मंगलवार, 6 अक्तूबर 2020

वाट्स एप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। मंगलवार 8 सितंबर 2020 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों राशि सिंह, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, राजीव प्रखर, रवि प्रकाश, प्रीति चौधरी, श्री कृष्ण शुक्ल, डॉ पुनीत कुमार, अशोक विश्नोई, सीमा रानी, स्वदेश सिंह, सीमा वर्मा और कंचन खन्ना की रचनाएं----

 

चुन्ना मुन्ना थे दो भाई
दोनों ने डुबकी लगाई.

छप छप मस्ती करते
हँसते गाते आगे बढ़ते.

दूर रह गया किनारा
मुन्नू जोर से चिल्लाया.

चुन्नू भी था घबराया
उपाय कोई न सुझाया.

रोते बिलखते दोनों डूबे
घरवालों के आंसू छूटे.

मम्मी रोई पापा रोए
दोनों प्यारे बच्चे खोए

कभी न नदिया मे जाओ
घर में खेलो धूम मचाओ.

✍️राशि सिंह
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश
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कहाँ जा रहे  पप्पू राजा,
लेकर     के    पिचकारी,
मम्मी  ने पूछा  तेजी  से,
चलदी    कहाँ    सवारी।

तेज हुई गर्मी  के कारण,
झुलस   गई    फुलबारी,
देख भयंकर गर्मी सबने,
अपनी   हिम्मत    हारी।

बदन  तपेगा  पैर जलेंगे,
थकन    बढ़ेगी    न्यारी,
सूरज की गर्मी में  होती,
छाया    ही    सुखकारी।

घर से बाहर जाओगे तो,
पकड़ेगी           बीमारी,
सुई  लगेगी  तब रोओगे,
होगी     पीड़ा      भारी।

पप्पू बोला  मैं सूरज पर,
छोडूंगा          पिचकारी,
सारीआगबुझाके उसकी,
रख   दूँगा    इस   बारी।

आग बुझाने पानी डालो,
कहती     मेंम     हमारी,
डरती आग स्वयं पानीसे,
कहती    नानी     प्यारी।

इतना काहे डरती मम्मी,
सुन    लो  बात   हमारी,
सूरज भी  सॉरी  बोलेगा,
देख - देख     पिचकारी।
    
✍️वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
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मम्मी-पापा झगड़ा छोड़ो,

अपना प्यारा सा संसार।

सुबह निकल जाते हो दोनों,
घर की खातिर दिन भर खपने।
साथ आपके जुड़े हुए हैं,
हम बच्चों के भी कुछ सपने।
आपस में यों चुप्पी रखना,


सुन लो बिल्कुल है बेकार।
मम्मी-पापा झगड़ा छोड़ो,
अपना प्यारा सा संसार।

दुनिया कहती हम हैं छोटे,
भला बड़ों को क्या समझायें।
उनके आपस के झगड़े में,
नहीं कभी भी टांग अड़ायें।
सुनो हमारी हम भी तो हैं,
इस नैया की ही पतवार।
मम्मी-पापा झगड़ा छोड़ो,
अपना प्यारा सा संसार।                                         करो आज यह वादा हमसे,

आगे से अब नहीं लड़ोगे।
और हमारे नन्हें मन की,
भाषा को भी सदा पढ़ोगे।
घर मुस्काये, यही हमारे
जन्म-दिवस का है उपहार।
मम्मी-पापा झगड़ा छोड़ो,
अपना प्यारा सा संसार।

✍️ राजीव 'प्रखर'

मुरादाबाद
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                        (1)
बोर हो गए घर पर रहकर ,विद्यालय अब जाएँ
कक्षा  में  टीचर जी आकर फिर से हमें पढ़ाएँ
                              (2)
मिले हुए हो गया जमाना ,कब से दोस्त न दीखे
वही  पुराने हँसने - गाने  के  दिन वापस आएँ
                             (3)
हे भगवान सुनो बच्चों की ,अब हो खत्म कोरोना
मिलें-जुलें आपस में खुशियाँ बाँटें और मनाएँ
                       (4)
घर   पर   बैठे - बैठे   मोबाइल  से  हुई  पढ़ाई
सोच  रहे  इस  आफत .से छुटकारा कैसे पाएँ
                            (5)
गली - मोहल्ले के बच्चों के साथ रुकी गपशप है
काश  पुराने दिन फिर लौटें ,ऊधम खूब मचाएँ

✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451
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नित गूगल ज्ञान बाँट रहा है
  रोज़ नयी ऐप  बना रहा है
  उलझा दिखता आधुनिक बच्चा
  फिर गुरू को ही ताक रहा है

  हमें सही आप राह दिखा दो
  सभी उलझी गुत्थी सुलझा दो
  भूल हुई राह भटक गये थे
  सच्चा-ज्ञान दर्शन करवा दो
     
✍️प्रीति चौधरी
गजरौला,अमरोहा
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जन्म दिवस छोटू का आया।
खुद उसने प्रोग्राम बनाया।

यार दोस्त सारे आयेंगे।
सब बाहर खाना खायेंगे।
केक डबल डेकर मँगवाना।
यारों पर है रौब जमाना।

पापा ने उसको समझाया।
बीमारी का डर दिखलाया ।

बाहर जाने में खतरा है।
बाहर कोरोना पसरा है।
अबके बाहर नहीं चलेंगे।
हम घर में ही खुश हो लेंगे।

मम्मी ने फिर केक बनाया।
एमेजन से गिफ्ट मँगाया।
पिज्जा बर्गर भी खिलवाया।
जन्मदिवस इस तरह मनाया।

✍️श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG - 69.
रामगंगा विहार,
मुरादाबाद ।
मोबाइल 9456641400
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ताक धिना धिन
धिन धिन धिन
इम्तिहान के
आए  दिन

