मंगलवार, 9 नवंबर 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की कविता ----यूज एंड थ्रो


 दहलीज के एक कोने पे...

मायूस खड़े दीये ने...

दूसरे कोने में लुढ़के पड़े...

दूसरे दीये से पूछा,

"ठीक तो हो,भाई!

ये पीठ चौखट पे....

टेढ़ी क्यों टिकायी?"

दूसरा दीया बड़ी मायूसी से बोला

दर्द-ए-दिल का जैसे दरवाजा खोला,

"क्या बताऊँ,भाई?

कल रात जब मैं....

लुटा चुका था....

अपना सारा खजाना,

जला चुका था....

अपने रक्त की....

आख़िरी बूँद को भी...

दुनिया की चमक के लिए....

कि खुशी से चहकते....

किन्हीं कदमों की....

अल्हड़ ठोकर ने....

मुझे यूँ ठुकराया... 

हाय,मैं दर्द में... 

कराह भी न पाया...

बहुत शुक्रिया,दोस्त!

जो तुमने मेरी सुध ली...

पर अफसोस.... 

इससे अधिक हम दोनों ही.... 

कुछ कर नहीं सकते हैं....

सहेज ले कोई यूँ ही....

बस राह तकते हैं।"

गमगीन था दूसरा दीया भी....

बोला,"ठीक कहते हो दोस्त!

ये दुनिया बड़ी मतलबी है,

इसे कब किसकी पड़ी है?

जब तक उजाले की गरज थी,

त्योहार पे घर झिलमिलाना था।

घर का खास कोना....

हमारा ठिकाना था।

संभाला गया हम को....

कितने प्यार से....

भरे गये हमारे अंतस

स्नेह की धार से....

पहन साफ वस्त्र ....

नये सूत की बाती के।

टिमटिमाते थे हम....

धरती की छाती पे....

सब कुछ कितना आकर्षक था,

चारों ओर झिलमिलाहट थी।

जलते दीयों के वजूद की....

होंठों पर खिलखिलाहट थी।

है नियति ये....

हम सब को समझ आती है।

लेकिन इंसान की....

फितरत रूलाती है।

पल पल इसका....

रंग बदलता है।

इसका स्वार्थीपन....

बहुत अखरता है।

ये बटोरेगा अब ऐसे....

जैसे कि कबाड़ है हम।

"यूज एण्ड थ्रो" के

असली शिकार है हम"

दूसरे दीये ने ढाँढस बँधाया,

बुझे मन से वह बुदबुदाया,

"न हो उदास और हताश,

मत मलाल कर,मेरे भाई

इंसान ने तो रिश्तों में भी,

नीति यही अपनायी।

रिश्ते नाते और दोस्ती

अब यूज किये जाते हैं... 

और निकलते ही मतलब,

फैंक दिये जाते हैं"


हेमा तिवारी भट्ट

मुरादाबाद 244001,

उत्तर प्रदेश, भारत

सोमवार, 8 नवंबर 2021

मुरादाबाद मंडल के चंदौसी जनपद सम्भल (वर्तमान में अलीगढ़ निवासी ) के साहित्यकार लव कुमार प्रणय का गीत--- बेटियों को सदा प्यार करते रहो


 बेटियाँ शान हैं ,बेटियाँ मान हैं 

बेटियाँ साँस हैं ,बेटियाँ प्रान हैं 

बेटियों को सदा प्यार करते रहो।


बेटियाँ  गीत हैं ,बेटियाँ प्रीत हैं 

बेटियाँ जीत हैं ,बेटियाँ मीत हैं 

बेटियों को सदा प्यार करते रहो।


बेटियाँ रूप हैं ,बेटियाँ फूल हैं 

बेटियाँ धूप हैं ,बेटियाँ  कूल हैं 

बेटियों को सदा प्यार करते रहो।


बेटियाँ ठाँव  हैं ,बेटियाँ पाँव हैं  

बेटियाँ  गाँव हैं ,बेटियाँ छाँव हैं 

बेटियों को सदा प्यार करते रहो।


बेटियाँ  भोर  हैं , बेटियाँ  शाम हैं 

बेटियाँ प्यार के,अनगिनत नाम हैं

बेटियों को सदा प्यार   करते रहो।


बेटियाँ  आज हैं , बेटियाँ   नाज़ हैं

बेटियाँ  ज़िन्दगी का मुखर साज़ हैं

बेटियों को  सदा प्यार   करते रहो।


बेटियाँ नींव हैं, बेटियाँ द्वार हैं

बेटियाँ सावनी  मेघ मल्हार हैं

बेटियों को सदा प्यार   करते रहो।


✍️ लव कुमार 'प्रणय'

 के-17, ज्ञान सरोवर कॉलोनी, अलीगढ़ .

