गुरुवार, 7 मई 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रागिनी गर्ग की लघु कथा------मुक्ति



सुंदरी नाम था उसका। उम्र लगभग चौदह साल थी।जैसा नाम था, वैसा ही रंग-रूप। जो देखे, देखता ही रह जाए। घर में दो लोग थे, सुन्दरी और उसकी बूढ़ी दादी। दोनों ही एक दूसरे का सहारा थीं ।
यह दादी-पोती की ज़िन्दगी का बहुत मनहूस दिन था। घर में चारों ओर लोगों की भीड़ खड़ी थी। सुन्दरी की खून से लथपथ, क्षत-विक्षत लाश घर के आँगन में पड़ी थी। उसके साथ बलात्कार किया गया था।
उसकी लाश देखकर, दादी रोते हुये , बड़बडा़ये जा रही थी, "दुनिया में बेटी बनकर पैदा होना पाप हो गया है ।अगर बेटी गरीब की हो और सुन्दर हो तो यह तो और भी बड़ा महा-पाप है।
"सुन्दरी !अच्छा हुआ तू मर गयी।माँ बाप तो पहले ही न थे छोरी तेरे, मैं भी कोई अमरबेल खाकर तो न आयी थी, आखिर मैं भी कबतक संग रहकर देखभाल करती। "
दादी का बड़बडा़ना लगातार जारी था इसके अलावा वो बेचारी, गरीब, लाचार बुढ़िया और कर भी क्या सकती थी,
     "बलात्कार के बाद जिन्दा रहती तो रोज एक मौत मरती तू बच्ची। भला हुआ जो हमेशा के लिए सो गयी। भगवान ने अपने पास बुलाकर मोक्ष दे दिया, इन राक्षसों के संसार से,नहीं तो पता नहीं कितनी बार और मरना, तड़पना,पड़ता। कसूरवार न होते हुये भी सवालों के कटघरे में खड़ा होना पड़ता।
नित्य बलात्कार होता, कभी अदालत में , कभी लोगों की गन्दी नजरों से। तेरी चिन्ता में,  मैं न जी पा रही थी और न, ही मर पा रही थी। अब चैन से मर तो पाऊँगी । आज दादी तेरी परवरिश से मुक्त हो गयी।"
इतना कहकर दादी सुन्दरी के ऊपर ही लुढ़क गयी। हमेशा के लिए मोक्ष मिल गया दादी और पोती को इस पापी संसार से।
वहीं भीड़ में खडा़ वो वहशी दरिन्दा मन ही मन मुस्करा रहा था, धीरे से बड़बडा़या "चलो बुढ़िया भी निपट गयी अब मुझे थाने का मुँह नहीं देखना पड़ेगा"  अकस्मात वहाँ खडे़ थानेदार की नजर बुढिया की मुट्ठी में बंद एक कागज पर पडी़ ,उसे निकाल कर पढा़ तो उस पर बलात्कारी का नाम अंकित था, जो कि काफी करीबी था।उसको फौरन गिरफ्तार कर लिया गया । वो दोनों तो मुक्त हो गयीं,किन्तु ऊपरवाले के न्याय की लाठी ऐसी चली कि दोषी बंदी हो गया।
रागिनी गर्ग
रामपुर (उ.प्र)

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