सुनो, कल अम्मा का श्राद्ध है, इस बार श्राद्ध कैसे मनेगा, पंडित जी से बात कर लो, और हाँ नहाने से पहले आज बाजार जाकर कुछ सामान भी ला दो, सुनीता ने थैला थमाते हुए गोपाल से कहा।
अरे, सामान तो मैं ला दूंगा लेकिन कोई पंडित जी या पंडिताइन आजकल जीमने नहीं आयेगी। मंदिर भी आजकल बंद हैं, गोपाल बोला।
हुम्म, तो क्या इस बार श्राद्ध नहीं होगा, सुनीता ने पूछा।
होगा क्यों नहीं, सोचने दो, कोई रास्ता निकलेगा।
गोपाल को अम्मा की याद आ गई । वह भी दादी दादा का श्राद्ध बड़ी श्रद्धा से मनाती थी उस समय गोपाल के लिये तो श्राद्ध केवल खीर पूड़ी, आदि पकवान बनने के त्योहार जैसा ही था। सुनीता भी उसी श्रद्धा से अम्मा का श्राद्ध करती थी।
आज तो आपसे कुछ पैसे मांगने आयी हूं। घर पर खाने के लाले पड़े हुए हैं। चार महीने हो गये कोई काम नहीं करवा रहा है, गिड़गिड़ाती हुई बाई बोली ।
अभी संगीता कुछ जबाब देती उससे पहले ही गोपाल ने उसे एक ओर बुलाया और कहा: लो तुम्हारी प्राब्लम साॅल्व हो गयी। अम्मा स्वयं तुम्हारे पास आ गयीं। इन्हें महीने भर के राशन के पैसे दे दो। अम्मा का इससे अच्छा श्राद्ध और कुछ नहीं होगा। स्वर्ग में बैठी अम्मा भी खुश हो जायेंगी।
✍️श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG -69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद ।
मोबाइल नंबर 9456641400
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