ता थई,ता थई
ता थई ता
समय खेल मेेें
दिया बिता

सा रे गा मा
पा धा नी
याद आ रही
अब नानी

सा नी धा पा
मा गा रे
ना जाने क्या
होगा रे

हल्ला गुल्ला
लाई ला
ना पढ़ने की
मिली सजा

✍️ डाॅ पुनीत कुमार
T --2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद
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मैं ,
दिन में कई बार
पापा को निहारती,
पापा मुझे देखते-
जैसे पूछना चाहते हों
गुड़िया क्या बात है ?
और मैं,
चाहकर भी कुछ नहीं कह पाती
क्योंकि
मुझे याद है वो दिन,
जब, खिलौने वाला मेरे
दरवाजे पर आया था,
तो, मैनें कहा था
पापा मुझे एक खिलौना दिला दो
इस पर,
पापा ने जो डांट पिलाई थी
वह मुझे आज तक याद है
कहा था,
तू खिलौनों से खेलेगी,
शर्म नहीं आती,
जा,
चौका - बर्तन में अपनी मां
का हाथ बटा,
तभी उधर से भैया आ गया
पीपी गुब्बारे की जिद्द
पापा ने पांच का नोट थमा दिया
भैया मेरी ओर देख कर
ताली बजता हुआ चला गया,
तब मुझे पहली बार,
लड़की होने का एहसास हुआ था ।।

✍️अशोक विश्नोई
मुरादाबाद
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नन्हीं चिड़िया आओ ना,
मीठा  सा गीत सुनाओ ना |
चहुँ दिशि पसरी है बेचैनी ,
प्यारी इससे मुक्त कराओ ना |

हम तो बन्द हुए घराें में,
पर तुमकाे मिली है आजादी
फिर कहाँ दुबक कर बैठी हाे
दौड़ कर आओ शहजादी |

मन शायद दुखी हुआ मेरा,
आकर इसे बहलाओ ना |
बेरहम वक्त की ऐसी घड़ी में ,
आकर मुझे समझाओ ना |

आओ हम तुम मिलकर दाेनाें,
एक प्यारा सा गीत बनाते हैं |
चाराे तरफ हम खुशी लुटायें,
फिर से सबकाे हँसाते हैं |

✍🏻✍🏻सीमा रानी
अमरोहा
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सिर पे टोपी पहन पजामा
चलें घूमने बंदर मामा

पहुँच आगरा देखा ताज
देख ताज को हुआ नाज

फिर आई मथुरा की बारी
खा-खा पेड़े पेट हुआ भारी

बड़ी शान से पहुँचे दिल्ली
वहां मिली सलोनी बिल्ली

बिल्ली से हुई आँखें चार
कर बैठे वह  उससे प्यार

घूम घूम कर जेब हुई खाली
पास बची ना एक  रूपल्ली

बिना टिकट टीटी ने पकड़ा
ले जाकर जेल में पटका

उतरा भूत प्यार-व्यार का
अब  बात समझ में आई

सबसे अच्छा सबसे प्यारा
अपना घर होता है भाई

✍️स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
मुरादाबाद
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मेरा नन्हा सा जी पूछे
       मुझसे इतनी बातें
कौन बनाए चमकीले दिन
       कौन सजाए रातें
किसने फूलों को महकाया
      किसने चिड़ियों को चहकाया
इंद्रधनुष् को कौन है लाया
      किसने यह संसार बनाया
सूरज के गोले में किसने
        रंग भर दिए सारे
किसने धरती पर लहराए
        पौधे इतने सारे
चन्दा मामा कभी-कभी तो
        बिल्कुल ही छुप जाता है
और बुलाने पर इतराकर
       टुकड़ा-टुकड़ा आता है
हवा कभी तो साँस रोक कर
        जाने क्यों रुक जाती है
कभी दौड़ती है ऐसे की
       मुझे उड़ा ले जाती है
तितली  चिड़िया और परिंदों
         को ही क्यों पंख दिए
खुले आसमान में उड़ने को
         आजादी के संग दिए
जब भी पूछूँ एक नाम ही
        एक ही पता पाता हूँ
फिर भी उस "भगवान" को ही
          देख नहीं मैं पाता हूँ
         
✍️सीमा वर्मा
मुरादाबाद

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मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ कृष्ण कुमार नाज की ग़ज़ल ए टी ज़ाकिर के स्वर में


 


✍️डॉ कृष्ण कुमार नाज
🎤  ए टी ज़ाकिर
फ्लैट नम्बर 43, सेकेंड फ्लोर
पंचवटी, पार्श्वनाथ कालोनी
ताजनगरी फेस 2, फतेहाबाद रोड
आगरा -282 001
मोबाइल फ़ोन नंबर। 9760613902,
847 695 4471.
मेल- atzakir@gmail.com

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में बरेली निवासी) सुभाष रावत 'राहत बरेलवी' का गीत -----गुलमोहर सी तरुणाई, छलके यौवन में ! भरती है आवेश अनल सी, यह तन-मन में !!

 


गुलमोहर   सी  तरुणाई,   छलके  यौवन  में !

भरती है आवेश अनल सी, यह  तन-मन  में !!


खिले कंवल के आकर्षण सी कोमल काया ,

स्पर्श   पवन  ने  उसे   किया,  तो  मदमाया !

इस  सुख  की अनुभूति  करा दो  जीवन  में ,

गुलमोहर   सी  तरुणाई,   छलके  यौवन  में !

भरती है आवेश अनल सी, यह  तन-मन  में !!


चंचल    चितवन   देख    जिया   हर्षाता  है ,

नयन  बाण   से   उर  पंछी   बिंध  जाता  है !

स्वर  पीड़ा  के  दिये  सुनाई  मन-क्रन्दन  में ,

गुलमोहर   सी  तरुणाई,   छलके  यौवन  में !

भरती है आवेश अनल सी, यह  तन-मन  में !


प्रेम - दृष्टि तुम तनिक  अकिंचन पर कर दो ,

अन्तस  ग्रीवा  प्रेम - सुधा   से  तर  कर  दो !

ज्यों  भ्रमर  करे  प्रेम, कली  से  मधुबन  में ,

गुलमोहर   सी  तरुणाई,   छलके  यौवन  में !

भरती है आवेश अनल सी, यह  तन-मन  में !!


पीत   वसन   में   अंग - अंग   सिमटे   ऐसे ,

वृक्ष   तनों   पर   अमर  बेल   लिपटे   जैसे !

यों  मुझे  भी  ले  लो  हे  प्रिये  आलिंगन  में ,

गुलमोहर   सी  तरुणाई,   छलके  यौवन  में !

भरती है आवेश अनल सी, यह  तन-मन  में !!


