बचपन में सब मुझे चिढ़ाते थे
काली चमड़ी के कारण
काला कौआ कहकर बुलाते थे
मुझको अच्छी नहीं लगती थी पढ़ाई
इसी बात पर एक दिन
दादाजी ने जमकर डांट लगाई
सारे दिन हाथी की तरह खाता है
स्कूल क्यों नहीं जाता है
तेरा अगर यही रूटीन चलेगा
एक दिन गीदड़ की मौत मरेगा
मैने सांप की तरह हुंकार मारी
मैं अपनी जिंदगी
अपने हिसाब से बिताऊंगा
ज्यादा जिद करोगे
तो घर से भाग जाऊंगा
दादाजी बोले
बंदर घुड़की मत दिखाओ
बस्ता उठाओ और स्कूल जाओ
दादाजी के तेवर देख
सारा जोश ठंडा हो गया
मैं बकरी की तरह मिम्याने लगा
दस किलो का बस्ता
पीठ पर लाद स्कूल जाने लगा
मोहल्ले वालों को मुझ में
गधा नजर आने लगा
स्कूल में मास्टर जी ने
तोते की तरह पाठ रटाया
लेकिन मेरे उल्लू जैसे दिमाग में
कुछ नही घुस पाया
मास्टर जी अक्सर मुझे
मुर्गा बनाने लगे
मेरे नयन
घड़ियाली आंसू बहाने लगे
कुछ साथियों ने
मुझको समझाया
मेरे अंदर छुपे शेर को जगाया
मैने भी वफादार कुत्ते की तरह
अपना सर हिलाया
उनके बताए रास्ते पर
कछुए की तरह कदम बढ़ाया
लेकिन जैसे ही
भौतिकता की चकाचौंध दिखी
इच्छाओं के खरगोश ने ललचाया
और मन के मोर ने
जबरदस्त डांस दिखाया
मैं आभासी दुनिया की
गोदी में झूल गया
मौज मस्ती के चक्कर में
पढ़ना लिखना भूल गया
मास्टर जी ने मुझे
जबरदस्त डांट पिलाई
अबे चूहे ,
बरबाद मत कर मां बाप की कमाई
पढ़ाई से अगर तू दिल चुराएगा
जिंदगी में कभी कुछ कर नहीं पाएगा
मैने कहा गुरु जी
मुझे कूपमण्डूक नही बनना है
किताबों के सीमित दायरे में
नही बंधना हैं
मैं आपकी नजर में
सिरफिरा हूं,शरारती थोड़ा हूं
लेकिन सच ये है
मैं लंबी रेस का घोड़ा हूं
मैं सर्व अवगुण संपन्न हूं
मेरे खून में,
लोमड़ी की चालाकी है
कोई बुराई ऐसी नहीं
जो बाकी है
सब कुछ ठीक रहा तो
एकदिन राजनीति में छा जाऊंगा
और फिर
आपके पढ़ाकू और बुद्धिमान चेलों को
अपनी उंगलियों पर नचाऊंगा।
✍️ डॉ.पुनीत कुमार
T 2/505 आकाश रेजीडेंसी
आदर्श कॉलोनी रोड
मुरादाबाद 244001
M 9837189600
शानदार आदरणीय भाई साहब।
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏🙏🙏
हटाएंशाबाश !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर
कमाल की अभिव्यक्ति रचना
बहुत सुंदर व्यंग
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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