यह गर्मियों की एक कासनी सांझ थी।
गांधीनगर पब्लिक स्कूल के एक बड़े सभागार में नगर की प्रसिद्ध साहित्यिक संस्था --'संकेत' के बैनर तले एक बड़ा सारस्वत कार्यक्रम आयोजित किया गया था जिसमें नगर के लगभग सभी साहित्यकार उपस्थित थे।संस्था के अध्यक्ष अशोक विश्नोई जी के निमंत्रण पर मैं भी कार्यक्रम में उपस्थित था।जहां तक मुझे याद है इस कार्यक्रम में संकेत द्वारा आयोजित नगर के सभी साहित्यकारों पर केंद्रित संदर्भ ग्रंथ का विमोचन होना था।विमोचन समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर हापुड़ की कवयित्री कमलेश रानी अग्रवाल मंच पर अपने पति सहित उपस्थित थीं।
विश्नोई जी माइक संभालकर संचालन कर रहे थे।
साहित्यकारों की जबरदस्त उपस्थिति से प्रोत्साहित विश्नोई जी ने तभी किसी बात पर किंचित आवेश में कहा --"मैं अपनी दुकान के सामने किसी दूसरे की दुकान नहीं सजने दूँगा ..."
यह कहते हुए विश्नोई जी के चेहरे पर क्रोध की एक हल्की छाया भी स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रही थी जिसे सभागार में उपस्थित साहित्यकारों को लक्ष्य करते देर न लगी।
कुछ क्षणों के लिए सभागार में एक सन्नाटा -सा छा गया।
सभी साहित्यकारों के चेहरे पर एक बेचैनी अथवा अकुलाहट झलकने लगी । मुझे भी लगा कि विश्नोई जी के इस वक्तव्य के बाद कहीं कार्यक्रम बिगड़ न जाये ।
कुछ अप्रिय घटित होता इसके पहले ही शिशुपाल मधुकर जी संकटमोचक के तौर पर अवतरित हुए जो उस समय विश्नोई जी के सहयोगी के तौर पर उनके पार्श्व में खड़े थे ।
मधुकर जी ने माइक थामते हुए कहा --' सभी साहित्यकार हमारे सम्मानित हैं, कार्यक्रम में सभी का स्वागत है, यह आपका अपना कार्यक्रम है...."
कुछ तो मधुकर जी के सौम्य चेहरे और मधुर स्वभाव का या फिर मृदु भाषा में दिए गए उनके वक्तव्य का ही यह प्रभाव था कि सभी जल्दी ही सहज हो गए। फिर कोई भी अप्रिय बात नहीं हुई और कार्यक्रम सुचारू रूप से सम्पन्न हुआ।
मधुकर जी थे ही कुछ ऐसे --एक जेनुइन कवि होने के अलावा एक सहज इंसान भी थे और उनका यह व्यकितत्व ही लोगों से जुड़कर उन्हें अपना बना लेता था।
मधुकर जी के इस व्यवहार का जादू -सा असर हुआ।मुझे उन्हें अपना मित्र बनाने और उनसे बतियाने की आवश्यकता अनुभव हुई।
कार्यक्रम सम्पन्न होने के बाद मेरा उनका परस्पर परिचय हुआ।
इस संक्षिप्त परिचय के बाद फिर तो मेरी उनकी वेवलेंथ खासी मिलने लगी और यह परिचय निरन्तर प्रगाढ़ होता गया और जल्दी ही वह दिन भी आया जब गांधीनगर पब्लिक स्कूल में ही आयोजित उनके कविता संकलन --'अजनबी चेहरों के बीच ' के लोकार्पण में मुझे विशिष्ट अतिथि के तौर पर अपना बीज वक्तव्य देने का अवसर भी प्राप्त हुआ और हम साहित्य की नई -नई योजनाएं बनाने लगे ।
✍️राजीव सक्सेना
डिप्टी गंज
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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