( एक )
कल सपने में आई अम्मा
कल सपने में आई अम्मा,
पूछ रही थी हाल।
जबसे दुनिया गई छोड़कर,
बदले घर के ढंग।
दीवारों को भी भाया अब,
बँटवारे का रंग।
सांझी छत की धूप बँट गयी,
बैठक पड़ी निढाल।
आँगन की तुलसी भी सूखी,
गेंदा हुआ उदास।
रिश्तों को मधुमेह हो गयी,
फीका हर उल्लास।
बाबू जी का टूटा चश्मा,
करता रहा मलाल।
घुटनों की पीड़ा से ज़्यादा,
दिल की गहरी चोट।
बीमारी का खर्च कह रहा,
बूढ़े में ही खोट।
बासी रोटी से बतियाती,
बची खुची सी दाल।
कल सपने में आई अम्मा,
पूछ रही थी हाल।
( दो )
अधरों पर मचली है पीड़ा
अधरों पर मचली है पीड़ा
कहने मन की बात।
आभासी नातों का टूटा
दर्पण कैसे जोड़ूँ?
फटी हुई रिश्तों की चादर
कब तक तन पर ओढ़ूँ
पैबंदों के झोल कर रहे
खींच तान, दिन- रात।
रोपा तो था सुख का पौधा
हमने घर के द्वारे
सावन -भादो सूखे निकले
बरसे बस अंगारे
हरियाली को निगल रही है,
कंकरीट की जात।
तिनका-तिनका, जोड़- जोड़कर
जिसने नीड़ बनाया
विस्थापन का दंश विषैला
उसके हिस्से आया।
टूटे छप्पर की किस्मत में
फिर आयी बरसात।
(तीन)
आस का उबटन
अवसादों के मुख पर जब भी,
मला आस का उबटन।
उम्मीदों के फूल खिलाकर,
हँसती हर एक डाली।
दुखती रग को सुख पहुँचाने,
चले पवन मतवाली।
अँधियारे ने बिस्तर बाँधा,
उतरी ऊषा आँगन ।
अवसादों के मुख पर ...
पाँवों में पथरीले कंकर
चुभकर जब गड़ जाते,
मन के भीतर संकल्पों के
ज़िद्दीपन अड़ जाते।
पाने को अपनी मंज़िल फिर
थकता कब ये तन- मन !
अवसादों के मुख पर जब भी...
जब डगमग नैया के हिस्से
आया नहीं किनारा,
ज्ञान किताबी धरा रह गया
पाया नहीं सहारा।
अनुभव ने पतवार सँभाली
दूर हो गयी अड़चन ।
अवसादों के मुख पर जब भी
मला आस का उबटन।
✍️ मीनाक्षी ठाकुर
मिलन विहार
मुरादाबाद 244001,
उत्तर प्रदेश, भारत
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