सोमवार, 18 मार्च 2024

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव सक्सेना का शिशुपाल मधुकर पर केंद्रित संस्मरणात्मक आलेख....कुएं के मेंढक


यह सर्दियों की एक उजली दोपहर थी।यत्र-तत्र सुनहली धूप छिटकी हुई थी।मैं छत पर कुर्सी पर बैठा धूप सेंक रहा था।

 तभी दरवाजे पर लगी डोरबेल जोर से घनघना उठी।

  मैंने नीचे झांककर देखा --यह मधुकर जी थे जो मेरे पड़ोस के एक प्रिंटर के यहाँ जरूरी काम से आये थे।

  वे बिना किसी पूर्व सूचना के अयाचित मेरे घर पधारे थे।साहित्यकार विशेषकर कवि स्नेहवश इस तरह आपस में मुलाकात करते ही रहते हैं।

 जब साहित्य से जुड़े दो रचनाधर्मी साथ बैठे हों तब उनके बीच साहित्यिक चर्चा होना स्वाभाविक है ।सो चर्चा घूम -फिरकर मुरादाबाद नगर के  साहित्यिक परिदृश्य पर आकर टिक गई।

  मैं नगर के वर्तमान साहित्यिक परिदृश्य से बिल्कुल संतुष्ट नहीं था और इसमें कुछ बदलाव चाहता था।

 मैंने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कुछ खिन्न स्वर में कहा--"भाईसाहब,शहर में कुछ नया नहीं हो रहा है।सारी साहित्यिक गतिविधियां बस गीत -नवगीत या फिर ग़ज़ल तक सीमित होकर रह गयी हैं।कविता को ही साहित्य का पर्याय मान लिया गया है..." 

  उन्होंने मेरे आशय को समझ लिया क्योंकि उनकी मेरी वेवलेंथ काफी मिलती थी।

 वे बोले --"आप सही कह रहे हैं।क्या करें, शहर के साहित्यकार कुएं के मेंढक बने हुए हैं...."

  इस 'कुएँ के मेंढक 'शब्द की मेरे ऊपर एकदम प्रतिक्रिया हुई और मैं बेसाख्ता हँस पड़ा।

 मैंने कहा -"चलिये, कुछ नया करते हैं...."

  "क्या करेंगे?"

 "बहुत हुई कवि गोष्ठियां...अब एक कथा -गोष्ठी का आयोजन करेंगे।"मैंने कहा।

  "हाँ, यह ठीक रहेगा ।हमारे शहर में कथा गोष्ठी की परंपरा एक नई  शुरुआत होगी।"उन्होंने अपनी सहमति व्यक्त की।

  बस, फिर क्या था!

  जल्दी ही हमारी पहल पर मेरे निवास पर एक कथा गोष्ठी का आयोजन हुआ जिसमें मधुकर जी,अशोक विश्नोई जी, योगेंद्र कुमार और मैंने अपनी कहानियों का पाठ किया।

 शिशुपाल जी भी पीछे न रहे।जल्दी ही इसी कड़ी में उन्होंने भी अपने घर एक कथा गोष्ठी आयोजित की जिसमें ओंकार सिंह 'ओंकार ' मुशर्रफ हुसैन और मुझ सहित नगर के दूसरे रचनाकारों ने भी प्रतिभाग किया।फिर तो यह सिलसिला बढ़ने लगा।मेंढक कुएं के बाहर आने लगे।कवि गोष्ठियों के समानांतर कथा गोष्ठियां भी आयोजित होने लगीं और इसका पूरा श्रेय मधुकर जी को ही था जिनकी नगर के समकालीन साहित्यिक परिदृश्य के संदर्भ में की गई -'कुएं के मेंढक' वाली टिप्पणी  कुछ व्यंग्यात्मक अवश्य थी किंतु इसने हमारी रचनाधर्मिता और साहित्यिक परिदृश्य में बदलाव लाने  हेतु एक उत्प्रेरक का कार्य किया।

✍️राजीव सक्सेना 

डिप्टी गंज

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

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