चलभाष - 09690042900

ईमेल  - l.k.agrawal10@gmail.Com

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की दो क्षणिकाएं -----


 

1--देखो हम

     कहाँ से कहाँ

     आ गये,

     जो भी लगा हाथ

     उसे खा गये।


2-- देश 

     प्रगति की ओर   

     बढ़ रहा है,

     हर कोई

     कुर्सी के लिए

     लड़ रहा है।


 ✍️ अशोक विश्नोई, मुरादाबाद 244001,उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष सुरेंद्र मोहन मिश्र की ग़ज़ल --सारी ख़ुशियां न्यौंछावर कर आया हूं जिस गांव में, लिखना क्या अब भी ठंडक है, पीपल वाली गांव में,


सारी ख़ुशियां न्यौंछावर कर आया हूं जिस गांव में,

लिखना क्या अब भी ठंडक है, पीपल वाली गांव में,


क्या पड़ोस का कलुआ अब भी, पीकर जुआ खेलता है,

मंगलसूत्र बहू का गिरवीं, रख आता था दांव में।


क्या बच्चों की टोली अब भी, मुझे पूछने आती है,

मैं बंदी था, जिनकी मुस्कानों के सरल घिराव में।


बिन दहेज के कई लड़कियां, क्वांरी थीं उस टोले में,

लिखना, बिछुए झनक रहे हैं, अब किस-किसके पांव में।


कभी तलैया में कागज की नाव चलाया करता था,

अब ख़ुद ही दिल्ली में बैठा हूं कागज की नाव में।

(22 मार्च 1983) (दिल्ली-प्रवास)

✍️ सुरेंद्र मोहन मिश्र 


रविवार, 7 नवंबर 2021

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से सात नवम्बर 2021 को किया गया ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी का आयोजन


 मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से रविवार 7 नवम्बर 2021 को गूगल मीट पर झिलमिल दीप जलें शीर्षक से  काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया। 

       राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत माँ शारदे की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ रचनाकार  वीरेन्द्र सिंह बृजवासी ने कहा  - 

दीप - दीप  से  दीप जलाएं, 

अंधकार  को  दूर  भगाएं। 

पावन  दीपावली  मनाकर, 

सबके दिल में जगह बनाएं।

       मुख्य अतिथि ओंकार सिंह विवेक ने अपने खूबसूरत दोहों से संदेश देते हुए कहा -

 हो जाए  संसार  में,  अँधियारे   की   हार। 

 कर दे  यह दीपावली, उजियारा  हर द्वार।। 

 निर्धन को  देें वस्त्र-धन, खील और  मिष्ठान। 

 उसके मुख पर भी सजे, दीपों-सी  मुस्कान।।

      विशिष्ट अतिथि के रूप में वरिष्ठ रचनाकार डाॅ. मनोज रस्तोगी ने मंगलकामना करते हुए कहा  - बिताकर वर्ष आया, 

दीपावली का  त्योहार। 

बढ़े सुख समृद्धि आपकी

और आपस में बढ़े प्यार। 

दीप जलें  खुशियों  के,

दुखों का हो दूर अंधकार। 

 विशिष्ट अतिथि  मोनिका मासूम ने कहा --

 अंधेरा दूर हो गम का , खुशी की रोशनी बिखरे।

 मिले सौगात सेहत की ये जीवन और भी निखरे। 

 बढ़े सुख -संपदा- समृद्धि के भंडार हर घर में, 

 ऐ मेरी लेखनी तू ऐसी अब शुभकामना लिख रे। 

 संचालन करते हुए युवा रचनाकार राजीव प्रखर ने कहा - 

 मेरे अँगना आज भी, जलकर सारी रात।

 झिलमिल दीपक दे गये, दोहों की सौग़ात।।

 दम्भी तम तू भूल जा, अपनी सारी ऐंठ।

 झिलमिल दीपक फिर गया, तेरे कान उमेंठ।। 

चर्चित कवयित्री डाॅ. रीता सिंह ने  दीपोत्सव का चित्र खींचते हुए गुनगुनाया - 

दीप जलाना मन भाया है।

 पर्व दीवाली का आया है। 

 लड़ी सजेंगी सब अँगना में, 

 राज उजालों का छाया है। 

 कवयित्री इन्दु रानी की अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार रही  - 