सम्मोहन   के    मंत्र    तुम्हें    किसने   बाँटे ,

धरा - गगन   के    टूट    गये    सब   सन्नाटे !

केवल  तुम हो आते -जाते, मन - उपवन  में ,

गुलमोहर   सी  तरुणाई,   छलके  यौवन  में !

भरती है आवेश अनल सी, यह  तन-मन  में !!

 

✍️ सुभाष रावत 'राहत बरेलवी'

मकान सँ० 41, तिरुपति विहार कॉलोनी

अंकुर नर्सिंग होम के पीछे, नेकपुर, बदायूँ रोड, बरेली-243001 (उत्तर प्रदेश)

मोबाइल फोन नंबर :- 09456988483/ 7017609930

ईमेल :-subhashrawat59@gmail.com

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की दस ग़ज़लों पर "मुरादाबाद लिटरेरी क्लब'' द्वारा ऑनलाइन साहित्यिक चर्चा

 


वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा 'एक दिन एक साहित्यकार' की श्रृंखला के अन्तर्गत  3 व 4 अक्टूबर 2020 को मुरादाबाद की युवा साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की दस ग़ज़लों पर ऑन लाइन साहित्यक चर्चा का आयोजन किया गया । सबसे पहले मीनाक्षी ठाकुर द्वारा निम्न दस ग़ज़लें पटल पर प्रस्तुत की गयीं----

(1)
हथेली पर नया सूरज किसी ने फिर उगाया है
अँधेरा दूर करने को उजाला साथ लाया है

पकड़ना जब भी चाहा हर खुशी को हाथ से हमने
तभी  तितली सा उड़कर वक्त़ ने हमको रुलाया है

जगह थोड़ी सी माँगी थी किसी के दिल में रहने को
नहीं खाली मकां उसका, यही उसने बताया है

भरोसा करना मत क़िस्मत के लिक्खे फैसलों  का तुम
हमेशा हौसलों ने जीत का मंज़र दिखाया है

मै लिख दूँ आसमां पर नाम अपनी कामयाबी का
बुज़ुर्गों ने सदा मेरे मुझे उठना सिखाया है

