पापा गुडिया आपको , करे बहुत ही याद ।
जग सूना लगता मुझे , एक आपके बाद।।
एक आपके बाद, हुई मैं आज अकेली ।
उलझाती हैं रोज़, ज़िंदगी हुई पहेली।
सबल वृक्ष की छाँव, गया कब उसको मापा ।
वह मजबूती-साथ ,कहाँ से लाऊँ, पापा !!
✍️ प्रीति चौधरी गजरौला,अमरोहा
जग सूना लगता मुझे , एक आपके बाद।।
एक आपके बाद, हुई मैं आज अकेली ।
उलझाती हैं रोज़, ज़िंदगी हुई पहेली।
सबल वृक्ष की छाँव, गया कब उसको मापा ।
वह मजबूती-साथ ,कहाँ से लाऊँ, पापा !!
✍️ प्रीति चौधरी गजरौला,अमरोहा
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