 गढ़ माटी के दीप को ,कहता है कुम्हार। 

 इस दीवाली पर्व पर, दिया सजाओ यार।।

 दुआ गरीबों की लगे, बना रहे परिवार। 

 इस दीवाली पर सभी, सुखी रहे संसार।। 

 युवा कवि प्रशांत मिश्र ने कहा --

  आओ! चले उस बाग में ..., जहाँ फूलों की कलियाँ खिली हुई हों, 

 भौरों की आँखें कुम्भला रही हों, मधुर संगीत गा रही हों। 

:::::प्रस्तुति:::::

 राजीव 'प्रखर'

 मुरादाबाद 244001, उत्तर प्रदेश, भारत

मो. 8941912642 (वाट्सएप)

9368011960 (जिओ)

मुरादाबाद के साहित्यकार शिशुपाल सिंह मधुकर की ग़ज़ल ----हमको जो भी हकूक हासिल हैं उनको लड़कर ही हमने छीना है


हमसे कैसा गिला ओ शिकवा है

हमने वो ही कहा जो देखा है


सच को कैसे दबा के रखते हैं

यह भी हमने तुम्हीं से सीखा है


हम थे अनजान बेवफाई से

तुमको जाना तो उसको समझा है


हमको जो भी हकूक हासिल हैं

उनको लड़कर ही हमने छीना है


जिसने खुद को बदल लिया "मधुकर "

उसने ही तो जमाना बदला है


✍️ शिशुपाल 'मधुकर ", मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

गुरुवार, 4 नवंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार की ग़ज़ल ---हो चमक सितारों की या कि बिजलियाँ दमकें , हर किसी पे भारी है सादगी चिराग़ों की !


दिल को मोह लेती है रोशनी चिराग़ों की ,

क्या किसी ने देखी है तीरगी चिराग़ों की !


सबको रास आती है रोशनी चिराग़ों की ,

दोस्तो ! बचा लीजे ज़िंदगी चिरागों की !


 रात के अँधेरे में ज़िंदगी न खो जाये ,

इसलिए ज़रूरी है ज़िंदगी चिराग़ों की !


हो चमक सितारों की या कि बिजलियाँ दमकें ,

हर किसी पे भारी है सादगी चिराग़ों की !


इक दिया जलाओ तुम एक मैं जलाऊँगा ,

"आएगी नज़र सबको रोशनी चिराग़ों की" !


मुश्किलें ज़माने की सब क़बूल हैं मुझको ,

सह न पाऊँगा लेकिन बेरुख़ी चिराग़ों की !


इल्म के चिराग़ों की बात ही निराली है ,

रोशनी से भरती है बात भी चिराग़ों की !


इक झलक फ़क़त जिसकी तीरगी-1मिटाती है ,

 रोशनी-सी लगती है बात भी चिराग़ों की !


हर जगह अँधेरों की आजकल सियासत है , 

सिर्फ़ बात होती है हर घड़ी चिराग़ों की !


प्यार के उजाले ही हर जगह रहें 'ओंकार' , 

आँगनों में हो सबके रोशनी चिरागों की !

तीरगी = अँधेरा

✍️ ओंकार सिंह 'ओंकार'

1-बी-241बुद्धि विहार, मझोला 

मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)  244103, भारत

बुधवार, 3 नवंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी के पांच दोहे ----


 कुछ दोहे!

     ------------------

धनतेरस,दीपावली,गोधन, भैया दूज,

नत मस्तक हो पूजिए,होवे पावन सूझ।


बनें सहायक सभी के,लक्ष्मी और कुवेर,

यश वैभव के दान में, करें न तनिक अवेर।


दीप मालिका से करें, घर भर का श्रृंगार,

मन अंधियारा दूर कर, भरो सकल उजियार।


फल,मेवा, मिष्ठान संग रखो खिलोने खीर,

खुशी-खुशी हो बांटिए,खुश होंगे रघुवीर।


जहरीला वातावरण,देता सबको पीर,

प्राण वायु निर्मल रखो, हो करके गंभीर।

   ✍️ वीरेंद्र सिंह बृजवासी, मुरादाबाद ,उत्तर प्रदेश, भारत 

  

सोमवार, 1 नवंबर 2021

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा ) की साहित्यकार प्रीति चौधरी की ग़ज़ल -- .....दिये को हवा में जलाने लगा है


 ये क्या सिरफिरा आजमाने लगा है

 दिये को हवा में जलाने लगा है


 बताऊँ तुम्हें बात दिल की सुनों तो

 सफ़र ये नया यार भाने लगा है

   

चमन में खिले फूल को देखकर वह 

मुहब्बत वही  गुनगुनाने लगा है

   