(2)
तीर दिल पर चला कर गये हैं
मुझसे दामन छुड़ा कर गये है

हर दुआ दिल ने की जिनकी ख़ातिर
आज वो ही रुला कर गये हैं

छोड़ना ही था गर यूँ सफ़र में
ख़्वाब फिर क्यूँ सजा कर गये हैं

देने आये थे झूठी तसल्ली
चार आँसू बहा कर गये हैं

हैं पशेमाँ वो अपनी ज़फा से
इसलिए मुँह छुपा कर गये हैं

(3)
दोस्ती करके किसी नादान से
हमने झेले हैं बड़े तूफ़ान से

दिल में रहते थे कभी जो हमनवा
आज क्यूँ लगते भला मेहमान से

साथ मेरे तू नहीं तो कुछ नहीं
फ़िर गुलिस्तां भी लगे वीरान से

याद ही बाक़ी रही अब दरमियां
दिल के टूटे हैं कहीं अरमान से

ख़ुदक़ुशी करना नहीं यूँ हारकर
मौत भी आये मगर सम्मान से

वो गये दिल तोड़कर तो क्या हुआ
ज़िंदगी फिर भी चलेगी शान से

तंगदिल देंगे तुम्हें बस घाव ही
आरज़ू करना सदा भगवान से

(4)
हँसा के मुझको रुला रहा था
छुड़ा के दामन वो जा रहा था

उसी ने बदली हैं क्यूँ निगाहें
जो कसमें उल्फ़त में खा रहा था

हुआ किसी का न आज तक जो
वफ़ा के क़िस्से सुना रहा था

मिटाने को मेरी हर निशानी
ख़तों को मेरे जला रहा था

कभी न झाँका जो आइने में
वो मुझ पे उँगली उठा रहा था

(5)
दिल ही दिल में उनको चाहा करते हैं
सीने में इक तूफां पाला करते हैं

जब आये सावन का मौसम हरजाई
यादों की बारिश में भीगा करते हैं

कटती हैं अपनी रातें तो रो-रो कर
वो भी शायद, करवट बदला करते हैं

होते कब सर शानों पर दीवानों के
फिर भी क्यूँ खुद को दीवाना करते हैं

लिक्खें जितने नग़में उनकी यादों में
हँसकर हर महफ़िल में गाया करते हैं

(6)
रस्म उल्फ़त की कुछ तो अदा कीजिए
चाहिए ग़र वफ़ा तो वफ़ा कीजिए

इश़्क करने का अंजाम होता है क्या
दिल के बीमारों से मशविरा कीजिए

तोड़कर सारे रिश्ते चले जाएं पर
हाथ की इन लकीरों का क्या कीजिए

हो दग़ाबाज़ी जिनके लहू में घुली
ऐसे लोगों से बचकर रहा कीजिए

कुछ भरम प्यार का दरमियां ही रहे
ख्व़ाब में ही सही पर मिला कीजिए

(7)
खोकर मुझको रोया होगा
रातों को भी जागा होगा

दिल जो मेरा तोड़ा तूने
तेरा दिल भी टूटा होगा

वादों की तहरीरों में भी
सच का किस्सा झूठा होगा

होगी महफ़िल जब भी तेरी
चर्चा मेरा होता होगा

अश्कों के खारे पानी से
गम का दरिया हारा होगा

(8)
आइना सच हज़ार बोलेगा
इक नहीं बार-बार बोलेगा

क़त्ल होगा जो जिस्म मेरा ये
रूह का तार-तार बोलेगा

सिल गये लब,नज़र झुका ली है
आज तो शर्मसार बोलेगा

लुट गये हम वफ़ा की राहों में
प्यार में कर्ज़दार बोलेगा

मुंतज़िर थे कभी हमारे वो
बस यही राज़दार बोलेगा

(9)
कोई अपना भी रहनुमा होता
दर्द इतना न फिर मिला होता

बैठे हो सर झुकाए गै़रो में
तीर अपनों का सह लिया होता

मुब्तिला थे तेरी ख़ुशी में हम
राज़ ग़म का भी तो कहा होता

तोड़ देते वो दिल मेरा बेशक
मशवरा मुझ से कर लिया होता

भूल जाते हैं इश्क़ करके वो
ये हुनर हमको भी मिला होता

(10)
रो रही ज़िंदगी अब हँसा दीजिये
फूल ख़ुशियों के हर सू खिला दीजिये

इश्क़ करने का जुर्माना भर देंगे हम
फै़सला जो भी हो वो सुना दीजिये

ढक गया आसमां मौत की ग़र्द से
मरती दुनिया को मालिक दवा दीजिये

बंद कमरों में घुटने लगी साँस भी
धड़कनें चल पड़ें वो दुआ दीजिये

जाल में ही न दम तोड़ दें ये कहीं
कै़द से हर परिंदा छुड़ा दीजिये


इन गजलों पर चर्चा शुरू करते हुए वरिष्ठ व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि मीनाक्षी में लेखन के प्रति ललक भी है और उनके भीतर ऊर्जा भी है। पटल पर प्रस्तुत दस ग़ज़लें जहां अपनी भाव संपदा से भरपूर हैं, वहीं मुझे यह विशेष लगा कि वे अपने आकार में उतनी ही हैं जितना कि ग़ज़ल को होना चाहिए। जैसा कि जानकारों ने माना है कि अभी उनकी शुरुआत है। शुरुआत है तो भाव दृष्टि से संतोषजनक है।

वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि बहुत अच्छी कहन है। ईमानदारी और साफगोई के साथ सादा बयानी ने दिल में जगह बनाई है। अभ्यास हर कमी को दुरुस्त कर देगा। एक उभरती हुई मजबूत शायरा का साहित्य जगत में हार्दिक स्वागत है।
मशहूर शायरा डॉ मीना नक़वी ने कहा कि मुझे लगा कि मीनाक्षी छन्द युक्त लेखन पसन्द करती हैं जो ग़ज़ल के लिये अनिवार्य शर्त है।  पटल पर उनकी दस ग़ज़लें मेरी ये बात सिद्ध करने को पर्याप्त हैं। उनकी भाषा की सरलता उनके लेखन का क्षितिज विस्तृत करेगी इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण उनकी ये दस ग़ज़लें  हैं।
मशहूर शायर डॉ कृष्ण कुमार नाज़ ने कहा कि उनकी ग़ज़लें पढ़कर ऐसा महसूस होता है कि वह परिश्रम से कतराने वाली नहीं, बल्कि चुनौतियों का सामना करने की हिम्मत रखती हैं और उसमें सक्षम भी दिखाई देती हैं। ग़ज़ल जैसी कठिन काव्यविधा को साधना बहुत मुश्किल है, लेकिन वह इस मुश्किल को आसान बनाने में पूरी लगन के साथ जुटी हैं। मैं उनकी इस लगन की सराहना करता हूं।
वरिष्ठ कवि आनन्द गौरव ने कहा कि मुरादाबाद के साहित्यिक पटल पर  पारदर्शी ग़ज़ल की हस्ताक्षर का साहित्य जगत में पूर्ण परिपक्वता पर स्वागत व सम्मान निश्चित ही होगा। मीनाक्षी जी को हार्दिक बधाई, शुभकामनाएं। 
वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि पटल पर उनकी 10 ग़ज़लें प्रस्तुत की गई हैं । सभी ग़ज़लों में वह बड़ी सहजता और सादगी से अपनी बात कहती हैं। वह साहित्यिक आकाश में एक नया सूरज उगाने के हौसले के साथ अपनी भावाभिव्यक्ति का उजाला फैलाना चाहती हैं । उनके भीतर अश्कों के खारे पानी से गम के दरिया को हराने का भरपूर जज्बा है ।वह किस्मत के लिखे फैसलों पर भरोसा नहीं करती बल्कि अपने सीने में एक तूफ़ां पालकर आसमां पर अपनी कामयाबी का नाम लिखना चाहती हैं। 
वरिष्ठ कवि शिशुपाल मधुकर ने कहा कि मीनाक्षी ठाकुर जी की ग़ज़लें पहली बार पढ़ने को मिली। अभी तक काफी गोष्ठियों में उनके गीत ही सुनने को मिले थे। इन ग़ज़लों को पढ़कर लगा कि ग़ज़ल लेखन में भी वे उतनी है सिद्ध हस्त हैं जितनी कि गीत लेखन में। प्रस्तुत ग़ज़लों में कथ्य को ग़ज़ल के मिजाज़ के अनुरूप ही पिरोया गया है ताकि ग़ज़ल की गजलियत बरकरार रहे।प्रेम की गहरी अनुभूतियों के साथ साथ जीवन की कटु  सच्चाइयों को भी मीनाक्षी जी ने बहुत ही खूबसूरती के साथ अपनी ग़ज़लों में स्थान दिया है।.                               
नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा कि मीनाक्षी जी की रचनाएं पहली बार पढ़ रहा हूँ जो ग़ज़लों के रूप में प्रस्तुत की गई हैं, हालांकि काव्य-गोष्ठियों में कई बार उन्हें सुना है। आज मुरादाबाद लिटरेरी क्लब के पटल पर प्रस्तुत उनकी रचनाएं उनके उजले साहित्यिक भविष्य की आहट देती हैं और मुरादाबाद को भविष्य की एक सशक्त छांदस कवयित्री मिलने की संभावना को बलवती बनाती हैं।

कवि श्रीकृष्ण शुक्ल ने कहा कि उनकी सभी गज़लें मैंने पढ़ीं, और यह कहने में कोई अतिश्योक्ति न होगी कि उनका गज़ल कहने का अंदाज बिलकुल सरल सीधा सादा और साफगोई वाला है। भाषा अत्यंत सरल और कहन स्पष्ट है। ज्यादातर गज़लें सामाजिकता और व्यावहारिकता पर केंद्रित हैं।  बीच बीच में अत्यंत प्रेरक संदेश भी उनमें निहित हैं।

