धूप के पाँवों मेँ पाज़ेब नहीं होती
फिर भी वह छन से उतरती है-
घर की मुंडेर पर और बिखेर देती है
किरणों के घुँघरू दूर तलक
रात के बदन से नहीं आती कोई खुशबू
न जाने क्यों उसकी एक छुअन से
महक उठती है रातरानी
चाँदनी के पास नहीं होता कोई चुम्बक
कैसे खींच लेती है सबको अपनी ओर
हवा के हाथ मेँ कभी देखी नहीं बाँसुरी
मगर जब-जब गुज़रती है पास से
कानोँ मेँ घोल देती है एक सुरीला राग
भोर कोई जौहरी तो नहीं
न जाने कहाँ से समेट लाती है
गठरी भर मोती और बडी उदारता से-
टाँक देती है उन्हेँ, घास के नर्म अँकुरों पर
तो कौन है वो,जो धूप को पहनाता है पाज़ेब
रात को देता है भीनी भीनी ख़ुशबू
चाँदनी को थमा देता है चुम्बक
हवा को पकड़ा देता है बाँसुरी
और भोर को बना देता है जौहरी
हाँ, यह शायद वही है-
जो कहीँ नहीँ है
और यहीँ कहीं है
यहीँ कहीँ है
✍️डॉ. मधु चतुर्वेदी
गजरौला गैस एजेंसी
चौपला,गजरौला
जिला अमरोहा 244235
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9837003888
बहुत सुंदर प्रात:कालीन प्रकृति चित्रण,आलंकारिक भाषा में, आदरणीया दीदी डॉ मधु चतुर्वेदी जी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आपका
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