चुन्ना मुन्ना थे दो भाई
दोनों ने डुबकी लगाई.
छप छप मस्ती करते
हँसते गाते आगे बढ़ते.
दूर रह गया किनारा
मुन्नू जोर से चिल्लाया.
चुन्नू भी था घबराया
उपाय कोई न सुझाया.
रोते बिलखते दोनों डूबे
घरवालों के आंसू छूटे.
मम्मी रोई पापा रोए
दोनों प्यारे बच्चे खोए
कभी न नदिया मे जाओ
घर में खेलो धूम मचाओ.
✍️राशि सिंह
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश
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कहाँ जा रहे पप्पू राजा,
लेकर के पिचकारी,
मम्मी ने पूछा तेजी से,
चलदी कहाँ सवारी।
तेज हुई गर्मी के कारण,
झुलस गई फुलबारी,
देख भयंकर गर्मी सबने,
अपनी हिम्मत हारी।
बदन तपेगा पैर जलेंगे,
थकन बढ़ेगी न्यारी,
सूरज की गर्मी में होती,
छाया ही सुखकारी।
घर से बाहर जाओगे तो,
पकड़ेगी बीमारी,
सुई लगेगी तब रोओगे,
होगी पीड़ा भारी।
पप्पू बोला मैं सूरज पर,
छोडूंगा पिचकारी,
सारीआगबुझाके उसकी,
रख दूँगा इस बारी।
आग बुझाने पानी डालो,
कहती मेंम हमारी,
डरती आग स्वयं पानीसे,
कहती नानी प्यारी।
इतना काहे डरती मम्मी,
सुन लो बात हमारी,
सूरज भी सॉरी बोलेगा,
देख - देख पिचकारी।
✍️वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
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मम्मी-पापा झगड़ा छोड़ो,
अपना प्यारा सा संसार।सुबह निकल जाते हो दोनों,
घर की खातिर दिन भर खपने।
साथ आपके जुड़े हुए हैं,
हम बच्चों के भी कुछ सपने।
आपस में यों चुप्पी रखना,
सुन लो बिल्कुल है बेकार।
मम्मी-पापा झगड़ा छोड़ो,
अपना प्यारा सा संसार।
दुनिया कहती हम हैं छोटे,
भला बड़ों को क्या समझायें।
उनके आपस के झगड़े में,
नहीं कभी भी टांग अड़ायें।
सुनो हमारी हम भी तो हैं,
इस नैया की ही पतवार।
मम्मी-पापा झगड़ा छोड़ो,
अपना प्यारा सा संसार। करो आज यह वादा हमसे,
आगे से अब नहीं लड़ोगे।
और हमारे नन्हें मन की,
भाषा को भी सदा पढ़ोगे।
घर मुस्काये, यही हमारे
जन्म-दिवस का है उपहार।
मम्मी-पापा झगड़ा छोड़ो,
अपना प्यारा सा संसार।
✍️ राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद-------------------------------
(1)
बोर हो गए घर पर रहकर ,विद्यालय अब जाएँ
कक्षा में टीचर जी आकर फिर से हमें पढ़ाएँ
(2)
मिले हुए हो गया जमाना ,कब से दोस्त न दीखे
वही पुराने हँसने - गाने के दिन वापस आएँ
(3)
हे भगवान सुनो बच्चों की ,अब हो खत्म कोरोना
मिलें-जुलें आपस में खुशियाँ बाँटें और मनाएँ
(4)
घर पर बैठे - बैठे मोबाइल से हुई पढ़ाई
सोच रहे इस आफत .से छुटकारा कैसे पाएँ
(5)
गली - मोहल्ले के बच्चों के साथ रुकी गपशप है
काश पुराने दिन फिर लौटें ,ऊधम खूब मचाएँ
✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451
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नित गूगल ज्ञान बाँट रहा है
रोज़ नयी ऐप बना रहा है
उलझा दिखता आधुनिक बच्चा
फिर गुरू को ही ताक रहा है
हमें सही आप राह दिखा दो
सभी उलझी गुत्थी सुलझा दो
भूल हुई राह भटक गये थे
सच्चा-ज्ञान दर्शन करवा दो
✍️प्रीति चौधरी
गजरौला,अमरोहा
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जन्म दिवस छोटू का आया।
खुद उसने प्रोग्राम बनाया।
यार दोस्त सारे आयेंगे।
सब बाहर खाना खायेंगे।
केक डबल डेकर मँगवाना।
यारों पर है रौब जमाना।
पापा ने उसको समझाया।
बीमारी का डर दिखलाया ।
बाहर जाने में खतरा है।
बाहर कोरोना पसरा है।
अबके बाहर नहीं चलेंगे।
हम घर में ही खुश हो लेंगे।
मम्मी ने फिर केक बनाया।
एमेजन से गिफ्ट मँगाया।
पिज्जा बर्गर भी खिलवाया।
जन्मदिवस इस तरह मनाया।
✍️श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG - 69.