युवा शायर फ़रहत अली ख़ान ने कहा कि मुरादाबाद में नयी पीढ़ी की चुनिंदा महिला साहित्यकारों में से एक मीनाक्षी जी की ग़ज़लें उम्मीदें जगाती हैं। इन की शायरी में फ़िक्र की गहरायी के निशानात मौजूद हैं। फ़न आते-आते आता है, सो वक़्त और मेहनत के साथ वो बुलंदी ही पाएगा।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि बहन मीनाक्षी ठाकुर जी का  रचनाकर्म इस बात को स्पष्ट दर्शा रहा है कि एक और ऐसी बहुमुखी प्रतिभा की धनी कवयित्री/शायरा का साहित्यिक पटल पर पदार्पण हो चुका है जो भविष्य में अनेक ऊँचाईयों का स्पर्श करेगी। मैं व अन्य अनेक साथी रचनाकार विभिन्न कार्यक्रमों में उनकी प्रतिभा के दर्शन कर चुके हैं। सीधी व सरल भाषा-शैली में  प्रभावपूर्ण ढंग से अपनी बात कह देने वाली यह बहुमुखी प्रतिभा निश्चित ही समय के साथ और भी निखरेगी।
युवा साहित्यकार मनोज वर्मा 'मनु' ने कहा कि साहित्य की अन्य तमाम विधाओं में बेहतर शुरूआत करते हुए गद्य और पद्य में उत्तरोत्तर हाथ आजमाते हुए क्रमशः मुक्तक ....फिर शेरो -शाइरी की तरफ मुत्तासिर होना यह बताता है कि इनके ज़ेहन में शुरू से ही  ग़ज़लियत के अंकुर   विद्यमान रहे हैं... बस उनको आकार देने के लिए जो पर्याप्त वातावरण, प्रोत्साहन और प्लेटफॉर्म की आवश्यकता थी वह  "साहित्यिक मुरादाबाद" वाट्स एप समूह के रूप में समय रहते इन्हें मिला  जिसके  सबब  आज उनकी लगन परिश्रम और हौसले के परिणामस्वरूप इस सम्मानित समूह पर समीक्षा हेतु साहित्य की अन्य विधाओं के इतर 10 गजलें प्रस्तुत की गई हैं।
युवा कवि मयंक शर्मा ने कहा कि आज पटल पर उनकी दस ग़ज़लें प्रस्तुत हुई हैं किंतु मैंने उन्हें मुक्तक, छन्द, कविताएं और कहानी कहते हुए भी सुना है। रचनाओं में भाव और उपयुक्त शब्दों का प्रयोग उनकी ख़ासियत है, जैसा कि आज की दस ग़ज़लों में हमें देखने को भी मिला है। ग़ज़लों की तरन्नुम और उनका प्रस्तुतिकरण श्रोताओं को आकर्षित करने वाला होता है। उनकी सभी दस ग़ज़लें अलग-अलग विषयों और भावों को लिये हुए हैं।

 हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि मीनाक्षी ठाकुर जी ने अपनी आरंभिक रचनाओं से ही जता दिया है कि उन्हें साहित्य के संस्कार उस पावन भूमि की हवाओं से,परिवेश से स्वत: ही प्राप्त हैं और साथ ही उस प्राप्त अंकुरण को गौरवशाली स्तर तक ले जाने के लिए अपनी लगन,सादगी,साफगोही,कहने की निर्भीकता,मेहनत और वरिष्ठ रचनाकारों की सलाह पर विनम्रता से मनन करने जैसी अपनी खूबियों के चलते जो न केवल सर्वथा सक्षम हैं बल्कि इसके लिए प्रयासरत भी हैं।आज के हालात को समेटती हुई,निराशाओं में आशाओं की राह तलाशती,व्यवहारिक समाधान सुझाती इस सामयिक ग़ज़ल को रखकर दस ग़ज़लों के इस शानदार बुके में अन्तिम ग़ज़ल से सुन्दर रैपिंग करते हुए भी मीनाक्षी दी ने अपनी विशिष्टता प्रस्तुत कर दी है।
युवा कवि दुष्यंत 'बाबा' कहा कि आप अंग्रेजी विषय के साथ स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरांत भी हिंदी की एक प्रखर लेखिका है। हिंदी और उर्दू के प्रति इतना स्नेह/लगाव इनके रचनाकर्म में सुस्पष्ट प्रतीत होता है। इनकी रचनात्मकता का प्रदर्शन इनकी गज़लों और कविताओं में देख ही चुके है ।

ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि सबसे अहम बात यह है कि मीनाक्षी का मिज़ाज ग़ज़ल का है। यानी यह महसूस नहीं होता कि उन्होंने ज़बरदस्ती ज़ुबान का स्वाद बदलने के लिए ग़ज़ल कहने की कोशिश की हो। क्योंकि उनका मिज़ाज ग़ज़ल का है इसलिए उनके यहां ग़ज़ल वाकई ग़ज़ल के रूप में नजर आ रही है। यह शुरुआती ग़ज़ल है लेकिन इस ग़ज़ल में बहुत रोशन इमकानात हैं। मीनाक्षी ने ग़ज़ल में किसी तरह अपने आप को मनवाने की कोशिश नहीं की है। यह उनकी सादगी है जो उनके फ़न में और उनकी ग़ज़ल में भी नज़र आती है। ज़ुबान बहुत सादा है। हिंदी और उर्दू के सांझे अल्फ़ाज़ उनकी ग़ज़ल में बहुत आसानी से आ रहे हैं जो कि एक बहुत पॉज़िटिव बात है।

✍️ ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
"मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" मुरादाबाद
मो० 8755681225

सोमवार, 5 अक्तूबर 2020

हिंदी साहित्य संगम की ओर से रविवार 4 अक्टूबर 2020 को ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। आयोजन में शामिल साहित्यकारों श्री कृष्ण शुक्ल, अशोक विश्नोई, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, शिशुपाल मधुकर, अशोक विद्रोही, डॉ मनोज रस्तोगी, योगेंद्र वर्मा व्योम, राजीव प्रखर, डॉ प्रीति हुंकार, डॉ रीता सिंह, अरविंद कुमार शर्मा आनन्द, राशिद मुरादाबादी, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, प्रशांत मिश्र, जितेंद्र कुमार जौली और विकास मुरादाबादी द्वारा प्रस्तुत की गईं रचनाएं------

 


