मंगलवार, 9 नवंबर 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की कविता ----यूज एंड थ्रो


 दहलीज के एक कोने पे...

मायूस खड़े दीये ने...

दूसरे कोने में लुढ़के पड़े...

दूसरे दीये से पूछा,

"ठीक तो हो,भाई!

ये पीठ चौखट पे....

टेढ़ी क्यों टिकायी?"

दूसरा दीया बड़ी मायूसी से बोला

दर्द-ए-दिल का जैसे दरवाजा खोला,

"क्या बताऊँ,भाई?

कल रात जब मैं....

लुटा चुका था....

अपना सारा खजाना,

जला चुका था....

अपने रक्त की....

आख़िरी बूँद को भी...

दुनिया की चमक के लिए....

कि खुशी से चहकते....

किन्हीं कदमों की....

अल्हड़ ठोकर ने....

मुझे यूँ ठुकराया... 

हाय,मैं दर्द में... 

कराह भी न पाया...

बहुत शुक्रिया,दोस्त!

जो तुमने मेरी सुध ली...

पर अफसोस.... 

इससे अधिक हम दोनों ही.... 

कुछ कर नहीं सकते हैं....

सहेज ले कोई यूँ ही....

बस राह तकते हैं।"

गमगीन था दूसरा दीया भी....

बोला,"ठीक कहते हो दोस्त!

ये दुनिया बड़ी मतलबी है,

इसे कब किसकी पड़ी है?

जब तक उजाले की गरज थी,

त्योहार पे घर झिलमिलाना था।

घर का खास कोना....

हमारा ठिकाना था।

संभाला गया हम को....

कितने प्यार से....

भरे गये हमारे अंतस

स्नेह की धार से....

पहन साफ वस्त्र ....

नये सूत की बाती के।

टिमटिमाते थे हम....

धरती की छाती पे....

सब कुछ कितना आकर्षक था,

चारों ओर झिलमिलाहट थी।

जलते दीयों के वजूद की....

होंठों पर खिलखिलाहट थी।

है नियति ये....

हम सब को समझ आती है।

लेकिन इंसान की....

फितरत रूलाती है।

पल पल इसका....

रंग बदलता है।

इसका स्वार्थीपन....

बहुत अखरता है।

ये बटोरेगा अब ऐसे....

जैसे कि कबाड़ है हम।

"यूज एण्ड थ्रो" के

असली शिकार है हम"

दूसरे दीये ने ढाँढस बँधाया,

बुझे मन से वह बुदबुदाया,

"न हो उदास और हताश,

मत मलाल कर,मेरे भाई

इंसान ने तो रिश्तों में भी,

नीति यही अपनायी।

रिश्ते नाते और दोस्ती

अब यूज किये जाते हैं... 

और निकलते ही मतलब,

फैंक दिये जाते हैं"


हेमा तिवारी भट्ट

मुरादाबाद 244001,

उत्तर प्रदेश, भारत

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