मुरादाबाद मंडल के साहित्य के प्रसार एवं संरक्षण को पूर्ण रूप से समर्पित संस्था साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से प्रख्यात साहित्यकार एवं संगीतज्ञ पंडित मदन मोहन व्यास की पुण्यतिथि शुक्रवार 23 मई 2025 को सम्मान समारोह,कृति लोकार्पण एवं संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें भक्ति साहित्य एवं संगीत के क्षेत्र में योगदान के लिए वयोवृद्ध साहित्यकार एवं संगीतज्ञ राम अवतार रस्तोगी शरणागत को अंगवस्त्र, मानपत्र, श्रीफल भेंट कर पंडित मदन मोहन व्यास स्मृति सम्मान से सम्मानित किया गया तथा उनकी काव्य कृति श्री हरि वंदना का लोकार्पण किया गया।
लाजपत नगर स्थित श्री रामलीला मैदान के सभागार में आयोजित समारोह का शुभारंभ संयोजक मनोज व्यास और राजीव व्यास द्वारा पंडित मदन मोहन व्यास रचित मां सरस्वती वंदना की प्रस्तुति से हुआ। साहित्यिक मुरादाबाद के संस्थापक डॉ मनोज रस्तोगी ने स्मृतिशेष पंडित मदन मोहन व्यास का जीवन परिचय प्रस्तुत करते हुए कहा कि महानगर के मुहल्ला जीलाल में 5 दिसंबर 1919 को जन्में आडंबर, छल–कपट से कोसों दूर सादगी, सरलता,सहजता की प्रतिमूर्ति, निश्छल और पारदर्शी व्यक्तित्व के धनी पंडित मदन मोहन व्यास साहित्य, संगीत और अभिनय की त्रिवेणी थे। उनकी दो कृतियों भाव तेरे शब्द मेरे तथा हमारा घर प्रकाशित हो चुकी हैं।उनका देहावसान 23 मई 1983 को हुआ।
मुकुल व्यास ने सम्मानित विभूति रामावतार रस्तोगी शरणागत का जीवन परिचय प्रस्तुत करते हुए कहा कि तीन मार्च 1928 को जन्में श्री राम अवतार रस्तोगी 'शरणागत' एक ऐसी विभूति हैं जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन आध्यात्म, भक्ति और संगीत को समर्पित कर दिया।
इस अवसर पर साहित्यकारों द्वारा पंडित मदन मोहन व्यास के गीतों की प्रस्तुति भी की गई। राजीव प्रखर ने उनका गीत ..भाव तेरे शब्द मेरे गीत बनते जा रहे हैं , डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने खिले रसभरे नीरजों को निरख कर, मधुप झूम झुक उठ रहे, मिल रहे हैं, मयंक शर्मा ने जागरण का गीत गाते साथियों , बढ़ते चलो अब और कार्तिकेय व्यास ने हिंदुस्तान जिंदाबाद गीत प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बाल सुंदरी व्यास ने कहा पंडित मदन मोहन व्यास ने अपने ताऊ पंडित बुलाकी व्यास और पिता पंडित पुरुषोत्तम व्यास की संगीत परम्परा को आगे बढ़ाया। वह हारमोनियम, तबला, सितार, मृदंग आदि वाद्य यंत्रों में दक्ष थे।
मुख्य अतिथि डॉ नितिन बत्रा ने उनसे संबंधित संस्मरण प्रस्तुत करते हुए कहा वह एक कुशल शिक्षक और छात्रों के प्रेरणा स्त्रोत थे।
चर्चित दोहाकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा कि कीर्तिशेष मदन मोहन व्यास जी के गीतों में पारंपरिक प्रतीकों की सुरभि से सुवासित प्रेम, प्रकृति, विरह आदि के भाव प्रचुर मात्रा में देखे जा सकते हैं। यह कविता का स्वर्णिम छायावादी कालखण्ड था जब व्यास जी किसी प्रचार-चर्चा से दूर एकांतवासी रहकर 'एक आँख में भरी विदा की करुणा है, और दूसरी में स्वागत का गान है...' जैसे गीत लिखकर हिन्दी गीत को समृद्ध कर रहे थे। आज के हिन्दी गीतों का लालित्य व्यासजी के कालखंड को ही प्रतिबिंबित कर रहा है।
विज्ञान कथा लेखक राजीव सक्सेना ने कहा मदन मोहन व्यास जी केवल कविअथवा गीतकार ही नहीं थे बल्कि बालसाहित्यकार भी थे। एक उत्कृष्ट बालकवि के तौर पर उनकी पहचान राष्ट्रीय स्तर पर थी।प्रसिद्ध बालकवि निरंकार देव सेवक जी ने अपने कालजयी ग्रंथ --'हिंदी बालगीत साहित्य :इतिहास एवं समीक्षा ' में व्यास जी की बालरचनाओं का उल्लेख बड़े सम्मान के साथ किया है।व्यास जी ने अपनी बालकविताओं /गीतों में बालमनोभावों का सूक्ष्म और यथार्थ चित्रण किया है ।
वरिष्ठ साहित्यकार हरि प्रकाश शर्मा ने कहा कि संगीत और साहित्य में स्वर्गीय व्यास जी की मजबूती का इसी बात से एहसास किया जा सकता है कि उस समय के भारतीय स्तर के सम्मानित कवि हरिवंशराय बच्चन ने उनकी पुस्तक की भूमिका लिखी। निसंदेह व्यास जी संगीत और साहित्य के मजबूत स्तंभ थे।
श्रीकृष्ण शुक्ल ने कहा कि बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी व्यास जी पारकर इंटर कालेज में हिन्दी के अध्यापक थे। वह महान संगीतज्ञ होने के साथ ही हिंदी के उत्कृष्ट कवि भी थे। मैंने उन्हें दो तीन बार विभिन्न कार्यक्रमों में सुना था। मंच पर उनकी हास्य प्रस्तुति ही सुनने को मिलीं। मंच पर ही एक संगीत कार्यक्रम में उन्हें तबले पर संगत करते हुए भी देखा। पारकर कालेज के ही स्मृतिशेष प्रेम प्रकाश जी वायलिन वादन कर रहे थे तथा साथ में व्यास जी तबले पर संगत दे रहे थे। अद्भुत प्रस्तुति थी वह, जो आज भी स्मृति पटल पर अंकित है।
डॉ पुनीत कुमार ने कहा कि स्मृतिशेष आदरणीय मदन मोहन व्यास जी बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे।उनकी अपनी अलग शैली और अंदाज था।उनमें जबरदस्त अभिनय प्रतिभा भी थी। वह अपनी भाव भंगिमाओं से उबाऊ माहौल को जीवंत बना देते थे। मैं आज जो भी लिख पा रहा हूं,उसमें स्मृतिशेष व्यासजी का महत्वपूर्ण योगदान है। मेरे मन में उमड़ रही काव्य घटाओं को आदरणीय व्यासजी के मार्गदर्शन और प्रेरणा से ही बरसने का मौका मिला।
धनसिंह धनेंद्र ने कहा कि पं० मदन मोहन व्यास जी से मेरी पहली मुलाकात वर्ष 1974 में प्रो महेन्द्र प्रताप जी के निवास पर 'अंतरा' साहित्यिक संस्था की काव्य गोष्ठी में हुई थी। गोष्ठी में उन्होंने अपनी एक कुण्डली सुनाई थी - "नर को तकती नर्तकी,नित्य जमाये रंग" उनकी इस कुंडली में शब्दों की अद्भुत जादुगरी थी। उनकी रचना से तब मैं बहुत प्रभावित हुआ था। उसके पश्चात उनसे बात-चीत होती रही । प्रायः 'अंतरा' की गोष्ठियों में ही उनके रचना कौशल से अच्छा खासा परिचय हो गया था। वह हिंन्दी साहित्य के ऐसे रचनाकारों में थे जिन्होंने प्रचार-प्रसार से दूर रह कर अपनी कलम से हिन्दी भाषा साहित्य की समर्पित भाव से सेवा की है। उनकी रचनाऐं श्रेष्ठ स्तर की होतीं थीं । उनकी अधिकांश रचनाएं अभी तक अप्रकाशित हैं । उनको उनकी डायरी से निकाल कर पुस्तक के रुप में प्रकाशित किए जाने की आवश्यकता है, ताकि सभी साहित्य प्रेमियों को उनका साहित्य आसानी से सुलभ हो सके।
इसके अतिरिक्त रामदत्त द्विवेदी, उमाकांत गुप्ता, सीमा शर्मा, समीर तिवारी ने भी विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर डॉ राकेश चक्र, दुष्यंत बाबा, श्याम रस्तोगी,अशोक विद्रोही, मनोज मनु, शुभम कश्यप, हरि मोहन रस्तोगी, रश्मि विमल, उमेश त्रिवेदी पप्पन, अनिमेष शर्मा, विनोद सक्सेना, देवेश सिंह, बृजेश सिंह, रविंद्र गुप्ता, नरेश सारस्वत, अभय शर्मा, पूर्णेन्दु शर्मा, सुमन रोहिल्ला, शिखा रस्तोगी, रमेश आर्य, धवल दीक्षित, विष्णु अवतार रस्तोगी , शशि मोहन रस्तोगी, अभिनव रस्तोगी, गणेश रस्तोगी, राजरानी रस्तोगी, ब्रह्मा अवतार रस्तोगी , सारिका रस्तोगी , आशा तिवारी, भाषा तिवारी, अमिताभ, नितिन व्यास, हरि मोहन रस्तोगी, आदि उपस्थित रहे।