हम जरा सी तरक्की जो करने लगे।

आपकी आँख में हम खटकने लगे।।

जिस तरह रोज कपड़े बदलते हैं सब
आप किरदार यूँ ही बदलने लगे।

राम का नाम लेने से परहेज था।
आप हनुमान चालीसा पढ़ने लगे।।

बोतलों में भरा था जो विष आपने।
आप हम पर ही सारा उगलने लगे।।

हमने तो आपको रहनुमा था चुना।
अब हमारा ही घर तुम जलाने लगे।।

✍️श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद ।
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मैंने ,
बहुत प्रयास किया
भावनाओं की सुईं से
शब्दों की तुरपाई
कर सकूं
हाँ , मैने
शब्द-शब्द को
एक साथ रखने का
प्रयास भी किया
ताकि वे शब्द
कविता बन जायें
पर ,
मेरी अभिव्यक्ति
की तुरपाई,
हर बार उधड़ जाती है  ।
मैं भी कवि बन सकूँ,
यह अभिलाषा
दिल ही दिल में
रह जाती है ।।

✍️अशोक विश्नोई, मुरादाबाद
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कलम बिक  चुकी है
    ज़हन   बिक  चुके हैं
    शराफत   भरे    सब
    सहन   बिक  चुके हैं
    जिधर   देखिए   बस
    धुआं   ही   धुआं   है
    घुटन  में  घिरा आज
    सारा      जहां       है
    ज़ुबां  बिक  चुकी  है
    वचन  बिक  चुके  हैं।
    कलम बिक---------

    सभी   आज   अपने
    पराय     हुए        हैं
    नगर    नफरतों    के
    बसाए     हुए        हैं
    फूलों   में    भी   गंध
    बारूद      की       है
    हर     ओर    दहशत 
    की     मौजूदगी     है
    महक  बिक  चुकी  है
    चमन  बिक   चुके  हैं।
    कलम बिक---------

     हुआ   है  सभी   का
     यहाँ     खून    पानी
     बड़ी   मुश्किलों   में
     फंसी       जिंदगानी
     नहीं   आज   आदर
     शहीदे    वतन    का
     गया     सूख    पानी
     सभी  के  नयन   का
     हया  बिक   चुकी  है
     नयन  बिक    चुके हैं।
     कलम बिक---------

      ईश्वर  से  कोई   नहीं
      डर         रहा       है
      नहीं  प्यार  इंसान से
      कर         रहा       है
      सुरक्षित     नहीं     है
      उसूलों    की    माला
      रातों      में      घिरने
      लगा     है     उजाला
      ऋचा  बिक  चुकी  है
      हवन  बिक   चुके  हैं।
      कलम बिक---------

      मगरमच्छ   के   जैसे
      आँसू      बचे        हैं
      चेहरे     सभी       के
      रुआंसू     बचे       हैं
      दुआएं सभी  बेअसर
      हो        चुकी        हैं
      बहुत    दूर   भगवान 
      से    हो     चुकी    हैं
      दया  बिक  चुकी   है
      रुदन  बिक  चुके   हैं
      कलम बिक---------
           
      ✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
       मुरादाबाद/ उ, प्र,
       मो0-   9719275453
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झूठ गर सच के सांचे में ढल जाएगा
रोशनी को अंधेरा निगल जाएगा

इतनी बीमार है आज इंसानियत
लग रहा है कि दम ही निकल जाएगा

छोड़ दो उसकी उंगली बड़ा हो गया
ठोकरे खाते खाते संभल जाएगा

आ गए भेष धरकर मुहाफिज का जो
राज उनका भी जल्दी ही खुल जाएगा

अपने हक के लिए सब जो मिलकर लड़ें
देखिए सारा आलम बदल जाएगा

✍️ शिशुपाल "मधुकर"
मुरादाबाद
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भारत के लाल बापू ,दिल में सदा रहेंगे;

है जन्मदिन तुम्हारा ,शत शत नमन करेंगे।

  आपस में मेल करना ,तुमने हमें सिखाया ,
  सपनों का पुर अमन यह ,हिंदोस्तां बनाया।
  हर विपदा हर खुशी में ,सब मिलके हम रहेंगे ।
  है जन्मदिन तुम्हारा ,शत-शत नमन करेंगे।।
जब देश में थी तंगी, तन पर वसन नहीं थे ,
कपड़ों का त्याग करके ,इक धोती में तुम्ही थे ।
वह त्याग तेरा बापू ,कैसे भुला सकेंगे ।
है जन्मदिन तुम्हारा ,शत शत नमन करेंगे ।।
जब भूख से तड़पता ,संकट में देश सारा ,
तब तुम ने व्रत रखा कर, विपदा से था उबारा।
अब शुक्रिया अदा हम ,उस लाल का करेंगे ।
है जन्म दिन तुम्हारा, शत शत नमन करेंगे ।।
ईमान सदगी की ,जलती मश़ाल थे तुम ,
देखी नहीं जहां में ,ऐसी मिसाल थे तुम ।
तुमने है जो दिखाई ,उस राह पर चलेंगे ,
है जन्मदिन तुम्हारा ,शत शत नमन करेंगे।।
दोनों ने अपना जीवन, बस देश हित में वारा,
एक गोलियों ने भूना  ,एक ताशकंद मारा।
दो फूल थे चमन के ,रूहे चमन रहेंगे ,
है जन्मदिन तुम्हारा ,शत-शत नमन करें।।
              
✍️अशोक विद्रोही
मोबाइल फोन नम्बर 82 188 25 541
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इज्जत  हो  रही  तार-तार  देश में
हो  रहे  हैं रोज  बलात्कार  देश में            

खुद ही कीजिएगा हिफाजत अपनी
गहरी  नींद  में  है  पहरेदार  देश में                

बढ़ रही है हैवानियत किस तरह
इंसानियत  हो रही शर्मसार देश में

'एक्शन' के साबुन से होगी क्या साफ                         वर्दी  जो  हो  चुकी है दागदार देश में

चीखने का कोई होगा नहीं असर
हो गई है बहरी अब सरकार देश में

टीआरपी चैनलों की बढ़ रही 'मनोज'
जमकर  बिक  रहे  अखबार देश में
✍️डॉ मनोज रस्तोगी
Sahityikmoradabad.blogspot.com
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कैसे सँभलें भूख के, बिगड़े सुर-लय-ताल
आज सदी के सामने, सबसे बड़ा सवाल