 हँसा है बहुत वो बिना बात के ही

 लगे कुछ पुराना  भुलाने  लगा है


बचा लो उसे 'प्रीति' तुम इस जहां से 

नहीं जानता क्या  मिटाने लगा है

 ✍️ प्रीति चौधरी, गजरौला, अमरोहा

उत्तर प्रदेश, भारत 

शनिवार, 30 अक्तूबर 2021

मुरादाबाद मंडल के चंदौसी (जनपद सम्भल) के साहित्यकार डॉ मूलचन्द्र गौतम का व्यंग्य ---- सोना उछ्ला चांदी फिसली


 आज भी आम आदमी की समझ में सेंसेक्स और निफ्टी के बजाय प्याज , टमाटर की तरह सोने-चांदी की कीमतों से ही महंगाई का माहौल पकड़ में आता है। उसके लिये डालर और पौंड से रुपये की कीमत के बजाय सोने-चांदी का भाव ज्यादा प्रामाणिक है।सरकार भी जनता के मन में अपनी साख जमाने के लिये लगातार बताती रहती है कि उसके पास विदेशी मुद्रा के अलावा कितना सोना जमा है।

      पुराने जमाने के आदमियों के पास सोने का भाव ही भूत और वर्तमान को नापने का पैमाना होता है।घी,दूध,गेहूँ,चना,गाय ,बैल और भैंस का नम्बर इनके बाद आता है।आजकल चाय का रेट भी इस दौड़ में शामिल हो गया है। कारण सबको मालूम है।

       सोने पर अमीरों का एकाधिकार है बर्तन भले उन्हें चांदी के पसंद आते हों।उनके मंदिरों में भगवान भी अष्टधातु के बजाय  शुद्ध सोने के होते हैं क्योंकि वहाँ उन्हें किसी सीबीआई और ईडी के छापों का डर नहीं होता।गरीबों का सपना भी हकीकत में न सही लोकगीतों में सोने के लोटे में गंगाजल पानी का होता था और मेहमानों के लिये भोजन भी सोने की थाली में परोसा जाता था।अब तो स्टील के बर्तनों ने गरीब पीतल और ताँबे के बर्तनों को प्रतियोगिता से आउट कर दिया है और दावतें भी पत्तलों के बजाय प्लास्टिक के बर्तनों पर होने लगी हैं ।

    खरे सोने के नाम पर रेडीमेड जेवरों में मिलावट का पता ही नहीं चलता।जबसे सरकार ने हालमार्क छाप जेवरों की बिक्री अनिवार्य की है तब से मिलावटखोरों की नींद हराम है।ज्यादा अमीरों ने सफेद सोने के नाम पर प्लेटिनम खरीदना शुरु कर दिया है लेकिन पीले सोने को मार्केट में पीट नहीं पाये हैं।दो नम्बर का पैसा आज भी सोने में ज्यादा सुरक्षित रहता है भले बैंक के लाकरों में बंद पडा रहता हो ।

     जबसे सोने के जेवरों की छीन झपट शुरु हुई है तबसे नकली गहनों ने जोर पकड़ लिया है।अब झपट मार भी पछताते हैं कि क्या उनकी मति मारी गयी थी जो इस धंधे में आये।इसलिये उन्होंने हथियारों की तस्करी शुरू कर दी है।

नोटबंदी के बाद रियलिटी मार्केट डाऊन है जबकि सोने में निरंतर उछाल है। सौ दो सौ कम होते ही सोना अपने प्रेमियों के लिये धड़ाम हो जाता है। सटोरियों के चक्कर में शुगर और ब्लड प्रेशर की तरह सोना थोडा ऊपर नीचे होता रहता है लेकिन आयात में आज भी वह नम्बर वन है। एयर पोर्टों पर ड्रग्स के मुकाबले सोने की तस्करी की खबरें ज्यादा आती हैं।तस्कर भाई बहिन पता नहीं शरीर के किन किन गुप्तांगों में सोना छिपाकर ले आते हैं। सोना आखिर सोना है।


✍️ डॉ मूलचंद्र गौतम 

शक्ति नगर,चंदौसी, सम्भल 244412

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल  8218636741

मुरादाबाद मंडल के धामपुर (जनपद बिजनौर ) निवासी साहित्यकार डॉ अनिल शर्मा अनिल का गीत --दीप पर्व पर , एक काम यह , करना सब हर हाल में। उनके नाम भी दीप जलाना जो बुझे कोरोना काल में ।। उनका यह गीत प्रकाशित हुआ है कोलकाता से प्रकाशित दैनिक विश्वामित्र के 29अक्टूबर 2021 के अंक में ....


