाता है

✍️प्रशान्त मिश्र
राम गंगा विहार
मुरादाबाद
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सब धर्मों को नमन करो!
क्या होता है हिन्दू-मुस्लिम,
सब ही भाई-भाई हैं।
ये जात-पात की दीवारें,
हमने सभी बनाई हैं।।
मानो ये कहना मेरा,
अब हर घर में अमन करो।
सब धर्मों को नमन करो।।

मजहब नहीं सिखाता हमको,
आपस में लड़ना-मरना।
दहशतगर्दी फैलाने को,
रोज-रोज दंगे करना।।
अब छोड़ो सारे झगड़े,
सबके दिल में चमन करो।
सब धर्मों को नमन करो।।
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आजादी पायी थी हमने,
देश सभी को प्यारा था।
जात-धर्म के नाम पर ही,
किया गया बंटवारा था।।
भाईचारा लाने को,
मिलकर यारों हवन करो।
सब धर्मों को नमन करो।।

✍️जितेंद्र कुमार जौली, मुरादाबाद
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ठंडी पुरवाई मगर ऊमस रहा बदन
गर्म पछुआ चल रही है जल रहा
चमन !
उत्तरी व दक्षिणी हवा को क्या
कहें ;
उनको ये खबर नहीँ कहां है निज
वतन !

हालत नहीँ समाज की है अच्छी
आज कल !
बढ़  रहा  है  जाति  द्वेष भाव आज कल !
समाज में समानता की बात करते
सब
बिछाते भेद भाव  की  बिसात
आज कल !

देवी मानी जाती हैं भारत में बेटियां !
मगर सुरक्षित आज कहां भारत में
बेटियांं !
कितनी मनीषा और कितनी निर्भया यहां ;
दरिन्दों की बलि चढ़ रहीं हैं आज
बेटियां !

✍️ विकास मुरादाबादी

2 टिप्‍पणियां:

  1. एक से बढ़कर एक शानदार प्रस्तुतियाँ। सभी विद्वज्जनों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ। 👏 👏 👏 💐

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया । कृपया ब्लॉग को फॉलो भी किजियेएगा ।

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