सपनों के बाज़ार में, ‘हरिया’ खड़ा उदास
भूखा-नंगा तन लिए, कैसे करे विकास

घर में पसरी भुखमरी, कैसे हो निर्वाह
'रमुआ' भी इमदाद की, रहा देखता राह

मजदूरों के नाम पर, दिखावटी परमार्थ
राजनीति भी गढ़ रही, कैसे-कैसे स्वार्थ

इधर भूख से चल रहा, बाहर-भीतर द्वंद
राजनीति भी रच रही, उधर नये छल-छंद

तनिक नहीं संवेदना, का जिनमें उल्लेख
राजनीति लिखती रही, स्वार्थ पगे आलेख

जीवन का अस्तित्व भी, हो जब संकटग्रस्त
उचित कहाँ तक तब भला, राजनीति हो मस्त

धीरज रख, कर कोशिशें, गुज़रेगा यह दौर
फिर होगी इंसानियत, दुनिया की सिरमौर

क्या जनहित क्या राष्ट्रहित, ख़त्म हुए एहसास
नैतिकता को दे चुकी, राजनीति वनवास

लेकर फिर अभिव्यक्ति की, आज़ादी की ओट
राजनीति करने लगी, राष्ट्र हितों पर चोट

-योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’, मुरादाबाद
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माँ हिन्दी के नेह की, एक बड़ी पहचान।
इसके आँचल में मिला, हर भाषा को मान।।

मन की आँखें खोल कर, देख सके तो देख।
कोई है जो लिख रहा, कर्मों के अभिलेख।।

सुन गोरी के पाँव से, पायल की झंकार।
ढल जाने को काव्य में, मचल उठा श्रृंगार।।

पुतले जैसा जल उठे, जब अन्तस का पाप।
तभी दशहरा मित्रवर, मना सकेंगे आप।।

✍️राजीव 'प्रखर'
(मुरादाबाद)
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आज कलम की नोक को असि धार करलूँ।
कलुषित कुकर्मी काट सिर को हार करलूँ।
साध कर चुप्पी कब तक पाप की भागी बनूँ मैं,
काली का अवतार धर के भू का भार हरलूँ।

अहिंसा अस्त्र को धारा सकल अरि को झुकाया था।
सतत सच्चाई पर चलना सदा जिसने सिखाया था।
नमन उनको हमारा है कि जिनको कहते सब बापू,
हमें आदर्श जीवन का तुम्ही ने पथ दिखाया था ।

धन्य हुई भारत की भूमि, दमक उठा दिनमान ।
धरती के इस लाल ने ,खूब बढ़ाया मान ।
सादा जीवन उच्च विचार  थे जिनके आदर्श ,
उनका यह उदघोष था जय जवान जय किसान ।।

✍️डॉ प्रीति हुँकार मुरादाबाद
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वह सुबह कब यहाँ आयेगी ?
जब सूनी सड़कों पर बेटी
हो निडर घूम - फिर पायेगी ।
वह सुबह कब यहाँ आयेगी ?

मुखौटा पुरुषों का पहनकर
दानव वहशी बन डोल रहे
लगती नारी भोग की वस्तु
वे समझ न उसका मोल रहे ।
ऐसे विष विचारों से मुक्त
क्या धरा कभी हो पायेगी ?
वह सुबह कब यहाँ आयेगी ?

भय नहीं जिनको राज विधि का
मान न जिनको माँ ममता का
रखकर मनुजता है किनारे
कर रहे आचरण पशुता का ।
नर तुम्हारे कलुष रूप से
कभी नारी उबर पायेगी ?
वह सुबह कब यहाँ आयेगी ?

नन्हीं कली तोड़ दी जातीं
खिली पँखुरी मोड़ दी जाती
महकातीं जो सुमन डालियाँ
बीच राह झिंझोड़ दी जातीं ।
चमन के माली घड़ी बताओ
जब कुसुम शाख लहरायेगी !
वह सुबह कब यहाँ आयेगी

डॉ रीता सिंह, मुरादाबाद
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आपके प्यार से मै निखर जाऊँगा।
मै जरा सा सही पर सँवर जाऊँगा।।

तू जो कर दे करम तो मिरे हमनशीं।
मै तिरे दिल में ही बस उतर जाऊँगा।।

राह में जिंदगी की मिलो फिर से तुम।
अब ज़माने की हद से गुजर जाऊँगा।

जिंदगी में तिरी अब न होगी कमी।
बनके खुशबू मै तुझमें बिखर जाऊँगा।।

याद करके तो देखो मुझे दिल से तुम।
मै ख़ुशी का तिरी बन पहर जाऊँगा।।

एक ख़ुशी की लहर दिल में फिर से उठी।
अब लगे मै तिरी हो खबर जाऊँगा।।

अब मैं तनहा हुआ जो फिर से सनम
कुछ बता दो जरा मै किधर जाऊँगा।।

अब के आये न मिलने मिरे बोल पर।
है खुदा की कसम फिर बिफर जाऊँगा।।

✍️अरविंद कुमार शर्मा "आनंद"
मुरादाबाद
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कूंचा ए दिल में बड़ा अंधेरा है
मेरी बेबसी ने फिर मुझे घेरा है,

ग़म की काली रात ढलती नहीं,
जाने कहाँ छुप गया सवेरा है,

क्या करोगे सुनके मेरी दास्ताँ,
दर्द में डूबा किस्सा ये मेरा है,

रहता था तू कभी दिल में मेरे,
अब कहाँ दिल में तेरा बसेरा है,

ऐं ज़िन्दगी तुझे समझा है कौन,
किसने तेरा राज़ यहाँ उकेरा है,

सुलझती नहीं किसी जतन से,
मुश्किलों ने मुझे ऐसा घेरा है,

चले जायेंगे हम भी दुनिया से,
सदा हुआ किसका यहाँ डेरा है,

राशिद मुरादाबादी
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मैं फूल हूँ
सभी को जीवन का सार सिखाता हूँ
हे मनुष्य  तुझे मानवीय व्यवहार सिखाता हूँ
कांटो में खिलकर भी कभी कटीला नही हूँ
बिन भेदभाव के सभी पर खुशबू लुटाता हूँ
मैं फूल हूँ
सभी को जीवन का सार सिखाता हूँ
गर्मी,सर्दी, बरसात सब सहता हूँ
भँवरों पर भी अपना सब लुटाता हूँ
मैं फूल हूँ
सभी को जीवन का सार सिखाता हूँ
अपने रस से मधु बनता हूँ
देवो के भी चरणों मे चढ़ाया जाता हूँ
कभी नहीं खुद पे इठतलता हूँ
सभी को दुनिया पर लूटना सिखाता हूँ
मैं फूल हूँ
सभी को जीवन का सार सिखाता हूँ