 

मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में जकार्ता इंडोनेशिया निवासी) वैशाली रस्तोगी की रचना --- सरल जीवन


 

शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में मुम्बई निवासी ) प्रदीप गुप्ता की कविता -- भूख

1

यह पेट की भूख भी अजीब है 

मंदिर मस्जिद , 

हिंदू मुसलमान , 

यहूदी ईसाई , 

क़ब्रिस्तान शमशान ,

सवर्ण और दलित 

के शोर गुल में इतनी दब जाती है 

ये ख़्याल ही नहीं रहता 

कई दिनों से पेट में 

भूख के हिसाब से 

अन्न का ग्रास नहीं पहुँचा है .

2

पैसे की भूख भी ख़ासी बड़ी है 

जितना खीसे में पैसा आता है 

यह उतनी ही और बढ़ती जाती है 

सच तो यह है अगर एक बार 

पैसे की भूख ज़ोर से लग गयी 

तो मनपसंद खाने के लिए 

चिकित्सक रोक लगा देता है 

इसके बढ़ते ही,

बढ़ते जाते हैं दवा दारू के खर्चे 

चश्मे के नम्बर बढ़ जाते हैं 

हृदय  से लेकर किडनी और दाँतों के 

प्रत्यारोपण की बारी आ जाती है 

3

एक और ग़ज़ब की भूख है 

जिसे शोहरत का नाम दिया जाता है  

जितनी इसे मिटाने की कोशिश की जाती है 

 उतनी और बढ़ जाती है 

अपने सम्मान में अपने पैसे से अभिनंदन ग्रंथ 

अपने नाम से साहित्य सम्मान 

अपने नाम से खेल स्पर्धा ,

मुशायरों , कवि सम्मेलनों की सदारत 

अपने नाम की कोई सड़क (गली भी चलेगी ) 

अपने पैसे से किसी चौराहे पर अपना बुत 

इतना सब कुछ करने के बाद भी 

कुछ तो रीतापन सा लगता है 

क्योंकि शोहरत की भूख 

अनादि-काल से जारी है 

और सारी भूख पर भारी है 

 ✍️ प्रदीप गुप्ता                                               B-1006 Mantri Serene, Mantri Park, Film City Road , Mumbai 400065    

 

सोमवार, 25 अक्तूबर 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में जकार्ता, इंडोनेशिया निवासी ) वैशाली रस्तोगी की रचना ---क्यूं निष्ठुर हो तुम इतने, क्यों छिप छिप जाते हो । धरती पर इतने चांद देख, तुम क्यों शर्माते हो ....


 

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता का गीत --- तुम कितने निर्मोही बादल, चांद हमारा रहे छिपाये....


 

रविवार, 24 अक्तूबर 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर के साहित्यकारों ने करवा चौथ के पर्व पर अपने जीवनसाथी के लिए लिखे गीत । इन गीतों को हमने लिया है धामपुर (जनपद बिजनौर ) से डॉ अनिल शर्मा अनिल के सम्पादन में प्रकाशित अनियतकालीन ई पत्रिका अभिव्यक्ति से ....










::::::प्रस्तुति::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में दिल्ली निवासी) आमोद कुमार की नज़्म निवेदिता सक्सेना के स्वर में


 

बुधवार, 20 अक्तूबर 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर के तीन नवगीत


( एक )  

कल सपने में आई अम्मा

कल सपने में आई अम्मा,

पूछ रही थी हाल।


जबसे  दुनिया गई छोड़कर,

बदले घर के ढंग।

दीवारों को भी भाया अब,

बँटवारे का रंग।

सांझी छत की धूप बँट गयी,

बैठक पड़ी निढाल।


आँगन की तुलसी भी सूखी,

गेंदा हुआ उदास।

रिश्तों को मधुमेह हो गयी,

फीका हर उल्लास।

बाबू जी का टूटा चश्मा,

करता रहा मलाल।


घुटनों की पीड़ा से ज़्यादा,

दिल की गहरी चोट।

बीमारी का खर्च कह रहा,

 बूढ़े में  ही खोट।

बासी रोटी से बतियाती,

बची खुची सी दाल।

 

कल सपने में आई अम्मा,

पूछ रही थी हाल।


 ( दो )

 अधरों पर  मचली है पीड़ा

अधरों पर मचली है पीड़ा

कहने मन की बात।


आभासी नातों का टूटा

दर्पण कैसे जोड़ूँ?

