"पापा, मुझे वीडियो गेम के लिए तेज स्पीड वाला इंटरनेट चाहिए। हमें जल्दी ऑप्टिकल फाइबर लगवाना होगा...."
एक दिन मेरे पुत्र ने मेरे सामने फरमाइश की।
तब मेरी नियुक्ति बुलंदशहर में थी।घर से दूर होने के कारण मैं तत्काल कुछ नहीं कर सकता था।सो,ऐसे में मुझे मधुकर जी की याद आयी।भारत संचार निगम से जुड़ी किसी भी समस्या के लिए वे ही हमारे संकटमोचक थे।वैसे भी वे हमेशा दूसरों की सहायता के लिए सदैव तत्पर रहते थे।जमीन से जुड़े व्यक्ति और मजदूर आंदोलनों अथवा कामगार संगठनों के संघर्षों में सहभागिता तथा अपनी मार्क्सवादी-जनवादी विचारधारा के चलते वे जुझारू प्रवृत्ति के तो थे ही अन्याय का विरोध करने के लिए वे पंगा लेने से चूकते भी नहीं थे।
उनके व्यक्तित्व के इस पक्ष को उजागर करने वाली ऐसी एक घटना का साक्षी मैं तब बना जब पुत्र के अनुरोध पर मैंने मधुकर जी से मेरे घर ऑप्टिकल फाइबर का कनेक्शन लगवाने हेतु दूरभाष पर बात की।मैंने कहा--"भाईसाहब,ईशान ने फरमाइश की है-घर पर जल्दी ऑप्टिकल फाइबर का कनेक्शन लगना है।"
"लगेगा, क्यों नहीं लगेगा...सबसे पहले लगेगा ।"मधुकर जी ने कहा।
तब मेरे निवास स्थल यानी डिप्टी गंज में ऑप्टिकल फाइबर का बस एक ही कनेक्शन वह भी नया -नया लगा था।
दिन पंख लगाकर गुजर रहे थे और कनेक्शन का दूर -दूर तक नामो निशान नहीं था।
मैं छुट्टी में घर मुरादाबाद आया तो पुत्र ने आक्रोश में कहा --"पापा, अभी तक कनेक्शन नहीं लगा है।कितने दिन हो गए हैं,आप मधुकर अंकल से आज ही बात कीजिये। मैं अब और इंतजार नहीं कर सकता..."
अब मेरे पीछे दीवार आ गयी थी।
मैं तुरन्त मधुकर जी के कार्यालय पहुंचा। मैंने शिकायती लहजे में कहा--" भाईसाहब, आपके कहने के बावजूद अभी तक ऑप्टिकल फाइबर का कनेक्शन नहीं लगा है....."
बस , फिर क्या था!
जरूरी फाइलें छोड़कर मधुकर जी उठ खड़े हुए ।बोले --"आइए एस .डी .ओ के पास चलते हैं..मैं देखता हूँ आज कैसे नहीं लगता है कनेक्शन।"
वे किसी सामुराई के अंदाज़ में दनदनाते हुए मेरे साथ सीधे एस. डी. ओ के कक्ष में जा पहुंचे और मेरा परिचय देते हुए कहा --"इतने दिन बीत गए और अभी तक राजीव जी के घर कनेक्शन क्यों नहीं लगा....."
एस. डी. ओ काम में अड़ंगा लगाने की कला में माहिर था।मधुकर जी के तेवर देखकर एकदम अचकचा गया और लगभग मिमियाते हुए बोला ---"टीम गयी थी...डिप्टी गंज में कुछ दिक्कत आ रही है।दो करोड़ की मशीन है ,अभी खाली नहीं है....."
"तो दो करोड़ की मशीन क्या देखने के लिए है...अगर कोई कस्ट्मर कनेक्शन लगवाना चाहेगा तो क्या आप उसे मना कर देंगे?एस. डी .ओ साहब ,साफ -साफ सुन लीजिए --राजीव जी मेरे अभिन्न मित्र हैं।उनका बेटा मेरा भतीजा है।यह कनेक्शन समझिये मेरे घर लगना है।अगर मेरे या मेरे मित्र के घर कनेक्शन नहीं लगेगा तो फिर कहीं नहीं लगेगा...."मधुकर जी ने गरजते हुए कठोर शब्दों में कहा तो एस .डी. ओ को एकाएक कुछ न सूझा।
मधुकर जी का यह विराट रूप देखकर बेचारा एस. डी .ओ स्तब्ध और हैरान था।मैंने भी मधुकर जी को इससे पहले कभी कुपित होते या क्रोध करते नहीं देखा था।वे अधिकांशतया संयत रहते थे और शायद ही किसी ने उन्हें संयम खोते देखा होगा।किंतु मधुकर जी का यह विराट रूप मेरे लिए भी एक अनोखा अनुभव था।
एस. डी. ओ के इर्द -गिर्द मौजूद लोग दम साधे मधुकर जी का यह विराट रूप देख रहे थे।
मधुकर जी के सामने एस. डी. ओ को समर्पण करना पड़ा।वह बोला --"ठीक है, अभी टीम भेजकर कनेक्शन कराता हूँ...."
उसी दिन शाम तक ऑप्टिकल फाइबर का कनेक्शन मेरे घर लग गया वह भी बिना कोई सुविधा शुल्क दिए।मधुकर जी ने स्वयं अपनी देखरेख में अपने सामने कनेक्शन लगवाया।
कनेक्शन लगने के बाद मधुकर जी ने पूछा--"क्यों ईशान , अब तो खुश ..."
प्रत्युत्तर में ईशान भी मुस्करा दिए। फिर तो दोनों के बीच इंटरनेट से लेकर साइबर टेक्नोलॉजी तक खूब बातें हुईं और मैं अहमकों की तरह मुंह बाए उनका वार्तालाप सुनता रहा।
बाद में मैंने कहा --"भाईसाहब, आज तो आपने सचमुच एस. डी. ओ को अपने विराट रूप के दर्शन करा दिये..."
"राजीव जी,अगर मैं विराट रूप न दिखाता तो फिर आज कनेक्शन भी न लगता।"
उनकी बात बिल्कुल सही थी।
तो ऐसे थे --हमारे शिशुपाल 'मधुकर ' जी।अपनों के लिए किसी से भी किसी भी सीमा तक लड़ने या भिड़ जाने वाले एक अप्रतिम योद्धा ।अन्याय का प्रतिकार करने की यह शक्ति उन्हें भीतर से और अपनी परोपकार की भावना से प्राप्त होती थी ।
✍️राजीव सक्सेना
डिप्टी गंज
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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