गुरुवार, 4 नवंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार की ग़ज़ल ---हो चमक सितारों की या कि बिजलियाँ दमकें , हर किसी पे भारी है सादगी चिराग़ों की !


दिल को मोह लेती है रोशनी चिराग़ों की ,

क्या किसी ने देखी है तीरगी चिराग़ों की !


सबको रास आती है रोशनी चिराग़ों की ,

दोस्तो ! बचा लीजे ज़िंदगी चिरागों की !


 रात के अँधेरे में ज़िंदगी न खो जाये ,

इसलिए ज़रूरी है ज़िंदगी चिराग़ों की !


हो चमक सितारों की या कि बिजलियाँ दमकें ,

हर किसी पे भारी है सादगी चिराग़ों की !


इक दिया जलाओ तुम एक मैं जलाऊँगा ,

"आएगी नज़र सबको रोशनी चिराग़ों की" !


मुश्किलें ज़माने की सब क़बूल हैं मुझको ,

सह न पाऊँगा लेकिन बेरुख़ी चिराग़ों की !


इल्म के चिराग़ों की बात ही निराली है ,

रोशनी से भरती है बात भी चिराग़ों की !


इक झलक फ़क़त जिसकी तीरगी-1मिटाती है ,

 रोशनी-सी लगती है बात भी चिराग़ों की !


हर जगह अँधेरों की आजकल सियासत है , 

सिर्फ़ बात होती है हर घड़ी चिराग़ों की !


प्यार के उजाले ही हर जगह रहें 'ओंकार' , 

आँगनों में हो सबके रोशनी चिरागों की !

तीरगी = अँधेरा

✍️ ओंकार सिंह 'ओंकार'

1-बी-241बुद्धि विहार, मझोला 

मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)  244103, भारत

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