मंगलवार, 13 मई 2025

मुरादाबाद के साहित्यकार योगेन्द्र वर्मा व्योम की कविता...कुत्ते की दुम हो...


अठहत्तर साल हो गये लगभग 

हमारे तुम्हारे बीच हुए बँटवारे को

लेकिन तुम आज भी वैसे ही हो

जैसे पहले थे

झूठे, उद्दण्ड, हिंसक, धूर्त, शातिर

ईर्ष्यालु, नकारात्मक,धर्मांध

इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी

नहीं आया कोई भी बदलाव

तुम्हारे भीतर

नहीं की तुमने कोई तरक्की

नहीं ला पाये तुम अपने भीतर

इंसानियत

सिर्फ लकीर के ही नहीं

हकीकत में भी

फकीर ही रहे तुम

अनगिनत बार

केवल ज़ख़्म ही दिए हैं तुमने

और हमने

सहन करने के साथ-साथ

मुँहतोड़ जबाब भी दिया है तुम्हें

हर बार की तरह इस बार भी

लेकिन तुम हो कि

नाम ही नहीं लेते हो सुधरने का

और प्रयास भी नहीं करते हो

अपने भीतर पल-पल पलती

नफ़रत को ख़त्म करने का

ज़माना कहाँ से कहाँ पहुँच गया, पर

जहाँ से चले थे

खड़े अब भी वहीं तुम हो 

दरअसल

सच तो यह है कि

कभी सीधी न होने वाली

कुत्ते की दुम हो


✍️योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत


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