✍️आवरण अग्रवाल "श्रेष्ठ"
चंद्रनगर, मुरादाबाद
मोबाइल नंबर:- 7599211176
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स्कूल में सभी के रंग एक थे,
लंच में किसी के पराठे, किसी में मैगी, और किसी में रखे सेब थे
पर न जाने कौन सिर पर टोपी
और माथे पर तिलक लगा जाता है
दोस्तों को हिन्दू
और मुझे मुसलमान बता जाता है

✍️प्रशान्त मिश्र
राम गंगा विहार
मुरादाबाद
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सब धर्मों को नमन करो!
क्या होता है हिन्दू-मुस्लिम,
सब ही भाई-भाई हैं।
ये जात-पात की दीवारें,
हमने सभी बनाई हैं।।
मानो ये कहना मेरा,
अब हर घर में अमन करो।
सब धर्मों को नमन करो।।

मजहब नहीं सिखाता हमको,
आपस में लड़ना-मरना।
दहशतगर्दी फैलाने को,
रोज-रोज दंगे करना।।
अब छोड़ो सारे झगड़े,
सबके दिल में चमन करो।
सब धर्मों को नमन करो।।
.
आजादी पायी थी हमने,
देश सभी को प्यारा था।
जात-धर्म के नाम पर ही,
किया गया बंटवारा था।।
भाईचारा लाने को,
मिलकर यारों हवन करो।
सब धर्मों को नमन करो।।

✍️जितेंद्र कुमार जौली, मुरादाबाद
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ठंडी पुरवाई मगर ऊमस रहा बदन
गर्म पछुआ चल रही है जल रहा
चमन !
उत्तरी व दक्षिणी हवा को क्या
कहें ;
उनको ये खबर नहीँ कहां है निज
वतन !

हालत नहीँ समाज की है अच्छी
आज कल !
बढ़  रहा  है  जाति  द्वेष भाव आज कल !
समाज में समानता की बात करते
सब
बिछाते भेद भाव  की  बिसात
आज कल !

देवी मानी जाती हैं भारत में बेटियां !
मगर सुरक्षित आज कहां भारत में
बेटियांं !
कितनी मनीषा और कितनी निर्भया यहां ;
दरिन्दों की बलि चढ़ रहीं हैं आज
बेटियां !

✍️ विकास मुरादाबादी

रविवार, 4 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल (वर्तमान में नोएडा निवासी) के साहित्यकार अटल मुरादाबादी की रचना ----सलवटें जब पड़ीं भाल पर, आइना देख डरने लगे


वक्त गुजरा संवरने लगे।
बात से बात करने लगे।

काल के भाल पर सलवटें,
देखकर वो सिहरने लगे।

याद उनको वही बात है,
याद करके विचरने लगे।

सलवटें जब पड़ीं भाल पर,
आइना देख डरने लगे।

गमजदा हैं बहुत वो मगर,
चैन की सांस भरने लगे।

कर न पाया सहन ये 'अटल',
जख्म उसके उभरने लगे।

✍️अटल मुरादाबादी
बी -142 सेक्टर-52
नोएडा उ ०प्र०
मोबाइल 9650291108,
8368370723
Email: atalmoradabadi@gmail.com
& atalmbdi@gmail.com







शनिवार, 3 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार शिशुपाल सिंह मधुकर का गीत ---रोजगार का नहीं भरोसा महंगा बिजली पानी , दिल्ली साहूकारों जैसी करती है मनमानी, अब सरकार नहीं सुनती है किसी के दिल की हाय


सौ में दस की खातिर ही अब होते सभी उपाय

बोलो बाकी लोगों कब तक सहोगे यह अन्याय


रोजगार का नहीं भरोसा महंगा बिजली पानी

दिल्ली साहूकारों जैसी करती है मनमानी

 अब सरकार नहीं सुनती है किसी के दिल की हाय

 बोलो ---------

 बढ़ती जाती रोज गरीबी खुश होते धनवान

 मेहनत करने वालों का अब होता है अपमान

 बेईमानों ने सारे में लिया है जाल बिछाय

 बोलो -----------

 होता है अपराध साथियों किसी जुल्म को सहना

 शोषण अत्याचार के आगे खतरनाक चुप रहना

 अब तक का इतिहास हमें तो रहा है यही बताय

✍️  शिशुपाल सिंह "मधुकर", मुरादाबाद


मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक की ग़ज़ल ----वे ही आ पहुँचे हैं जंगल में आरी लेकर, जो अक्सर कहते थे उनको छाँव बचानी है।


पंछी  नभ  में  उड़ता  था  यह  बात  पुरानी है,

अब  तो  बस  पिंजरा  है ,उसमें दाना-पानी है।


वे   ही  आ   पहुँचे  हैं  जंगल  में  आरी  लेकर,

जो  अक्सर  कहते  थे  उनको छाँव बचानी है।


आज  सफलता चूम रही है जो इन  क़दमों को,

इसके   पीछे   संघर्षों    की   एक  कहानी  है।


मुस्काते  हैं   असली  भाव  छुपाकर  चहरे   के,

कुछ   लोगों  का   हँसना-मुस्काना  बेमानी  है।


बाँध लिया जब अपना बिस्तर बरखा की रुत ने,

जान   गए   सब   आने   वाली   सर्दी  रानी  है।


क्यों  होता  है  जग  में  लोगों  का आना-जाना,

आज  तलक  भी बात भला ये किसने जानी है।


✍️ओंकार सिंह विवेक ,रामपुर

मोबाइल 9897214710

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार डॉ अजय जनमेजय की ग़ज़ल ----प्यार करने को मिली है माँ अजय ,कैसी ये तेरी अलामत है मुझे


 ✍️ डॉ अजय जनमेजय

 मकान नम्बर 1,गली नम्बर 1 एसडीपुरम कॉलोनी
बिजनौर -246701
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9412215952