कुछ दोहे!
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धनतेरस,दीपावली,गोधन, भैया दूज,
नत मस्तक हो पूजिए,होवे पावन सूझ।
बनें सहायक सभी के,लक्ष्मी और कुवेर,
यश वैभव के दान में, करें न तनिक अवेर।
दीप मालिका से करें, घर भर का श्रृंगार,
मन अंधियारा दूर कर, भरो सकल उजियार।
फल,मेवा, मिष्ठान संग रखो खिलोने खीर,
खुशी-खुशी हो बांटिए,खुश होंगे रघुवीर।
जहरीला वातावरण,देता सबको पीर,
प्राण वायु निर्मल रखो, हो करके गंभीर।
✍️ वीरेंद्र सिंह बृजवासी, मुरादाबाद ,उत्तर प्रदेश, भारत
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