फटी हुई रिश्तों की चादर  

 कब तक तन पर ओढ़ूँ

पैबंदों के झोल कर रहे

खींच तान, दिन- रात।


रोपा तो था सुख का पौधा

 हमने घर के द्वारे

सावन -भादो सूखे निकले

बरसे बस अंगारे

हरियाली को निगल रही है,

कंकरीट की जात।


तिनका-तिनका, जोड़- जोड़कर

 जिसने नीड़ बनाया

विस्थापन का दंश विषैला

उसके हिस्से आया।

 टूटे  छप्पर  की किस्मत में 

 फिर आयी  बरसात।


(तीन) 

आस का उबटन

अवसादों के मुख पर जब भी,

मला आस का उबटन।


उम्मीदों के फूल खिलाकर,

हँसती हर एक डाली।

दुखती रग को सुख पहुँचाने,

चले पवन मतवाली।

अँधियारे ने बिस्तर बाँधा,

उतरी ऊषा आँगन ।

अवसादों के मुख पर ...


पाँवों में  पथरीले कंकर

चुभकर जब गड़ जाते,

 मन के भीतर संकल्पों के 

ज़िद्दीपन अड़ जाते।

पाने को अपनी मंज़िल फिर

थकता कब ये तन- मन !

अवसादों के मुख पर जब भी...


जब डगमग नैया के हिस्से

आया नहीं किनारा,

ज्ञान किताबी धरा रह गया

पाया नहीं सहारा।

अनुभव ने पतवार सँभाली

 दूर हो गयी अड़चन ।

अवसादों के मुख पर जब भी

मला आस का उबटन।


✍️ मीनाक्षी ठाकुर

मिलन विहार

मुरादाबाद 244001,

उत्तर प्रदेश, भारत 


 

मंगलवार, 19 अक्तूबर 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर का नवगीत ----अधिकारों का ढोल पीटती / फर्ज़ भूलती नस्लें / जातिवाद के कीट खा रहे / राष्ट्रवाद की फसलें / पाँच वर्ष के बाद बहाया / घड़ियालों ने नीर


 राजनीति के ठेले पर फिर,

बिकता हुआ ज़मीर।


चोरों से थी भरी कचहरी,

थी  गलकटी गवाही।

दुबकी फाइल के पन्नो पर,

बिखरी कैसे स्याही।

मैली लोई वाला निकला

सबसे धनी फकीर!


जिम्मेदारी के बोझे से,

फटा  बजट का बस्ता।

औनै पौनै दामों में तो,

दर्द  मिले बस सस्ता।

बिके आत्मा टके सेर में,

टके सेर ही पीर।


अधिकारों का ढोल पीटती,

फर्ज़  भूलती नस्लें।

जातिवाद के  कीट खा रहे,

राष्ट्रवाद की फसलें।

पाँच वर्ष के बाद बहाया,

घड़ियालों ने नीर।


✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत

सोमवार, 18 अक्तूबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार मयंक शर्मा का गीत --- मन ले चल अपने गांव हमें शहर हुआ बेगाना


 

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की लघुकथा --- मृत्यु प्रमाणपत्र

     "सचमुच बहुत ही दुख हुआ बहन जी जानकर कि आप का इकलौता बेटा दुर्घटना में स्वर्ग सिधार गया"

नगर पालिका के कई चक्कर काट चुकी रोती हुई महिला को ढांढस बन्धाते हुए नगरपालिका के बड़े बाबू ने कहा "मृत्यु प्रमाण पत्र एक हफ्ते में मिल जाएगा हमारा पूरा स्टाफ आपके साथ है फिक्र करने की कोई बात नहीं "।

महिला-"ठीक है भैया अब आप ही लोगों का सहारा है!"

  बड़े बाबू- " बस बहन जी हजार रुपए दे जाइएगा...!"

   महिला अवाक बड़े बाबू को देखती रह गयी...!


✍️अशोक विद्रोही

412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश,भारत

मोबाइल फोन 82 188 25 541

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार संतोष कुमार शुक्ल संत की रचना ----हर चोला मक्कार हो गया, सच कहना दुश्वार हो गया।

 


अजब गजब बातें बतलाकर, 

अजब ढंग से करके हल्ला। 

सब्ज बाग  दिखलाकर कहते, 

सबसे अच्छा अपना गल्ला।। 

नाम अजब है, काम अजब है, 

अजब यहां व्यापार हो गया।। 

हर चोला मक्कार हो गया।। 

सच कहना दुश्वार हो गया।। 


धर्म ध्वजा का कर आरोहण । 

जनता में भर के सम्मोहन  ।।

बस्त्र गेरुए धारण करके । 

सन्त महन्त गिरि बन करके ।।

स्वयं स्वघोषित ब्रह्म कहाकर। 

पुन्य पाप का भय दिखलाकर ।।

प्रवचन लच्छे दार सुनाकर,

मंदिर मठ बाजार हो गया।। 

धर्म बड़ा व्यापार हो गया। 

हर चोला मक्कार हो गया।। 

सच कहना दुश्वार हो गया।। 


कर्जे माफ करेंगे सारे ।

हमको बस कुर्सी दिलवा रे ।।

ऊपर का हिस्सा दे जा रे। 

तू नीरव मोदी बन जा रे।।

बिजली पानी मुफ़्त मिलेगा । 

बिल का पैसा कौन भरेगा ? 

