मीरा अंतस बावरा, करे कृष्ण गुणगान।
उसी सलोने रूप में, बसते उसके प्रान।। 1।।
डूबी मोहन प्रेम में, गयी जगत को भूल।
सुविधाएँ सब राजसी, लगतीं उसको धूल।। 2।।
राह देखतीं गोपियाँ, सुनें वही फिर तान l
कान्हा की ही बाँसुरी, बसते उनके प्रान ll 3।।
तेरे द्वार उपासना, करती हूँ गोपाल l
नैया पार उतारना, नन्द यशोदा लाल ।। 4।।
सुन लो मेरी प्रार्थना, जग के पालन हार।
भव बाधा से मुक्त हो, अपना यह संसार।। 5 ।।
बजी बाँसुरी श्याम की, जब-जब यमुना तीर।
तब-तब बृजवासी सभी, भूले अपनी पीर।। 6।।
✍️ प्रीति चौधरी
गजरौला,अमरोहा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें