खिले रसभरे नीरजों को निरख कर
मधुप झूम झुक उठ रहे, मिल रहे हैं ।
कसे उर्मियों के करों में किरण को
तरङ्गित हृदय-सर बहा जा रहा है,
गगन भी धरा के अधर चूमने को
क्षितिज के किनारे झुका जा रहा है,
किसी कान्ह की बाँसुरी तान सुनकर
किसी राधिका के नयन खिल रहे हैं।
खिले रस भरे नीरजों को निरख कर
मधुप झूम झुक उठ रहे, मिल रहे हैं ।
नियति को नया रूप-यौवन लुटाने
नये साज के साथ मधुमास आया,
रसिक-सूर्य ने भाल पर दिग्वधू के
किरण-हस्त से स्नेह-कुंकुम लगाया
प्रणय की नदी में नयन-नाव पर चढ़
अपरिचित हृदय खो रहे, रिल रहे हैं।
खिले रसभरे नीरजों को निरख कर
मधुप झूम झुक उठ रहे, मिल रहे हैं।
किनारे-किनारे चली जा रही जो
वही धार मँझधार में जा मिलेगी,
जहाँ हास, उल्लास छाया हुआ है
वहाँ पैंठ फिर वेदना की जुड़ेगी
न यह सोचने का समय है किसी को
कि उर के भरे घाव फिर छिल रहे हैं ।
खिले रसभरे नीरजों को निरख कर
मधुप झूम झुक उठ रहे, मिल रहे हैं।
बड़ा ही जटिल रूप का जाल है यह
न इनको यही ज्ञात फँस जाएंगे हम
बड़ा ही कठिन मोह का पाश है यह
न उनको यही ज्ञात कस जायेंगे हम,
मिलन के मधुर गीत ये गा रहे हैं
हरित पल्लवों-मध्य वे हिल रहे हैं।
खिले रसभरे नीरजों को निरख कर
मधुप झूम झुक उठ रहे, मिल रहे हैं।
✍️पंडित मदन मोहन व्यास
बहुत सुंदर गीत
जवाब देंहटाएं