कर द्वारा अर्जित धन पर भी, 

नेता का अधिकार हो गया।। 

जनता का धन पार हो गया।। 

हर चोला मक्कार हो गया।। 

सच कहना दुश्वार हो गया।। 


अजब गजब ढपली के रागों ।

फटे हुए कपड़े के धागो ।।

तभी सवेरा जब तुम जागो। 

आंखें खोलो अरे अभागों ।।

लोकतंत्र में राजा तुम हो, 

सोच समझ कर वटन दबाओ।। 

जिसकी लाठी भैंस उसी की, 

यह तो अत्याचार हो गया।।

पैसा ही सरकार हो गया।। 

हर चोला मक्कार हो गया।। 

सच कहना दुश्वार हो गया।। 


✍️ सन्तोष कुमार शुक्ल सन्त

रामपुर, उत्तर प्रदेश, भारत



मुरादाबाद की साहित्यकार मोनिका मासूम की ग़ज़ल ---नए सपनों की बस्ती में बसी है आजकल आंखें


तेरी सीधी सरल आंखें

बहुत करती हैं छल आंखें


दिलों के दस्तावेजों में

करें रद्दो -बदल आंखें


खुशी में गीत गाती हैं

कहें गम में ग़ज़ल आंखें


तुझे देखा जो सपने में

गईं पल में मचल आंखें


नए सपनों की बस्ती में

बसी है आजकल आंखें


अगर "मासूम"  मुश्किल है

तो हर मुश्किल का हल आंखें


✍️ मोनिका मासूम, मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार दुष्यंत कुमार बाबा की कविता --- काश ये जिंदगी होती एक सिलाई मशीन


 

सड़क : चार दृश्य । मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा ---- बगुलाभगत, श्रीकृष्ण शुक्ल की कहानी--ईमानदार का तोड़, राजीव प्रखर की लघुकथा-- दर्द और अखिलेश वर्मा की लघुकथा---वो तो सब बेईमान हैं

 


बगुलाभगत

      इंजीनियर ने ठेकेदार से क्रोध जताते हुए कहा ," क्या ऐसी सड़क बनती है जो एक बरसात में उधड़ गई, तुम्हारा कोई भी बिल पास नहीं होगा।" बड़े साहब मुझ पर गरम हो रहे थे उन्हें क्या जवाब दूंगा ? ठेकेदार बोला ," सर आप मेरी भी सुनेंगे या अपनी ही कहे जाएंगे।" बोलो क्या कहना है।" इंजीनियर ने कहा।

      " सर 40%में ,मैं रबड़  की सड़क तो बना नहीं सकता,ठेकेदार ने कहा ,फिर आपकी भी तो उसमें ---------? अब क्या था इंजीनियर का चेहरा देखने लायक था -------। 

✍️ अशोक विश्नोई

मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत

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ईमानदार का तोड़

क्या मैं अंदर आ सकता हूँ, आवाज सुनते ही सुरेश कुमार ने गरदन उठाकर देखा, दरवाजे पर एक अधेड़ किंतु आकर्षक व्यक्ति खड़े थे,  हाँ हाँ आइए, वह बोले!

सर मेरा नाम श्याम बाबू है, मेरा सड़क के निर्माण की लागत का चैक आपके पास रुका हुआ है!

अच्छा तो वो सड़क आपने बनाई है, लेकिन उसमें तो आपने बहुत घटिया सामग्री लगाई है, मानक के अनुसार काम नहीं किया है, सुरेश कुमार बोले!

कोई बात नहीं साहब, हम कहीं भागे थोड़े ही जा रहे हैं, पच्चीस साल से आपके विभाग की ठेकेदारी कर रहे हैं, जो कमी आयेगी दूर कर देंगे, आप हमारा भुगतान पास कर दो, हम सेवा में कोई कमी नहीं रखेंगे!

आप गलत समझ रहे हो श्याम बाबू, पहले काम गुणवत्ता के अनुसार पूरा करो,तभी भुगतान होगा, कहते हुए सुरेश उठ गये और विभाग का चक्कर लगाने निकल गये!

श्याम बाबू चुपचाप वापस आ गये!