रामगंगा विहार,
मुरादाबाद ।
मोबाइल 9456641400
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ताक धिना धिन
धिन धिन धिन
इम्तिहान के
आए दिन
ता थई,ता थई
ता थई ता
समय खेल मेेें
दिया बिता
सा रे गा मा
पा धा नी
याद आ रही
अब नानी
सा नी धा पा
मा गा रे
ना जाने क्या
होगा रे
हल्ला गुल्ला
लाई ला
ना पढ़ने की
मिली सजा
✍️ डाॅ पुनीत कुमार
T --2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद
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मैं ,
दिन में कई बार
पापा को निहारती,
पापा मुझे देखते-
जैसे पूछना चाहते हों
गुड़िया क्या बात है ?
और मैं,
चाहकर भी कुछ नहीं कह पाती
क्योंकि
मुझे याद है वो दिन,
जब, खिलौने वाला मेरे
दरवाजे पर आया था,
तो, मैनें कहा था
पापा मुझे एक खिलौना दिला दो
इस पर,
पापा ने जो डांट पिलाई थी
वह मुझे आज तक याद है
कहा था,
तू खिलौनों से खेलेगी,
शर्म नहीं आती,
जा,
चौका - बर्तन में अपनी मां
का हाथ बटा,
तभी उधर से भैया आ गया
पीपी गुब्बारे की जिद्द
पापा ने पांच का नोट थमा दिया
भैया मेरी ओर देख कर
ताली बजता हुआ चला गया,
तब मुझे पहली बार,
लड़की होने का एहसास हुआ था ।।
✍️अशोक विश्नोई
मुरादाबाद
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नन्हीं चिड़िया आओ ना,
मीठा सा गीत सुनाओ ना |
चहुँ दिशि पसरी है बेचैनी ,
प्यारी इससे मुक्त कराओ ना |
हम तो बन्द हुए घराें में,
पर तुमकाे मिली है आजादी
फिर कहाँ दुबक कर बैठी हाे
दौड़ कर आओ शहजादी |
मन शायद दुखी हुआ मेरा,
आकर इसे बहलाओ ना |
बेरहम वक्त की ऐसी घड़ी में ,
आकर मुझे समझाओ ना |
आओ हम तुम मिलकर दाेनाें,
एक प्यारा सा गीत बनाते हैं |
चाराे तरफ हम खुशी लुटायें,
फिर से सबकाे हँसाते हैं |
✍🏻✍🏻सीमा रानी
अमरोहा
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सिर पे टोपी पहन पजामा
चलें घूमने बंदर मामा
पहुँच आगरा देखा ताज
देख ताज को हुआ नाज
फिर आई मथुरा की बारी
खा-खा पेड़े पेट हुआ भारी
बड़ी शान से पहुँचे दिल्ली
वहां मिली सलोनी बिल्ली
बिल्ली से हुई आँखें चार
कर बैठे वह उससे प्यार
घूम घूम कर जेब हुई खाली
पास बची ना एक रूपल्ली
बिना टिकट टीटी ने पकड़ा
ले जाकर जेल में पटका
उतरा भूत प्यार-व्यार का
अब बात समझ में आई
सबसे अच्छा सबसे प्यारा
अपना घर होता है भाई
✍️स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
मुरादाबाद
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मेरा नन्हा सा जी पूछे
मुझसे इतनी बातें
कौन बनाए चमकीले दिन
कौन सजाए रातें
किसने फूलों को महकाया
किसने चिड़ियों को चहकाया
इंद्रधनुष् को कौन है लाया
किसने यह संसार बनाया
सूरज के गोले में किसने
रंग भर दिए सारे
किसने धरती पर लहराए
पौधे इतने सारे
चन्दा मामा कभी-कभी तो
बिल्कुल ही छुप जाता है
और बुलाने पर इतराकर
टुकड़ा-टुकड़ा आता है
हवा कभी तो साँस रोक कर
जाने क्यों रुक जाती है
कभी दौड़ती है ऐसे की
मुझे उड़ा ले जाती है
तितली चिड़िया और परिंदों
को ही क्यों पंख दिए
खुले आसमान में उड़ने को
आजादी के संग दिए
जब भी पूछूँ एक नाम ही
एक ही पता पाता हूँ
फिर भी उस "भगवान" को ही
देख नहीं मैं पाता हूँ
✍️सीमा वर्मा
मुरादाबाद
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सभी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार । कृपया टिप्पणी के अंत में अपना नाम पता अवश्य लिखा कीजिये ।
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