पत्नी ने पानी का ग्लास देते हुए पूछा: बड़े सुस्त हो, क्या हो गया तो बोल पड़े एक ईमानदार आदमी ने सारा सिस्टम बिगाड़ दिया है, कोई भी काम हो ही नहीं पा रहा है, सबके भुगतान रुके पड़े हैं, बड़ा अजीब आदमी है!

खैर इसकी भी कोई तोड़ तो निकलेगी!

कुछ ही दिनों बाद लेडीज क्लब का उत्सव था, श्याम बाबू की पत्नी उसकी अध्यक्ष थीं, श्याम बाबू के मन में तुरंत विचार कौंधा और बोले: सुनो इस बार नये अधिकारी सुरेश बाबू की पत्नी सुरेखा को मुख्य अतिथि बना दो और सम्मानित कर दो!

कार्यक्रम के दिन पूर्व योजनानुसार सुरेखा को मुख्य अतिथि बनाया गया, सम्मानित किया गया, उन्हें अत्यंत कीमती शाल ओढ़ाया गया और एक बड़ा सा गिफ्ट पैक भी दिया गया!

कार्यक्रम के बाद श्याम बाबू की पत्नी पूछ बैठी: आप तो बहुत बड़ा गिफ्ट पैक ले आये, क्या था उसमें!

कुछ ज्यादा नहीं, बस एक चार तोले की सोने की चेन,शानदार बनारसी साड़ी और कन्नौज के इत्र की शीशी थी, श्याम बाबू बोले!

इतना सब कुछ क्यों, 

कुछ नहीं, ये ईमानदार लोगों को हैंडिल करने का तरीका है!

कहना न होगा, अगले ही दिन श्यामबाबू का भुगतान हो गया!

✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल,

MMIG - 69, रामगंगा विहार,

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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दर्द

"साहब ! हमारे इलाके की सड़कें बहुत खराब हैं। रोज़ कोई न कोई चोट खाता रहता है। ठीक करा दो साहब, बड़ी मेहरबानी होगी.......",  पास की झोपड़पट्टी में रहने वाला भीखू नेताजी के सामने गिड़गिड़ाया।

"अरे हटो यहाँ से। आ जाते हैं रोज़ उल्टी-सीधी शिकायतें लेकर। सड़कें ठीक ही होंगी। उनमें अच्छा मेटेरियल लगाया है......."। भीखू को बुरी तरह  डपटने के बाद सड़क पर आगे बढ़ चुके नेताजी को पता ही न चला कब उनका पाँव एक गड्डे में फँसकर उन्हें बुरी तरह चोटिल कर गया।

"उफ़ ! ये कमबख्त सड़कें बहुत जान लेवा हैं......", दर्द से बिलबिलाते हुए नेताजी अब सम्बंधित विभाग को फ़ोन मिलाते हुए हड़का रहे थे।

✍️ राजीव 'प्रखर'

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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वो तो सब बेईमान हैं 

" अरे वाह चौधरी ! मुबारक हो आज तो तुम्हारे गाँव की सड़क बन गई है .. अब सरपट गाड़ी दौड़ेगी । " भीखन ने  खूँटा गाड़ते चौधरी को देखते हुए कहा ।

" पर यह क्या कर रहे हो , खूँटा सड़क से सटा कर क्यों लगा रहे हो । " वो फिर बोला ।

" सड़क किनारे की पटरी चौड़ी हो गई है ना .. तो कल से भैंसे यही बाँधूँगा .. अंदर नहलाता हूँ तो बहुत कीच हो जाती है घर में .. I " चौधरी बेफिक्र होकर बोला ।

" पर पानी तो सड़क खराब कर देगा चौधरी " भीखू बोला ।

" मुझे क्या । ठीक कराएँगे विभाग वाले , सब डकार जाते हैं वरना । " हँसकर चौधरी बोला ।

भीखू आगे बढ़ा ही था कि देखा रामदीन ट्रेक्टर से खेत जोत रहा था .. वो असमंजस से बोला , " अरे रामदीन भाई ! यह क्या कर रहे हो . तुमने तो अपने खेत के साथ साथ सड़क के किनारे की पटरी तक जोत डाली .. बिना पटरी के तो सड़क कट जाएगी । "

रामदीन जोर से हँसा और बोला , " अरे बाबा , यह फसल अच्छी हो जाए फिर से मिट्टी लगा दूँगा । और रही बात सड़क कटने की तो फिर से ठीक करेगा ठेकेदार .. उसकी दो साल की गारंटी होती है ... और विभाग वाले .. हा हा हा ! वो तो सब बेईमान हैं ।"

✍️ अखिलेश वर्मा

   मुरादाबाद

   उत्तर प्रदेश, भारत